अपनी माँ की ऐसी हालत देख कर राजा ने उसे पानी पिलाया। आज जब राज़ खुल ही गया था तो सुशीला बरसों से सीने में दफ़न अपने मन के सारे घाव मानो खोल-खोल कर राजा को दिखा रही थी, सुना रही थी।
सुशीला ने कहा, “राजा श्यामा मैडम अपना यह अपमान शायद कभी भी भूल नहीं पाएंगी कि उनके होते हुए भी उनका पति किसी और के साथ जबरदस्ती … सुना है, तलाक ले रही हैं श्यामा मैडम। बच्चे क्या करेंगे बेचारे, पता नहीं? राजा तुम्हें तो भगवान ने ही पिता के प्यार से, उस सुख से वंचित रखा। लेकिन उन बच्चों से पिता का प्यार, ख़ुद उनके पिता के कारण ही छूट रहा है। बच्चे भी यह जानने के बाद अपनी माँ के साथ ही रहना चाहेंगे। वह यह सच्चाई जानते हैं या नहीं, मैं नहीं जानती। लेकिन इतना ज़रूर जानती हूँ कि यदि वे ये सच्चाई, ये राज़ जान गए कि उनके पिता ने ऐसा अपराध किया था तो शायद अपने पिता की शक्ल भी देखना पसंद नहीं करेंगे।”
राजा की आँखों से बहते आँसू अब तक थम चुके थे, चेहरा क्रोध से लाल हो रहा था। वह उठकर खड़ा हो गया और कहा, “माँ मैं उस इंसान से आपके एक-एक आँसू का एक-एक पल का बदला लूंगा। आपके साथ जबरदस्ती बिताया वह आधा घंटा अब उसकी बर्बादी का कारण बनेगा।”
“राजा ये क्या कह रहा है तू? मैं इसीलिए तुझे यह कभी भी नहीं बताना चाहती थी। मैं शांति चाहती हूँ बेटा। वह बहुत शक्तिशाली है, पूरा शहर उसे जानता है। सारे बड़े-बड़े लोगों में उठना बैठना है उसका। पुलिस वाले हों या वकील सब उसकी मुट्ठी में हैं।”
“मैं किसी से डरता नहीं हूँ माँ। मेरे साथ मेरी माँ का आशीर्वाद है। आपके जीवन की तपस्या मेरी शक्ति है माँ। आपके सीने से लग कर मैंने जो दूध पिया है, वह रक्त बनकर मेरे शरीर में दौड़ रहा है। मेरे उस रक्त में जो चिंगारी थी, वह आज शोला बन गई है। मैं उससे बदला लेकर रहूँगा।”
“नहीं राजा तू ऐसा कुछ भी नहीं करेगा, तुझे मेरी क़सम। देख राजा भगवान के घर देर है अँधेर नहीं। उसे सज़ा मिल तो रही है। उसकी पत्नी की नज़रों में वह गिर चुका है। जिस दिन बच्चों को पता चलेगा, उनकी नज़रों से भी गिर जाएगा। ऐसे इंसान की इज़्ज़त ही क्या?”
“नहीं माँ मैं पूरे समाज के सामने उसकी झूठी इज़्ज़त का पर्दाफाश कर दूंगा।”
“राजा जो इंसान अपनी पत्नी और बच्चों की नज़रों में गिर चुका हो, वह स्वयं की नज़रों से भी ख़ुद ही गिर जाता है। खासतौर से अपने बच्चों के सामने उसकी नज़र कभी ऊपर नहीं उठ सकेगी। उसके पास अब इज़्ज़त बची कहाँ है बेटा?”
इतने में शांता ताई और विमला दोनों खोली में आ गए। आते-आते ही उन्होंने कुछ बातें सुन लीं। उन्हें देखते ही राजा अपने आँसू पोछने लगा जो रुक-रुक कर आ ही जाते थे।
शांता ताई ने मामले की गंभीरता को समझते हुए कहा, “राजा बेटा तुम्हारी माँ बिल्कुल सही कह रही है कि जो इंसान अपने परिवार के सामने खासतौर से अपने बच्चों के सामने अपनी इज़्ज़त गँवा चुका हो, उसके पास बचता ही क्या है। तुम अब बड़े हो चुके हो। नौकरी लगते से अपनी माँ को यहाँ से कहीं दूर लेकर चले जाओ और जितना हो सके उसे प्यार और इज़्ज़त दो। यही उसके लिए अच्छा होगा। अब इस उम्र में बदले का बोझ उस पर मत डालो वरना वह ऐसे ही मर जाएगी बेटा। उसकी चुप्पी का मान रख लो।”
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः