soi takdeer ki malikayen - 37 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | सोई तकदीर की मलिकाएँ - 37

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 37

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

37

 

37

सुभाष इस समय पूरी तरह से बौखलाया पङा था । जयकौर की शादी हो गयी और उसे पता ही न चला । चार दिन के लिए वह गाँव से बाहर क्या चला गया , इतना बङा कांड हो गया । ये उसका मन तीन दिन से शायद इसी लिए उचाट हो रहा था । उसका वहाँ मन ही नहीं लग रहा था । बार बार बेचैनी हो रही थी । घबराहट के मारे बुरा हाल था । जब काबू ही नहीं हुआ तो माँ को वहीं छोङ कर वह गाँव लौट आया पर तब तक जो रायता फैलना था वह तो फैल चुका था । जयकौर तुझे पूछ रही थी – ये वाक्य लगातार सुभाष के दिमाग में हथौङे की तरह बज रहा था । जयकौर शादी के मंडप में भी उसे याद कर रही थी । काश उस समय ,जब फेरों की तैयारी हो रही थी , वह यहाँ गांव में होता ।
अगर तू उस दिन यहाँ होता , फिर क्या होता ? क्या कर लेता तू ? उसने अपने आप से सवाल किया ।
फिर मैं शरण से कह कर यह शादी रुकवा देता ।
शरण से तू क्या कहता ?
यही कि मैं जयकौर से प्यार करता हूं ।
हा .. हा ..। शरण तेरी बात सुन लेता । तेरी बात सुन कर वे दोनों भाई तेरे गले में हार डालते । तेरे सामने दंडवत प्रणाम करते । तुझे वेदी पर बैठा कर अपनी बहन तुझे दे देते । मूर्ख तेरी इतनी पिटाई होती कि तेरी सात पीढियां न भूल पाती । पूरे गाँव के लोगों के सामने तेरी वह थू थू होती कि कहीं भागने को जगह न मिलती ।
मैं शादी शुरु होने से पहले ही जयकौर को लेकर कहीं भाग जाता ।
तू इतना बहादुर कब से हो गया कि तू एक लङकी को सब की नाक के नीचे से भगा ले जाता ।
जयकौर अगर तैयार हो जाती तो मैं हिम्मत तो कर ही लेता ।
और उसके बाद वे दोनों भाई और गाँव की पंचायत के लोग तेरे घर वालों का जो हाल करते वह तूने सोचा है । माँ बहन भाई भाभी कोई भी गाँव में मुँह दिखाने या रहने के काबिल न रहता । सारे मिल कर उनका जीना दूभर कर देते ।
पर उनका क्या कसूर है ? उनसे क्यों लङाई करते लोग ?
उनका कसूर यह होता कि तेरे जैसा नालायक उनका बेटा है ।
सुभाष दिन रात खुद ही खुद से सवाल करता , खुद ही उनके जवाब सोचता । पूरा दिन अपने आप से उलझा रहता । उस पर मुर्दनी छा गयी थी । न उसका खाने का मन करता , न पीने का । रातों की नींद गायब हो गई थी। किसी काम में उसका मन न लगता । चारा लेने खेत जाता तो हसिया और रस्सी घर ही भूल जाता । बाजार से सौदा लेने जाता तो वहाँ जाकर लाख कोशिश पर भी याद ही न कर पाता कि यहाँ लेने क्या आया था । तो कुछ और ही उठा लाता । पगडंडी पर अपने ध्यान में चलते हुए किसी से ही टकरा जाता फिर पैर छू कर बार बार उससे माफी मांगता ।
भाई ने उसे ऐसी हालत में देखा तो पूछा – सुभाष हुआ क्या है तुझे । ऐसा लटबौरा तो तू कभी नहीं था । कोई परेशानी है तो बता ।
कुछ नहीं भाई मैं बिल्कुल ठीक हूँ ।
ठीक तो बिल्कुल नहीं लग रहा । कोई बात तो है जो तुझे भीतर ही भीतर परेशान कर रही है ।
मुझे कुछ नहीं हुआ । आप चिंता न करो ।
