Nafrat ka chabuk prem ki poshak - 9 in Hindi Love Stories by Sunita Bishnolia books and stories PDF | नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 9

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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 9

सुबह उठी तो देखा तुम्हारे काका ने मेरा सामान दो-तीन थैलों में भरकर रखा हुआ है और मेरे बाहर आते ही मुझे बानो से मिलाते हुए कहा - " जुबैदा बानो को तो जानती हो ना तुम!"
बानो तो मेरी जेठानी की छोटी बहन थी भला उसे कैसे ना जानती मैं, हमारी शादी के बाद हर तीसरे दिन तो घर आ जाती थी। हाँ पिछले सात आठ महीनों में ना जाने ऐसा क्या हुआ कि वो नहीं आई।
मैं कुछ बोलती इससे पहले ही राशिद बोल पड़े -" मैंने बानो से निकाह कर लिया।" ये सुनकर मैं आवाक रह गई जैसे मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। मुझे ना रोना आ रहा था ना हँसना, मैं बुत बनी खड़ी रही। सास ने मुझे बहुत झंझोड़ा उनके झंझोड़ने पर मैं आँखें फाड़कर उन्हें देखती रही और भागकर कमरे में गई।
तब तक बानो मेरे कमरे में कब्जा कर चुकी थी वो जाकर मेरे बिस्तर लेट गई और राशिद दीवार की तरफ मुँह करके बैठे गए थे।
मैंने बहुत पूछा उनसे, ऎसा क्यों किया क्या कमी रह गई थी मेरे प्यार में ।
अगर बानो से प्यार करते थे तो मुझसे..... ओह्ह!
मुझे प्यार के जाल में फंसा कर एक और निकाह... ओह राशिद। मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगी। कहकर मैं कमरे से निकल गई।
मेरी बात सुन कर बानो मुस्कुराती रही।
दूसरा बच्चा होने में केवल दो महीने का समय बचा था। जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ये सोचकर बैठ गई सास के पास।
अब्बू के आने पर मुझे पता चला कि राशिद ने रात को ही अब्बू को मुझे लिवा लाने का संदेश भेज दिया था। इसी कारण इतनी सुबह अब्बू आ गए।
मैं बेटी को लेकर घर से बाहर आ गई तो सास ने बहुत रोका। अब्बू ने भी राशिद को बहुत बुरा-भला कहा।
जहाँ मेरी सास बिलख-बिलख कर रो रही थी वहीं मेरी जेठानी के चेहरे पर मेरे या मेरी सास के रोने का कोई असर नहीं दिख रहा था।
अब्बू ने भी कहा मेरी बेटी को मैं यहाँ एक भी दिन भी नहीं छोड़ूंगा । रहेगी भी क्यों यहाँ राशिद जब तुम्हें बानो से ही निकाह करना था तो मेरी बेटी से निकाह किया ही क्यों?
अल्लाह तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा राशिद। मैं अपनी बेटी का एक भी सामान यहाँ नहीं रहने दूँगा। अभी तो ये घोड़ागाड़ी ले जा रहा हूँ जल्दी ही सारा सामान लेने आऊंगा। राशिद थे कि बुत बने बैठे थे।वो मेरी और अब्बू की सारी बातें चुपचाप सुन रहे थे।
ये मेरी आखरी मुलाकात थी राशिद से मेरी। जैसे ही मैं घर से बाहर निकलने लगी तो राशिद ने धीरे से पीछे मुड़कर देखा उनका प्यार, उनकी शोख अदाऐं सब जैसे हवा हो गया था। वो सूनी-सूनी आँखों से रुखसार को देखते रहे पर उन्हांने आगे बढ़कर रुखसार को गले नहीं लगाया।
इधर मेरी सास रूखसार को छोड़ने को तैयार नहीं थी ऐसा लगता था जैसे रुखसार भी दादी से अलग नहीं होना चाहती थी। उन्होंने ड़ेढ साल की रुखसार को इस तरह सीने से लगा रखा था कि रुखसार को उनसे अलग करना मुश्किल हो गया था।
क्रमशः...
सुनीता बिश्नोलिया