Part 4 - अभी तक आपने पढ़ा कि शीला ने चंदा और मोहन को चंडीगढ़ के इनफर्टिलिटी लैब में ले कर आयी . अब आगे …
वह बदनाम औरत 4
डॉक्टर ने चंदा और मोहन दोनों को सारी मेडिकल और कानूनी प्रक्रिया विस्तार में समझाया . फिर कहा “ वैसे तो शीला का कानूनन कोई हक़ नहीं है पर चूंकि तुम उसके साथ ही रहती हो तो बच्चे को देख कर शीला के मन में उसके प्रति लगाव नेचुरल है . तुम चाहो तो शीला से दूर जा सकती हो लेकिन अगर साथ रहो तो क्या शीला को उस से मिलने या प्यार करने की इजाजत दे सकती हो ? “
“ शीला मैडम से दूर जाने का सवाल ही नहीं है . उन्होंने जितना उपकार हम लोगों पर किया है उसका बदला चुकाने में हम सक्षम नहीं हैं . हम जीवन भर उनके कृतज्ञ रहेंगे और मैडम जब चाहें जितनी बार चाहें बच्चे से मिलजुल सकती हैं . “
“ ठीक है , जब मैं फोन करूंगी तब तुम आ जाना . एम्ब्रायो यानि भ्रूण तुम्हारे गर्भ में स्थापित कर देंगे . मुझे पूरी उम्मीद ही नहीं भरोसा भी है कि तब तुम समय पर माँ बन सकती हो . पर ध्यान रखना शुरू के दो तीन महीने तुम्हें सावधानी बरतनी होगी . तुम्हें ज्यादा मेहनत या भारी भरकम काम नहीं करना होगा वरना हम लोगों की मेहनत पर पानी फिर सकता है . समझ गयी ? “
“ जी डॉक्टर . “ चंदा और मोहन दोनों ने एक साथ कहा और क्लिनिक से निकल गए
पांचवें दिन डॉक्टर ने चंदा को बुला कर भ्रूण को उसके गर्भ में स्थापित कर उसके गर्भधारण की प्रक्रिया शुरू कर दी . डॉक्टर ने चंदा को कुछ दिनों के लिए चंडीगढ़ में रोक लिया , मोहन भी उसके साथ रुका . शीला लौट गयी अपने शहर पर लौटने के पहले उसने उन दोनों के वहां रहने और वापस लौटने का सब इंतजाम कर दिया था .
करीब तीन महीने बाद चंदा और मोहन भी लौट आये . शीला ने चंदा के लिए सारी सुविधाएं जुटा दी थीं ताकि उसे किसी प्रकार का कष्ट न हो या न ही कोई भारी काम करना पड़े . शीला ने चंदा को एक अच्छी लेडी डॉक्टर की निगरानी में रखा था ताकि प्रसव के समय कोई परेशानी न हो . डिलीवरी डेट से कुछ पहले ही उसने चंडीगढ़ वाली अपनी सहेली डॉक्टर को भी बुला लिया था . उसने भी चेक कर कहा कि चंदा की डिलीवरी में कोई दिक्क़त नहीं होनी चाहिए . समय पर चंदा ने एक बेटी को जन्म दिया .
जब चंदा और मोहन ने अपनी बेटी का नाम रखने का अधिकार शीला को दिया तब शीला ने बड़े प्यार से उसका नाम लीला रखा . अब चंदा और मोहन बहुत खुश थे . चंदा अपने आप को पूर्ण महसूस करने लगी थी हालांकि वह जानती थी कि गर्भ तो उसका था पर किसी और के अंश से उसकी बेटी का जन्म हुआ है .
