अंक ३१ तेज होती हुई राजनीती
सारे दोस्त हवेली से बहार निकलकर अपने अपने रास्ते निकल जाते है और आज पहेली बार चिराग और अंश की लड़ाई की वजह से सारे दोस्तों के बिच दरार पड़ गई थी | आज दोनों अपनी अपनी जगह पर सही थे | ना तो चिराग गलत था और ना ही अंश दोनों की बात सही थी लेकिन दोनों का बात करने का तरीका गलत था जिस वजह से आज दोस्ती में थोड़ी सी दरार आ चुकी थी | आपकी बात कभी कभी भले ही सही हो लेकिन आपका बात करने का तरीका अगर गलत हो तो परिणाम हमेशा आप की सोच से उल्टा ही निकलता है और यहाँ पर वही ही हुआ अगर अंश और चिराग बैठकर शांति से इस काम के रिश्क और खतरे के बारे में बात करते तो आज यह नहीं होता | अंश ने भी इतना झगडा होने के बाद गुस्से और जल्दबाजी में फेसला ले लिया और जल्दबाजी में लिया हुआ फेसला हमेशा ही गलत होता है और यहाँ पर भी वही हुआ | अशोक और पराग अंश का साथ देने के लिए मना नहीं कर रहे थे और ना ही चिराग मना करता अगर अंश उसे सहि से बात समझाता तो पर अंश के गुस्से के कारण बात बनने की बजाये बिगड़ने लगी जो सभी दोस्तों के लिए बिलकुल ही अच्छा नहीं था |
वैसे भले ही माहोल तनाव वाला नहीं था पर सारे दोस्तों के बिच और दिव्या के बिच माहोल तनाव वाला हो चूका था | सारे दोस्त बिना खाए ही हवेली से निकल गए थे | अंश और चिराग के बिच थोड़ी सी दुरिया आ चुकी थी जिसे मिटाना जरुरी था लेकिन वो तब मुमकिन था जब अंश और चिराग दोनों एक जगह पर इकठ्ठा हो | चिराग और अंश दोनों ने एक दुसरे से मिलना झुलना बंद कर दिया था और उसकी तकलीफ पराग और आशोक को पड़ रही थी | पुरा दिन कुछ इस तरह से गुजरता है |
दुसरे दिन सुबह | दोस्तों की लड़ाई होने की वजह से सबके दिमाग से अखबार वाली बात निकल चुकी थी और इसी वजह से आज अखबार पर मानसिंह जादवा और विश्वराम केशवा की नजर जरुर पड़ने वाली थी | इस तरफ दोनों की नजरे अंश और दिव्या के फोटो पर पड़ती और उस तरफ अंश के उपर बिजली पड़ती |
सुहानी सुबह थी | सुबह की ठंडी हवा, पंछियो का कलरव और मंदिरों की पवित्र आरती दिनों को शुभ से अति शुभ बना रही थी | कहेते है की आज कल इंसानों को जगाने के लिए मुर्गा तो रहा नहीं तो उसकी जगह अख़बार पहुचाने वाले ने ले ली है जो साईकल पे आता है और सबके दरवाजे पर अखबार फेककर चला जाता है और उसके साईकल की ट्रिन... ट्रिन पुरे गाव में कुकड़े की कुकड़े कु से ज्यादा जल्दी सुनाई देती है | गाव में सुबह सारे लोग चाहे पुरुष हो या महिला हो सब हाथ में मुठ्ठीभर गेहू लेकर मंदिर जाने के लिए निकलते है लेकिन दोनों में अंतर यह है की अगर कोई पुरुष निकलता है तो आप उन्हें पहेचान सकते है की यह भाई कौन है लेकिन अगर कोई महिला निकले तो उन्हें पहेचानना बेहद मुश्किल है क्योकी गाव वालो के रिवाज ने उनका चहेरा घूँघट से ढँक रखा है | गाव की सुबह की आदते बहुत ही अच्छी होती है क्योकी यहाँ पर दिन की शुरुआत पुजा अर्चना और मंदिर से होती है शहर में एसा नहीं होता | पुजा अर्चना घर में जरुर होती है पर मंदिर बहुत कम लोग जाते है क्योकी मंदिर जाना बहुत जरुरी है जहा हमें कई सारे सही विचार और संस्कार मिलते है और विचारो का आदान प्रदान भी होता है | तो सुबह कुछ एसी थी और अंश की सुबह इससे बिलकुल विपरीत थी | अंश अपने घर की छत पर सोया हुआ था | सुरज उसके शिर पर चढ़कर उसे जगाने पर तुला हुआ था लेकिन अंश भी कम नहीं था वो अपनी चद्दर को ढाल बनाकर सूरज के तेज को बराबर टक्कर दे रहा था | विश्वराम केशवा सुबह जल्दी उठते है और रोजाना २ घंटे पुजा विधि करते है उसके बाद छत पर मोर को दाना डालने के लिए आते है |
आज भी विश्वराम केशवा दाना डालने के लिए आए हुए थे | अंश को सोतो हुआ देख विश्वराम केशवा दाने का डिब्बा बाजु की दीवार पे रखकर सबसे पहेले अंश को जगाने के लिए जाते है |
उठो कुंभ करण की औलाद उठो | भगवान सुरज भी आपको जगाने की कोशिश कर रहे है लेकिन आज कल के लडको को कहा सुरज जगा सकता है हमारे वक्त में तो सुरज दादा को यह मौका ही नहीं मिलता था की वह हमें जगा सके ...विश्वराम केशवा ने अंश की चद्दर को उसके मु के उपर से खीचते हुए कहा |
अरे बाबा सोने दोना हमारे ज़माने में रेडियो नहीं चलता है तो आप सुबह सुबह में अपना रेडीओ मत चालु करो ...फिर से चद्दर ओढ़कर सोते हुए अंश ने कहा |
अंश बेटा चलो जागो फिर मै चिल्लाऊ और तुम जागो यह अच्छा नहीं है | पहले गाव की हर एक छत पर मोर आया करते थे लेकिन जब से तुमने और तुम्हारे जैसो ने छत पर देर तक सोना शुरू किया है तब से साला एक भी मोर नहीं देख पाता छत पर ...विश्वराम केशवा ने थोडा सा गरम होकर कहा |
बाबा वन्स मोर बिनती कर रहा हु की आप अपना रेडियो बंद कीजिए ...अंश ने नींद में कहा |
ठीक है फिर पड़े रहो कुंभकरण के जैसे ...कंटाल कर जाते हुए विश्वराम केशवा ने कहा |
विश्वराम केशवा भी सुरज की तरह हार के वापस दाने के डिब्बे के पास चले जाते है और उसमे से दाने लेकर मोर के लिए पुरी छत पर डाल देते है और फिर निचे चले जाते है | अब समय वो था जो अंश की सुबह बिगाड़ भी सकता था | विश्वराम केशवा के अखबार पढने का समय था | विश्वराम केशवा अपना घर का दरवाजा खोलते है और अखबार उठाते है और पढने की शुरुआत करते है | जैसे जैसे पढ़ते हुए विश्वराम केशवा पन्ने पलटते है और उनकी नजर अंश की शांतिलाल झा के साथ वाली तस्वीर पर पड़ती है और फिर क्या विश्वराम केशवा ने वो नहीं देखा की किस लिए तस्वीर छपी है उन्हें बस इतना दिखा की विकास दल के अध्यक्ष के साथ अंश की तस्वीर क्यों ? क्योकी उसके साथ अंश की तस्वीर होना मतलब मानसिंह जादवा के दिमाग में हजारो सवालों का पैदा होना | हाथ में अखबार और मु में तेज तराक आवाज के साथ अंश को निचे से ही उठाने की शुरुआत करते है |
अंश यह सब क्या है तुम उठो और निचे आओ वरना में आज लकड़ी का डंडा लेकर उपर आता हु तुम्हारी धुलाई करने के लिए | तुम उस विपक्ष वाले के साथ क्या कर रहे हो ? तुम्हे जरा सा भी अंदाजा है की मानकाका कितने सवाल करेंगे ...विश्वराम केशवा ने अंश के उपर चिल्लाते हुए कहा |
विश्वराम केशवा ने जो भी चिल्लाकर बोला वो एकदम सही बोला था क्योकी सुबह जैसे मानसिंह जादवा ने भी अख़बार खोला उन्होंने भी वो तस्वीर देखी और उनके दिमाग में भी वही सवाल दोड़ने लगे जो विश्वराम केशवा के दिमाग में दोड रहे थे | भरी सुबह में मानसिंह जादवा का फोन विश्वराम केशवा के फोन पर आता है और अंश को सुबह सुबह जादवा सदन बुलाया जाता है |
