My Magical Eye - Episode 1 in Hindi Science-Fiction by Mukul books and stories PDF | My Magical Eye - Episode 1

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My Magical Eye - Episode 1

चलो बेटा जल्दी उठो हमें हॉस्पिटल जाना होगा।", पांच साल के माहिर को उसकी मम्मी ने उठाते हुए कहा। "क्या हुआ मम्मी?", माहिर आंखें मींचते हुए बोला। " बेटा पापा का फोन आया था, वो कह रहे थे कि दादी अभी तुमसे मिलना चाहती है",

माहिर की दादी जो अपने उम्र के आखिरी पड़ाव पर थी, इस वक्त हॉस्पिटल में थी। उन्हें शायद पता लग गया था कि वो अब जाने वाली हैं इसलिए वो अपने पोते से आखिरी बार मिलना चाहती थी। थोड़ी ही देर में माहिर और उसकी मां दोनों उसकी दादी के पास‌ थे। उसकी दादी बुढ़ापे के कारण कमजोर हो चुकी थी और डबडबाई आंखों से अपने पोते को देख रही थी। उसने इशारों से माहिर को अपने पास बुलाया तो वो भी उठ कर उनके पास जाकर बैठ गया। उसने अपने कांपते बुढ़े हाथों से माहिर के सिर को सहलाते हुए अपनी कमजोर आवाज में काफी दुआएं दी।


"मम्मी वो उधर वो अंकल क्यों खड़े हुए हैं..?”, माहिर ने कमरे के एक खाली कोने की ओर इशारा करते हुए पुछा।
"कहां पर माहिर बेटा? मुझे तो कोई नहीं दिख रहा।",
"मम्मी वहीं पर तो खड़े हैं देखो न", माहिर ने जोर देकर कहा तो उसकी दादी ने पुछा कि वो कैसे दिखते हैं? इसपर माहिर ने बताया कि "वो काले रंग के कपड़े पहने हुआ आदमी जिसने हाथ में एक टैबलेट जैसा कुछ पकड़ा हुआ था। और वो मानो किसी चीज का इंतजार कर रहा था। यह सुनकर उसकी दादी हल्की सी हंस दी और कहने लगी "वो मुझे लेने आया है”


"वो आपको कहां ले जाएंगे ....?"”


"ऐसी जगह जहां बाद में आराम ही आराम होगा", यह बोलकर उसकी दादी हंसने लगी। वहीं पास में बैठे उसके मां बाप को उनकी एक भी बातें समझ नहीं आ रही थी। लेकिन उन दोनों को इस तरह बातें करता देख उन्हें तसल्ली हो रही थी। इस तरह बातें करते हुए कितना वक्त बीत गया उन्हें पता ही नहीं चला। धीरे धीरे दादी का हाथ अब ढीला पड़ गया और आंखें बंद हो गई। वो अब इस दुनिया से जा चुकीं थीं। माहिर की मां ने अपने आंसुओ को पोंछते हुए उसे उठा कर अपनी गोद में लिया और कहा,"बेटा अब दादी सो रही है उन्हें आराम करने दो।" लेकिन माहिर तो अपनी दादी को उस आदमी के साथ जाते हुए देख रहा था। जाते वक्त उसकी दादी ने उसे हाथ हिला कर बाय किया तो उसने भी उन्हें बाय कर दिया।


"मम्मी दादी तो उन अंकल के साथ चली गई। और उन्होंने जाते वक्त मुझे बाय भी किया था।", माहिर ने मासुमियत से अपनी मां से कहा। "कौन अंकल बेटा..? किसकी बात कर रहे हो? हमने तो वहां किसी को नहीं देखा।"


"मम्मी वहीं उस कोने में खड़े हो कर तो वो दादी को देख रहे थे। और उसके बाद जब दादी उठ कर उनके पास गईं तो वो वहां दिवार के परे चले गए।", यह सुनकर उसकी मां का सिर चकरा गया। कैसी बातें कर रहा है ये लड़का? आखिर किसे देख लिया इसने? खैर इन बातों पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि उस समय वहां पर उससे भी ज्यादा जरूरी काम था।

धीरे धीरे समय बीतता गया। माहिर को अब और भी चीजें दिखनी शुरू हो गई। एक साया सा जो हर समय उसके, उसकी मां के, यहां तक कि हर इंसान के साथ एक साया चलता था। वो कभी कभी अपनी मां से इनके बारे में पुछता तो वो सिर्फ इसे एक भ्रम कह कर टाल देतीं। लेकिन उसके मन में एक डर हमेशा रहता था कहीं किसी बुरी आत्मा का साया तो नहीं है उसके बच्चे के उपर। उसने कई जगह उसे दिखाया पर हर जगह सब यही कहते कि कोई घबराने की बात नहीं है। माहिर को वो साये अब और भी साफ दिखाई देने लगे। उसके साथ चलने वाला साया तकरीबन तेरह साल के बच्चे जितना था जबकि उसकी मां के साथ चलने वाला साया एक औरत की तरह था। वह दिन भर घर बैठे खिड़की से बाहर झांकते रहता और गली के नुक्कड़ पर घुमती आत्माओं को देखता रहता। अब यह उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था।