चल नहीं बताना चाहता तो कोई बात नहीं । जब भी लगे बता सकता है तो बता देना । बस अपना ध्यान रखना । - रमेश खेत पर चला गया ।
भाई के बाहर जाते ही सुभाष खेस लेकर लेट गया । सारा घटनाक्रम बार बार उसकी आँखों के सामने से गुजरता रहा । इस एक हफ्ते में उसकी सारी दुनिया लुट गई थी । जयकौर ने अपनी भाभी को इस शादी को रोकने के लिए मिन्नत तरला जरूर किया होगा । ऐसा कैसे हो सकता है कि वह चुपचाप शादी के लिए मान गई हो । जितना वह सोचता , उतना ही और उलझता जाता ।
पूरा एक सप्ताह वह अपने आप से लङता रहा । फिर एक सुबह वह नित्य की तरह जंगल पानी के लिए निकला । रास्ते में एक दो लोग जा रहे थे पर अपने धुन में जाते हुए उसे कोई दिखाई न दिया । नित्यक्रिया से निवृत होकर घर जाते हुए वह घर को जाने वाली पगडंडी पर मुङने की बजाय बस अड्डे की ओर जाने वाली पगडंडी पर चढ गया था और उसी तरह बेध्यान में चलते हुए वह बस अड्डे पहुँच गया । बस अड्डे पर एक प्राइवेट बस अभी हाल ही रुकी थी । उसे अपनी ओर आता देखकर बस कंडक्टर ने जोर से आवाजें लगाना शुरु किया – फरीदकोट , कोटकपूरा मोगा । फरीदकोट कोटकपूरा मोगा । फरीदकोट कोटकपूरा मोगा की सवारियाँ जल्दी आओ । भाई बस जा रही है ।
सुभाष बेख्याली में बस में चढ गया । बस में इक्का दुक्का ही सवारिया थी । बस अभी आधी से ज्यादा खाली पङी थी । वह एक खाली सीट पर बैठ गया और अपना सिर खिङकी के शीशे से टिका कर आँखें बंद कर ली । उसकी आँखें झपकने ही वाली थी कि बस कंडक्टर ने आकर उसे आवाज दी – टिकट
उसने अपनी कमीज की जेब में हाथ मारा । उसमें कल के सौदे से बचे हुए पचास रुपए पङे थे । उसने वही इकलौता नोट कंडक्टर की ओर बढा दिया ।
जाना कहाँ है फरीदकोट ?
नहीं ,संधवा ।
कंडक्टर ने संधवा की टिकट काटी . टिकट के साथ दस रुपए का नोट उसे थमाया और बाकी लोगों की टिकट काटने के लिए आगे बढ गया । बस अपनी रफ्तार से चलती रही । ठंडी हवा का स्पर्श उसे बहुत अच्छा लगा । शीघ्र ही वह नींद में डूब गया । उसकी नींद खुली संधवा पहुँच कर जब ड्राइवर ने उसे जगाया , भाई उतरना नहीं है , तेरा संधवा आ गया ।
वह उठा और बस से नीचे उतर आया ।
बस अड्डा इस समय बिल्कुल सुनसान पङा था । उसने अंदाजा लगाया , अभी सात नहीं बजे है । हवा में अभी हल्की ठंड थी । सामने गाँव की ओर जाती पक्की सङक थी । वह पैदल ही स ओर चल पङा । सामने से उसे अपनी ही उम्र का एक नौजवान आता दिखाई दिया । वह लपक कर उसके साथ हो गया ।
भाई तुम इस गाँव के तो हो नहीं । किसी रिश्तेदारी में आए हो । कहाँ से आए हो ?
कम्मेआना से ।
फिर तो तुम पक्का भोला सिंह की नई घरवाली के मायके से आए होंगे । उन्हीं के घर जाओगे न ।
जी ।
चलो मैं तुम्हें उनकी हवेली में छोङ देता हूँ ।
जी ।
सुभाष ने सुख की साँस ली । उसे तो यह भी नहीं पता था कि जयकौर की शादी जिस आदमी से हुई है । उसका नाम क्या है ? उसके घर का पता तो दूर की बात थी । वह सोच ही रहा था कि इतने बङे गाँव में वह जयकौर को ढूँढेगा कैसे कि यह परमात्मा ने उसे रास्ता दिखाने वाले से मिला दिया ।
वे दोनों हवेली की ओर चल दिए ।

 

 

बाकी फिर ...