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बंधन
प्रेम के भाग 4
(मेजर विक्रम और शांभवी की प्रेम कहानी आगे बढ़ती है।वे धरती का
स्वर्ग कहे जाने वाले देश के इस खूबसूरत राज्य की राजधानी की यात्रा पर हैं।…..शांभवी
के माता-पिता दिल्ली से लौट रहे हैं और वे दोनों एयरपोर्ट पर उन्हें रिसीव करने पहुंच
रहे हैं….. आज के इस भाग में पढ़िएगा कि आगे क्या होता है…….)
(6)
मेजर विक्रम और मेजर विक्रम और शांभवी की कार ठीक समय पर शहर में
प्रवेश कर गई। एयरपोर्ट शहर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर था।ये लोग शहर के बीच से
होते हुए एयरपोर्ट की ओर बढ़े। हिमालय की घाटी में बसा यह शहर भी बहुत खूबसूरत है।झील
के किनारे बने इस शहर में आकर दोनों को बहुत खुशी हुई। अभी उनके पास समय नहीं था अन्यथा
दोनों झील में शिकारे से सैर करने के बारे में जरूर सोचते। अभी झील में खूब
पानी था और यह झील जमती भी है तो कड़ाके की ठंड के दिनों में।अभी तो इस झील में कई
शिकारे तैरते हुए नजर आ रहे थे।
शांभवी ने कहा- देखिए विक्रम जी कितना मंत्रमुग्ध कर देने वाला नजारा
और पानी में तैरते हुए ये रंगबिरंगे घर…. ये
हाउस बोट.....सचमुच कितना सुंदर लगता होगा यहां पहुंचकर।
विक्रम ने एक नजर झील की
ओर डालते हुए कहा- तुमने सच कहा शांभवी मेरी भी इच्छा यहां फुर्सत से आकर दो दिन गुजारने
की है। फिर कभी मौका मिलेगा तो हम लोग ज़रूर आएंगे......पूरे परिवार सहित...... मैं
तो मम्मी और पापा के साथ हाउस बोट में दो दिनों तक रह चुका हूं और सच में यह पानी पर
तैरता हुआ घर ही है, जहां सारी सुविधाएं हैं..... ड्राइंग रूम से लेकर बेडरूम तक......
शांभवी-गज़ब जब मुझे हाउस बोट और शिकारे की सैर का मौका मिलेगा तो
बहुत मज़ा आएगा.....
विक्रम- मुझे आश्चर्य है कि अब तक तुम इनकी सैर नहीं कर पाई....
शायद पिछले सालों से जो गड़बड़ियां चल रही हैं.... उनके कारण ऐसा हुआ....
शांभवी का ध्यान झील के उस ओर पार्श्व में दिखाई दे रही स्लेटी रंग
की खूबसूरत पहाड़ियों की ओर था। जैसे समूचे दृश्य को किसी चमकते फ्रेम में जड़ दिया
गया हो।उसके मुँह से निकला-व्वाह….वाह…. मेजर साहब कुदरत की अद्भुत चित्रकारी……..
(7)
शहर के बीचोंबीच से गुजरते हुए मेजर विक्रम ने शांभवी
से कहा- शांभवी हमारे इस स्टेट ने अतीत में बहुत दुख झेले हैं।अब इस शहर को फिर से
रौनक से भरा हुआ देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है।पता है शांभवी,मैं कैप्टन से मेजर
पद पर प्रमोशन होने के बाद पिछले महीने इसी शहर में तैनात था । यहां दिन भर ड्यूटी
के बाद रात को कैंप लौटने पर अपने मोबाइल के नोटपैड में मैं एक डायरी लिखा करता था।उनके
कुछ हिस्से मैं तुम्हें व्हाट्सएप में सेंड कर रहा हूं जरा उसे देखना…….
