कहानी - घी के लड्डू टेढ़ों भलो
आज मेरी माँ को जिस बात का डर था वही हुआ . इस बार उन्हें फिर निराशा ही मिली . दरअसल मुझे देखने के लिए लड़के वाले आये थे , लड़का भी साथ था . मम्मी पापा ने उनके स्वागत में कोई कमी नहीं बरती .मुझे भी अपने जानते भर अच्छे से तैयार किया था पर नतीजा वही ढाक के तीन पात . जाते समय लड़के के माता पिता ने कहा “ हम घर जा कर आपस में विचार कर अपना फैसला फोन पर बता देंगे .”
समझदार के लिए इशारा काफी था , मैं भी कोई बच्ची नहीं थी ग्रेजुएशन में थी और पहले भी ऐसा सुन चुकी थी . जिसको लड़की पसंद आती है अक्सर वे फैसला सुनाने में देर नहीं करते बल्कि उसी समय ही लड़की को कुछ न कुछ उपहार दे कर जाते हैं . वैसे मुझे रिजेक्ट करने के लिए मैं किसी लड़के को दोष नहीं देना चाहती हूँ . हर लड़की के सपनों का एक राजकुमार होता है और हर लड़के के सपनों में परी , पर इस तरह के सपने देखने का हक़ भगवान ने मुझे दिया ही नहीं है .
अब मैं अपनी राम कहानी शुरू से बताती हूँ .हम तीन बहने हैं , मैं सबसे बड़ी और मुझसे छोटी दो बहनें सिया और जानकी .वैसे मेरा भी नाम वैदेही है और माँ का सीता यानी चारों के एक ही अर्थ है - सीता . माँ तो बहुत खूबसूरत थी पर पापा बहुत साधारण रंग और शक्ल दोनों से . मैं अपने पापा पर गयी हूँ . कहने को लोग कहते हैं कि पापा पर जाने वाली लड़की भाग्यवान होती है पर मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ है . फिर भी पापा मुझे बहुत प्यार करते हैं . प्यार माँ भी करती है पर मोहल्ले वालों को माँ से बोलते सुना था “ वैदेही अगर तुम पर गयी होती तो उसकी शादी में तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होती .”
मैं शक्ल सूरत से अति साधारण हूँ और रंग भी गहरा सांवला हालांकि लोगों को काली कलूटी कहते अनेकों बार सुना है मैंने . सूरत भी न तो लड़की जैसी है न ही लड़के जैसा इसलिए कभी अपने बारे में मैंने हिजड़ा विशेषण भी सुना है .जब हाई स्कूल में थी तब लड़के मेरे पास आने से कतराते थे .कभी कोई पास से गुजरता या टकरा जाता तो मुंह फेर के चल देता या नाक भौं सिकोड़ लेता . जब कॉलेज जाने का समय आया तो चाचा मामा बोलते “ इसे पढ़ा कर क्या करोगे , इसे पढाना मतलब उपले में घी सुखाने जैसा है . किसी तरह किसी के पल्लू इसे बांध दो .” यह बात और है कि उनके खुद के बच्चे कोई दो तो कोई तीन बार में किसी तरह बी ए करने में सफल हुए थे .
मैंने भी जिद ठान लिया है कि मैं आगे पढूंगी और मेरे फैसले में पापा का भरपूर समर्थन रहा है . मेरे ग्रेजुएशन के दौरान मेरी शादी की बात भी चल रही थी . मुझे याद नहीं कितनी बार पर कम से कम छह बार मैं रिजेक्ट की गयी हूँ . बाद में लड़के वाले बोल कर जाते “ आपकी छोटी बेटी हमें पसंद है .आप चाहें तो हम बेटे की शादी उस से कर सकते हैं .”
मैं भी तंग आ चुकी थी मैंने पापा मम्मी से कहा “ अब और मेरा तमाशा नहीं बनाएं आप लोग . क्यों आप लोग बार बार मुझे जलील करवाते हैं और खुद भी शर्मिंदा होते हैं समाज में . मैंने फैसला कर लिया है कि मैं ब्याह नहीं करूंगी , आगे पढ़ते रहूंगी और अपने कैरियर पर फोकस करूंगी .आपलोग सिया और जानकी की चिंता करें .”
तीन साल के अंदर मेरी दोनों बहनों की शादी हो गयी .उनकी शादी में मम्मी पापा को कोई परेशानी नहीं हुई . जो भी देखने आता उन्हें एक नजर में पसंद कर लेता . मेरे दोनों छोटे जीजाजी को मुझमें कोई दिलचस्पी नहीं थी .सामना होने पर औपचारिकता वश नमस्ते जरूर कर लेते थे . कभी मुझसे किसी विषय पर चर्चा नहीं हुई उनसे . मुझे इसका कोई अफ़सोस नहीं है .
मैंने बी ए इंग्लिश ऑनर्स किया . इसी बीच मैं लोकल न्यूज़ पेपर में अपना कुछ लेख या लघु कथा भेजती और वे प्रकाशित होते रहते . अब मुझे और मेरे पापा को लोग जानने लगे पर कभी मेरी शादी के लिए कोई आगे नहीं आया .वैसे भी मैंने मम्मी पापा को इसके लिए मना कर रखा था .
मैंने जर्नलिज्म करना चाहा . कुछ महीने रही भी , वहां भी लोग कानाफूसी करते “ इसने क्या सोच कर जर्नलिज्म चुना है . इसे रखने के पहले कोई भी मिडिया या चैनल सौ बार सोचेगा . यह बेकार का इस फील्ड में आयी है . “
हालांकि मैं लोगों की बातों में जल्दी नहीं आती हूँ .इसी बीच मेरे पापा का भी निधन हो गया . मैंने बीच में ही जर्नलिज्म छोड़ दी पता नहीं अच्छा किया या बुरा पर मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी .
मैंने अंग्रेजी में पी जी किया और फिर बी एड भी . मैं कॉलेज में लेक्चरर बनना चाहती थी पर इसके लिए पी एच डी करना जरूरी था . दो साल तक मैं टीचर रही और साथ में पी एच डी का रजिस्ट्रेशन भी करवा लिया था . खैर भगवान ने मेरी यह इच्छा पूरी कर दी .मैंने पी एच डी किया फिर मैं अपने ही शहर के कॉलेज में लेक्चरर बनी .
बीच बीच में मैं पत्रिकाओं और नेशनल न्यूज़ पेपर के लिए लिखती रही और वे छपते रहे . कुछ प्रशंसक भी थे तो कुछ आलोचक भी . शुरुआत में मैं घोस्ट नेम से लिखती फिर मैंने सोचा हकीकत से क्यों भागूं .कुछ प्रकाशक मेरी रचनाओं के साथ मेरा फोटो भी छापते हालांकि मैं इसके पक्ष में नहीं थी .
कॉलेज में मैं ऑनर्स क्लास लेती . इस समय तक कॉलेज के लड़के सयाने हो जाते हैं . किसी के मन में क्या था मैं नहीं जानती पर प्रत्यक्ष रूप से मैंने अपने विषय में कोई कटाक्ष नहीं सुना . उनके चेहरे का एक्सप्रेशन देख कर मुझे लगता मेरे प्रति लोगों का नजरिया पहले जैसा नेगेटिव नहीं रहा था .
पत्रिकाओं और न्यूज़ पेपर्स में मेरे आर्टिकल्स छपने के कारण मुझे पहचानने वालों का दायरा बड़ा हो गया था .साथ ही मैं सोशल मिडिया पर थी जिसके चलते मेरे कुछ फॉलोवर्स भी थे , उनमें कोई लाइक करता तो कोई डिसलाइक . एक दिन मुझे सोशल मिडिया प्लेटफार्म पर फ्रेंडशिप का मेसेज आया . भेजने वाले शहर के दूसरे कॉलेज के प्रोफ़ेसर थे . मैंने शुरू में उन्हें नजरअंदाज किया .
अब तक कहने को मैंने जीवन में 35 बसंत देखे हैं पर बसंत कहना गलत होगा बल्कि 35 तपते जेठ के महीने देखे हैं . एक दिन फिर प्रोफ़ेसर माथुर का मेसेज आया “ आपने मेरे मेसेज का जवाब नहीं दिया . हम एक ही प्रोफेशन में हैं .आपके लेख भी मैंने पत्रिकाओं में पढ़ा है बहुत अच्छा लिखती हैं आप .”
