अंक ३३ कई सारे सवाल ?
एक दिन डोक्टर के काम के कारण सारवार टालने के बाद आज फिर से अंश और दिव्या अस्पताल जाने के लिए निकल पड़े थे | दोनों के बिच जाते वक्त कुछ बाते चल रही थी |
अंश अभी कृपा करके अपनी वो अधूरी दास्तान सुनाओगे की नहीं ...दिव्या ने अंश से कहा |
अरे यार तुम भी ना उसके बारे में जानकार क्या करोगी | मुझे फिर से वही दिन नहीं याद करने है यार ...अंश ने कार चलाते हुए दिव्या से कहा |
अबे अंश बताओ ना अब उसके बारे में ज्यादा क्या सोचना वो एक गुजरा हुआ वक्त था जो गुजर चुका है जिसे सिर्फ याद किया जाता है उसे याद करके रोया थोड़ी जाता है ...दिव्या ने अंश से कहा |
अरे एसी बात नहीं है मुझे कोई रोना नहीं आता उस वक्त को याद करके पर फिर भी उस दिनों को याद करके आज के दिनों को जीने में दिक्कत होती है ...अंश ने दिव्या से कहा |
दिक्कत बाद में होती है पहले तो उस यादो को याद करके एक अजीब सा सुकून मिलता है फिर गम इस बात का होता है की यार वो पल तो हमारे पास है ही नहीं ...दिव्या ने अंश से कहा |
सही बात है यार | देखे तो जब हम सबको पहेला प्यार होता है तो उसकी यादे बहुत मीठी होती है जिसे जीने में बहुत आनंद आता है पर जब उसका अंत याद आता है तो आज का जीवन भी कडवा सा लगने लगता है ...अंश ने कार चलाते हुए कहा |
फिर यार मुझे तुम्हारी कहानी जानने की बहुत इच्छा है क्योकी यार तुम्हारी कहानी तुम जब बोलते हो तो एसा ही लगता है मानो जैसे मेरी ही कहानी हो ...दिव्या ने अंश से कहा |
ठीक है फिर सुनो और क्या ...अंश ने दिव्या से कहा |
अंश की प्रेमगाथा अंश के नजरिये से :
फिर कॉलेज से घर जाने की रात को में सो ही नहीं पाया पुरी रात उसी की सोच में डूबा रहा की उसने क्यों मुझे प्रपोझ नहीं किया | क्या लास्ट वक्त पे उसका निर्णय बदल गया होगा फिर हुआ कि नहीं नहीं वो प्रेम करती है एसा कैसे हो सकता है पुरी रात मेरी उसी सोच में गुजर गई की यार एसा कैसे हो सकता है | पुरी रात अपने कमरे में इधर उधर चक्कर लगाता रहा | कभी तकिये को गले लगाता तो कभी घर के झरुखे में जाकर बैठता | बैठने और चक्कर लगाने की जगह बदलती पर सोच वही की वही अटकी हुई थी की यार उसने प्रपोझ तो छोडो अगर मुझ से प्यार करती थी तो मुझ से बात तक क्यों नहीं की | पुरी रात एसे कटी फिर सुबह के ४ बजे मैंने तय किया की में खुद ही उसको जाकर पूछ लुंगा की वो एसा क्यों कर रही है मेरे साथ |
सुबह का समय हुआ | डायरी के हिसाब से वो मुझे हर पल देखने के लिए सुबह जल्दी पहुच जाती थी लेकिन आज सबकुछ उल्टा हो रहा था आज गोपी को देखने के लिए में पंहुचा हुआ था यानी स्कूल जल्दी आकर उसका इंतजार कर रहा था | एक में था और एक लड़की थी हम दोनों ही सबसे पहले पहुचे हुए थे और शायद वो लड़की भी किसी का इंतजार कर रही होगी ...अंश के इतना बोलते ही दिव्या उसे रोक देती है |
एक मिनट अंश मुझे तुझ से कुछ सवाल करने है यार ...दिव्या ने कहा |
हा बोलो क्या सवाल करना है तुम्हे ...अंश ने कहा |
तुम कोनसी स्कूल में पढ़ते थे ...दिव्या ने अंश से कहा |
में हमारे जनमावत शहर की सबसे विख्यात स्कूल सरस्वती में ...अंश ने दिव्या से कहा |
अच्छा मुझे यह बताओ की तुम जिस दिन की बात कर रहे हो की तुम गोपी का इंतजार कर रहे थे तब तुमने लाल कलर की शर्ट पहेनी थी ...दिव्या ने अंश से कहा |
