खुशियों के छोटे से छोटे पल भी संजो के रखने चाहिए और समय समय पर पिटारे को खोलकर उन्हें महसूस भी करना चाहिए – रचना
ख़ुशी के आंसू
रचना : “रीना ! अब तुम्हारे बेटे को कैसा है ?”
रीना : “अच्छा है दीदी ! ठीक हो गया |”
रचना : “पर उसे हलके में मत लेना , पूरा ध्यान देना |”
रीना : “जी दीदी “|
रचना पूजा के कमरे से बाहर आई, उसकी आँखों में पानी था |
रीना : “दीदी, आप जब भी पूजा करके बहार आते हैं तो आप की आँखों में आंसू क्यूँ होते हैं ? “
रचना : “अरे ! नहीं ! वो तो पूजा के बाद, मैं दीपक की ज्योत पर एकटक देखती हूँ, इसे त्राटक कहते है, इससे आँखों की रोशनी तेज होती है, मन मजबूत और शांत होता है, और भी कई फायदे है | यह तो अच्छे आंसू है ! ”
रचना अपना रोजमर्रा का काम खत्म करके कुर्सी में पसर गई | रीना भी सफाई का काम कर के चली गई थी | बस विनय आएंगे तभी गरम रोटियां उतारनी है | उसने मेज पर पड़ी किताब उठा ली, एक कहानी जो कल अधुरी छोड़ी थी, वहीँ से आगे पढ़ना शुरू कर दिया | फुर्सत के समय में यही उसका पसंदीदा काम था | हालाकि लोक डाउन के दौरान उसने अपने शौक को बड़ा रूप दिया था – उसने एक ब्लॉग बना लिया था | इतने सालो से लिखी अपनी डायरीयों में से अपने अनुभवों को कहानी का रूप दे कर लिखती थी | बड़ी लोकप्रिय हो गई थी उसकी कलम ! फिर भी पढ़ना उसकी दिनचर्या का एक भाग ही समझ लो !
कहानी बड़ी रोचक थी, रचना अपने आप को कहानी के पात्र में महसूस कर रही थी , कहानी की नायिका रमा जीवन संघर्ष के उतार-चढ़ाव से जूझ रही थी | रचना भी पुरे भाव से नायिका को उभारना चाह रही थी – कहानी ने एक नया मोड़ लिया, - “और रमा की आँखों में ख़ुशी के आंसू थे ...” | इसीके साथ कहानी खत्म हुई | पुस्तक बंद कि लेकिन मन में वही बातें चल रही थी – ख़ुशी के आंसू ? उसने ‘ख़ुशी के आंसू ‘ कभी महसूस किया हो ऐसा याद नहीं | खुशियां और आंसू एक सिक्के के दो पहलु है – एक साथ कब दीखते होंगे ? हाँ, खुशियों के पल तो बहुत थे जिन्दगी में – वैसे भी संतुष्ट जीव के जीवन में खुशियों के ढेर होते हैं | रचना ने अपनी खुशियों के भंडार में गोते लगाना शुरू किया –कौनसा वह पल था जब उसकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे ...
जब विनय से अपने प्रेम की बात अपने परिवार को करी थी, पुरानी विचारधारा के होने के बावजूद माँ-बाबूजी और पुरे परिवार ने राजी-ख़ुशी विनय को स्वीकार किया था | इथर विनय के मम्मी डैडी ने रचना को बहु नहीं बेटी ही मान लिया था – आंतरजातिय विवाह होने के बावजूद सर्व सहमती से संपन्न हुआ था | रचना और विनय ख़ुशी से झूम उठे थे |
जब मन्नू का जन्मा हुआ था – बड़ी सर्जरी हुई थी तुरंत ही, दिल में छेद ले के जो पैदा हुआ था, वह तो श्री नाथजी की कृपा ही थी, सब सुखरूप हुआ | –इसी बात पर उसने अभी फिर से भगवानन को धन्यवाद कहा | मन्नू की देखभाल में इतनी एकाकार और व्यस्त थी की खुद के मन के भाव उसे याद ही नहीं ! मन्नू आज IIM की बहेतरीन पढाई के बाद, आठ अंको की पगार पे सात समंदर पार वाली कंपनी में छहसो लोगो के स्टाफ को संभाल रहा है ! ख़ुशी तो उसकी हर उपलब्धि पर हाज़िर थी |