अगले ही क्षण मेजर विक्रम का संदेश शांभवी के मोबाइल
में आ गया और वह उनकी डायरी के पन्नों की इन पंक्तियों को पढ़ने लगी-
"मैं अभी इस शहर का ह्रदय कहे जाने वाले ग्रीन
स्क्वायर में तैनात हूं …….अभी कुछ महीनों पहले ही विशेष धारा हटाकर इस स्टेट को विशेष
प्रदेश का दर्जा दिया गया है। तब मैं यहां नहीं था उसी दिन मैं प्रमोशन के बाद कैप्टन
से मेजर के रूप में अपनी यूनिट जॉइन कर रहा था …….यहां से बहुत दूर अपनी बटालियन में
……….लेकिन टीवी और अखबारों से हमें पूरी जानकारी मिल जाती थी ……….राजधानी में इस बारे
में कोई घोषणा होने से एक हफ्ते पहले ही यहाँ घाटी में बड़ी सुगबुगाहट थी और एहतियातन
सुरक्षाबलों और पुलिस की अनेक कंपनियां चप्पे-चप्पे पर तैनात की गई थीं। सभी को ये
लग रहा था कि हुक्मरान कोई बड़ा कदम उठाने जा रही है,लेकिन किसी को भी अनुमान नहीं
था कि ऐसा कोई फैसला निकट भविष्य में ही ले लिया जाएगा……..
……..पड़ोसी राष्ट्र की शह पर जब आतंकवादी किसी
हमले की तैयारी करते हैं और सुरक्षा एजेंसियों को जब उनका सटीक इनपुट मिल जाता है तो
ऐसा अनेक बार होता है, लेकिन इस बार की सुरक्षा बलों की मौजूदगी थोड़ी अलग थी, क्योंकि
न केवल इस शहर के बल्कि पूरे क्षेत्र के हर छोटे-बड़े गांवों और कस्बों में भी भारी
बल तैनात किया गया था।इसलिए जिन लोगों ने इसे सुरक्षा की सामान्य कवायद ही समझा था,वे
दो-तीन दिनों में ही समझ गए थे कि कुछ अलग कदम उठाया जाने वाला है।……..
……..आज यहां मेरी तैनाती का चौथा दिन है…...यूनिट
से मुझे और मेजर इरफान को राष्ट्र विरोधी तत्वों से निपटने के लिए पिछले महीने ही इस
क्षेत्र में संचालित किए जाने वाले एक ऑपरेशन में भेजा गया है…….। सड़कों पर वीरानी
है लेकिन न जाने कब कहां से गोलियां चलने लगे……….. ग्रीन चौक मार्केट के पास में यहां
की घनी बस्ती है लेकिन अभी गहरी खामोशी छाई हुई है..... और मैं समझ सकता हूं कि कर्फ्यू
लगे होने की स्थिति में आम शहरी को चीजें खरीदने के लिए कितनी मुश्किल होती है......
हालांकि हुक्मरान लोगों को अपनी ओर से चीजें मुहैया कराने की पूरी कोशिश कर रही है....
हमारे इस स्टेट का पिछले दो-तीन दशकों से यह बड़ा दुर्भाग्य रहा है कि अनेक अलगाववादी संगठनों के आह्वान पर जोर जबरदस्ती
से यहां के जनजीवन को ठप करने की कोशिशें की जाती रही हैं........ यहां के हाउस बोट बंद हो जाने से ...... शिकारों के नहीं
चलने से जिन लोगों की जीविका इन के ऊपर निर्भर है, उनके परिवार का पेट कैसे भरता होगा?...
बंद और हड़ताल से यहां पर्यटक स्थलों के गाइड भी तो बेकार हैं..... और फिर यहां के परंपरागत कालीन और गलीचे
का काम भी तो ठप है... अलगाववाद के बड़े-बड़े रहनुमा तो अपने आलीशान महल जैसे घरों
में सुरक्षित रहते हैं ......सर्व सुविधा संपन्न..... लेकिन आम अवाम को खाने तक के
लिए तरसना पड़ जाता है .........और अगर कोई बीमार पड़ा तो उन्हें अस्पताल ले जाना कितना
मुश्किल कार्य होता है........ ईश्वर करे हमारे स्टेट के लोगों की पीड़ा का जल्द समाधान
हो.......
