HAPPY ENDING
नमस्कार दोस्तों। आशा करता हु की आप सब ठीक ही होंगे। आज मे लेखक वरुण पटेल फिरसे हाजिर हु आप के बिच हमारी बहुत ही मजेदार कहानी दो पागल के एक और अंक के साथ लेकिन मेरी बिनती है आप सब लोगो से कि अगर आपने आगे के ३६ अंको को नहीं पढा है तो सबसे पहले उन अंको को पढले ताकी आपको यह अंक अच्छे से समझ आए। आगे के अंको को पढने के लिए आप इस पेज मे सबसे निचे की और चले जाये और वहा दि गई सभी अंको की लिंक पर क्लिक करे और पढे सारे बहेतरीन अंक । तो आइए शुरु करते है हमारी इस बहेतरीन नवलकथा के इस बहेतरीन अंक को।
आगे आपने देखा की कैसे संजयसिह अपने गुस्से मे अंधा होकर गीरधनभाई पे गोली चला देता है और वो गोली डाईनी किडनी पर जाकर लगती है और गीरधनभाई को गोली से बचाने के लिए दोड रहे रुहान और जीज्ञा नाकामयाब हो जाते हैं। गोली लगने के कारण गीरधनभाई नीचे गीरने लगते हैं और जीज्ञा उन्हे पकड लेती है और अपनी गोद मे सुलाती है और बार बार अपने पापा के गालो पे हाथ लगाकर रोते हुए बोलती है।
पापा... प्लीज सोना मत... आपको कुछ नहीं हुआ है...जीज्ञाने रोते हुए और आखो मे कुछ खोने के डर के साथ कहा।
जीज्ञा के पापा के लिए भले ही जीज्ञा ज्यादा महत्वपूर्ण ना हो पर जीज्ञा के लिए उसके पापा काफी महत्व रखते थे। पुर्वी, चंपाबा, पुर्वी के मम्मी पापा सब दोडकर गीरधनभाई और जीज्ञा के पास जाते हैं।
संजयसिह... चिल्लाते हुए रुहान संजयसिह के पास दोडकर जाता है और उसके हाथ से गन छिन लेता है और अपनी सारी भडास संजयसिह पर उतारने लगता है।
रुहान उसे छोडो और तुम जीज्ञा के पापा को अस्पताल लेजाने का इंतजाम करो। संजयसिह को मे देख लुंगा... महावीरने संजयसिह का गला पकडते हुए कहा।
मेने पुलीस को फोन कर दिया है वो लोग आते ही होंगे... पुर्वी के पापाने कहा।
रुहान दोडकर जीज्ञा और गीरधनभाई के पास आता है। पापा को गोद मे लेकर जीज्ञा रो रही थी और यह देखकर गीरधनभाई की आखो मे से भी आसु निकल रहे थे। गीरधनभाई को अपना अभीमान तुटता हुआ साफ साफ नजर आ रहा था। गीरधनभाई जीस लडके से अपनी बेटी की शादी करने जा रहे थे वो लडका और उनके हिंदु संगठन का सभ्य और होनेवाले समधी तक इस कठीन समय मे उनको जगह से भागकर जाते हुए दिख रहे थे। गोली चलने के बाद सभी महमान लोग वहा से जल्द से जल्द भागने की कोशिश मे थे अब सिर्फ जीज्ञा के मामा और उनका नजदीकी परिवार ही वहा हाजीर था। संजयसिह को बुरी तरह से पिटकर वहा बचे हुए कुछ महमानो को रवी और महावीर पुलिस के आने तक शोप देते हैं।
रुहान जीज्ञा के पापा के पास अपने घुटनो पे बेठता है।
जीज्ञा रुहान के हाथ पकडती है और रोते हुए एक लाचार इंसान की तरह बिंनती करने लगती है।
रुहान प्लीज मेरे पापा को बचा लो वरना मे जी नहीं पाउंगी प्लीज... रुहान के सामने हाथ फेलाते हुए जीज्ञाने कहा।
तुम चिंता मत करो मे पापा को कुछ नहीं होने दुंगा चाहे मुझे कुछ भी क्यु न करना पडे अम्मी कसम... जीज्ञा की आखो के आसु पोछते हुए रुहानने कहा।
