शादी एक ऐसा बन्धन है जिसमे बनधने के बाद पति पत्नी को सिर्फ मौत ही जुदा कर सकती है।इसीलिए कहा जाता है।जिस घर मे औरत की डोली जाती है,उस घर से उसकी अर्थी ही निकलती है।
छाया की चाहे जैसे भी हो अनुपम से शादी हुई थी।छाया की जिंदगी में आने वाला अनुपम पहला मर्द था।उसके साथ सात फेरे लेते ही उसने अनुपम को अपने दिल मे बस लिया था।परंतु अनुपम ने साफ शब्दों में छाया को पत्नी मानने से मना कर दिया था।जबरदस्ती बल प्रयोग से की गई शादी को वह मानने के लिए हरगिज तैयार नही था।उसने पहले ही दिन छाया से पीछा छुड़ाने का प्रयास किया था।पर वह अपने प्रयास में सफल नही हो पाया था।इसका यह मतलब हरगिज नही था कि उसने छाया से पीछा छुड़ाने का इरादा त्याग दिया था।वह अपने इरादे पर अब भी कायम था।लेकिन उसे पीछा छुड़ाने का कोई उपाय सूझ ही नही रहा था।वह उससे पीछा छुड़ाए तो कैसे?
अनुपम उससे पीछा छुड़ाने की सोच रहा था।लेकिन छाया ऐसा नही सोच रही थी।दोनो अलग तरह से सोच रहे थे।
इसलिये उनके एक दूसरे के प्रति व्यवहार में भी अंतर था।
छाया मन से अनुपम को अपना पति स्वीकार कर चुकी थी।इसलिए वह अनुपम से वैसा ही व्यवहार कर रही थी।जैसा एक भारतीय विवाहिता करती है या उसे करना चाहिए।
छाया अनुपम के करीब आने का हर सम्भव प्रयास कर रही थी।जबकि अनुपम उससे ज्यादा से ज्यादा दूर रहने का प्रयास करता।छाया से दूर रहने के लिये वह ज्यादा से ज्यादा समय घर से बाहर रहने का प्रयास करता।अनुपम घर मे रहता तब छाया उसके इर्द गिर्द रहने का प्रयास करती।
छाया लोगो की नजरों में अनुपम की पत्नी थी।परंतु अनुपम उसे पत्नी नही मानता था।इसलिये अनुपम के साथ रहकर भी वह कुंवारी थी।औरत शादी के बाद तभी पत्नी बन पाती है जब पति का उससे शारीरिक सम्बन्ध हो जाये।और यह होता है सुहागरात को।पर उनकी तो सुहागरात हुई ही नही थी।
लेकिन छाया की जबरदस्ती की ही सही शादी हुई थी।इसलिये छाया तन और मन दोनों से उसे अपना बनाना चाहती थी।वह जानती थी अनुपम इस शादी को नही मानता।और अनुपम उसे पत्नी स्वीकार ले।इसके लिए वह अपने व्यवहार से प्रयास कर रही थी।उसे अपने तन की तरफ रिझाने के लिये तरह तरह से प्रयास करती।
परन्तु एक छत के नीचे रहकर भी वह अपने मकसद मे सफल नही हुई थी।
एक दिन मौसम बेहद सुहाना था।मंद मंद हवा चल रही थी।अनुपम घर से निकलने लगा तब छाया बोली,"मौसम कितना आशिकाना है।ऐसे मस्त मौसम में मुझे अकेला छोड़कर कहां जा रहे हो?"
अनुपम ने उसकी बात पर कोई ध्यान नही दिया।तब छाया ने अनुपम का हाथ पकड़ लिया और उसकी आँखों मे आंखे डालकर बोली,"बड़े निष्ठुर हो।जवान बीबी कुछ कह रही है और तुम सुन ही नही रहे।"
"मेरे पास तुम्हारी बेकार की फालतू और उलूल जुलूल बाते सुनने का टाइम नही है।,अनुपम ने अपना हाथ छुड़ाते हुए बोला,"मुझे बहुत काम है।"
"काम काम हर समय काम,"छाया तुनकते हुए बोली,",कभी मेरे लिये भी समय निकाल लिया करो।आखिर मैं भी तुम्हारी कुछ लगती हूँ।"
"मैं कितनी बार तुम से कह चुका हूँ।आज फिर कह रहा हूँ।मेरा तुमसे कोई रिश्ता नही है।'