मैंने उन्हें थैंक्स लिखा तो मेसेज आया -” सिर्फ थैंक्स से काम नहीं चलेगा मिस वैदेही . क्या आप प्रोफेसर माथुर से फ्रेंडशिप नहीं करना चाहेंगी ? आपका फैसला सर आँखों पर फिर भी एक बार आपसे मिल कर मुझे बेहद खुशी होगी . “
मैंने लिखा - “ शायद मुझसे मिलकर और खास कर देखने के बाद आपको निराशा होगी . पता नहीं आप मेरे बारे में कितना जानते हैं ? मुझे डर है एक बार मुझसे मिलने के बाद फिर आप दोबारा मुझसे मिलना भी न चाहें .”
“ मैम , ऐसा कुछ नहीं .आपके कॉलेज में मुझे जाने का मौका मिला है .मैंने आपको बहुत नजदीक से देखा है और सुना है .सब देखने सुनने के बाद ही आपको मेसेज किया है . अब बताएं फ्रेंड तो बन ही सकते हैं . . क्यों न एक बार हमलोग मिलें ? “
“ मुझे क्या करना है ? “ मैंने पूछा
अगले संडे एक रेस्टॉरंट में मैं प्रोफ़ेसर से मिली . प्रोफेसर माथुर रंगीन चश्मा पहने थे .
उनसे मिलकर और बात कर मैं उनसे बहुत प्रभावित हुई . कुछ देर बाद उन्होंने अपना रंगीन चश्मा उतारा तब मैंने देखा कि उनकी दायीं आँख ख़राब थी . इस तरह हमारा मिलना जुलना कुछ महीने चलता रहा . अब तक हम एक दूसरे को समझ चुके थे . अब हम अपनी पर्सनल बातें फ्रैंकली शेयर करते . मैंने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा था कि मुझे कई बार रिजेक्ट किया जा चुका है . तब उन्होंने अपना रंगीन चश्मा उतारा और हंस कर कहा “ रिजेक्ट सिर्फ लडकियां नहीं होती लड़के भी रिजेक्ट होते हैं . मुझे भी कई बार लडकियां रिजेक्ट कर चुकीं हैं . मैं भी उन्हें दोष नहीं देता आखिर उन्हें भी हैंडसम लड़का चुनने का हक़ है . “
एक दिन प्रोफेसर मुझे अपने घर ले गए . घर पर उनकी विधवा माँ थीं . प्रोफेसर ने मेरा परिचय कराते हुए हुए कहा “ माँ , ये प्रोफ़ेसर वैदेही हैं . कुछ दिनों से हम दोनों एक दूसरे को जानते हैं . “
कुछ देर तक वे मुझे गौर से देखती रहीं , मुझे पता नहीं मेरे बारे वे क्या सोच रहीं होंगी .
“ मुन्ने ने तुम्हारे बारे में मुझे बताया है . अच्छा है , कभी कभी आ जाया करो मेरा भी मन बहल जायेगा .. “ माँ ने कहा
मेरा मन सोचने लगा प्रोफेसर ने मेरे बारे में अपनी माँ से क्या कहा है और मुझे अपने घर लाने का क्या मकसद था . खैर कुछ दिनों के बाद प्रोफ़ेसर माथुर ने फोन कर कहा “ कल संडे है . माँ ने तुम्हें लंच पर बुलाया है . सॉरी मैं आप से तुम पर आ गया , वैसे मैं तुमसे सीनियर भी हूँ . “
“ आपका तुम कहना मुझे बेहतर लगा . तुम में अपनापन लगता है . “
थैंक्स . प्लीज आना जरूर , माँ को अच्छा लगेगा . “
मैं प्रोफेसर के घर गयी . माँ बोली “ बहुत अच्छा किया तुमने आ कर . आज मुन्ने का जन्मदिन भी है . “