मे एम्बुलेंस बुलाता हुं... पुर्वी के पापाने कहा।
एम्बुलेंस के आने मे वक्त लगेगा उतने वक्त मे हम वहा तक पहुच जाएंगे हमारी कार आगे नाके पर ही है वहा तक मे इन्हें उठाकर ले जाता हुं आप सब भी अस्पताल पहुचीए। महावीर तुम आगे जाके कार घुमाके रखो...रुहानने गीरधनभाई को अपने हाथो से अपनी गोद मे उठाते हुए पुर्वी के पापा और अपने दोस्तो से कहा।
रुहान गीरधनभाई को उठाकर दुल्हन के जोडे मे सजी हुई जीज्ञा के साथ अपनी कार की और भागता है और अपनी इस हालत को गीरधनभाई अच्छी तरह से महसूस कर पा रहे थे। गीरधनभाई का सारा अभीमान तुट चुका था क्योकी जीस इज्जत के कारण वो सबकुछ कर रहे थे वो आज जमीन पर बिखरी हुई थी। हिंदू मुस्लिम का फर्फ जो उनके अंदर था वो भी तुटता हुआ नजर आ रहा था क्योकी आज एक मुस्लिम लडका हि उनकी जान बचाने के प्रयास मे लगा हुआ था। रुहान गीरधनभाई को लेकर कार के पास पहुचता है और गीरधनभाई को अपनी गोद मे लेकर खुद पीछे बेठता है और जीज्ञा आगे की सीट पर बेठती है। महावीर कार चलाकर अस्पताल की तरफ आगे बढता है और बाकी के लोग पीछे से किसी ना किसी तरह अस्पताल पहुचने के लिए निकलते है।
आखे खोली रखना अंकल अभी जाना नहीं है। अभी बहुत कुछ करना है... रुहानने गीरधनभाई के गालो पर धीरे से हाथ लगाते हुए कहा।
गीरधनभाई के शरीर से खुब बहना अभी तक बंद नही हुआ था। रुहान और जीज्ञा के हाथ और कपडे खुन से रंग गए थे।
मुझे बचाले प्लीज़... मोत से डरे हुए गीरधनभाई ने रुहान के हाथ को पकडकर कहा।
मे आपको कुछ नहीं होने दुंगा... रुहानने कहा।
रुहान, महावीर और जीज्ञा गीरधनभाई को लेकर अस्पताल पहुचते है। गीरधनभाई को कार से उतारकर अस्पताल के कर्मचारीओ के द्रारा अंदर ले जाया जाता है। मोत की गोद मे झुल रहे गीरधनभाई की नजर सीर्फ अपनी रोती हुई बेटी जीसकी आखो मे अपने को खोने का डर दिख रहा था वेसी जीज्ञा की तरफ ही थी। गीरधनभाई को ओपरेशन थीयेटर मे लेजाया जाता है, डॉक्टर के रोकने के बावजुद जीज्ञा और उसके पीछे रुहान अंदर चले जाते हैं।
मे आप प्लीज बहार जाए... डोक्टरने कहा।
जीज्ञा अपने पापा को देखते हुए रुहान से लिपट जाती है और फुट फुट के रोने लगती है। रुहान जीज्ञा को समझाते हुए बहार ले जाता है और यह देखने के बाद अचानक से गीरधनभाई की आखे बंद हो जाती है । डॉक्टर अपने कार्य की शुरुआत करते है । पुर्वी, रवी और पुर्वी के मम्मी पापा भी अस्पताल पहुचते है। पुर्वी किसी से कुछ भी पुछे बिना सबसे पहले जीज्ञा को गले लगाती है।
क्या हुआ कुमार(जमाई को गजराती मे कुमार बोलते हैं) की हालत केसी है ...पुर्वी के पापाने रुहान से पुछते हुए कहा।
डोक्टरने अपनी प्रोसेस शुरु कर दी है फिर देखते हैं... रुहानने जीज्ञा की तरफ देखते हुए पुर्वी के पापा से कहा।
दो घंटे बितते है। जीज्ञा और रुहान एक दम शांत होकर पास पास बेठे थे ।
हो सके तो मुझे माफ कर देना जीज्ञा मेने इस शादी को बचाने की बहुत कोशिश की पर मे नाकामयाब रहा। माफ कर देना मुझे मेरी वजह से यह सब हुआ इस परिस्थिति का जिम्मेवार मे हु... रुहानने अफसोस जताते हुए कहा।
