अज़ीन को देखते ही अरीज की हालत संभल गई थी इसलिए उसे डॉ ने हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया था।
ज़मान खान अरीज और अज़ीन को घर ले आए थे और आते ही उन दोनों को आराम करने के लिए उनके रूम में भेज दिया था और खुद अपने कमरे में जा कर शुक्राने की दो रकत् नफ़ील् अदा की थी।
आज उन तीनों पर क़यामत गुज़री थी मगर उन्हें अफ़सोस था की उनकी बीवी और बेटी को किसी के जीने मरने या फिर गुम हो जाने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। उन दोनों ने इंसानियत के नाते भी ये नहीं पूछा था की अरीज और अज़ीन अभी तक घर क्यों नहीं आई हैं। हदीद के लेट से घर पहुंचने पर तो उन्हें अंदाज़ा हो ही चुका होगा की कोई अनहोनी घटी है या फिर हदीद ने तो आकर बताया ही होगा की अज़ीन लापता हो गई है फिर भी उन दोनों को कोई फ़र्क नहीं पड़ा।
आज ये सब देखने के बाद ज़मान खान अंदर से टूट से गए थे। वह यही सोच रहे थे के अगर कल को उन्हें कुछ हो जाता है तो अरीज और अज़ीन का क्या होगा? उन्होंने तो यही सोच कर उन दोनों को घर में लाया था की उन्हें अब ताउम्र यहाँ हिफ़ाज़त और अपनों का साथ मिलेगा भले ही आसिफ़ा बेगम उसे ना अपनाएं मगर उन्हें यकीन था की उमैर उसे ज़रूर अपना भी लेगा और उस से बोहत मोहब्बत भी करेगा। उन्हें उमैर पर बोहत भरोसा और मान दोनों था की वह अपने बाबा से मोहब्बत की खातिर उनकी बात को ज़रूर एहमियत देगा और दूसरी तरफ़ अरीज थी भी बोहत प्यारी उस से कौन मोहब्बत नहीं करेगा लेकिन यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था।
ना सिर्फ़ उनके मान को ठेंस पहुंची थी बल्कि अब तो उन्हे आने वाले कल की भी चिंता सता रही थी।
अज़ीन के मिल जाने के बावजूद अरीज पूरी रात सो नहीं पाई थी। वह रह रह कर आज के वाक़िये को सोच रही थी और सोचते ही जैसे उसके रोंगटे खड़े हो जा रहे थे।
उसने अज़ीन से कोई सवाल जवाब नहीं किया था की ये सब कैसे हुआ और क्यों हुआ था। वह बस कितनी ही देर उसे खुद से लगाए हुए रही थी फिर उसका सर अपनी गोद में रख कर उसे थपकी देती रही थी जब तक की वह सो नहीं गई थी।
वह पूरी रात वैसे ही बैठी रही थी अज़ीन का सर अपनी गोद में रख कर। उसका दिल नहीं चाह रहा था की वह उसे एक पल के लिए भी खुद से अलग करे।
अपनों के बिछड़ जाने की तकलीफ़ और गम क्या होता है ये महसूस कर के अचानक से उसे उमैर याद आया था। वह भी तो ज़मान खान और आसिफ़ा बेगम की औलाद थे। क्या उन दोनों का गम कोई कम था। अपनी औलाद के दूर हो जाने का उन्हें भी तो ऐसे ही गम सता रहा होगा। उसने साथ ही में ज़मान खान के आला ज़र्फ़ को दिल में सराहा था और उनके लिए दिल से दुआएँ मांगी थी और साथ ही उसे खुद पर भी अफ़सोस हुआ था की वह उमैर के जाने का कारण बनी थी।
सो तो पूरी रात हदीद भी नही पाया था। उसकी हालत ऐसी थी जैसे गले में अटकी हुई हड्डी जो ना निगलते बन रही थी और ना ही उगलते।
एक तरफ़ वह अल्लाह से दुआएँ मांगता रहा की अज़ीन मिल जाए तो दूसरी तरफ़ उसे डर भी था की उसके मिलने के बाद उसके साथ क्या होगा। अज़ीन यकीनन उसका नाम ले लेगी और पूरी कथा सब को सुना देगी और जाने उसके बाद ज़मान खान उसका क्या हाल करेंगे।
उसे अभी तक ये पता नहीं था की अज़ीन मिल गई थी और इस वक़्त अपने कमरे में आराम से सो रही थी।
ये किसी मुसीबत थी जो उसने खुद मोल ली थी। वह रह रह कर अपने किये पर पछता रहा था।
जैसे तैसे कर के उसने रात गुज़ारी थी और सुबह जल्दी जल्दी नहा धो कर स्कूल के लिए रेडी भी हो गया था। पूरी रात जागने के बावजूद उसकी आँखों में नींद का कहीं भी नामों निशान नहीं था।
जब वह नाश्ता करने डाइनिंग रूम आया तो वहाँ पे सिर्फ़ ज़मान खान बैठे हुए थे। वह डरते डरते उन्हें सलाम करके चेयर पे बैठ गया था और अब इसी कश्मकश में घिरा था की ज़मान खान से क्या बोले।
रात भर वह यही सोचता रहा था की ज़मान खान को सारी सच्चाई बता दे की उस जगह पे ना जाने वह कौन सी बस थी जिसमें उसने अज़ीन को बैठा दिया था। इस से उसे डाँट पड़ती... ज़मान खान उसे शायद मारते भी लेकिन अपनी गलती की सज़ा मिल जाने पर हदीद के दिल का बोझ कम हो जाता।
अज़ीन को ढूँढने में आसानी हो जाती क्योंकि इस से उन्हें ये पता लगाने में आसानी हो जाती की उस जगह से कौन कौन सी बसें कहाँ कहाँ जाती है।
वह उनसे कुछ कहने के लिए तहमीद बांध ही रहा था की अरीज डाइनिंग रूम में आ गई। उसे देख कर हदीद हैरान रह गया।
“ये तो हॉस्पिटल मे थी।“ उसने अपने मन में सोचा था। बाबा अज़ीन स्कूल जाने से मना कर रही है।“ हदीद को हैरानी का दूसरा झटका लगा था।
जाने क्यों डर की लहर उसके तन बदन में रेंग गई थी हालांकि वह खुद अभी अभी ऐतराफ करने आया था की सब कुछ उसी की वजह से हुआ है।
“कोई बात नहीं... उसे फ़ोर्स मत करो।“ ज़मान खान ने संजीदा होकर कहा था।
हदीद एक टक ज़मान खान को ही देखे जा रहा था...
“क्या उन्हें सब कुछ पता चल गया है?” वह अपने मन में सवाल कर रहा था।
उसे लग रहा था की अगले ही पल ज़मान खान उसकी तरफ़ देखेंगे और उसकी क्लास लेना शुरू कर देंगे उस से वहाँ ज़्यादा देर बैठा नहीं गया ... वह अपना नाश्ता अधूरा छोड़ कर वहाँ से भागने के लिए खड़ा हो गया था और अभी जाने के लिए मुड़ा ही था की ज़मान खान की भारी आवाज़ उसके कानों में गूंजी थी।
“हदीद.. “ उन्होंने थोड़ा उखड़ कर कहा था।
हदीद का तो मानो बदन का सर खून डर के मारे सूख गया था।
क्या होगा आगे?
क्या ज़मान खान हदीद को सज़ा देंगे उसके किए की?
क्या हदीद की नर्म होती नफ़रत अज़ीन के लिए और ज़्यादा बढ़ जाएगी?