17साल बाद:-


‌"तो तुम्हें क्या लगता है...?", माहिर काफी समय से एरिक से अजीबोगरीब सवाल किए जा रहा था। एरिक, हां यही तो उसने अपने गार्डियन स्पिरिट्स को नाम दिया था। एरिक अब जिसका सब्र का बांध टूट चुका था उस पर भड़कते हुए बोला ," मुझे क्या गुगल समझ रखा है कि जो जी में आए सवाल किए जा रहे हो। मैं तुम्हारा गार्डियन स्पिरिट्स हूं कोई गुगल न्युज नहीं जो मैं तुम्हें हर समय न्युज अपडेट करता रहूं। और हां अब रात काफी हो गई है प्लीज़ सो जाओ....।"
"इसमें इतनी भड़कने वाली क्या बात है, एक छोटा सा सवाल ही तो पुछा था। नहीं पता था तो मना कर देते ऐसे मुझ पर क्यों चिल्ला रहे हो।", माहिर कंबल ओढ़ कर एक एक तरफ करवट कर के लेट गया।

माहिर लगभग इक्कीस साल का हो चुका था। छः साल पहले उसके दोनों मां और पापा की एक्सिडेंट में मौत हो चुकी थी। उस वक्त वो स्कुल में था जब उसे ये खलर मिली। उन दोनों ने उसके पहुंचने से पहले ही हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया था। उसे अभी भी याद है कि किस तरह उसके आंखों के सामने फिर से वोही शख्स उन दोनों को अपने साथ ले गया। वो शख्स ग्रिम रीपर (grim reaper)* था जिनका काम लोगों की आत्माओं को underworld** तक का रास्ता दिखाना होना है। उनकी मौत के बाद उसके किसी भी रिश्तेदारों ने उसकी जिम्मेदारी उठाने से मना कर दिया था। इसलिए उसके वकील ने ही उनके इंश्योरेन्स के पैसों से जब तक वह बालिग न हो गया तब तक उसकी परवरिश की। अठारह साल पूरे होने के बाद उसने माहिर को उसके पिता की संपत्ति का हिस्सा दिलवा दिया। जब उसके रिश्तेदारों को उसकी पूरी प्रॉपटी के बारे में पता चला तो वो भी किसी न किसी बहाने से उसे अपने साथ करने के लिए फुसलाने लगे। लेकिन उसके वकील ने उसे बहुत पहले से ही इस बारे में समझा दिया था। शायद इन्हीं वजहों से माहिर इंसानों से ज्यादा उन रुहो के साथ वक्त बिताया करता था। अब वह ग्रिम रीपर भी उसका काफी अच्छा दोस्त बन चुका था। यहां तक कि गली मोहल्ले के सारे भूतों से उसकी काफी जान पहचान थी।


***********

माहिर एक अंधेरी जगह में चलता ही जा रहा था। उसे खुद ही नहीं पता चल रहा था कि जाना कहां है? बस उसके पैर खुद ब खुद एक अंतहीन दिशा की ओर बढ़ रहे थे। लेकिन उसे डर नहीं लग रहा था क्योंकि एरिक भी उसके साथ था। चलते चलते उसे एक पानी का तालाब दिखाई दिया। वो उस तालाब में जैसे ही उतरा उसने अचानक अपने आप को एक विराने में पाया। उस विराने में उसके अलावा सिर्फ एक शख्स था। जिसका चेहरा उसे साफ साफ नजर नहीं आ रहा था। उसने आस पास नजर मारी लेकिन उसे एरिक कहीं भी दिखाई नहीं दिया। बचपन में मां बाप की मौत के बाद एरिक ही उसके साथ था। उसे अपने पास न पाकर वह पैनिक हो गया और उसका नाम बुला बुला कर वो इधर उधर उसे ढूंढने लगा। इसी बीच उसकी नींद खुल गई। एरिक वहीं उसके पास बैठा उसे उठा रहा था। क्योंकि वह नींद में काफी पैनिक हो गया था। उसका पूरा शरीर पसीने से तर-बतर हो गया था। वह उठ कर बैठ गया। एरिक पानी लेने जैसे ही उठने लगा उसने उसको कलाई से पकड़ कर दुबारा उसे बिठा दिया और उससे चिपक गया। "फिर से वही सपना देखा क्या..?", एरिक ने उसका सर सहलाते हुए पूछा।

" हुम्...", उसने सिर्फ इतना ही कहा और उससे चिपक कर ही बैठा रहा।


To be continue............