यहाँ आने के बाद पहली बार छाया बंगले से बाहर निकल रही थी।
अनुपम जंगल का निरीक्षण करते हुए आगे बढ़ने लगा।अनुपम तेज चल रहा था।छाया उस गति से नही चल पा रही थी।इसलिए उसे बीच बीच मे भागना पड़ रहा था।अनुपम चलते हुए पेड़ो पर नजर डालता जा रहा था।
",सुनो"
अनुपम ने उसकी आवाज को अनसुना कर दिया तब वह फिर बोली,"सुनो तो।'
"क्या है?"अनुपम ने चलते हुए पीछे की तरफ देखा था।
",कुछ देर रुक जाओ न"
"क्यो?'
"बैठ लेते है।'
"क्यो?"अनुपम रुककर बोला
" कुछ देर के लिए बैठ लेते है।'
'क्यो?"
"मैं थक गई हूं।"
"तुम्हे बैठना है बैठो मैं चल रहा हूँ।"
",प्लीज रुक जाओ न"छाया एक पत्थर पर बैठते हुए बोली।अनुपम ,छाया की विनती सुनकर भी नही रुका।अचानक एक सांप उसके पैरों के पास से सरसराता हुआ निकल गया।सांप को देखते ही छाया की घिगी बन्ध गयी।वह चीखते हुए भागी।अचानक उठकर भागने की वजह से उसके पैर लड़खड़ाए और वह गिर गयी।गिरने से पहले वह बोली,"रुक जाओ न"
अनुपम ने पीछे मुड़कर देखा।छाया को जमीन पर गिरा हुआ देखकर भी वह उसे उठाने के लिए आगे नही बढ़ा।वह अपनी जगह खड़ा खड़ा ही बोला,"पैदल नही चला जाता तो क्यो आयी हो।जल्दी उठो वरना मैं जा रहा हूँ।'
अनुपम को अपनी तरफ बढ़ता हुआ न देखकर छाया ने उठने का प्रयास किया लेकिन वह फिर लड़खड़ा कर गिर पड़ी।
"अब क्या हुआ?"अनुपम गुस्से में छाया की तरफ बढ़ा।उसने छाया का हाथ पकड़कर उसे उठाना चाहा।ऐसा करने पर छाया खड़ी हो गयी।लेकिन अगले ही पल अनुपम का चस्त छोड़कर गिरते हुए चीखी,"हाय माँ मर गयी।"
"अब क्या हुआ?"अनुपम बोला।
"बहुत दर्द हो रहा है।उठा नही जा रहा,"छाया अपनी टांग को सहलाते हुए बोली,",ओ मेरी माँ
"अजीब मुसीबत है।मैने मना किया था।फिर मेरे पीछे क्यो चली आयी।"अनुपम गुस्से में बोला,"मन तो कर रहा है ऐसे ही पड़ा हुआ छोड़कर चला जाऊं।कोई जंगली जानवर खा जाएगा तो पीछा छुटे
गुस्सा होने के बावजूद अनुपम ने उसे अपनी गोद मे उठा लिया।वह उसे अपनी गोद मे उठाकर अपने क्वाटर की तरफ चल पड़ा।छाया जोर से कराह रही थी।उसके मुंह से बार बार निकल रहा था" हाय माँ मर गयी
"अब पता चल गया।अब कभी नही जाओगी
अनुपम ने छाया को क्वाटर पर लाकर पलँग पर लेटा दिया।छाया के पास बैठकर अपना हाथ उसके टखने पर रखते हुए बोला,"दर्द कहा हो रहा है?'
"यहां?"
"नही।ऊपर
अनुपम का हाथ धीरे धीरे ऊपर सरकने लगा।छाया एक ही बात बोलती--ऊपर
धीरे धीरे अनुपम का हाथ घुटनो से ऊपर आ गया,"यहाँ
"हा यही--छाया ने अपना पेटीकोट घुटनो से ऊपर कर दिया।अनुपम उसके पैर सहलाने लगा।छाया आंखे बंद करके बोली,"अच्छा लग रहा है
"डॉक्टर को बुलाना पड़ेगा
"डॉक्टर क्या करेगा"छाया अनुपम की बात सुनकर बोली थी।
"डॉक्टर ही बताएगा कही फेक्चर तो नही है"'
"तुम ही यो ही थोड़ी देर सहलाते रहो।दर्द सही हो जाएगा।"
"क्या मतलब?"छाया की बात सुनकर अनुपम बोला।
"तुम ऐसे ही प्यार से हाथ फिराते रही।दर्द सही हो जाएगा।
अनुपम ने छाया की तरफ देखा।कुछ देर पहले वह दर्द से कराह रही थी।दर्द से उसके चेहरे का रंग बफल गया था।लेकिन अब दर्द छू मंतर हो गया था।चेहरे पर अवसाद की जगह खुशी के भाव थे।आ आंखों में शरारत और होठो पर मुस्कराहट।उसके बदले हुए रूप को देखकर अनुपम बोला,"तो तुम बहाना कर रही थी
।