चंद दिनों के बाद ही चंदा और मोहन को लीला का सही चेहरे का अंदाज हुआ . लीला का सांवला रंग उसके पिता के जैसा था पर शक्ल हू बहू शीला जैसा . तब उन्हें डॉक्टर कि कही बात याद आई “ इस तकनीक से जो बच्चा पैदा होता है उसमें उसके पिता और एग्स डोनर के जींस मिलेंगे , तुम्हारा नहीं होगा .बच्चे का चेहरा आप दोनों से न मिल कर डोनर से मिल सकता है , इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है . “
लीला को माँ बाप के प्यार के अतिरिक्त शीला का भी भरपूर प्यार मिल रहा था . शीला की उम्र भी बढ़ रही थी उसके यहाँ आने वाला शायद ही कोई बचा हो . समय के साथ लीला बड़ी हो रही थी . जब वह हाई स्कूल में गयी तब उसकी उम्र 15 के आसपास थी . उसे अन्य सहपाठियों को कानाफूसी करते देखा और सुना और कभी ताने भी . उसकी एक नजदीकी सहेली ने कहा “ तुम्हारा चेहरा तुम्हारे माता पिता से न मिलकर मकान मालकिन मैडम से हूबहू मिलता है . इसको लेकर वे इधर उधर की बातें करते हैं क्योंकि लोगों की नजर में मैडम का चरित्र अच्छा नहीं है , उनके DNA में खराबी है - ऐसा वे बोल रहे हैं , मैं नहीं . “
लीला ने स्कूल वाली बात अपनी माँ को बताई तब चंदा ने डाँट कर कहा “ चुप , ऐसी बात फिर नहीं करना और इधर उधर की बातों पर ध्यान न दे कर पढ़ाई पर ध्यान दो .तुम्हें पता है न मैडम ने हमलोगों पर कितना एहसान किया है . उनके उपकार का बदला हम कभी नहीं दे सकते हैं पर उनके प्रति कृतज्ञ तो रह सकते हैं . आज हमलोगों का वजूद उन्हीं के कारण है वरना गाँव की बाढ़ में हम मर गए होते . अगर बचते भी तो कहीं भीख मांग कर गुजारा कर रहे होते . मैडम समाज के दुर्व्यवहार के कारण ऐसी हैं . शहर के अनाथालय और महिला आश्रम में वे काफी दान देती रहती हैं और अपनी आय का ज्यादातर हिस्सा परोपकार में खर्च करती हैं . “
“ ठीक है , मैं जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करूंगी . उसके बाद हमलोग यहाँ नहीं रहेंगे . “
इस के बाद से लीला ने शीला के यहाँ जाना बहुत कम कर दिया , अगर कभी जाती भी तो किसी काम से . शीला ने जब चंदा से इसका कारण पूछा तब वह बोली “ अब वह ऊंचे क्लास में है न , पढ़ाई का बोझ बढ़ गया है , शायद इसलिए उसे ज्यादा समय नहीं मिल रहा हो . “
“ अभी तक तो मैंने देखा है कि पढ़ाई में वह बहुत तेज है . अगर जरूरत हो तो उसके लिए ट्यूशन रख दूँ ? “
“ नहीं मैडम , वह अपने बल पर ही क्लास में अच्छा कर रही है , क्लास में चौथा या पांचवा स्थान लाती है . अब वह इंजीनियरिंग एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी कर रही है . “
“ फिर तो उसके लिए कोचिंग जरूरी है . “
शीला ने लीला के लिए बिना किसी से पूछे कॉरेस्पोंडेंस कोचिंग का इंतजाम कर दिया . उसकी पढ़ाई में कोई बाधा न हो इसके लिए सर्वेंट रूम से सटा एक छोटा स्टडी रूम भी अलग से बनवा दिया .
हालांकि लीला को यह अच्छा नहीं लगा पर माता पिता के समझाने पर कि यह तुम्हारे भले के लिए है और तुम्हारे भले में हमारा भी भला है . वह मान गयी . लीला ने प्रथम प्रयास में कम्पीट तो किया पर रैंक अच्छा नहीं मिला . इसलिए उसे अच्छा इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं मिल रहा था . वह तो एक साल रुक कर और दोबारा तैयारी करना चाहती थी पर उसके माता पिता नहीं चाहते थे कि एक साल वह घर में बैठे . शीला का भी यही कहना था कि एक साल बर्बाद करना ठीक नहीं होगा . खैर लीला को किसी तरह एक इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया .
देखते देखते लीला थर्ड ईयर में गयी . उसी समय कॉलेज से एक कम्पनी में उसे प्लेसमेंट भी मिल गया . उस कंपनी का नया ब्रांच उसी शहर में खुल रहा था . पैकेज साधारण था पर उसके माता पिता के लिए यह बहुत बड़ी रकम थी . लीला इस शहर से निकल कर किसी बड़े शहर में सेट्ल करने की सोच रही थी . चंदा से जब शीला को यह पता चला तब उसने समझाया “ जा कर बेटी को समझा दो - तुम इस शहर को कम क्यों समझती हो , यह जिला मुख्यालय तो पहले ही बन गया है . अब जल्द ही राज्य के बंटवारे के बाद यह नए राज्य की राजधानी बनने वाला है . “
क्रमशः ( अंतिम भाग में )