Nasbandi - 2 in Hindi Drama by Swati books and stories PDF | नसबंदी - 2

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नसबंदी - 2

अब बहन को ही देखा जायेगा? या फ़िर कुछ कहेगा भी ? मोहन ने अपनी खोई हुई आवाज़ को ढूँढा और फ़िर ज़ोर से बोला, "क्यों री बेला यह सब क्या है? बच्चा किसका-----? वह अपना वाक्य पूरा नहीं कर सका और तभी माँ बोल पड़ी, उस नन्द किशोर का ही है। मोहन ने जैसे चैन की सांस ली । यह सुनकर उसकी जान में जान आई और उसने कहा कि कोई नहीं, अगले रविवार उसकी दुल्हन ही बनना है तो फ़िर क्या परेशानी। वह चारपाई पर आराम से लेटते हुए बोला । तुम दोनों भाई- बहन लपनटर हो। एक मुआ प्रेमा का आशिक है तो दूसरी ने भी चाँद चढ़ा रखे हैं । बड़बड़ाती हुई अम्मा वहाँ से चली गई। मोहन ने बेला के आँसू साफ़ किये और उसे आराम करने के लिए कहा। वह भी भाई को स्नेह से देखती हुई अंदर चली गई। मोहन आकाश के तारे देख रहा है, बेला और नन्द किशोर बचपन से साथ है । उसकी बहन का भी प्रेम विवाह है, वह भी प्रेमा को नहीं छोड़ने वाला । अब छोटे भाई राजू का न पढ़ने में मन है न ही प्रेम में, वह क्रिकेट अच्छा खेलता है। उसका सपना तो देश के लिए खेलना है । सपने में उसके सचिन, धोनी , कपिल और विराट जैसे क्रिकेटर आकर उसे आशीर्वाद देते हैं । वैसे सपने कौन सा किसी की औकात देखकर आते हैं। एक वहीं है, जिनमे हर कोई अपना राजा है। मुझे ही देख लो, जैसे-तैसे बारहवीं की है । अब थोड़े समय बाद प्रेमा से शादी करके शहर में अपना परिवार बसाऊँगा। रामानुज कह रहा था कि कॉल सेंटर वाले अच्छा कमा लेते हैं और उन्हें ज्यादा पढ़ने की भी ज़रूरत नहीं है। उंसने एक गहरी सांस ली और नींद के आगोश में चला गया।

सुबह माँ ने जगाया तो देखा कि सुबह हो चुकी हैं । वह सुबह की सैर को जाने के लिए घर से निकल पड़ा । रास्ते में उसे कुसुम अपनी गाय को घुमाती दिखी, पहले तो मन किया कि रास्ता बदल ले, मगर फ़िर अनदेखा करता हुआ निकलने लगा । मगर कुसुम तो उसे ही देखी जा रही है। उसके पास से गुजरते ही वह बोल पड़ी-

मोहन, अब तो बेला भी चली जाएगी, तुमने का सोचा है ?

सोचना क्या है, प्रेमा के बापू से उसका हाथ माँग लूँगा ।

पर तुम्हारी अम्मा को वो पसंद नहीं है।

ब्याह मुझे करना है या अम्मा को ?

यह सुनकर कुसुम का मुँह उतर गया और वह बिना कुछ कहे आगे निकल गई । यह लड़की बचपन से मेरे पीछे हैं । मुझे पता है कि मेरे चक्कर में ही इसने बेला से दोस्ती की है। पर क्या फ़ायदा, मैं तो इसे घास ही नहीं डालता । हाँ, यह चाहे तो सपने देख सकती हैं। मोहन के चेहरे पर मुस्कान आ गई । अपने अमरपुर गॉंव का एक पूरा चक्कर लगाकर जब वह घर की दहलीज़ के पास पहुँचा तो उसे नन्द किशोर के पिता और चाचा की आवाज सुनाई दी। इतनी भारी आवाज पूरे गॉंव माखनलाल की है । मगर यह सुबह-सुबह मेरे घर में क्या कर रहे हैं? कहीं इन्हे बेला के बारे में पता तो नहीं चल गया ? यह मना करने तो नहीं आ गए है। ऐसी ही सोच के साथ जल्दी से उसने दरवाज़े पर लात मारी और अंदर आ गया। उसे देखकर माखनलाल बोल पड़ा, "आओ सुयश मोहन, हम तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थें ।" मेरा? पर क्यों ? क्यों तुम घर के बड़े नहीं हो । लेनदेन की बातें तो तुमसे ही होगी । मोहन को मानो किसी ने झटका दिया। अम्मा की कातर नज़रे भी उससे छिपी न रह सकी। वह पास रखी लकड़ी की कुर्सी पर बैठता हुआ बोला, "बताए क्या बात है?"

तुझे तो सब मालूम है कि जात बिरादरी के ख़िलाफ़ जाकर हम इस ब्याह के लिए राजी हुए हैं।

जी, मोहन का गला सूख रहा है।

अब बिरादरी वालो का मुँह बंद करने के लिए कुछ पैसे वगरैह देने पड़ेगे । यह आवाज नन्द किशोर के चाचा सोहमलाल की है।

मैं समझा नहीं।

देख, मोहन हमारी बिरादरी का बड़ा मान है, उसी मान की खातिर 30, 000 देने हैं । अब तुम लोग ब्याह से पहले पैसे दे देना ।

मोहन ने सुना तो उसके होश उड़ गए और वह माखन लाल की तरफ देखकर बोला कि "ताऊ, आपको पता तो है कि बापू के मरने के बाद एक किराने की दुकान से गुज़ारा चला रहे हैं । मैं शहर जाऊँगा तो धीरे-धीरे करके आपके पैसे दे दूँगा ।"

बेटा मैं सब जानो, मगर तू भी समझ, अगर बिरादरी वालो का मुँह न बंद किया तो हमारा हुक्का पाणी बंद कर देंगे ।

मोहन समझ गया कि यह सब इस चाचा का किया धराया है, यह चाहता ही नहीं है कि बेला का विवाह नन्द किशोर से हो ।

अब कैं सोचने लगा ? अगर पैसे नहीं तो ब्याह नहीं। चाचा के अपना फैसला बता दिया ।

उधर बेला की  रुलाई फूट पड़ी, अम्मा भी सदमे में आ गई । राजू भी घर के कोने में सिमट गया।