सुमन का भी IIT में सिलेक्शन होना, अपने पचासवें साल में ब्लॉग लिखना शुरू करना , खुद के कार्यक्षेत्र को एक नया आयाम देना, लेखिका के स्वरूप में अपनी पहचान बनाना, राजकुमारी की तरह दिन दुगने रात चोगुने फालोअर में बढ़ोतरी होना, उनका प्यार पाना, इन सब में विनय का सहकार पाना – ऐसे कई खुशियों से भरे चित्र मानसपटल पर आते जाते रहे | काफी देर तक उसी अवस्था में डूबी रही, मन प्रफुल्लित हो गया | खुशियों के छोटे से छोटे पल भी संजो के रखने चाहिए और समय समय पर पिटारे को खोलकर उन्हें महसूस भी करना चाहिए - सोचती हुई रचना फिर से अपने काम में लग गई, पर आंसू वाली ख़ुशी नज़र नहीं आई थी |
***** दो वर्ष बाद *****
रचना और विनय रूटीन चेक-अप के लिए हिंदुस्तान हॉस्पिटल में बैठे थे | पिछले थोड़े दिनों से विनय की सांसे फुल रही थी , जल्दी से थक जाते थे | हालाकिं रचना को लगा था कि हिमोग्लोबिन की कमी हो गई होगी , ऊपर से काम का दबाव और थोडा सा उम्र का तकाजा – यही सब होगा, पर एहतियात के तौर पर वे हॉस्पिटल चले ही आए थे | रूटीन जाँच के बाद डाक्टर ने एक-दो जांचे और लिखवाई थी, जिसकी रिपोर्ट आने पर वे थोड़े चिंतित नज़र आए थे |
डॉ राहुल : “थोड़े से टेस्ट और करवाने होंगे, सिस्टर रितु आप को गाइड करेगी |”
रिपोर्ट्स के बाद रचना फिर से सीनियर डॉ राहुल से मिलने उनकी केबिन में गई |
डॉ राहुल : “मी. विनय को कौनिस सिंड्रोम है, जो एक प्रकार की कमी से होता है, जिसमे हार्ट के काम करने की क्षमता पे असर पड़ता है, यह एक रेयर प्रॉब्लम है | इसका ऑपरेशन कर उसे ठीक कर सकते है | हालाकि यह रेयर है, इस लिए इसके एक्सपर्ट भी बहुत कम हैं, पर आप चिंता न करे , हम भारत के बेस्ट एक्सपर्ट डॉ. वाल्मीकि को एप्रोच करते हैं, वे इस हॉस्पिटल से जुड़े हुए हैं | आप विनयजी को भरती करवा दीजिए, ताकि हम जरुरी मॉनीटरिंग एवं मेडिकेशन शुरू कर दे |”
रचना : “ठीक है डॉ. जैसा आप ठीक समझे |”
मन्नू और सुमी से बात हो गई थी, मन्नू अपने सारे टूर कैंसिल कर के परसों की फ्लाइट से आ रहा था | सुमी तो शाम को ही आ गई | पैसे और बाकी सारे इंतजाम भी हो ही गए थे | ‘ प्रभु! मेरे विनय को जल्दी स्वस्थ कर दो, एक्सपर्ट डोक्टर को जल्दी से भेज दीजिए | ‘ रचना का मन लगातार प्रार्थना कर रहा था|
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“माँ, माँ सुनो ना ! डॉ. वाल्मीकि आए गए हैं, डॉ राहुल ने आप को केबिन में बुलाया है | रचना एकदम से उठी, पता नहीं सोचते सोचते कब उसकी आँख लग गई थी | सुमी और रचना ने जैसे ही केबिन में प्रवेश किया, अगला दृश्य देख कर डॉ. राहुल अचंभित हो गए | ‘एक्सपर्ट डॉ. केशव वाल्मीकि रचना के चरण स्पर्श कर रहे थे, सुमी तो चिल्ला दी, ‘अरे ! केशु तुम !!’ |
केशु यशोदा का बेटा था | सालों पहले बहुत लम्बे समय तक यशोदा उनके यंहा काम करती थी | रचना अपने दोनों बच्चों के साथ केशु की स्कूल फीस भी भरती थी, केशु आगे पढ़ने जामनगर चला गया तो यशोदा भी उसके साथ चली गई और संपर्क छुट गया |
केशु ! केशु ऑपरेशन करेगा ! अब मन में विश्वास हो गया ! ऑपरेशन की सफलता को लेकर मन शांत हो गया | रचना की आँखे आंसू से छलक उठी | ख़ुशी के ही होंगे....
- फाल्गुनी दोशी
(22/01/23)
आपके प्रतिभावों का इंतज़ार रहेगा | आभार |