Gruhasth Snayasi - 3 in Hindi Biography by PARIKH MAULIK books and stories PDF | गृहस्थ संन्यासी - भाग 3

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गृहस्थ संन्यासी - भाग 3

वे घर छोड़कर आ गया था उसके पास कुछ भी नहीं था। वो अकेला चाय की टपरी पर जाता है और चाय पिता है अब आसपास के लोग उसे जानते थे तो वे पैसे नहीं लेते। वो उस रात चाय की टपरी के पास ही सो जाता हैं उसे उस रात के अनुभव से चाय की टपरी खोलने का ख्याल आया उसने अपने दोस्तो से मदद लें कर नदी के किनारे बगीचे के पास चाय की टपरी खोली धीरे धीरे वो जमने लगी। आया दिन वो अपने बेटे को देखने स्कूल जाया करता था एक रोज उसका बेटा स्कूल नहीं आया था। दुसरे दिन उसको देखा तो वो उसके पास जाकर बोली बेटा केसे हो तुम बच्चा कुछ बोला नहीं तो वे उसे देखने लगा उसके शरीर पर छालों के निशान थे वो समझ गया कि क्या हुआ होगा उसने अपने बेटे से पुछा कि तुम मेरे साथ आना चाहते हो बच्चा कुछ बोला नहीं बलकि हा में सिर हिलाया तब वे उसे ले कर अपनी चाय की टपरी पे ले गया उसे बिठाया थोड़ी देर बाद उसे पास के बगीचे मे खेलने के लिए कह कर वे अपने काम में लग गया थोड़ी देर बाद वहा सुनंदा आती हैं उसने सुमित को कहा कि मेरा बेटा कहा है ये सुनकर सुमित बोल पड़ा की किस मुहसे बोल रही हो तुम्हरा बेटा वो तुम्हारे साथ नही आएगा तुम यहां से जा सकती हो सुनंदा बहुत ही गुस्से में बोली तुम केसे कह सकते हो की वो मेरा बेटा नही है। तो सुनीत भी गुस्से में आकर बोला कि आवाज़ कम रखो जिस तरह तुमने उसे मारा है वैसे कोई अपने बेटे को मारता है भला? ये सब देखकर आस पास के लोग तमाशा देखने लगे और गुनगुनाने लगे की किसी औरत है ये अपने बच्चे को पीट रही है आजकल ये हो क्या रहा है अब सुनंदा एक कलेक्टर थी तो उसने पुलिस की सहाय ले कर सुमित से अपना बेटा ले जान चाहती थी पुलिस ने भी सुनंदा का साथ दिया। इतनी देर में पल्लव वहा आ पहुंचा वे उसकी मां सुनंदा को देखकर अपने पिता से लिपट गया और बोलने लगा की मुझे मम्मी के पास नही जाना मुझे मम्मी के पास नही जाना ये सुनकर पुलिस भी कुछ नहीं कर सकती थी उन्होंने सुनंदा को समझा कर अपने घर जाने का अनुरोध किया ओर केस फाइल करने का सुझाव दिया थोड़ी देर बाद तमाशा देखने वाले लोग एक एक करके अपने कामों में वापस जाने लगे सुनंदा भी चली गई थी मगर पल्लव अभि तक डरा हुआ था सुमित ने पल्लव को उठाकर अपनी चाय की टपरी पर बिठाया और सहलाते हुए कहने लगा डरो मत बेटा में हूं यहां पर तुम्हे कोई कुछ भी नहीं कहे गा
कुछ दिन गुजरने के बाद सुमित को एक पुलिस अधिकारी आ कर बताता है कि आपकी पत्नी ने कोर्ट में अपने बेटे की मांग की है आपको आपके बेटे के सहित दो दिन बाद आना होगा इतना कहकर वे पुलिस वाला चलने लगा अब सुमित भी सोचने लगा की ये ऐसा क्यो कर रही है दूसरे दिन सुमित पर उसके दोस्त का फोन आया उसने बताते हुए कहा कि तुम्हारी पत्नी सुनुंदा की एक कर्मचारी से बहस हो गई है ओर वे उसे अनाब शनाब बोले जा रहा है तुम यहां पर आ जाओ अभी ये सुनकर वो कलेक्टर प्रांत में जा पहुंचा वे देखरहा था। वहा उस कर्मचारी ने सुनिंदा पर आक्षेप लगाते हुए कहा कि ये तो बस नाम की कलेक्टर है उसमे कलेक्टर वाले कोई गुण है ही नही ये एक कलेक्टर होते हुए हमारा एक कर्मचारी के साथ संबंध है इतना सुनते ही राहुल वहा से खड़ा हो करके बोला क्या कह रहे हों तुम! मेरा इसके साथ कोई संबंध नहीं है सुनंदा बोली राहुल तुम तो उसे समझाओ तुम तो मुझे चाहते हो ना! फिर ये क्या बोल रहे हो राहुल ने बात काटते हुए कहा कि की चाहत की बात कर रही है, तुम्हे में क्यो चाहूंगा भला मेरी पत्नी है। और तुम क्या जानो चाहत क्या होती है, इतने सालों के रिश्ते को एक पल में तोड़ दिया है। तुम्हारे लिए सबकुछ करने वाले की नही हुई तुम तो में केसे मान लूं की तुम मेरे हो सकते हो। वो तो बस तुम्हें अपनी आग बुजानी थीं, तो में तुम्हारे पास हो कर आया इसमें संबध थोड़ी बन जाता हैं, ये सुनकर सुनंदा एक दम सुन्न हो गई मानों भरी महफ़िल में उसके कपड़े उतार दिए हो।

अब क्या होगा क्या सुमित वापस लौटेगा सुनंदा के पास ?
क्या लगता हैं आपको उसे लौटना चाहिए या नहीं? कॉमेंट में बताए की ये कहानी अब कोनसा नया मोड़ लेगी मिलते है छोटे से आराम के बाद।।।