अंक २४. आजादी की पहेली सास
विधवा होकर जब पहेली बार दिव्या हवेली में आई उसके बाद आज पहेली बार दिव्या इस हवेली से बहार निकल रही है जो समाज के लिए और जादवा परिवार के लिए किसी अपशकुन से कम नहीं था पर नियती जब अपना खेल शुरू करती है तो कुछ एसा ही होता है जो शायद पहेली किसी ने भी ना सोचा हो |
अंश और दिव्या दोनों पिछले रास्ते से होते हुए बहार आते है जिनकी दीवार पर चढ़ने में और उतरने में अंश के दोस्त मदद करते है | अंश के दोस्त भी आज पहेली बार दिव्या को सफ़ेद सारी के बिना देख रहे थे और शिर पर बिना बालो के भी | हर आदमी को औरत बिना बाल के थोड़ी सी तो अजीब लगती ही है पर उसे हम बुरी सोच नहीं कहे सकते बुरी सोच तो उसे इस रूप में स्वीकार करना या नहीं करना उस मे है | सारे दोस्त दिव्या की तरफ देख रहे थे और दिव्या के मन में बार बार यह ख्याल आ रहा था की शायद इन लोगो को में बिना बाल के अजीब लग रही हु पर एसा असल में था नहीं | दिव्या फिर से अपना शिर दुपट्टे से ढक लेती हैं |
अरे दिव्या जी आपने अपना शिर क्यों ढक दिया हम में से आप किसी को भी अजीब नहीं लगे हो | आप जैसे भी हो बहुत अच्छे हो आप हम से शर्म मत रखिये हम सब आपके साथ है ...अशोक ने बड़ी समझदारी वाली बात करते हुए दिव्या से कहा |
वाह जीवन में आज पहेली बार मैंने तुझे किसी समझदारी वाली बात करते हुए देखा है भाई एसे करते रहेना तो तुम्हारी शादी जल्द से जल्द हो जायेगी ...पराग ने अशोक की चिड़ाते हुए कहा |
अबे गुटखे चुपचाप गुटखे खा ना ...अशोक ने कहा |
हमें यहाँ पर ज्यादा देर तक खड़ा नहीं रहेना चाहिए हमें चलना चाहिए ...अंश ने अशोक से कहा |
बिलकुल तुम दोनों को जल्द से जल्द निकलना चाहिए यह लो कार की चाबी ...अशोक ने अंश को अपने कार की चाबी देते हुए कहा |
ठीक है तुम लोग अपनी अपनी जगह संभाल लेना ठीक है कोई भी रिश्क नहीं लेना है हमें ...अंश ने जाते हुए कहा |
दिव्या और अंश दोनों अशोक की कार लेकर वहा से अस्पताल जाने के लिए निकल जाते है | सारे दोस्त अपने जीवन में पहेली बार इतना बड़ा जोखिम उठा रहे थे जिससे हर एक के दिमाग में कई सारे सवाल गूंज रहे थे की कई कोई खतरा ना आ जाए |
अंश और दिव्या के जाने के बाद सारे दोस्त अपनी अपनी जगह पर जाकर निगरानी रखने के लिए बैठ जाते है और ख़ुशी भी अपने रूम से बहार निकलकर सदन के अतिथी कक्ष में जाकर बैठ जाती है जहा से सभी पर अच्छे से ध्यान रहे |
इस तरफ काले काच वाली कार में सवार होकर दिव्या और अंश अस्पताल जाने के लिए निकल जाते है | दिव्या की नजर कार की चारो तरफ से बहार झाख रही थी और बहार की दुनिया को दिव्या एसे देख रही थी मानो जैसे किसी अंधे को आज पहेली बार आखो की रौशनी मिली हो और वो पहेली बार दुनिया देख रहा हो | अंश और दिव्या बड़ी आसानी के साथ गाव के बहार निकल जाते है और नवलगढ़ से जनमावत जाने वाला हाईवे पर चढ़ जाते है |
अब आप खिड़की खोल सकती हो ...अंश ने ड्राइविंग करते हुए कहा |
दिव्या यह सुनकर खुश हो जाती है और अपनी और की खिड़की का शीशा खोल लेती है और अपना शिर कार से बहार निकालकर उस हवा के स्पर्श को दिव्या एसे एन्जॉय कर रही थी मानो बरसो सुखी जमीन पर आज बारिश हो रही हो | बड़ी घुटनों का सामना करने के बाद आज दिव्या अपनी मरजी की साँस ले रही थी |