जादवा सदन का दृश्य कुछ एसा था मानो जैसे गाव की पंचायत लगी हो | बिच आंगन में चारा पाच खुरशी लगी हुई थी और बिच में एक स्टैंड जिस पर कॉफी नास्ता और अखबार पड़ा हुआ था | सबसे बड़ी और बिच वाली खुरशी में मानसिंह जादवा बैठे हुए थे और दोनों तरफ में से एक सुरवीर जादवा बैठा हुआ था और एक तरफ विश्वराम केशवा और हमेशा की तरह कोने में झूले पे अपने हाथ में माला लेकर भगवान का जाप कर रही बा बैठी हुई थी और सबके सामने अंश खड़ा हुआ था जिससे आज कई सारे सवाल पुछे जाने वाले थे पर उसको इस चीज का जरा सा भी डर नहीं था क्योकी उसे अपने उपर भरोसा था की वो कोई ना कोई बहाना करके वहा से जरुर निकल जाएगा | सबसे बड़ी बात अंश के लिए यह थी की तस्वीर में दिव्या के मु पर मास्क लगा होने की वजह से दिव्या पहेचान में नहीं आ रही थी |
मानसिंह जादवा अपने हाथ में अख़बार लेते है और अखबार के उस हिस्से को खोलते है जिसमे अंश और दिव्या की शांतिलाल झा के साथ तस्वीर थी | अंश की तरफ वो हिस्सा और सवाल दोनों एक साथ करते है |
अंश यह सब क्या है तुम कब से हमारे विरोधियों के साथ मिलने लगे हो बताओ जरा ...मानसिंह जादवा ने अंश को सवालों के घेरे में लेते हुए कहा |
में उसके साथ तस्वीर में हु पर उसके साथ मिला हुआ नहीं हु ...अंश ने अपनी बात रखते हुए कहा |
जो भी हो लेकिन यहाँ पर तो लिखा हुआ है की पार्टी के युवा कार्यकर्ताओ के साथ मिलकर अस्पताल में फलो का अनावरण किया शांतिलाल झा ने ...मानसिंह जादवा ने अंश से कहा |
पार्टी के कार्यकर्ता मतलब मुझे तो उन्होंने अपने आप को एक व्यापारी बताया और कहा की वो व्यापार में पापा से जुड़े हुए है ...अपने पिता की तरफ देखते हुए अंश ने कहा |
बेटा यह कोई व्यापारी नहीं है यह विकास दल का अध्यक्ष है और आज कल यहाँ पर मान काका के विरोध में चुनाव लड़ने की फ़िराक में है ...विश्वराम केशवा ने अंश को शांतिलाल झा का परिचय देते हुए कहा |
आपको तो पता है बाबा की में यहाँ पर किसी भी नेता को पहेचानता नहीं हु मुझे उन्होंने जो भी बताया वो मैंने मान लिया ...अंश ने अपने पिता और मानसिंह जादवा से कहा |
अच्छा ठीक है वो सब छोडो और तुम यह बताओ की तुम अस्पताल में कर क्या रहे थे और यह लड़की कौन है जिसके साथ तुम्हारी तस्वीर छपी है... मानसिंह जादवा ने सबसे गंभीर सवाल करते हुए कहा |
अंश इस सवाल के साथ सोच में पड़ जाता है की मानसिंह जादवा को क्या उत्तर दु पर अंश इस सब काम में माहिर था | वो झट से कोई बहाना निकाल लेता था और फट से आत्म विश्वाश के साथ सबके सामने पेश कर देता था |
