अगले दिन जब वह नन्दकिशोर से मिला तो वह भी मोहन की बात सुनकर पीपल के पेड़ के पास सिर पकड़कर बैठ गया । भाई, यह सब कैसे हो गया, मैंने तो छतरी का प्रयोग किया था। मेरे दोस्त सोनू ने मुझे शहर से लाकर दी थीं । मोहन ने एक खींचकर चाटा उसके मुँह पर मारा, और गुस्से में बोला, "अगर यह कांड न किया होता तो रिश्ता कबका ख़त्म कर देते"। नन्द किशोर अपने गाल को सहलाते हुए बोला, "भाई गलती हो गई, फ़ोन में वो अंग्रेज़ो की फिल्म देखी तो .....मोहनको गुस्से में देखकर आगे बोलने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। अब पैसे कहाँ से लाए? समझ नहीं आ रहा । भाई दो-चार हज़ार की मदद तो मैं कर सकता हूँ । पर बाकी नहीं हो पायेगा। दो चार का क्या करना है? तेरे बापू ने पूरे तीस हज़ार माँगे है, तू उन्हें समझा नहीं सकता? मोहन ने उसे घूरते हए कहा।
बहुत कहा, पर वही उनका राग, "बिरादरी से बाहर शादी कर रहे हैं, ऊपर से हल्का ब्याह है, अब वो इतना तो कर सकते हैं । हमें भी तो मुँह दिखाना है।" बात अब मेरे बस की नहीं है। देखो भाई, आप और मैं एक ही स्कूल गए, आप बारहवीं तक पढ़े और मैं दसवीं तक पढ़ा। इसलिए आप मेरे बड़े भाई जैसे हो, मगर मैं एक बात कह दो, मैं बेला से बहुत प्यार करूँ, और उसके सिवा किसी और के बारे में सोच भी न सको। नन्दकिशोर की बात सुनकर मोहन को तस्सली हुई कि चलो, मेरी बहन को यह बहुत प्यार तो करता है, उसने गहरी सांस लेते हुए कहा कि मेरी बेला का ख्याल रखियो। मैं करता हूँ, कुछ । और यह कहते हुए उसने नन्द किशोर के कन्धे पर हाथ रखा और उसने भी हाँ में सिर हिला दिया।
अब शादी को सिर्फ दो दिन रह गए है और सबका मुँह उतरा हुआ है। अम्मा ने सोच लिया है कि कल बेला को सरकारी क्लिनिक ले जाकर, यह किस्सा ही ख़त्म कर देंगी। वह रात को भीगी आखों से मोहन के पास आई और चारपाई के पास बैठते हुए बोली, भाई मैं अपनी जान दे दूँगी, मगर किसी और से ब्याह न करवाऊँगी । मोहन ने उसके सिर पर हाथ रखा और प्यार से बोला कि ऐसा कुछ नहीं होगा। जा, जाकर सो जा। अगली सुबह उसने अम्मा को सख्ती से कहा, "आप घर में ढोलक बजवाओ, बेला का ब्याह नन्द किशोर से ही होगा।
अब उसकी आखिरी उम्मीद मास्टरजी है, मगर वह अपनी माँ को लेकर शहर गए हैं। अब तो उसकी आखों के सामने अँधेरा छाने लगा। उसे बहन के फेरे से पहले रुपए उसके ससुराल वालों को देने हैं। अगर ब्याह रुक गया तो जग हसाई तो होगी ही साथ ही बेला भी तबाह हो जाएगी। अम्मा मोहन से कह रही है, पैसे लेकर मंदिर आ जाइओ। बारात आती ही होगी। हम सब वही जा रहे हैं। यह सुनकर बुझे मन से मोहन घर से निकल पड़ा और जब चलते -चलते उसने आँख उठाई तो सामने नसबंदी का कैंप नज़र आया । वह वहीं रुक गया, उसका दिमाग उसे मना करता रहा, मगर उसका दिल बेला की ख़ुशी की बात करने लगा और अपने दिल की बात मानकर, वह भारी कदमों से अंदर गया और वहीं हुआ, जो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। मोहन को तीस की बजाए , पचास हज़ार रुपए मिले, मगर उसे लगा कि उसकी ज़िन्दगी, उसके सपने सस्ते में बिक गए।