कवि सियाराम सर्राफ की कसक
रामगोपाल भावुक
सियाराम सर्राफ जी अपनी कसक के अनुरोध में लिखते हैं-मैं कोई कवि नहीं, चिन्तक नहीं, विचारक नहीं पर मेर अपनी कुछ चिन्ताएं हैं कुछ भावनाएं हैं जिन्हें मैंने कविता के माध्यम से सुधी पाठकों के सामने रखने का प्रयास किया है।
आपने अपने इस बगीचे के लिए जो पुष्प चुने हैं ने देश-भक्ति से चुने गये हैं। वे मानते है कि इस देश भक्ति साथ राजनीति के कांटे भी आ गये हैं। जिसके लिये वे छमा प्रार्थी भी हैं। देश के चर्चित कवि हमारे पूर्व प्रधान मन्त्री अटल विहहारी वाजपेई जी इनके मित्र रहे है। एक वार तो माननीय बाजपेई्र जी आपको अपने साथ अपने यान से दिल्ली लेकर गये थे।’
आपके इस कसक संकलन में आपकी कसक देश भक्ति के लिये है। इसमें अधिकांश रचनायें देशभक्तों से सम्वधित अथवा देश भक्ति के लिये ही हैं। कृति के मुख्य पृष्ठ पर अंकित रचना देखें-
हिन्दू बनावे मस्जिद मन्दिर को बुखारी,
मन्दिर मेंहो इवादत मस्जिद में पुजारी।
अशफाक सी हो आशा गांधी की राष्ट्र भाषा।
होगी सफल कभी क्या यह कामना हमारी।।
यह संदेश सभी भारत बासियों को इस कृति को पढ़ने के लिये प्रेरित करेगा। इसके मुख्य पृष्ठ पर मन्दिर और मस्जिद का चित्र अंकित हैं। ध्वज और चांद तारे का प्रतीक सोच को समन्वयवादी बना रहा है। इस कृति में त्रेसठ कवितायें संकलित की गईं हैं। देश के बड़े बड़े महापुरुषों में जगत् गुरु सत्यमित्रानन्द,, माननीय अटल विहारी वाजपेई, कुलपति श्री राधारमण दास जी, राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी, जैसे मनीषियों की अनुषंसा के साथ आपने कुछ महापुरुषों को काव्य पत्र लिखे हे वे भी इस कृति के अन्त में स्थान पा गये है जैसे -श्री मानिक चन्द वाजपेइ्र जी मुरारी बापू, श्री बाला साहब जी देवरस,श्री मैंथलीष्शरण गुप्त जी पर भी लिखी कवितायें हैं, साथ ही कुछ महापुरुषों की जयन्तियां आतीं है उन पर भी आपकी कलम चली है जैसे- यं. दीनदयाल उपाध्याय, श्री श्री विवेकानन्द जी, श्री गोस्वामी तुलसी दास जी ,गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ आपके प्रेरणा सूत्र एवं संध के संस्थापक गुरुवर गोलवलकर के चरणों में भी काव्य नमन किया है।
इनकी कसक क्या है-
रिपु वनकर जब करता कोई अन्य बार,
हो जाता है धाव जब बहा रक्त की धार।
पर अपनों की चोट कभी पीड़ा पहुँचाती,
होती जोअनुभूति हृदयवह कसक कहाती।
भर जाता है घाव स्वल्प उपचार किये से,
किन्तु कसक की पीड़ा मिटती नहीं हिये से।
ऐसे भावों से सरावोर कृति को आपने अपने दाऊ के चरणों में अर्पित किया हैं। उसके बाद पद वंदन स्वीकार करो माँ। इसमें गण के पति की जय हो जैसे भाव गीतों को स्थान दिया हैं। कवि को अन्तर्नाद भी सुनाई देता है-
आस्तीन के सांपों को तुम राष्ट्रगान सम्मान करा दो,
हृदय हृदय को छू जावे जो बीणा के वे जार बजा दों।ं।
कवि को आशा है कि अब गंगा जल नहीं रक्त की धार वहेगी। कवि को यह भी विश्वास हो गया है कि भारत में प्रायः देश भक्त कम जीता है। वे यदि मानों तुम बुरा नहीं में कह जाते हैं-
कौन साहसी ऐसा है जो कह दे सच्ची बात कहीं?
कहनी तो है बहुत बात पर यदि मिल जाये छूट कहीं?
वे पाकिस्तानी हमले पर कहते हैं-
तोड़क राडार की पत्नी की ओर देखो,
हंसते हुये पोंछ डाला अपने सिन्दूर को,
और अब कब तक सहोगे? कविता में-
क्यों पिलाते दूध इसको बन्धु?
जब इसका जहर बढ़ता ही चला जा रहा है।
और अपने मन में गुन लें कविता में-
इसी देश के लिये जिएंगे इस पर मर जायेंगे।
हंस- हंस कर बलिदान सदा ही इस पर हो जाएंगे।। कवि भारत हित में काम नहीं है दूजा। वे चाहते हैं- आज सुदेश बनायें हम, के चिन्तन में यही तो रही हमारी भूल, गले में डलवाये फूल। वे उस नर में नारायण को देखो। इस सब के बाद भी वे मानते है कि परिभाषायें और हो गईं हैं।
बुद्धि ओर विवेक में-
किन्तु अडी बाधाओं को रौंद कर विवेकी नर,
दृढ़ इच्छा शक्ति से निज लक्ष सदा पाता है।
चापलूसी उन्हीं की कथा कह रही-
चापलूसी उन्हीं की कथा कह रहि। ऐसा सोचा नहीं था भगत सिंह ने।
कितना सुन्दर ताज बनाया में- इतनी क्या मुमताज महल थी? जितना सुन्दर ताज बनाया।
फल तो क्या पत्ते भी खाये में- हमने इन पचास सालों में अपना- वह चरित्र सब खोया। इससे दुःखी होते हुये कवि कहने लगता है-यह कारेई अहसान नहीं है। यहाँ तो सत्य सदा से पिटते आया। अब हमें रधुपत राघव से क्या काम रह गया है।
आपने वोटर है बंधुआ मजदूर जैसे बुन्देली गीत भी लिखे हैं। तब हमने न्यारे होवे की ठानी भी बुन्देली गीत ही हैं। बुन्देली में आपकी अच्छी पकड़ है।
नेता जी सुभाषचन्द बोस के लिये-हमारा पद वन्दन स्वीकारो और इन्कलाब जिन्दाबाद जैसी भाव पूर्ण रचनायें लिख गये हैं। उन्हें विश्वास है, देश की देश के हित में जनता हर वलिदान करेगी। टके सेर भाजी टके सेर खाजा, कविता देश की व्यवस्था पर गहरा व्यंग्य है। प्रजातंत्र में भी कुछ अविवस्थायें हैं। देश हित में जनता को भी कुछ काम करना चाहिए। इमरजैन्सी की स्थिति के बारे में भी खुलकर चित्र अंकित किये हैं।
आपकी भाषा सहज सरल है। कसक की सभी रचनायें पठनीय है। देशभक्ति के गीत सुनकर पाठक भाव विभोर हुए बिना नहीं रह सकता। निश्चय ही कृति पढ़ी जानी चाहिए। ऐसी श्रेष्ठ कृति के लिये रचनाकार बधाई कें पात्र रहे हैं।
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कृति का नाम- कसक काव्य संकलन
कृतिकार का नाम- सियाराम सर्राफ ,सराफा बाजार डबरा ग्वालियर
प्रकाशन वर्ष-1997
मुल्य-55 रु.
समीक्षक- रामगोपाल भावुक। मो0 9425715707