काका वो मेरे बाजु वाले गाव के दोस्त की बहेन है जिसका ब्लड प्रेसर बढ़ गया था तो उसकी की सहायता के लिए में वहा पर गया था और अचानक ही वो आप जो बता रहे है वो शांतिलाल झा फलो का अनावरण करने के लिए आए और उन्होंने आते ही कहा की तुम विश्वराम केशवा के बेटे होना में उन्हें पहेचानता हु और फिर पापा के साथ व्यापर के सिल सिले में मिलते है वगेरा वगेरा बाते मेरे साथ करने लगे तो मुझे लगा की सच ही बोल रहे होंगे | फिर उन्होंने मुझ से पुछा की यहाँ पर क्या कर रहे हो तो मैंने उनको बताया की में यहाँ अपने दोस्त की बहेन के लिए आया हुआ हु तो वो मेरी इस सेवा के बारे में सुनकर खुश हो गए और उन्होंने जबरदस्ती मेरे साथ फोटो ली और चले गए | अभी मुझे क्या पता इसमें उनकी कोई सियासी चाल होगी ...अंश ने सबकुछ समझाते हुए कहा |
तुम बोल रहे हो तो सच ही होगा | इसका मतलब समझे विश्वा आप ... मानसिंह जादवा ने विश्वराम केशवा की और देखते हुए कहा |
बिलकुल वो हमारे बारे में सबकुछ जानकर बैठा है और उसकी नजर भी है हम पर और वो चुनाव में अपना दाव अच्छी तरह से खेलने वाला है ...विश्वराम केशवा ने कहा |
मानसिंह जादवा कुछ देर के लिए चुप रहेते है और कुछ सोचते हुए बड़े ध्यान से दिव्या और अंश की उस तस्वीर को देख रहे थे |
अबे यह क्या मानकाका उस तस्वीर को बाज नजर से क्यों देखने की कोशिश कर रहे है कही वो दिव्या को पहेचान तो नहीं गए ना | ना... ना एसा मत सोच अंश शुभ शुभ सोच बेटा ...अंश ने गभराहट का सामना करते हुए मन ही मन कहा |
अंश बेटा ...मानसिंह जादवा ने तस्वीर को देखते हुए कहा |
हा काका बोलिए ...अंश ने आत्म विश्वाश के साथ उत्तर में कहा |
इस तस्वीर में जो लड़की है उसके शिर पर दुपट्टा बंधा हुआ है इसका मतलब है की इसके शिर पे बाल नहीं है यह कही विधवा तो नहीं है ... मानसिंह जादवा ने अपने दिमाग में हो रहे सवालों को अंश के सामने पेश करते हुए कहा |
अरे बाप रे क्या सवाल कर रहे है क्या उत्तर दु इन्हें | अगर विधवा का बोल दिया तो मेरी तो खेर नहीं लेकिन उस लड़की को भी यह लाज और मर्यादा का शुर पीटकर ढूढने लगेंगे | कुछ तो बहाना लगाना होगा ...अंश ने मन ही मन सोचते हुए कहा |
अरे नहीं नहीं काका यह विधवा नहीं है अभी इसकी शादी भी नहीं हुई है | वो क्या था ना उसे कैंसर की बिमारी थी जिस वजह से उसके शिर के सारे बाल गिर गए है और कुछ नहीं ...अंश ने फिर से एक मजबुत बहाना बनाकर मानसिंह जादवा को उसमे फसाते हुए कहा |
ठीक है कोई बात नहीं लेकिन आगे से ध्यान रखो यह हमारे विपक्ष का नेता है हमारा कब और कहा उपयोग करेगा पता नहीं ... मानसिंह जादवा ने कहा |
जी काका ...अंश ने अपना शिर झुकाते हुए कहा |
विश्वा आज हम जल्दी साईट पे जाकर आते है दुपहर के बाद वो भवानी सिंह आने वाला है उसे कुछ काम था तो हमें अभी चलना चाहिए ...मानसिंह जादवा ने विश्वराम केशवा से कहा |
हा ठीक है अगर आप फ्री हो गए है तो चलते है ...विश्वराम केशवा ने कहा |
अंश तु भी अब कंपनी पे आया कर ...मानसिंह जादवा ने अपनी जगह से उठते हुए कहा |
जी काका देखता हु ...अंश ने मानसिंह जादवा से कहा |
मानसिंह जादवा, विश्वराम केशवा और सुरवीर अपनी जगह से उठकर कंपनी जाने के लिए निकलते है और उसी वक्त अंश को अस्पताल से फोन आता है | अंश अपना फोन उठाता है |
जी बोलिए साहब ... सामने दादी होने के कारण जान बुझकर अंश ने डोक्टर साहब नहीं कहा |
आज में अस्पताल में हु नहीं और दिव्या जी को में एक दवाई लिखकर देता हु वो शाम को दे दीजिए जिससे आज आप यहाँ पर ना भी आए तो भी चलेगा क्योकी दुसरे डॉक्टरो भी है नहीं आज कुछ तत्काल के कारण तो कल हम उनको रूटीन में जो भी होगा वो दे देंगे ...डोक्टर ने अंश से कहा |
ठीक है आप मुझे संदेश भेज दीजिए में वो उन्हें दे दूंगा और कल लेकर आपके पास आ जाऊंगा ...अंश ने फोन काटते हुए कहा |
सुबह के १०:३० मिनट का समय हो रहा था | पुलिस ठाणे | भवानी सिंह अभी तक पहुचे नहीं थे | प्रदुषण विभाग का अधिकारी आज ठाणे मानसिंह जादवा की रिपोर्ट लिखवाने के लिए उस अधिकारी के साथ आया था जिसके पैर पे गोली लगी थी और कई दिनों से वो आ रहा था लेकिन उसकी फ़रियाद कोई लेने को तैयार नहीं था इस वजह से वो आज हवालदार मनसुख भाई से बहेस कर रहा था |
आप मेरी फ़रियाद क्यों नहीं ले रहे है मानसिंह जादवा के खिलाफ | हमें ओन ड्यूटी पे गोली मारी गई है और धमकाया गया है आप उनके विरोध में फरियाद लिखिए जल्द से ...प्रदुषण विभाग के डिरेक्टर ने गुस्से में कहा |
देखिए में आपको कई दिनों से समझा रहा हु की उनके खिलाफ मत जाईये अभी पैरो पे गोली लगी है बाद में सीधा गोली एसी जगह लगेगी की आप फ़रियाद करने के लिए जिंदा नहीं रहेंगे इसलिए में आज आपको फिर से समझा रहा हु की उनसे उलझाना रहेने दो आप एसा मान लो की यह पुलिस थाना भी उन्हींका है ...हवालदार मनसुख ने प्रदुषण विभाग के अधिकारी को समझाते हुए कहा |
आप पुलिस वाले है कुछ तो शरम कीजिये कैसी बाते कर रहे है अगर आपने मेरी फरियाद नहीं ली तो में आपके खिलाफ अदालत में जाऊंगा ... अपनी जगह से उठकर डिरेक्टर ने कहा |
दोनों के बिच बहेस चल ही रही थी उतने में भवानी सिंह का पुलिस दफ्तर में प्रवेश होता है और उस अधिकारी के कुछ आखरी शब्द भवानी सिंह सुन लेता है |
क्या हो रहा है यहाँ पर ...भवानी सिंह ने उची आवाज में कहा |
भवानी सिंह को देखकर सारे जूनियर ऑफिसर उन्हें सलाम ठोकते है |
साहेब यहाँ पर लगता है किसी इमानदार आदमी के लिए जगह नहीं है | में मानसिंह जादवा के गलत कामो को बंद करवाने गया था और उसने हम पर हमला कर दिया मेरे एक आदमी को गोली मार दी और बदले में हमारी पीछले कई दिनों से यहाँ पर आने के बावजूद हमारी फरियार नहीं नोंधी जा रही है | अगर एसा ही चलता रहा तो मुझे पुलिस के खिलाफ अदालत में जाना पड़ेगा ...डिरेक्टर ने भवानी सिंह से कहा |
नहीं इसकी कोई जरुरत नहीं है | मनसुख भाई आप इनकी फ़रियाद क्यों नहीं लिख रहे हो ...भवानी सिंह ने मनसुख भाई से सवाल करते हुए कहा |
वो साहब मानसिंह जादवा के खिलाफ फ़रियाद है इस वजह से ...हवालदार मनसुख भाई ने धीमी आवाज में कहा |
मानसिंह जादवा हो या कोई भी हो फरियादी की फ़रियाद जरुर लिखनी पड़ेगी | आप अभी के अभी इनकी फ़रियाद लिखिए ...अपने दफ्तर की और जाते हुए भवानी सिंह ने कहा |
thank you साहब ...डिरेक्टर ने भवानी सिंह से कहा |
भवानी सिंह के कहने पर मनसुख भाई प्रदुषण विभाग के अधिकारी की फरियाद नोंधते है और फिर वह अधिकारी सारी प्रक्रिया पुर्ण करने के बाद वहा से चले जाते है | हवालदार मनसुख भाई भवानी सिंह के दफ्तर में आते है |