..........कितनी खूबसूरत है यह मेरी जन्मभूमि…..लेकिन जैसे कुछ महीनों
से यह सुनसान और वीरान है।पिछले तीन दशकों में सूफियाना संस्कृति और मिली-जुली तहज़ीब
की इस धरती में मज़हब के नाम पर वैमनस्य खड़े करने की कोशिश की गई। जिस मुल्क को इंसानियत
का पालना कहा जाता है और जहां सभी मज़हब के लोग मिलजुलकर हजारों साल से रहते आए हैं,वहीं
के इस स्टेट में कुछ मुट्ठी भर दहशतगर्दों ने मज़हब के नाम पर निशाना बनाकर एक मज़हब
विशेष के लोगों को अपनी ही धरती से बेदखल कर दिया।इसे उन्होंने नाम दिया सांस्कृतिक
अस्मिता का। राष्ट्र की मिली-जुली संस्कृति से अलग यह कैसी सांस्कृतिक अस्मिता है,जो
हजारों सालों से साथ रहने वाले अपने ही लोगों को उनकी मातृभूमि से बेदखल कर देती है।………...कोई
भी तथाकथित अलग सांस्कृतिक अस्मिता, मज़हब की आड़ में धर्मों के बीच इस तरह की ख़ूनी
नफरत और हिंसा को प्रायोजित नहीं करती है।"
शांभवी आगे पढ़ती गई ……अपने देश के अन्य हिस्सों
की ही तरह यहां का आम शहरी भी अमन पसंद है,लेकिन अभी भी देश की यह धरती दहशतगर्दी के
हमलों में कई बार रक्तरंजित होती है और केसर के कण मानों लहू के रूप में बार-बार इस
धरती पर बिखर जाते हैं।
……..राष्ट्र विरोधी ताकतों के मंसूबे अब तक कामयाब नहीं हो पाए हैं
और अब इसे हमेशा के लिए तोड़ने के उद्देश्य से सरकार एक बड़ा कदम उठाने जा रही थी।……
मैं उस निर्णय के कुछ महीनों बाद ,मुट्ठी भर दहशतगर्दों द्वारा ऐसी किसी योजना को विफल
करने और उनके द्वारा उठाए गए राष्ट्रविरोधी
कदम को रोकने की दृष्टि से यहां तैनात हूं……..
…….. आज यहां हमारी तैनाती का सातवां दिन है और हमने पूरे शहर में
फ्लैग मार्च किया..... ……..हमारे राज्य की लाखों जनता ने अतीत में कठिन दौर भी देखा
है और लोग उस निर्णय के बाद अभूतपूर्व सहयोग कर रहे हैं ……..लोगों के सहयोग से इस कठिन
दौर से अब हमारा यह क्षेत्र धीरे-धीरे बाहर आ रहा है फिर से सब कुछ पहले की तरह खूबसूरत
हो जाएगा ….इस कदम के उठाने के बाद आगामी कुछ महीनों में एहतियातन उठाए गए कदम धीरे-धीरे
वापस लिए जाने लगे हैं……..
……...आज का दिन कल से भी अधिक खुशगवार है …..यहाँ जनजीवन पूरी तरह
सामान्य हो गया है…….. हो सकता है अगले महीने हमें यूनिट में वापस बुला लिया जाए……
अलग-अलग दिन टुकड़ों टुकड़ों में लिखे गए विक्रम
के विचारों को पढ़ने के बाद शांभवी ने गहरी सांस लेते हुए कहा-..... काश विक्रम जी,
लोग अमन और मोहब्बत की भाषा समझते…. तो शायद गोलियों की आवश्यकता ही नहीं होगी…. और
आप फ़ौज़ी लोग जो भारी राइफल हमेशा साथ रखते हैं और सामान्य दिनों में भी जो लोडेड पिस्तौल
अपने पास रखते हैं…….उनकी कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी…..
मेजर विक्रम ने मुस्कुराकर कहा- हां शांभवी।काश ऐसा हो जाए……….
