राजा के द्वारा पिता के बारे में पूछते ही सुशीला को ऐसा लगा मानो हवा का एक तूफ़ानी झोंका आकर उसके कानों से टकरा गया है। वह सहम गई, घबरा गई। उस समय ऐसा लग रहा था मानो समय रुक गया है। एकदम शांति थी, कहीं कोई हलचल नहीं थी। सुशीला की आँखें नीचे और राजा की आँखें टकटकी लगाए सुशीला के चेहरे पर टिकी हुई थीं।
अपनी माँ को इस तरह उदास, डरा हुआ देखकर राजा ने उसका हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, “माँ ऊपर देखो, मेरी तरफ़ देखो माँ।”
सुशीला ने अपनी भीगी पलकों को ऊपर उठाया। तब राजा ने कहा, “माँ आप मेरी सब कुछ हो, बस एक बार मैं जानना चाहता हूँ कि आपके साथ क्या हुआ था?”
सुशीला भी तो जानती थी कि उसके बेटे के दिल में कौन-सा दर्द बसा हुआ है।
राजा ने कहा, “माँ मैं जानना चाहता हूँ कि मेरे पिता कौन थे? क्या नाम है उनका? क्या वह आपका प्रेमी था, जो आपको धोखा देकर इस तरह दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ गया?”
सुशीला चुपचाप थी, उसका पूरा बदन इस प्रश्न को सुनकर सिहर उठा।
वह कुछ बोले तब तक राजा ने दूसरा प्रश्न कर दिया, “बताओ ना माँ मैं किस तरह किस वज़ह से जन्मा हूँ? माँ क्या आपके साथ किसी ने बला …,” राजा अपने शब्द को पूरा न कर पाया। मानो उसकी जीभ उस समय बोलना ही भूल गई थी।
सुशीला शांत थी किंतु उसकी आँखों से बहते हुए आँसू बोल रहे थे।
अपनी माँ के बहते आँसुओं को पोंछ कर उसे राजा ने सीने से लगाते हुए कहा, “माँ मुझे आपने अस्तित्व दिया है। मैं समझ सकता हूँ कितनी ठोकरें खाकर, कितनी गालियाँ सुनकर आपने मुझे जन्म दिया होगा। माँ मैं आपको ग़लत नहीं समझ रहा। मैं जानता हूँ जो भी हुआ होगा उसमें आपकी कोई ग़लती नहीं होगी फिर भी माँ, मैं उस इंसान का नाम जानना चाहता हूँ, जो मेरा बाप है।”
एक बार फिर अपने बहते आँसुओं को पोंछते हुए सुशीला ने कहा, “बेटा नाम तो मैं तुझे बता ही दूंगी लेकिन मैं नहीं चाहती कि उसका नाम तेरे नाम के साथ जुड़े। राजा जब मैं 16 साल की थी तब तुम्हारी नानी का देहांत हो गया था। जिस बिल्डर के लिए मेरी माँ काम करती थी, मैं उसके पास माँ के बदले का काम मांगने गई थी। मैं डरती थी, कहाँ जाऊंगी, क्या करूंगी, अकेली थी ना। मैंने उस इंसान पर विश्वास किया था। लेकिन एक दिन काली अंधियारी रात में जब शांता ताई खोली में नहीं थी वह आया और फिर उसने मेरे साथ जबरदस्ती …”, इतना कहकर सुशीला फफक कर रो पड़ी।
राजा ने फिर उसे सीने से लगाते हुए पूछा, “लेकिन माँ आख़िर वह कौन था? यहाँ जो बिल्डर अंकल हैं, उसके बाद उन्होंने आपको सहारा दिया?”
“सहारा … हुँह नहीं राजा, वही तो है वह इंसान जिसका नाम तुम जानना चाहते हो।”
सुशीला के मुँह से यह शब्द सुनते ही राजा चौंक गया और उसने कहा, “माँ आप यह क्या कह रही हो? ऐसा सब कुछ होने के बाद भी आप उसी के लिए, उसी के साथ काम कर रही हो, आख़िर क्यों माँ, आख़िर क्यों?”
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः