आज धूप बहुत तेज़ है, चला भी नहीं जा रहा है। प्रेमलता उसका नहर के किनारे इंतज़ार कर रही होगी। यहीं सब सोचते हुए सुयश मोहन के कदमों की गति बढ़ती गई। जब नहर के पास पहुँचा तो उसने देखा कि प्रेमलता पत्थर के छोटे टुकड़े नहर में फ़ेंक रही है । उसके कदमों की आहट सुनकर वह पीछे मुड़ी और उसे देखकर बोली, "मोहन कभी तो समय से आया कर । क्या करो? तुझे तो पता ही है कि बेला की शादी है। और अम्मा ने मुझे दौड़ा रखा है।" वैसे एक बात बोलो, प्रेमलता ने उसे गौर से देखते हुए कहा । "मुझे तेरी अम्मा बिल्कुल अच्छी नहीं लगती । मेरी अम्मा को भी तू ज़्यादा पसंद नहीं है," यह कहकर वो ज़ोर से हँसा तो वह भी हँस दीं । हम ब्याह के बाद शहर चलेँगे न? कोशिश तो मेरी यही रहेंगी कि मैं दिल्ली निकल जाओ और तुझे भी अपने साथ ले चलो, बारहवीं तो मैंने जैसे तैसे कर ली है। अब किसी तरह दिल्ली के किसी कॉल सेंटर में नौकरी भी मिल जाए तो ज़िन्दगी अच्छे से कटेगी । हर महीने माँ और राजू को पैसे भेज दिया करूँगा । तू और मैं मज़े से रहेंगे। उसने प्रेमलता के गले में बाहें डालते हुए कहा । प्रेमलता शरमाई और बोली, "वाह! मोहन तूने तो सब सोच रखा है और फ़िर दोनों घंटो अपने भावी जीवन के सपने संजोते हुए, अपनी ही दुनिया में खोए रहें। तभी छिपते हुए सूरज को देखकर बोली, "मैं चलती हूँ, बापू भी खेतों से आ गए होंगे । यह कहकर प्रेमलता तो चली गई, मगर मोहन शाम के बाद चुपचाप आई रात को बहुत देर तक बैठा देखता रहा।
जब उसने कुछ लोगों का शोर सुना तो उसका ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ और उसने अपने कपड़ों से धूल झाड़ी और घर की तरफ चलने लगा । गाँव में पूरे एक महीने से रौनक है, जबसे यहाँ नसबंदी कैंप वाले आए है, तबसे हर कोई उनके बारे में बातें कर रहा है । अरे ! सुयश मोहन कहाँ जा रहा है? उसने पीछे मुड़कर देखा तो मास्टरजी खड़े हैं। उसने उनके चरण छुए और उनके हाथ से थैला ले लिया । घर जा रहा हूँ। तेरी बहन का ब्याह कबका है? अगले रविवार का । उसने भारी थैले को सभांलते हुए ज़वाब दिया । क्या हुआ ? नहीं उठता क्या ? मास्टरजी उसके चेहरे को देखकर समझ गए । मैं भी क्या करो? वो नसबंदी कैंप में मेरी ड्यूटी है। मेरा जिम्मा खाने का हैं । रात सब्जियाँ आयेंगी, तभी तो कल भोजन पकेगा । मास्टरजी ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया। तझे तो पता है, सरकार पुरुषों को नसबंदी करवाने पर 15000/-रुपए और दो कम्बल दे रही है। और अंदर की बात बताओ ! उन्होंने उसके कान के पास अपना मुँह लाकर कहा, अगर कोई नौजवान करवाए तो 30,000 से 50,000रूपए भी मिल रहे हैं । वह जोर से हँसा। कौन पागल होगा, जो करवाएगा । ज्यादा हँस मत मोहन, वक़्त सबसे बड़ा सिकंदर है। मुझे याद है, 1975 का एक ऐसा दौर भी था, जब 16 साल से 75 साल तक के बजुर्गों ने नसबंदी करवाई थीं, वो अलग बात है कि ऐसा सुनने में आया था कि कुछ के साथ जबरदस्ती भी हुई थीं । यह कहते हुए मास्टरजी खिसयानी हँसी हँसने लगें। चल थैला दें, आ गया कैंप । उसने थैला मास्टर जी को पकड़ाया और कैंप के अंदर जाते हुए मास्टरजी को देखने लगा ।
इन मास्टरजी की वजह से ही मैं बारहवीं कर पाया, इन्होंने मेरी मुफ्त ट्यूशन न करवाई होती तो मैं बारहवीं में ही रह जाता। यह सोचते हुए मोहन के मन में कृतज्ञता के भाव उमड़ आए। कैंप सुनसान है, बस दो-चार लोग नज़र आ रहे हैं। अपने गॉंव का बिरजू बनिया भी यहीं बैठा हुआ है, पाँच बच्चों के बाद इसका नसबंदी करवाना समझ में आता है । उसने कैम्प को देखकर मुँह फेर लिया और तेज़ कदमों से चलता हुआ, घर के पास जाकर रुका। दरवाज़ा खोला तो देखा, आँगन में अम्मा चारपाई पर माथा पकड़कर बैठी हैं। और उनके पास ज़मीन पर बैठी बेला मुँह छुपाए रो रही है । क्या हुआ अम्मा ? होना क्या है, जरा अपनी बहन से पूछ, इसने ब्याह से पहले, तुझे मामा बना दिया है । यह सुनते ही मोहन को इतनी ज़ोर से झटका लगा कि वह गिरते-गिरते बचा। बेला ने भाई को देखा तो उसके रोने की आवाज़ और तेज़ होती गई।