अपने आप को इतना भी दोष मत दो रुहान। जो भी हो रहा है वो मेरी किस्मत है तुम्हारी गलती नहीं उल्टा तुमने मेरी वजह से बहुत कुछ सहा है तुम मुझे माफ कर दो प्लीज... जीज्ञाने अपने आसु पोछते हुए रुहानने कहा।
अब तो बोल दे जीज्ञा कि तु रुहान से बेपनाह प्यार करती है... पुर्वीने पास आकर कहा।
कहने की जरुरत नहीं है मे साफ साफ देख पा रहा हु और मेरी एसी कोई ख्वाहीस नही है की तु मुझसे शादी करे पर हा एकबार गले जरुर लगाने देना क्योकी तुझसे गले लगकर मुझे फुट फुट के रोना है और उन आसुओ के तले दबे हुए काफी जख्मो को बहार निकालना है... रुहानने आखो मे आसुओ की नमी के साथ कहा।
जेसे ही रुहान बोल लेता है जीज्ञा बेठे बेठे ही रुहान को गले लगा लेती है और दोनो फुट फुट के रोने लगते हैं। दोनो एक दुसरे से इतना कसके गले लगे थे की जाने दोनो एक जीस्म और दो जान हो। दुनिया के हर एक प्रेमी के लिए जन्नत वाला पल एक ही होता है और वो पल यानी जब दोनो एक दुसरे से कसके गले मिले होते हैं तो उन्हें बस एक दूसरे के साथ की ही जरुरत होती है उन्हे ना तो स्वर्ग से और इस दुनिया से कोई लेना देना नही होता है।
डॉक्टर ओपरेशन थीयेटर से अपना कार्य करके बहार आते हैं। डॉक्टर को देख सभी डॉक्टर के पास आते हैं। बेंच पे बेठे हुए जीज्ञा और रुहान भी खडे होकर डॉक्टर के पास आते हैं।
डॉक्टर क्या हुआ मेरे पापा बच तो जाएंगे ना... जीज्ञाने सवाल करते हुए कहा।
डॉक्टर अभी हालत केसी है उनकी... पुर्वी के पापाने सवाल करते हुए डॉक्टर से कहा।
अभी उनकी जान को खतरा नहीं गोली तो हमने निकाल ली है पर... डोक्टरने अपनी धीमी आवाज से कहा।
पर क्या डॉक्टर... रुहानने डोक्टर से कहा।
हा बोलो ना डोक्टर पर क्या... जीज्ञाने डोक्टर से कहा।
दिमाग मे कोई चोट या और कुछ हमे लग नहीं रहा है सायद वो किसी सदमे के कारण अभी कोमा मे चले गए हैं और कोमा तो आप जानते ही है। अब सब ईश्वर के हाथ मे है... इतना बोलकर डोक्टर चले जाते हैं।
रुहान और पुर्वी जीज्ञा को इस गंभीर समाचार के बाद संभालते है। रवी के फोन की घंटी बजती है और रवी फोन उठाता है।
जी मेम, मेम मे आज ही कुछ करता हु और सारी फोर्मालीटी मे पुरी कर दुंगा आप बस यह काम कर दीजिए। मे मीलता हु आपको आकर... बात पुरी करके रवी फोन काट देता है।
कोन था... महावीरने कहा।
महावीर तुझे जल्द से जल्द बरोडा जाना होगा और मेरा एक काम करना होगा क्योकी रुहान अभी कुछ दिन यहा पे रुकेगा और उसकी मदद के लिए मुझे यहा रुकना होगा तो प्लीज़ ...रवीने रुहान से बिनती करते हुए कहा
हा हा उसमे क्या मे जाता हु ना तुम बस बताओ काम क्या है... महावीरने रवी से कहा।
वो मे तुझे फोन मे बता दुंगा तु मेरे घर पे फ्रेस होकर बरोडा के लिए निकल ठीक है मे और रुहान यहा रुकते है... रवीने महावीर से कहा।
ठीक है।
AFTER 5 DAYS TO GO
आई सी यु रुममे गीरधनभाई के बेड के पास एक तरफ जीज्ञा, रुहान बेठे हुए थे और एक तरफ चंपाबा। जीज्ञा गीरधनभाई का हाथ अपने हाथो मे लेकर बेठी थी और अपने पापा की तरफ बडे प्यार से देख रही थी। रवी एक फाईल लेकर आता है और जीज्ञा की साईन करवाता है।
AFTER 1 MONTH
गीरधनभाई अभी भी कोमा मे थे और जीज्ञा उनके लिए बहुत परेशान थी। जीज्ञा और रुहान अब एक दुसरे को धीरे धीरे खुलकर स्वीकारने लगे थे। दिल्ली से वापस आने के बाद मुहम्मद भाई सीधे अस्पताल पहुचते है गीरधनभाई की तबीयत देखने के लिए।
कैसे हो बेटा... जीज्ञासे मुहम्मद ने कहा ।
अच्छी हु अंकल आप कैसे हो... अपनी जगह से खडे होकर मुहम्मद भाई के पेर छुते हुए कहा।
तुम बादशाह... अपने बेटे रुहान को पुछते हुए गीरधनभाई ने कहा।
बस अब अंकल के होश मे आने का इंतजार है फिर देखते हैं दुल्हन तो तैयार है बस बिदा करनेवाला राजी होना चाहिए... हसते हुए मजाक के स्वरूप मे अपने दिल की बात बताते हुए रुहानने कहा।
तीनो इस बात पर मुस्कुराते है ।
तुम लोगो के लिए खुश खबर है कि संजयसिह को कुछ ही दीनो मे सजा मिल जाएगी और माफ कर देना तुम्हारे मुश्किल वक्त मे मे तुम्हारे साथ नहीं था...गीरधनभाई ने जीज्ञा और रुहान से कहा।
2 MONTHS AFTER
संजना मेडम, रवी और महावीर की महेनत के बदोलत अब जीज्ञा की लिखी हुई कहानी ड्रिम फाधर पर बुक छप चुकी थी और अब बारी थी उस बुक को लोंच करने की और उसके प्रमोशन की। जैसे जैसे दिन बितते है वेसे वेसे जीज्ञा के सारे संकट दुर होते जाते हैं और खुशीया नजदीक आती हुई नजर आ रही थी। जीज्ञा और रुहान को बिना रोक-टोक एक दूसरे के साथ खुशी के पल बिताने के लिए मिल जाते थे। संजना मेडम के सहयोग से और बुक पब्लीश हाउस के आयोजन के मुताबिक जीज्ञा के कही इन्टरव्यु करे गए और बाद मे बुक को लोंच किया गया गुजराती भाषा मे। एक महिने मे बुक की पुरी 30000 कोपी गुजरात मे बिकी और इस सफलता से प्रेरीत होकर बुक पब्लीश हाउस ने इस किताब को पुरे भारत भर मे और बहार इग्लीश भाषा और हिंदी भाषा मे पब्लिश किया और वहा भी यह बुक काफी बिकी। पुरे भारत भर मे इस किताब की १०००००० कोपी बिकी और जीज्ञा रातो रातो स्टार बन गए जो उसने सोचा भी नहीं था। इस बिच जीज्ञा और रुहान जीज्ञा के पापा के पास ही ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की कोशीश करते और अब अस्पताल के स्टाफ मे से काफी सारे लोग जीज्ञा को पहचानने लगे थे और जीज्ञा अब अपने आपको एक प्रोफेशनल लेखक के रुप में देखकर बहुत गर्वित महसुस कर रही थी। रुहान जीज्ञा से उसका पहला ओटोग्राफ लेता है। गुजरात मे जीज्ञा रातो-रात लेखको की सुपरस्टार बन चुकी थी और इस बिच जीज्ञा का कही संस्थाओने जाहेरमंच मे सम्मान भी किया और उसमे से एक संस्था वो थी जीस संस्था के सभ्य गीरधनभाई थे और उसके दुसरे सभ्य उनके होते होते रह गए समधी थे जीन्होने गीरधनभाई को समीती से निकालने की बात कि थी। गीरधनभाई अब जीज्ञा के पापा के नाम से जाने जाने वाले थे वो समय अब आ चुका था लेकिन दुःख की बात यह थी की गीरधनभाई पाच महिना होने के बावजुद अभी भी कोमा मे थे।
AFTER 6 MONTHS
आज जीज्ञा के साथ वो हुआ जीसका जीज्ञा को कोई अंदाजा ही नहीं था। जीस प्रतियोगिता मे जीज्ञा मशहूर डिरेक्टर संजयसर के सामने अपनी लिखी हुई एक छोटी सी कहानी पेश करना चाहती थी उसी संजयसरने खुद जीज्ञा को ढुंडकर जीज्ञा की परमीशन लेकर उसे उसका बडा पेमेन्ट देकर किताब ड्रिम फाधर पर फिल्म बनाने की जाहेरात की और इससे जीज्ञा बहुत खुश थी और उसे खुश देखकर रुहान ज्यादा खुश था और यह जीज्ञा साफ साफ देख पा रही थी। उसने फिल्म एनाउन्समेन्ट मे स्टेज पर सबके सामने रुहान को इस सब सफलाताओ के लिए धन्यवाद किया और गले लगकर गालो का चुंबन किया। दोनो अब खुलकर एक दुसरे को चाहने लगे थे अब बस चिंता थी तो सिर्फ और सिर्फ गीरधनभाई की मंजुरी की।
फिल्म एनाउन्समेन्ट इवेन्ट के दो दिन बाद। जीज्ञा अकेली अपने पापा के पास अपने पापा का हाथ अपने हाथ मे लेकर बेठी थी। पापा सुन रहे हैं या नहीं इसकी बिलकुल परवाह किए बिना अपनी आखे बंद करके अपने पापा के साथ बाते कर रही थी।
पापा प्लीज जग जाइए। अब आपके बिना मन नहीं लगता। मे आप जो बोलो गे वो करने के लिए तैयार हु पर आप उठ जाइए प्लीज। मे लिखना छोड दुंगी पर आप उठ जाइए प्लीज। आप जो बोलेंगे वो मे करुंगी... इतना बोलते बोलते जीज्ञा रोने लगती है और गीरधनभाई का शरीर अचानक से थोडा थोडा हिलने लगता है और यह सब देखकर जीज्ञा दोडकर डोक्टर को बुलाती है। गीरधनभाई धीरे धीरे होश मे आते हैं। आखे खोलकर गीरधनभाई सबसे पहले जीज्ञा को देखते हैं। जीज्ञा उनका हाथ पकडकर उन्हे बिस्तर पर बिठाती है और उसी वक्त रुहान का हाथ में दवाई लेकर प्रवेश होता है।
जीज्ञा यह लो दवाई इसे...गीरधनभाई को अपने सामने होश मे बेठे हुए देख रुहान जहा खडा था वही पे रुक जाता है।
रुक क्यु गए बेटा तुन्हे तो जान बचाई है और मे इतना भी बुरा नहीं हु की अपनी जान बचानेवाले से नफरत करु... गीरधनभाई ने अपनी बेटी और रुहान की तरफ देखते हुए कहा।
अंकल मुझे माफ कर दो और जीज्ञा को भी क्योकी उसने कभी भी एसा कार्य नहीं किया जीससे आपकी इज्जत को आच आए... रुहानने गीरधनभाई के पास आकर दवाई टेबल पर रखते हुए कहा।
बेटा जीस दिन गोली लगीना उस दिन इज्जत, अपना गुरुर और अपने अभीमान को जमीन पे रगडते हुए मेने देखा है और यह हिंदु मुस्लिम का फर्क तो तभी ही मीट गया था जब मेने मोत को करीब से देखा था। तब मेने महसुस किया की मनुष्य मनुष्य होता है वो सिर्फ अपनी अच्छाई या बुराई से जाना जाना चाहिए। मेने अपने अहंकार और गुरुर मे अपनी बेटी को ही मार दिया था बेटा मुझे माफ कर दे और अब तुझे जो करना है कर पर मेरी एक शर्ते है क्या तु मानेगी बेटा... गीरधनभाई ने आखो मे आसु के साथ अपनी बात कही।
आप बस कभी इतना सोना मत मे आपकी सब बात सुनुंगी। आप जो कहोगे वो करुंगी... अपने पापा के हाथ अपने हाथो मे लेते हुए जीज्ञाने कहा।
बेटा बस वही मत करना अब तुम हंमेशा अपने दिल की सुनना और वही करना मे तुम्हारे साथ हु। बस अब डोक्टर से बोलो मुझे जल्दी यहा से जाने तुम्हारी रुहान से शादी करनी है और तुम्हें बडी लेखिका बनानी है... गीरधनभाई ने जीज्ञा के दिल की बात अपनी जुबान तले रखते हुए कहा।
अरे यार पापा मे आपको बताना ही भुल गया... रुम के दरवाजे पे खडे जीज्ञा के छोटे भाईने गीरधनभाई से कहा।
अरे मेरा बच्चा भी यहा है... गीरधनभाई ने अपने बच्चे के सामने देखते हुए कहा।
जीज्ञा का भाई आगे आता है और गीरधनभाई के पास बेठता है और जीज्ञा के फेमस होने की सारी कहानी गीरधनभाई को बताता है। एक हप्ता बितता है । अस्पताल से गीरधनभाई को छुट्टी मिल जाती है।
AFTER A ONE MONTH
गीरधनभाई कलेक्टर कचहरी मे अपने कुछ काम से जाते हैं। अंदर लोगो की ज्यादा लाईन होने के कारण गीरधनभाई थक कर साईड मे बेंच पर बेठ जाते है। लाईन होने का एक कारण यह था की कलेक्टर साहेब अभी तक ओफिस नहीं आए थे। आधा घंटा बितता है। कलेक्टर साहेब अपनी ओफिस पहुचते है और जाते वक्त गीरधनभाई को बेंच पे बेठे हुए देखते हैं और उनके पास जाते हैं और उन्हे बुलाते है।
अरे आप तो गीरधनभाई है ना... कलेक्टर साहेबने गीरधनभाई से कहा।
हा पर आप मुझे केसे पहचानते है साहेब। हिंदु समीती मे आपने मुझे देखा होगा कही है ना... गीरधनभाई ने चोकते हुए कलेक्टर साहेब से कहा।
आइए मेरी ओफिस मे। मे आपको बताता हुं...कलेक्टर साहेबने गीरधनभाई से कहा।
दोनो कलेक्टर साहेब की ओफिस मे आते हैं। कलेक्टर अपनी खुरशी पर बेठते है और गीरधनभाई सामने खडे रहते हैं।
बेठीए गीरधनभाई... कलेक्टर साहेबने कहा।
आप मुझे केसे जानते हैं... गीरधनभाई ने कलेक्टर साहेब से कहा।
आप को पहले मेरा एक काम करना है... कलेक्टर साहेबने गीरधनभाई से कहा।
अरे बोलिएना आप को कोन मना कर सकता है... गीरधनभाई ने कहा।
मुझे आपकी बेटी जीज्ञा का ओटोग्राफ चाहिए इस किताब के पहले पेज पर प्लीझ करवा दीजीए क्योकी इस किताबने मेरे और मेरे पापा का रिश्ता ही बदल दिया और मे आपको केसे जानता हु इसका उत्तर भी इसी किताब मे है आप देख लीजिए और हा आपने अभी तक अपनी बेटी की लिखी हुई किताब पढी नहीं है ... कलेक्टर ने जीज्ञा द्वारा लिखी गई किताब गीरधनभाई को देते हुए कहा।
जी नहीं मेने छपी हुई किताब नहीं पढी है मेने डायरेक्टर जीस बुक मे मेरी बेटीने लिखा था वही पढा है क्योकी उसमे बेटी का प्यार थोडा ज्यादा मिलता है क्योकी वो उसका मेदान है और यह वेसे ही हो गया जेसे आप खुद की बेटी को खेलते हुए टेलीविजन पे देखो और लाईव देखो। आपने टेलीविजन पे देखा है और मेने लाईव... गीरधनभाई ने कलेक्टर साहेब से कहा।
जीन किताबो को गीरधनभाई ने डस्टबिन में फेक दिया था उसी किताब की यहा पे गीरधनभाई बात कर रहे थे।
गीरधनभाई किताब का पहला पेज खोलते है और देखते हैं तो उन्हे पहले पेज पे अपनी ही तस्वीर देखने को मिलती है और उस तस्वीर के नीचे लिखा था लव यु पापा। जीस इज्जत के कारण गीरधनभाई जीज्ञा के विरुद्ध थे आज उसी जीज्ञा के कारण गीरधनभाई की इज्ज़त समाज मे बढ गई थी।
HAPPY ENDING
|| जय श्री कृष्ण || || श्री कष्टभंजन दादा सत्य है || A VARUN S PATEL STORY