Prem Gali ati Sankari - 11 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 11

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प्रेम गली अति साँकरी - 11

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दिव्य हड़बड़ा उठा, पिता को देखकर वह अचंभित भी हुआ और भयभीत भी | अपने समझदार होने के बाद उसने कभी भी अपने कसाई पिता को इस समय घर पर देखा ही नहीं था | उसने क्या, शायद किसी ने भी नहीं देखा होगा | जगन के घर में न रहने से सब खुलकर साँस ले पाते थे| रतनी को अच्छे घरों के कपड़े सिलने के लिए मिलने लगे थे, वह कहती थी कि वह सब पहले दादी के और अब मेरे कारण हो रहा था लेकिन ऐसा कुछ नहीं था | यदि उसमें इतनी होशियारी और काम करने की शिद्दत न होती तो कोई भी उससे ज़बरदस्ती कैसे करवा लेता !इंसान में बहुत से गुण होते हैं, बस उनको प्रकाश में लाना होता है | दादी ने यही किया था, अब मैं यही कर रही थी | एक कोशिश भर कि यह परिवार किसी प्रकार उस स्थिति में पहुँच जाए जो इन सबके योग्य है सिवाय उस बंदे के जिसने परिवार का माहौल खराब कर रखा था| 

तानपुरा सामने वाली दीवार पर पटका गया था जो उससे टकराकर टूट गया था और उसकी पीठ पर लकड़ी से ज़ोरदार चोट लगी थी लेकिन पीठ से अधिक उसके उसके मन की चोट में ज़्यादा टीसें उठ रही थीं | शरीर और मन दोनों ही उसके घायल रहते किन्तु शरीर की चोट तो समय के अनुसार ठीक हो जातीं मन बिंधा रहता जैसे छलनी होता रहता| ये निशान बढ़ते ही जा रहे थे, कम होने का तो कोई अवसर ही नहीं था| घबराहट से उसने पीछे घूमकर देखा, दरवाज़े से खुला हुआ कमरा दिखाई दे रहा था जिसमें शीला बुआ के अलावा माँ रतनी और बहन डॉली सहमे हुए दीवार से चिपके हुए खड़े थे| शीला इस समय कला-संस्थान में होती थीं, यह तो जगन जानता ही था | रतनी पलंग पर बैठी डॉली के बालों में तेल लगा रही थी कि अचानक उस घर के छोटे से आँगन का छोटा सा गेट खुला, रतनी ने चौंककर बाहर की ओर देखा | कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था और जगन कमरे में प्रवेश कर रहा था | अचानक जगन को देखकर माँ-बेटी दोनों हड़बड़ाकर कर पलंग से खड़ी हो गईं| डॉली के हाथ में तेल की कटोरी थी जिसमें से हाथ आगे करके रतनी तेल लेकर बिटिया के सिर में मालिश कर रही थी | अचानक उठने से डॉली के हाथ में पकड़ी तेल की कटोरी ज़मीन पर गिर गई और जगन कमरे के अंदर आते हुए फिसलते हुए मुश्किल से संभला | आदत के अनुसार उसके मुँह से ज़ोरदार गाली निकली और माँ-बेटी सहमकर कमरे की दीवार से आ चिपकीं थीं| उसके बाद वह कमरे को पार करके दिव्य की तंद्रा भंग करने पहुँचा था | 

दिव्य का मन आक्रोशित हो उठा, उसका चिल्लाने का मन हो आया | लेकिन कभी साहस ही नहीं हुआ था पिता के सामने आँखें उठाकर देखने का भी| वह तो बिना बात पिटता ही रहता है, आदत हो गई है लेकिन कब तक ? माँ और छोटी बहन का चेहरा देखकर उसे जगन के साथ ही अपने ऊपर भी गुस्सा आने लगा था जबसे उसने किशोरावस्था में प्रवेश किया था| किशोरावस्था का एक अलग ही मौसम होता है जिसमें लड़के और लड़कियाँ दोनों में ही विभिन्न बदलाव आते हैं | यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है लेकिन इसको समझने की ज़िम्मेदारी संवेदनशील व समझदार व्यक्ति ही दिखा पाता है | 

अमेरिका के स्टेनली हॉल को किशोरावस्था के वैज्ञानिक अध्ययन का जनक स्वीकार किया गया है| वे एक मनोवैज्ञानिक व एक शिक्षक थे | दरसल उन्हें किशोर मनोविज्ञान का जनक माना जाता है जिनके मतानुसार किशोरावस्था एक ‘तूफ़ान और तनाव’की आयु होती है | बस, दिव्य उसी आयु से गुज़र रहा था | मैं अपने इर्द-गिर्द इस उम्र की किशोरों के ‘ट्रेनटर्म्स’ देखती थी | यह भी देखती थी कि उन किशोरों को किस प्रकार ‘ट्रीट’किया जाता था | थोड़ी सी भी बात हो जाने पर ये किशोर कुछ न कुछ ऐसा कर बैठते थे कि कभी तो उनके माता-पिता को भी सहमकर रह जाना पड़ता था | 

दिव्य टूटे हुए तानपुरे को बेबसी से देख रहा था | उसकी आँखों में अपमान और लज्जा की पीड़ा आँसु भरकर गोरे गालों पर फिसलने को तैयार थी | दूसरी ओर उसकी मुट्ठियाँ बंद हो गईं थीं, दाँत भींचकर वह जाने कैसे अपने आक्रोश को दबाने का प्रयास कर रहा था | अपने से अधिक उसे अपनी माँ और छोटी बहन को देखकर पीड़ा हो रही थी और मन कर रहा था कि अपने सामने क्रोध में उबलते इस आदमी को कच्चा चबा जाए | 

“साले !मन किया था, ये आ—आ –नहीं चलेगा इस घर में --!तुझे कुछ सुनना ही नहीं है –और घूर रहा है मुझे ? अपने बाप को ? इतनी हिम्मत तेरी ? ” जगन ने आगे बढ़कर तड़ाक—तड़ाक दो तमाचे और बेटे के दोनों गालों पर रसीद कर दिए | 

दिव्य का गोरा, कोमल चेहरा लाल हो आया | उसका क्रोध धरा का धरा रह गया और क्रोधित व बेबसी भरी लाल आँखों से आँसु छलककर उसके गालों पर ढुलक आए | 

“चल –चाय बनाकर ला ---” ने रतनी को हुकम दिया और आकर उस पलंग पर पसर गया जहाँ रतनी बैठी बिटिया के सिर में तेल मालिश कर रही थी | 

कुछ पलों में ही सीनिआरो में बदलाव आ गया था | रतनी चाय बनाने रसोईघर की ओर बढ़ गई जो उस छोटी सी बॉलकनी में था जहाँ दिव्य दरी पर बैठकर अपनी साधना कर रहा था | छोटी डॉली माँ का आँचल पकड़े सहमी हुई सी उसी के साथ रसोईघर में चली गई थी | सुबकते हुए दिव्य टूटे हुए तानपुरे को समेटकर रखने की चिंता में व्यस्त होने को था कि उसकी नज़र बहन पर पड़ी जो बहुत अधिक सहम गई थी | उसने तानपुरे की ओर से ध्यान हटाकर बहन को गाड़ी में उठा लिया और उसे अपने से चिपटा लिया| 

रतनी ने जब तक चाय बनाई, जगन पलंग पर पसरा खर्राटे भर रहा था |