साहेब जय हिन्द ... भवानी सिंह के दफ्तर में आते हुए हवालदार मनसुख भाई ने कहा |
जय हिन्द जी कहिए ...भवानी सिंह ने कहा |
अभी इस फरियाद का क्या करना है इसके उपर कार्यवाही करनी है की नहीं ...हवालदार मनसुख भाई ने कहा |
मैंने सिर्फ फ़रियाद लिखने को कहा था आपने अब आगे क्या करना है आपको पता ही है | उनको बहानो पे बहाना देते जाओ क्योकी यह अदालत में जाएंगे तो खामखा हमें परेशानी होगी इससे अच्छा है झूठमुठ का कॅश चलाओ आप ...भवानी सिंह ने मनसुख भाई को समझाते हुए कहा |
जी समझ गया साहब ...मनसुख भाई ने जाते हुए कहा |
दुपहर के बाद का समय था | भवानी सिंह की पुलिस वेन मानसिंह जादवा के घर के बहार पड़ी थी और अंदर सदन के बैठक रूम में मानसिंह जादवा, भवानी सिंह और विश्वराम केशवा के बिच संवाद चल रहा था |
भवानी सिंह के लिए मधु भाभी चाय लेकर आती है और भवानी सिंह को देती है |
जी सुखरिया भाभी जी ...चाय लेते हुए भवानी सिंह ने कहा |
बोलो भवानी सिंह बात क्या है की तुम्हे मुझ से यु रूबरू मिलना पड़ा ...मानसिंह जादवा ने कहा |
दो बाते है पहले यह की वीर के कॅश में जिस हालत में ट्रक मिला है उससे मेरा शक पक्का हो गया है की यह मर्डर है और उसके परिवार का भी पता चला है जिन्हें यहाँ लाने की व्यवस्था हम लोग कर रहे है और शायद ड्राईवर भी वहा पर हो पर जादवा साहब इतना काफी नहीं है असली जड़ तक पहुचने के लिए | में आपकी मंजुरी लेकर आपके परिजनों की और आपके फार्म हाउस से लेकर वीर के दोस्त तक सबकी में पुछ्ताज करना चाहता हु और इसकी एक वजह यह है की शायद आपके परिवार वालो के पास वीर से जुडी कोई जानकारी हो ...भवानी सिंह ने मानसिंह जादवा को समझाते हुए कहा |
ठीक है लेकिन एक ही बार में आपको जो पूछना है आप पूछ लीजिएगा ...मानसिंह जादवा ने भवानी सिंह से कहा |
और जादवा साहब मुझे खास करके वीर की विधवा बहु को भी पुछ्ताज करनी होगी और वो सबसे ज्यादा जरुरी है क्योकी वीर ने वो दो दिन उसी के साथ बिताए होंगे तो हो सकता है वो हमारी कुछ मदद कर सके ...भवानी सिंह ने मानसिंह जादवा को ना पसंद आने वाली बात करते हुए कहा |
क्या बोल रहा है भवानी तु उसे मिलाना किसी के लिए संभव नहीं है वो अभागन है और हमारे यहाँ अभागन मरने पड़ी हो तो भी उसे मिलने नहीं जाते किसी ख़ास वहज के सिवा ...मानसिंह जादवा ने अपनी आवाज थोड़ी उची करते हुए कहा |
देखिये जादवा साहब मेरी बात को गलत और साधारण ना समझे यह भी एक ख़ास ही वजह है और सिर्फ एक ही बार की तो बात है मेरे दो हवालदार आएंगे और आपके लोगो को साथ में रखकर थोड़ी सी पुछ्ताज है वो करके चले जायेंगे फिर में दुसरी बार नहीं कहूँगा और अगर उसमे भी दिक्कत है तो में खुद आ जाऊंगा ...भवानी सिंह मानसिंह जादवा के गुस्से को सँभालते हुए कहा |
ठीक है एक ही बार और जा ने से पहले मुझे बताना और यहाँ पर आज नहीं आज सबको बहार जाना है तो कल या परसों पुछ्ताज कर लेना ...मानसिंह जादवा ने मंजुरी देते हुए कहा |
मानसिंह जादवा का यहाँ पर एसा दबदबा था की यहाँ के PI को पुछ्ताज करने के लिए भी उनकी मंजुरी लेनी पड़ती थी |
दुसरी बात क्या है आपने बताया नहीं भवानी सिंह ...विश्वराम केशवा ने कहा |
