उधर सुशीला का बेटा राजा भी मन ही मन दुखी रहता था। पिता के नाम बिना उसे भी जीवन में कठिनाइयों का सामना आए दिन ही करना पड़ता था। कई बार अपमान का सामना भी करना पड़ता था। वह चाहता था कि अपनी माँ सुशीला से पूछ ले कि आख़िर उसका बाप है कौन? कौन है जो उन्हें इस तरह छोड़ कर चला गया? लेकिन कभी भी उसकी हिम्मत ही नहीं होती थी; अपनी जीभ खोलने की। सुशीला ने अपना खून पसीना बहा कर अपने बेटे राजा को एक अच्छा जीवन देने का संकल्प लिया था। सुशीला चाहती थी कि उसका बेटा पढ़ लिखकर एक बड़ा आदमी बने। इसीलिए उसने तन, मन, धन से पूरी जान लगा कर राजा को हर अवसर दिया। अपनी माँ की तपस्या, उसके श्रम का, उसके पसीने की हर बूंद का राजा को भी बचपन से ही एहसास था। इसीलिए उसने भी मेहनत से हर मौके का भरपूर फायदा उठाया और कॉलेज तक पहुँच गया।
जब तक राजा छोटा था, तब तक सब कुछ ठीक था लेकिन बड़े होने के बाद स्कूल कॉलेज में यदि पिता का नाम पूछा जाता तो वह कोई जवाब ना दे पाता। यह दर्द उसके दिलो-दिमाग में नासूर बन कर बैठ गया था। यह दर्द हर पल उसे तकलीफ़ देता, उसे चुभता ही रहता था। अपनी माँ से उस प्रश्न को पूछने की अब तक वह हिम्मत नहीं जुटा पाया था। लेकिन उस प्रश्न का उत्तर उसे हर हाल में चाहिए था।
एक दिन एक इंटरव्यू के दौरान जब उससे पिता का नाम पूछा गया और वह जवाब नहीं दे पाया तो इंटरव्यू लेने वाले ने कह दिया, “ओह हो, यह तो पहले प्रश्न का ही उत्तर नहीं दे पा रहा है, आगे क्या ही पूछूं।”
राजा को काटो तो खून नहीं, वह चुप था। इंटरव्यू लेने वाले व्यक्ति के साथी ने धीरे से उसे टोकते हुए कहा, “यह क्या कर रहे हो? तुम्हें इस तरह उसका अपमान नहीं करना चाहिए था?”
राजा तुरंत वहाँ से उठकर चला गया क्योंकि अपमान तो उसका हो ही चुका था। इसीलिए आज उसकी सब्र का बाँध टूट गया और घर आकर वह सुशीला के पास बैठ गया फिर उसकी गोद में सर रखकर लेट गया। इस वक़्त राजा की आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं। वह हिम्मत जुटा रहा था, सुशीला से प्रश्न करने की। कुछ भी हो लेकिन एक बेटे का अपनी माँ से ऐसा सवाल पूछना आसान नहीं होता। वह सवाल तकलीफ़ तो ज़रूर ही देता है लेकिन आज राजा ने उस तकलीफ़ को लेने और देने, दोनों का पक्का मन बना लिया था। उसे इस तरह से अपनी गोद में सर रखकर लेटा देख, सुशीला प्यार से उसके सर पर हाथ फिराने लगी। तभी सुशीला ने राजा की आँखों में छलका पानी देखते ही उससे पूछा, “राजा क्या हुआ बेटा? तुम्हारी आँखों में आँसू हैं?”
राजा के आँसुओं को अपनी साड़ी के पल्लू से वह पोंछ ही रही थी कि राजा ने रुंधी हुई आवाज़ में पूछ ही लिया, “माँ मेरे पिता का नाम क्या है?”
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः