enemy-friend in Hindi Adventure Stories by Saroj Verma books and stories PDF | दुश्मन-दोस्त

Featured Books
Categories
Share

दुश्मन-दोस्त

मुझे ठीक से याद नहीं कि वो कौन थी,कहाँ से आती थी और क्यों आती थी?मैं तो बस उसके पायलों की आवाज़ सुनकर ही मोहित हो जाता था,मैं उससे कभी कभी पूछता भी था कि तुम रात को क्यों आती हो?तो वो बोलती थी...
मैं दिन में नहीं आ सकती,मेरी मजबूरी को समझने की कोशिश करो...
और मैं हँस देता,वो जब भी आती तो उसके पैरों की पायल मुझे बता देती कि वो आ गई है लेकिन मैं तब भी चुपचाप आँखें मूँदे लेटा रहता और जब वो मेरे माथे का चुम्बन लेती तब मैं अपनी आँखें खोलता और मुस्कुरा के कहती कि.....
तुम जाग रहे थे ना! मुझे सब पता है कि तुम झूठमूठ सोने का बहाना कर रहे थे...
उसकी बात सुनकर मैं मुस्कुरा के कहता....
तुम आ गई,मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था....
तब वो मेरी बात सुनकर कहती.....
झूठे कहीं के...
ऐसे ही हम रातों को मिला करते थे,हम दोनों आँगन में डली खटिया पर होते,मैं उसकी गोद में सिर रखकर लेटता और फिर टिमटिमाते तारों की रोशनी में हम बहुत ढ़ेर सारी बातें करते,वो अपनी चुनरी से मुझे पंखा झलती,फिर हम इसी तरह उस रात उस पुरानी हवेली में टिमटिमाते तारों की रोशनी में बैठें बातें कर रहे थे,तभी लोगों का शोर सुनाई दिया और लोगों की भीड़ उस पुरानी हवेली के दरवाजों पर जोर जोर से धक्का मारने लगी,पुराने दरवाजे थे इसलिए जोर से धक्का देने पर वें कुछ ही देर में टूट गए और वें सब लोंग उस हवेली के भीतर घुस आए और आँगन में आकर बोलें....
पकड़ लो इस पिशाचिनी को ये ऐसे ही भोले भाले मर्दों को अपने जाल में फँसाकर उनका खून चूस लेती है,अब इसने इन स्कूल के मास्टर साहब को फँसाया है,पकड़ो इसे और ले चलो श्मशान वाले बरगद के पास ,अघोरी बाबा वहीं इसका इन्तजार कर रहे हैं,आज तो वें इसे उस बरगद के पेड़ से बाँधकर सब उगलवा लेगें कि ये क्या चाहती है....?
और फिर वें लोंग उसे पकड़कर ले जाने लगे,वो मेरे सामने चीखती रही ,चिल्लाती रही,गिड़गिड़ाती रही,लेकिन मुझे उस समय समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ?क्यों गाँव के लोंग उसे ऐसे ले जा रहे थे और उसे सब पिशाचिनी क्यों कह रहे थें.....?
और इसी खींचातानी में उसके पैरों की पायल टूटकर वहीं रह गई,वें सबलोंग उसे लेकर चले गए,सुबह मुझे लोगों से पता चला कि उसे अघोरी बाबा ने श्मशान के पास वाले बरगद के पेड़ से बाँध रखा है,मुझे फुलमत के ऐसे चले जाने का बहुत अफसोस था,मैं उससे प्यार भी करता था लेकिन अभी मुझे उस गाँव के स्कूल का मास्टर बनें दो ही महीने बीते थे,ना मैं उस गाँव के विषय में ज्यादा जानता था और ना ही फुलमत के विषय में,
उस गाँव में रहने का कोई ठिकाना ना था इसलिए उस पुरानी हवेली के बगल में रहने वाले बनिया दयाराम बोलें कि......
मास्टर साहब! मैं आपको बिस्तर और बरतन दे देता हूँ,पानी के लिए हवेली के आँगन में कुआँ है ही ,जब तक आपको कोई ठिकाना नहीं मिल जाता तो इसी पुरानी हवेली में ठहर जाइए ,
उस हवेली का कोई भी दावेदार ना था,कहते हैं कि करीब अस्सी साल पहले उस हवेली का परिवार जहाज में बैठकर म्यामांर की सैर करने जा रहा था और वो जहाज डूब गया,उस हादसे में हवेली के परिवार का कोई भी सदस्य ना बचा था,तब से वो हवेली ऐसी ही सूनी पड़ी है,तीज त्यौहारों में गाँव के लोंग उसकी सफाई कराकर उसमें दिया-बाती कर देते थे जिससे कि उसमें किसी भी बुरी छाया का प्रवेश ना हो सकें,फिर दयाराम बनिया की बात मानकर मैं वहाँ रहने को मान गया,कभी कभार दयाराम जी मुझे भोजन दे जाते,ऐसे ही दस दिन बीते थे कि एक रात फुलमत वहाँ आई और उसके पैरों की पायल की आवाज से मैं जाग उठा....
मैनें उसके पास जाकर पूछा....
कौन हो तुम?
तो वो बोली...
ये जगह मुझे पसंद है ,क्योंकि यहाँ एकान्त रहता है और मैं कभीकभार यहाँ आती रहती हूँ...
मैनें कहा,इस पुरानी हवेली में...
वो बोली,हाँ! मुझे ऐसी जगहें बहुत भातीं हैं...
फिर वो वहाँ कभीकभार आने लगी,हवेली में उसका आना मुझे भी भाता था,अब फुलमत का वहाँ आना हर रात होने लगा और उसकी प्यारी-प्यारी मीठी-मीठी बातों ने मेरा मन मोह लिया और धीरे-धीरे मुझे उससे प्यार होने लगा,वो भी मुझे चाहने लगी,हमारे बीच प्यार अभी गहरा ही हुआ था कि ऐसी बात हो गई......
मैं इसी उधेड़बुन में था कि ना जाने उन लोगों ने फुलमत के साथ क्या किया होगा,कितना मारा पीटा होगा,मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था,उस दिन मैं दिनभर उदास रहा,लेकिन दिनभर में मैनें ये ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाएं,मैं रात को फुलमत के पास जाऊँगा और उसे छुड़ाकर लाऊँगा और रात होने पर मैनें यही किया,आधी रात का वक्त था,सारा गाँव नींद के आगोश में जा चुका था,मैं श्मशानघाट के पास वाले बरगद के पेड़ के पास पहुँचा और वहाँ मौजूद झाड़ियों के पीछे छुप गया,मैनें देखा कि जो लोंग फुलमत की रखवाली कर रहे थे वें सब भी गहरी नींद में सो रहे थे,वें अघोरी बाबा भी वहीं बगल पर अपनी चटाई पर लेटे थे,मैं बिना शोर मचाएं फुलमत के पास पहुँचा,वो मुझे देखकर खुश हुई ,मैनें उसके हाथ पैर में बँधी रस्सियों को खोल दिया और उसके साथ जंगल की ओर भाग गया,हम बहुत देर तक यूँ ही भागते रहे,जब हम निश्चिन्त हो गए कि अब हमारे पीछे कोई नहीं आएगा तो हम एक तालाब के किनारे रूके,पहले हमने वहाँ जीभर के पानी पिया और मुँह धोकर एक ओर वहीं पड़े पत्थर पर बैठ गए,उसने मेरा शुक्रिया अदा किया और मैनें उसकी पायल लौटाई वो अपनी पायल देखकर बहुत खुश हुई और तब मैनें उससे कहा कि अब मुझे बताओ कि गाँववाले तुम्हें पिशाचिनी क्यों कहते हैं?
मेरी बात सुनकर वो बोली.....
बहुत समय पहले की बात है तब मैं बहुत छोटी थी, मेरी माँ तन्त्र विद्या में दक्ष हुआ करतीं थी और वो अपनी शक्तियों का प्रयोग लोगों की सहायता करने के लिए किया करती थी,सब लोंग उनका बहुत सम्मान करते थे,मैं उनसे कभी कहती कि ये विद्या मुझे भी सिखाओ तो वो कहतीं कि जब तुम समझदार हो जाओगी तब तुम्हें ये विद्या सिखाऊँगीं,नहीं तो तुम इन शक्तियों का प्रयोग अपनी भलाई के लिए करने लगोगी जो कि ठीक नहीं है,फिर एक दिन मेरे पिताजी का कोई दोस्त हमारे घर आया,वो रात भर हमारे घर रूका और दूसरे दिन जब मैं और पिताजी बाहर सामान लेने गए तो उसने मेरी माँ पर बुरी नजर डालनी चाही और मेरी माँ ने उसे जोर का थप्पड़ देकर घर से बाहर निकाल दिया,पिताजी को जब ये बात पता चली तो उन्होंने माँ से कहा कि तुमने बिल्कुल ठीक किया,लेकिन पिताजी के दोस्त ने आखिर एक दिन माँ से अपनी बेइज्जती का बदला ले ही लिया,उसने मेरे पिताजी को मार दिया और मेरी माँ की इज्जत तार तार कर दी,अब मेरी माँ को ये बात भीतर तक चुभ गई और जो विद्या वो लोगों की भलाई करने के लिए प्रयोग में लाती थीं वो उन्होंने अब बदला लेने के लिए प्रयोग की,मेरी माँ मुझे वो अपनी सारी शक्तियाँ सिखाकर मर गईं ,उसकी दी हुई सारी शक्तियांँ मेरी आँखों में हैं,जब तक मेरी आँखें सुरक्षित हैं तब तक मेरा कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता और तबसे जब भी कोई मुझ पर बुरी नजर डालता है या कुछ कहता है तो मैं अपनी उस शक्ति का प्रयोग करती हूँ,इसलिए लोंग मुझे पिशाचिनी कहते हैं....
तो तुमने अपने उस दुश्मन से बदला लिया जिसने तुम्हारे पिता को मारा था और तुम्हारी माँ की बुरी दशा कर दी थी,मैनें पूछा.....
हाँ! चार महीने पहले मैनें उसे खतम कर दिया और अब उसके बेटे की बारी है,फुलमत बोली....
तुम उसके बेटे को क्यों मारना चाहती हो?उसने तो कुछ नहीं बिगाड़ा तुम्हारा,मैनें उससे पूछा....
क्योंकि वो उसका बेटा है इसलिए,फुलमत बोली....
क्या वो तुम्हें मिल गया?मैने पूछा....
तब वो बोली,
हाँ!मेरे सामने ही तो है....
फुलमत की बात सुनकर मुझे याद आया कि अभी चार महीने पहले मेरे पिता की किसी ने हत्या कर दी थी और मैनें बिना देर लगाएंँ वहीं पड़ा बड़ा सा पत्थर उठाया और फुलमत के सिर पर जोर से वार किया,वो बेहोश होकर वहीं गिर पड़ी तो मैनें जल्दी से दो पतली पतली डण्डियाँ तोड़ ली और जैसे ही वो मुझ पर हमला करने के लिए मेरी ओर बढ़ी तो वो डण्डियाँ मैनें उसकी आँखों में घुसा दीं ,वो दर्द से तड़प उठी और उसकी आँखों से खून बहने लगा,चाँदनी रात थी इसलिए मैं सबकुछ ठीक से देख पा रहा था,वो जोर से चीखी.....
धोखेबाज!दोस्त बनाकर दुश्मनी करता है,मैं तुझे छोड़ूगी नहीं...
तब मैनें उससे कहा.....
दोस्त बनाकर तो तुमने दुश्मनी की है और फिर मैं ने एक भारी सा पत्थर और उठाया फिर उसके सिर पर दोबारा दे मारा,वो जमीन पर फिर से गिर पड़ी और मैं उस पत्थर से उसके सिर पर तब तक वार करता रहा जब तक कि मुझे भरोसा ना हो गया कि वो मर गई है.....
उसके मरने के बाद मैं रातभर वहीं उसकी लाश के पास बैठा रहा,सुबह मुझे गाँव के लोगों ने ढूढ़ लिया और शाबासी दी और जल्दी से फुलमत का अन्तिम संस्कार कर दिया गया,जो मेरी दुश्मन थी उसे मैं दोस्त समझ रहा था,पता नहीं वो मेरी क्या थी दुश्मन दोस्त या दोस्त दुश्मन....

समाप्त.....
सरोज वर्मा....