हा पर पक्का पता नहीं पहेनी होगी शायद पर तुम यह सब क्यों पूछ रही हो दिव्या ...अंश ने दिव्या से सवाल करते हुए कहा |
अच्छा वो छोडो तुम मुझे आगे बताओ की उस डायरी का और गोपी का क्या हुआ ...दिव्या ने अंश से कहा |
पता नहीं की दिव्या के दिमाग में एसे उलटे सीधे सवाल जवाब क्यों हो रहे थे लेकिन कुछ सवाल करने के बाद वो फिर से शांत हो जाती है और अंश की कहानी को आगे बढाने के लिए बोलती है |
हा आगे बढाता हु पर तुम पहले यह बताओ की तुम एसे सवाल क्यों कर रही हो कही तुम तो गोपी नहीं होना अरे यार में भी क्या बोल रहा हु तुम गोपी कैसे हो सकती हो ...अंश ने दिव्या से कहा |
पहले तो में गोपी नहीं हु और दुसरी बात में क्यों सवाल कर रही थी उसका उत्तर में बाद में तुम को देती हु पर उससे पहले तुम मुझ को यह बताओ की में गोपी क्यों नहीं हो सकती क्योकी मेंरा उपनाम हो सकता है गोपी या तो बाद में मैंने अपना नाम दिव्या रख दिया हो क्योकी बात १० वी जब हम पढ़ते थे तब की है और अब तक तो हमारे चहरे कितने बदल चुके है तुमको कैसे पता की में गोपी नहीं हु क्योकी मैंने तुमको यह सवाल इसलिए किए क्योकी में भी उसी स्कूल में पढ़ती थी और में तुम को अच्छी तरह से जानती हु पर तुम मुझको यह बताओ की मै गोपी कैसे नहीं हो सकती ...दिव्या ने अंश से सवाल करते हुए कहा |
तुम गोपी हो सकती हो लेकिन उसकी एक ही वजह हो सकती है जो नामुमकिन है ...अंश ने दिव्या से कहा |
क्यों नामुमकिन है ...दिव्या ने कहा |
क्योकी गोपी की लाश मेरे सामने पड़ी थी उसकी चिता को जलते हुए मैंने देखा है आज भी वो दिन मुझे याद है मेरे जीवन का सबसे दुःखद दिन था वो और अगर तुम गोपी हो तो इसका एक ही कारण है की तुम उपर से वापस इस धरती पर आ गई हो लेकिन एसा मुमकिन नहीं है ...अंश ने दिव्या से कहा |
सॉरी यार मुझे नहीं पता था की गोपी मार चुकी है | मुझे लगा वो जिंदा होगी पर उसको हुआ क्या था बीमारी थी कोई उसे ...दिव्या ने सवाल करते हुए अंश से कहा |
बिमारी उसे नहीं थी वो किसी और की बिमारी की वजह से मरी है जो में तुम्हे कहानी के अंत में समझाऊंगा क्योकी मानसिंह जादवा ने सिर्फ तुम्हारा ही सबकुछ नहीं छिना है मेरा भी सबकुछ छीन लिया है ...अंश ने कार चलाते हुए उसके जीवन का और इस कहानी का एक और रहश्य खोलते हुए कहा |
दिव्या अंश की इस रहश्य से भरी बात को सुनकर चौक जाती है और उसके दिमाग में इससे कई सारे सवाल उठने लगते है |
क्या बात कर रहा है अंश इसमें मानसिंह जादवा यानी मेरे ससुर कहा से बिच में आ गए में कुछ समझ नहीं पा रही हु ...दिव्या ने अपनी उलझन की बात करते हुए अंश से कहा |
में तुम्हारी सारी उलझन का उत्तर दूंगा लेकिन सबसे पहले तुम मेरी पुरी दास्तान जान लो ताकि तुम्हे सबकुछ समझने में आसानी हो ...अंश ने दिव्या से कहा |
ठीक है अंश अब में बिच में नहीं बोलूंगी तुम मुझे सारी कहानी जहा से हम अटके थे वहा से सुनाओ ...दिव्या ने अंश से कहा |
मानसिंह जादवा से कैसे जुडी है अंश की प्रेमगाथा ? दिव्या भी उनके साथ पढ़ती थी तो क्या दिव्या का कोई रोल है अंश की प्रेम कहानी में क्योकी गोपी और दिव्या दोनों एक ही है एसा आप सोच रहे है तो एसा बिलकुल नहीं है और एसा नहीं है तो कैसा है सवाल कही सारे है लेकिन उत्तर एक ही है की पढ़ते रहिये Hum Ne Dil De Diya के आने वाले सारे अंको को |
TO BE CONTINUED NEXT PART ...
|| जय श्री कृष्णा ||
|| जय कष्टभंजन दादा ||
A VARUN S PATEL STORY