यार कितना आनंद आ रहा है अंश यह बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है | यह खुली हवा जैसे एसा लग रहा है की बरसो मुझसे रूठकर बैठी थी और आज मानी हो ...दिव्या ने खुली हवा में अपना शिर लहेराते हुए कहा |
अंश बस कार चलाते हुए सिर्फ दिव्या को देखे ही जा रहा था और मन ही मन दिव्या को इतनी खुश देखकर खुद भी खुश हो रहा था |
अब अंदर आजाओ दिव्या इस रास्ते पर से कई जान पहेचान वाले लोग गुजरते है ...अंश ने कहा |
प्राइस लेस अनुभव है यह अंश जिसे में जीवन में कभी भी नहीं भुल सकती में thank you यार आज यह सब जो भी हो रहा है वो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे कारण ही हो रहा है तो thank you ...दिव्या ने अंश से खुश होकर कहा |
आज दिव्या बहुत खुश थी | कई दिनों के बाद आज पंछी पिंजरे से आजाद हुआ था |
अच्छा मुझे तुम तुम्हारे बारे में कुछ बताने वाली थी ...अंश ने दिव्या से कहा |
क्या मतलब मेरे जीवन में तो कई सारे किस्से हुए है सारे बताने जाउंगी तो पुरा जीवन निकल जाएगा तुम पूछो कुछ वैसे वैसे में तुम्हे बताती जाउंगी ...दिव्या ने अंश से कहा |
ठीक है सबसे पहेले कॉलेज की एसी कोई सरारत जिससे तुम सबसे अलग हो एसा प्रतीत होता हो है कोई एसा किस्सा ...अंश ने दिव्या से सवाल करते हुए कहा |
सरारत तो नहीं कहूँगी पर एक किस्सा एसा हुआ था जो शायद आज तक कॉलेज के हर एक प्रोफ़ेसर और प्रिंसिपल को याद होगा | चलो में बताती हु |
हमारी कॉलेज की एक लड़की थी सुहानी जो कॉलेज की सबसे खुबशुरत लडकियो में से एक थी और लड़के उसके पीछे पागल थे ...दिव्या ने कहा |
मतलब तुम से भी खुबशुरत और महोतरमा आप के पीछे भी कोई पागल था की नहीं हा बताईए बताईए ...अंश ने दिव्या को चिड़ाने की कोशिश करते हुए कहा |
हमारा तो अपना युनिवर्ष था जो आपको बाद में बताएँगे पहेले आप यह किस्सा सुन लीजिए जनाब ...दिव्या ने अंश से कहा |
जी बताइए ...अंश ने दिव्या से कहा |
हा तो सुहानी के पीछे वैसे तो कई सारे लड़के पागल थे लेकिन सुहानी और हरमन जो कॉलेज का ही लड़का था उसके साथ संबंध में थी दोनों एक दुसरे से प्यार करते थे एसा सबको लगता था पर था नहीं क्योकी हरमन दिखने में बहुत ही सावला था और सुहानी कॉलेज की सबसे बला ही खुबशुरत लड़की थी पर था दोनों के बिच जो भी था ...दिव्या ने कहा |
ओके इसका तो एक ही मतलब निकलता होगा की सुहानी हरमन से उसके पैसो के लिए ही प्यार करती होगी ...अंश ने कहा |
बिलकुल सही पकड़ा आप ने ...दिव्या ने कहा |
मतलब मैंने तो आप से एसे ही बोला हो सकता है दोनों के अंदर एक दुसरे के लिए सच्चा प्यार हो ...अंश ने कहा |
सही है पर एसा नहीं था क्योकी कॉलेज में एक लड़के के साथ उसने सबके बिच जो किया उसके बाद मैंने उसके साथ जो किया वो होने के बाद पुरी दुनिया को पता लग गया की हरमन से सुहानी सिर्फ और सिर्फ पैसो के लिए ही प्यार करती थी और कुछ नहीं था सुहानी की तरफ से ...दिव्या ने अंश से कहा |
एसा क्या किया तुम ने ...अंश ने सवाल करते हुए कहा |
तुम सोचो एसा क्या किया होगा मैंने सोचो सोचो लगाओ अपना दिमाग चलो ...दिव्या ने अंश से सवाल करते हुए कहा |
TO BE CONTINUED NEXT PART ...
|| जय श्री कृष्णा ||
|| जय कष्टभंजन दादा ||
A VARUN S PATEL STORY