अरे हां जादवा साहब यह आपके लिए है की वो विपक्ष का नेता शांतिलाल झा मुझ से मिलने के लिए आया था और बता रहा था की वो किसी उमेदवार को आपके सामने खड़ा करने वाला है और शायद यहाँ का ही है ...भवानी सिंह ने कहा |
हं आज सुबह अख़बार पढ़ते ही मुझे अंदेशा हो गया था की उसने अपना कार्य शुरू कर दिया है और में भी उसी तलास में हु की साला वो उमेदवार है कौन जिसकी मेरे खिलाफ होने की हिम्मत हुई है ...मानसिंह जादवा ने सोचते हुए कहा |
जो कोई भी हो लेकिन यह शांतिलाल झा कुछ ज्यादा ही जोर में है इस बार | मेरे पास आया था तब एसा ही लग रहा था की इसकी तैयारिया मजबूत चल रही है | कहेने को प्रदेश अध्यक्ष है पर पिछले कुछ दिनों से वो जनमावत तालुके में ही रहे रहा है | उसको कुछ भी करके यहाँ सीट चाहिए एसा प्रतीत हो रहा है जादवा साहब ...भवानी सिंह ने मानसिंह जादवा को शांतिलाल झा के खिलाफ भड़काते हुए कहा |
होने दो बहार के किसी में इतना दम नहीं है की वो आकर मुझे हरा सके और में भी अपनी तैयारिया शुरू करने ही वाला हु बस एक बार पता चल जाये की वो उम्मेदवार कौन है अगर उसकी दुनिया मैंने ना उजाड़ दी ना तो मेरा नाम मानसिंह जादवा नहीं ...अपनी मुछो पर ताव देते हुए मानसिंह जादवा ने कहा |
एक तरफ मानसिंह जादवा को शांतिलाल झा के मनसूबे की भनक लग चुकी थी और उन्हें तलास थी उस आदमी की जिसे शांतिलाल झा मानसिंह जादवा के सामने चुनाव में खड़ा करने वाले है और दुसरी तरफ शांतिलाल झा, वनराज सिंह और शांतिलाल झा का बेहद चालाक PA इस इंतजार में थे की कब वनराज चावड़ा के जमीन के कागज़ मिले और कब वो चुनाव के नेता का एलान कर दे लेकिन मानसिंह जादवा वनराज सिंह के जमीन के कागज़ देने में कुछ ना कुछ बहाने निकालकर जान बुझकर देरी कर रहा था |
यह एक वनराज सिंह के कागज मिल जाए बस फिर मानसिंह जादवा को दिखाता हु असली सियासी चाल क्या होती है | इसने जितने भी कुत्ते पाल कर रखे है ना उस हर एक कुत्ते का उपयोग अब में करूँगा क्योकी लालच बड़ी बला है बस एक बार पेपर हाथ में आ जाये ...शांतिलाल झा ने अपनी ऑफिस में इधर उधर चक्कर लगाते हुए अपने PA से कहा |
सही बात है लेकिन वो मानसिंह जादवा बहुत होशियार आदमी है वो एसे ही हमारे पेपर नहीं देने वाला उसके लिए हमें कोई बड़ी चाल चलनी होगी क्योकी कब तक उसके पेपर देने का हम लोग इंतजार करेंगे ...PA ने शांतिलाल झा से कहा |
सही बात है पर कोनसी चाल चले मुझे लगता है हमें एक बार वनराज सिंह को मानसिंह जादवा के घर पेपर मांगने के लिए भेजना चाहिए अगर पेपर नहीं देता है तो फिर ऊँगली टेडी करके पेपरों को निकालना होगा ...शांतिलाल झा ने अपने PA से कहा |
एक तरफ शांतिलाल झा थे और एक तरफ मानसिंह जादवा दोनों ही दिमाग, दोलत और ताकत के धनी थे और जब दोनों के बिच टकरार होगी तो कहानी और भी रसप्रद होगी | कैसे इन लोगो की राजनीती और अंश और दिव्या का जुडाव होता है जानने के लिए पढ़ते रहिएगा Hum Ne Dil De Diya के आने वाले सारे अंको को |
TO BE CONTINUED NEXT PART...
|| जय श्री कृष्णा ||
|| जय कष्टभंजन दादा ||
A VARUN S PATEL STORY