मैंने प्रोफेसर से कहा “ अपने जन्मदिन के बारे में मुझे नहीं बताया था वरना मैं खाली हाथ नहीं आती . मुझे इस तरह खाली हाथ आने पर शर्मिंदगी महसूस हो रही है . “
“ जन्मदिन जरूर है पर तुम देख रही हो न कोई तामझाम या सेलिब्रेशन का सीन नहीं है . बस इस मौके पर माँ कुछ स्पेशल बनाती है , यही सोच कर मैंने तुम्हें लंच पर बुलाया है . “
“ मैंने मुन्ने को कहा था जन्मदिन की बात बताने को पर .. “ माँ बीच में बोल पड़ी
“ माँ , क्या हमेशा मुन्ना मुन्ना रटते रहती हो . मेरे नाम से नहीं पुकार सकती हो , रमेश नाम से . “ प्रोफेसर कुछ झुंझला कर बोले थे
“ नहीं , इस जन्म में तो तुम्हें मुन्ना ही कहूँगी . “
मैंने कहा “ माँ जिस भी नाम से प्यार से पुकारना चाहें उन को पुकारने दीजिये . यह हर माँ का हक़ है . “
लंच के बाद माँ ने मुझसे कहा “ तुम मुन्ने को समझाओ न , शादी के लिए तैयार हो जाए . मेरी मत मारी गयी थी . शुरू में मैं भी सुंदर बहू चाहती थी . इसलिए शुरू में हमने एक दो रिश्ते नामंजूर कर दिए बाद में हमें ही रिजेक्ट किया जाने लगा . “
“ माँ , तुम किस चक्कर में पड़ रही हो ? अब तब किसी ने रिश्ता स्वीकार नहीं किया तो अब इस उम्र में कौन स्वीकार करेगा ? “ प्रोफेसर ने कहा
“ हमलोगों को एक वारिस चाहिए . नहीं तो जर जमीन , धन दौलत सब बेकार हो जायेगा . तुम मुन्ने को सिर्फ दोस्त की नजर से देखती हो या कुछ और … “
“ माँ , अब ये बकवास बंद करो . हमलोग बाहर जा रहे हैं . “
प्रोफेसर मुझे मेरे घर तक छोड़ने आये . उनके चेहरे पर गंभीरता झलक रही थी , रास्ते भर वे खामोश रहे . मैंने उन्हें अंदर चलने को कहा तब वे बोले “ आज मूड नहीं है . माँ ने मूड ख़राब कर दिया . न जाने तुम मेरे बारे में क्या सोच रही होगी . “
“ मैं कुछ भी नहीं सोच रही हूँ . आप अंदर चलिए मैं आपको कॉफ़ी पिलाऊंगी . वैसे मैं कॉफ़ी अच्छा बना लेती हूँ - मेरे पापा कहते थे . सॉरी मैं अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रही हूँ . “
मैंने प्रोफेसर के चेहरे पर मुस्कुराहट की एक झलक देखी , मुझे अच्छा लगा . कॉफ़ी पीते हुए उन्होंने कहा “ तुम माँ की बात का बुरा नहीं मानना . “
“ नहीं मैं बुरा नहीं मानती हूँ . बल्कि इतना मेच्योर हो गयी हूँ कि माँ की बात को नेचुरल समझती हूँ . अगर मैं आपको ले कर अपने घर जाती तो मेरी माँ भी शायद आपसे यही सवाल करती . “
प्रोफेसर के मुंह से अचानक निकल पड़ा “ मैं तो झट से हां कह देता . “
फिर वे मेरी तरफ देखने लगे और बोले “ सॉरी , मेरे मन की बात जुबान पर आ गयी . बुरा न मानना . “
“ अगर बुरा मानूँ तब आप क्या करेंगे . “
“ मैं तो मारे शरम के मर जाऊँगा और दोबारा तुम्हारा सामना न कर सकूंगा . “
“ अगर मैं बुरा नहीं मानूँ तो आप क्या करेंगे ? .
