Nasbandi - 3 in Hindi Drama by Swati books and stories PDF | नसबंदी - 3

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नसबंदी - 3

माखनलाल और उसका भाई अपना फरमान सुनाकर चले गए और अम्मा ने रोना शुरू कर दिया । बताओ, रिश्ता तोड़ने का बहाना भी सही ढूँढा है। मैं पगली बेकार में सोच रही थी कि भगवान ने हमारी सभी मुश्किल दूर कर दी, बिना दहेज़ के रिश्ता हो गया । चार कपड़ों में बेटी ले जाते तो गरीब पर एहसान नहीं हो जाता, मगर गरीब पर भगवान को दया नहीं आ रही तो इन्हें कहाँ से आएगी। मेरा बस चलता तो इस रिश्ते को न कह देती, मगर इस कुल्टा ने हमें कहीं का न छोड़ा । अम्मा ने रोती हुई बेला को ज़ोर से लात मारी तो वह दूर जा गिरी। अम्मा, क्या कर रही हो? घर गिरवी रख देते हैं, मोहन ने बहन को उठाते हुए कहा। ज़मीन बेचकर घर छुड़वाया था, इसी घर से एक छोटी सी दुकान निकाली है। जिसे अपना पेट भरता है, अबकी बार घर रखा तो कहीं के नहीं बचेंगे । तेरे उस मरे बाप ने हमारे लिए मुसीबत के सिवा कुछ नहीं छोड़ा। अम्मा ने माथा पकड़ लिया। तू चिंता मत कर, मैं करता हूँ, कुछ । कहकर मोहन घर से निकल गया और अपने इकलौते दोस्त श्याम के घर के बाहर आकर रुका । अब तक तो यह शहर से आ गया होगा । इसकी, कल रात की गाड़ी थीं । उसने यह सोचकर दरवाज़ा खटखटाया ।

शहर में भाई को गाड़ी ने टक्कर मार दी हैं । बापू वहीं गए है, उसकी छोटी बहन मनु ने बताया । मोहन बनिए के घर की तरफ़ गया, मगर उसने भी पिछले झगड़े के बारे में बोलकर अपने हाथ पीछे खींच लिए । वह परेशान सा पता नहीं, कहाँ जाता जा रहा है, तभी हरिया ने उसे देखा तो वही रक गया । मोहन क्या हुआ ? चेहरा काहे उतरा हुआ है? कुछ नहीं, अरे ! बता न ? हरिया ने ज़ोर देते हुए पूछा। बस यूँ ही, आप क्यों इतने खुश नज़र आ रहे हों । अपने बिट्टू को शहर भेजना था इसलिए पंद्रह हज़ार रुपए की ज़रूरत थीं, नसबंदी करा ली और हो गया इंतज़ाम । अब चार बच्चे बहुत है, मर्दो वाले काम तो कर ही लिए । हरिया मूँछो को ताव देकर बोला । मोहन यह सुनकर, बिना कुछ कहे आगे निकल गया। सबकी मदद कर रहे हो भगवान, मुझ ग़रीब की तरफ़ भी मुँह करो । मोहन ने मन ही मन कहा । पूरा गॉंव घूमा, मगर कहीं से भी कुछ हाथ नहीं लगा। इसी उधेड़बुन में शाम गुज़र गई और वह मुँह लटकाए वापिस घर आ गया । क्यों भाई, कुछ हुआ? नहीं रे ! राजू, कोई उधार देना ही नहीं चाहता, जिसे पैसे की ज़रूरत है, वो नस......... बोलते-बोलते वह रुक गया । चौदह साल के भाई को वह कुछ नहीं कहना चाहता था । तभी अम्मा आ गई और आँगन में रखी चारपाई पर बैठती हुई बोली, " अगर इन चार-पाँच दिनों में पैसे का इंतज़ाम नहीं हुआ तो मना कर देंगे और जो रायता इस बेला ने फैलाया है, उसे सरकारी डिस्पेंसरी में साफ़ करवा देंगे । बेला ने यह सुना तो उसकी आँखों में आँसू आ गए और हाथ पेट पर चला गया । अम्मा देखते है, कल फ़िर कोशिश करूँगा । तभी उसे प्रेमा का खयाल आया और वह मुस्कुराने लगा ।

अगले दिन फिर नहर के पास बैठा मोहन, प्रेमा का इंतज़ार कर रहा है । आज कैसे जल्दी आये? वह पास बैठती हुई बोली । उसने उसका हाथ पकड़ा और सारी बात बता दी। प्रेमा अपने बापू से बोलकर मदद करवा दें, नौकरी करके चुका दूँगा। दो-चार हज़ार की बात होती तो बापू मान जाते, मगर तीस हज़ार बहुत ज्यादा है । वो वैसे ही इस शर्त पर ब्याह के लिए माने है कि कोई दहेज़ नहीं दिया जायेगा । उल्टा वो साहूकार का बेटा कुंज बिहारी उसने तो बापू को कहा है कि अगर वो मेरा ब्याह उससे कर देंगे तो वह पाँच हज़ार और एक गाय दे देगा, मगर मैंने कह दिया कि अगर तुझसे ब्याह नहीं हुआ तो किसी से नहीं करूँगी । प्रेमा की आँखो में चमक है और मोहन की आखों में निराशा। इसका मतलब कुछ नहीं हो सकता? मोहन ने नहर में पत्थर फ़ेंकने शुरू कर दिए। सब ठीक हो जायेगा जानेमन, मैं तो कहती हूँ कि तुम बेला का रिश्ता गिरधर से कर दो। वो वैसे भी बेला को पसंद करता है, उसने मुझे बताया था। मोहन ने घूरकर प्रेमा को देखा, मगर कुछ कहा नहीं । प्रेमा उससे शहर की बातें किए जा रही है। मगर वो किसी बात का कोई ज़वाब नहीं दे रहा है। आख़िरकार, प्रेमा ने उससे विदा ली और थोड़ी देर बाद मोहन भी बुझे मन से घर की ओर मुड़ गया।

घर में एक अज़ीब तरह का सन्नाटा पसरा हुआ है। अम्मा चारपाई पर आँखें बंद करके पड़ी है। राजू अम्मा के पैर दबा रहा है और बेला रसोई में खाना पका रही है। भाई को देखते ही उसने उसके सामने थाली रख दी, मगर मोहन की कुछ खाने की इच्छा नहीं हुई। बड़ी मुश्किल से उसने एक रोटी खाई और खाना छोड़ दिया। अम्मा भी अब चेतनावस्था में आ चुकी हैं । पड़ोस में लोग बातें बना रहे हैं कि पाँच दिन बाद शादी है, और घर में मातम जैसा माहौल बना हुआ है। अम्मा उन्हें हमारी इतनी फ़िक्र है, तो पैसे दे दे । राजू ज़ोर से बोला तो अम्मा ने उसे झिड़की दीं। मैं तो कहती हूँ कि एक बार नंदकिशोर से बात कर, यह बच्चा उसका भी है, वही अपने बाप-चाचा को समझा सकता है। मोहन को बात जँच गई। सही है, सबसे पहले उसी से बात करनी थीं, बेकार में इतना घूमा । यह कहते हुए वह कमरे में चला गया । अब शायद, इस मायूसी भरी रात के बाद उम्मीद का सवेरा हो। यही सोचकर उसने बत्ती बुझा दीं।