(8)
आज झील के किनारे सैकड़ों की संख्या में देश-
विदेश के सैलानी दिखाई दे रहे हैं।शहर फिर से गुलजार हो गया है। झील में रंग-बिरंगे
कपड़ों से सजे शिकारे मानो तैरते हुए एक दूसरे से रेस लगा रहे हों.... यह एक बड़ा शहर
है …….प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण और चिनार के पेड़ तो मुख्य सड़कों के दोनों किनारों
पर शहर के बीचो-बीच भी नजर आते हैं।
मेजर विक्रम के अनेक दोस्त और परिचित इस शहर
में थे।दोपहर के 1:00 बज रहे थे और सड़कों पर भीड़ भाड़ भी काफी थी। शांभवी और विक्रम
बिना देरी किए एयरपोर्ट के रास्ते में निकले।रास्ते में वाहनों की रूटीन जांच चल रही
थी और मेजर के अपना आई कार्ड दिखाते ही मुस्कुरा कर उस फौजी ने कहा- अरे वाह मेजर साहब
आज सिविल ड्रेस में।मेजर विक्रम ने भी मुस्कुरा कर अभिवादन किया और कहा- हां भाई। आज
आर्मी नहीं सिविल ड्यूटी में हूं …...मोहतरमा के साथ उनके घर की ड्यूटी।
चेकप्वाइंट से कार आगे बढ़ने के बाद थोड़ा शर्माते हुए और बनावटी हल्की नाराजगी व्यक्त
करते हुए मुँह बनाकर शांभवी ने कहा- मेजर साहब फिर इतना अधिकार जमाने लगे मुझ पर? विक्रम
जी हम अच्छे दोस्त हैं आपस में। ....बस इससे अधिक कुछ नहीं।
मेजर विक्रम ने हँसते हुए कहा- इतनी गंभीर क्यों हो गई शांभवी ?मैंने
तो उस फौजी से मजाक किया था और देखो बातें करते-करते एयरपोर्ट भी आ पहुंचा।अपने मम्मी
पापा से मिलने को लेकर शांभवी की आंखों में चमक आ गई। मेजर ने गाड़ी पार्क की और दोनों
एयरपोर्ट के मुख्य द्वार की ओर बढ़े। कड़ी सुरक्षा जांच और आईकार्डों की चेकिंग के
बाद उन्हें भीतर आने दिया गया और दोनों लाउंज में आकर कुर्सियों पर बैठ गए। फ्लाइट
बस लैंड करने ही वाली थी। बगल की शॉप से मेजर दो कप कॉफी ले आए और कॉफी पीते हुए दोनों
फिर बातों में मशगूल हो गए।
थोड़ी ही देर में टर्मिनल से मम्मी और पापा बाहर
आते हुए दिखाई दिए।अपनी बेटी और साथ में मेजर विक्रम को देखकर दोनों के चेहरे पर मुस्कुराहट
आ गई।शांभवी दौड़ कर उनके पास गई ।उसने दोनों के चरण स्पर्श किए और उनसे लिपट गई।शांभवी
के उनसे अलग होने के बाद मेजर विक्रम भी उनके चरण छूने के लिए आगे बढ़े।मम्मी-पापा
ने मेजर विक्रम को भी गले लगा लिया।शांभवी ने पापा के हाथ से ट्रॉली बैग ले लिया और
सभी धीरे-धीरे बाहर आने के लिए मुख्य द्वार की ओर बढ़े।
(क्रमशः)
(आखिर शांभवी मेजर विक्रम को उनके प्रस्ताव के प्रत्युत्तर में जो
बातें बताना चाहती थी, उसका मौका उसे कब जाकर मिला?शांभवी और मेजर विक्रम की इस कहानी
में आगे क्या होता है, यह जानने के लिए पढ़िए इस कथा का अगला भाग आगामी अंक में। )
(यह एक काल्पनिक कहानी है किसी व्यक्ति,नाम,समुदाय,धर्म,निर्णय,नीति,घटना,स्थान,संस्था,आदि
से अगर कोई समानता हो तो वह संयोग मात्र है।)