“ सदा तुम्हारा एहसानमंद रहूंगा . “ कह कर प्रोफेसर ने अचानक मेरा हाथ पकड़ कर कहा
आप बड़े अच्छे हैं . “ मैंने प्रोफेसर के हाथ पर अपना हाथ रख कर कहा
तब प्रोफेसर ने अपना रंगीन चश्मा उतारते हुए कहा “ क्या अब भी ? “
मैं उनका मतलब समझ रही थी , शायद वे अपनी खराब आँख दिखाना चाहते थे . मैंने कहा “ हाँ अब भी और हर हाल में भी . मैं उनमें नहीं जो सिर्फ सूरत पर जाते हैं और जहाँ तब मैं आपको समझ सकी हूँ आप भी ऐसा ही सोचते हैं . “
“ तो मैं इस दोस्ती को अलविदा कह तुमको प्रपोज़ कर सकता हूँ ? “
मैं बस उन्हें देख कर मुस्कुराये जा रही थी , तब वे बोले “ इसका मतलब तुम्हें स्वीकार है . मैं तो डर रहा था कि कहीं तुम मेरा प्रपोजल रिजेक्ट न कर दो . “
“ दोनों में किसी के पास किसी को रिजेक्ट करने का कोई औचित्य नहीं है . “
प्रोफेसर ने कहा “ चलो , घर चलें . माँ हमारा फैसला सुन कर बहुत खुश होगी . “
जल्द ही हम दोनों ने शादी कर ली . शादी के कुछ महीनों के बाद से सासु माँ ने कहना शुरू किया “ मुझे अब इस घर का वारिस चाहिए . “
करीब दो साल बाद मैं प्रेग्नेंट हुई पर कुछ ही महीनों बाद अबॉर्शन भी हो गया . फिर एक साल के अंदर दूसरा एबॉर्शन भी हुआ . हम दोनों डॉक्टर से मिले , वह बोला “ घबराने की बात नहीं है . ज्यादा उम्र में प्रेगनेंसी में कॉम्प्लिकेशन होते हैं .
एक साल बाद मैं फिर माँ बनने वाली थी . हमदोनों डॉक्टर से मिले , उन्होंने सब चेक कर कहा “ अभी तक सब ठीक है . मैंने जैसा कहा है सब सावधानी बरतते रहिये इस बार आप एक नहीं दो बच्चों की माँ बनने वाली हैं . “
मेरी सासु माँ भी साथ गयीं थीं , वे पूछ बैठीं “ लड़का होगा या लड़की ? “
“ सॉरी , यह मैं नहीं बता सकता . “ डॉक्टर ने कहा
एक दिन घर पर मैंने पूजा करते समय सासु माँ को कहते सूना “ हे भगवान . बहू को बेटियां न देना क्योंकि अगर बच्चियां अपनी माँ पर गयीं तब मेरे मुन्ने को जीवन भर कष्ट झेलना होगा . “
यह सुन कर पहले तो मुझे बहुत बुरा लगा . पर दूसरे पल सोचने लगी सासु माँ ठीक ही सोच रहीं हैं वरना जीवन के स्वर्णिम दिनों में मुझे जिस प्रताड़ना का सामना करना पड़ा था बेटियों को भी उसी से गुजरना होगा .
समय पर मैं डिलीवरी के लिए अस्पताल गयी . मेरी सासु माँ और पति दोनों भी साथ गए थे . मैं लेबर रूम में थी . नर्स ने मुझे मेरे बच्चों को दिखाया , मैं उन्हें देख कर तृप्त हुई . मैंने तो सोचा भी न था कि ये शुभ दिन मेरे जीवन में कभी आएगा . मैं अपने को पूर्ण महसूस कर रही थी .
नर्स ने कहा “ कुछ देर में हमलोग आपको स्पेशल वार्ड में शिफ्ट कर देंगे और बेबीज को तैयार कर वहीँ ले आएंगे . मैं आपके पति को डिलीवरी की खबर दे कर आती हूँ . “
नर्स ने बाहर जा कर उन्हें खबर दी “ आपके लिए गुड न्यूज़ . जुड़वाँ बेटे हुए हैं . “
नर्स ने आ कर मुझे बताया कि सासु माँ पोतों की खबर सुन कर बहुत खुश हुईं थीं . कुछ घंटों के बाद मैं अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में थी . नर्स ने बच्चों को नहला धुला कर सासु माँ को दिखाया . उन्होंने बच्चों को देख कर “ ये दोनों तो शक्ल सूरत से अपनी माँ पर गए हैं . पर कोई बात नहीं - घी के लड्डू टेढ़ों भलो . “
उनकी बात सुन कर मेरे चेहरे पर रोष देख कर पति ने मुझे शांत रहने का इशारा कर माँ से कहा “ माँ , अगर बच्चे मेरे जैसा काना होते तब तुम क्या सोचती ? “
“ तब भी यही कि घी के लड्डू टेढ़ों भलो . “
उनकी बात सुन कर हम सभी मुस्कुराने लगे थे .
xxx समाप्त xxx