Tamacha - 25 in Hindi Fiction Stories by नन्दलाल सुथार राही books and stories PDF | तमाचा - 25 (चिंता)

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तमाचा - 25 (चिंता)

"बिंदु...ये ले इसको प्लेट में लेकर बाहर आजा ,आज साथ में खाते है।" विक्रम ने फास्टफूड का पैकेट बिंदु को थमाते हुए कहा और स्वयं हाथ धोने चला गया।
बिंदु रसोई जाकर प्लेट ले के आती है और जब विक्रम आकर वहाँ बैठता है तो वह प्लेट और फास्टफूड का पैकेट डाइनिंग टेबल पर रखकर वहाँ से जाने लगती है।
"क्या हुआ बेटी? कहाँ जा रही हो? आ जाओ पहले नाश्ता कर लो।"
"नहीं पापा, मुझे अभी बिलकुल भूख नहीं है। आप खा लो मैं बाद में खा लूँगी।" बिंदु ने उदासी भरे स्वर में कहा।
"फिर मैं भी बाद में ही खाता हूँ, मैं तो यह सिर्फ तुम्हारे लिए लाया था। चलो एक बार बैठो तो सही इधर तुमसे कुछ बात करनी है।" विक्रम ने बिंदु को आग्रह के साथ कहा।
बिंदु मायूसी भरे अपने चेहरे के साथ उसके पास आकर बैठ जाती है।"हाँ जी पापा, क्या पूछना है? बताओ।"
"तुम्हें क्या हो गया है आजकल? क्यों भला तुम हमेशा उदास सी रहती हो? तुम्हें कोई समस्या है तो निसंकोच होकर बताओ। तुम्हारा इस तरह उदास रहना मुझे बिलकुल नहीं भाता।"
"नहीं पापा , ऐसी कोई बात नहीं है। आप मेरे बारे में ज्यादा टेंशन नहीं लीजिए।" बिंदु हमेशा की तरह ज़हर का घूंट अंदर ही अंदर पीकर रह गयी। विक्रम के लाख समझाने पर भी वह अपनी जगह से डांवाडोल नहीं हुई।

"फिर तुम कल तैयार रहना कल हम घूमने जाएँगे। साथ ही अगर तुम्हें कुछ शॉपिंग करनी है तो हम कर आएंगे।"
"नहीं पापा , अभी मेरा मन नहीं है कहीं भी जाने का।" जिस बिंदु को हमेशा ही घूमने का मन रहा करता था ;वह अब घूमने के लिए इस तरह मना कर रही है। विक्रम ने सोचा अवश्य कुछ बात तो है। उसकी चिंता दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। आखिर उसने कुछ जोर देते हुए कहा। "कल तो चलना ही पड़ेगा। अपने पापा की इतनी बात तो माननी ही पड़ेगी। कल तैयार रहना हम सुबह ही चलेंगे।"
"ओके पापा" बिंदु ने अनमने मन से हाँ बोला।
"ओके तुम बैठो मैं थोड़ा सा शर्मा जी घर जा के आता हूँ।"
"ठीक है पापा।"
विक्रम अपने पड़ोस में शर्मा जी के घर जाता है जहाँ शर्मा जी सोफे पर बैठे सुबह के बासी अखबार के पन्ने उलट पलट रहे थे। उनकी पत्नी सारिका ने घर का दरवाजा खोला और कहा। "आओ विक्रम जी, क्या बात है आज आपको कैसे फुरसत मिल गयी भला।" विक्रम के वापस जवाब देने से पहले ही शर्मा जी बोल पड़े।"अब आने तो दो ज़रा अंदर, तू तो तेरे सवालों से अभी ही उनको वापस भगा देगी।"
"अब आप आइए , पहले बैठिए , वरना इनका तो पता ही है आपको।" सारिका ने पति-पत्नी के स्वाभाविक नोंक-झोंक के भाव के साथ बोला।
विक्रम अंदर प्रवेश करता है और शर्मा जी के पास सोफ़े पर बैठ जाता है।
"और सुनाइये विक्रम जी क्या हाल चाल है आपके? "
शर्मा जी ने अखबार को समेटकर रखते हुए कहा।
"ठीक- ठाक है हमारे तो , आप कैसे हो?" विक्रम ने अपनी चिंता की लकीरों को अपने मुखः मंडल पर साथ में प्रदर्शित करते हुए बोला।
"हमारे तो मस्त है भई। पर आपके चेहरे का रंग भला कैसे उतरा हुआ है?"
"इनका क्या इनकी बेटी भी आजकल बहुत उदास सी ही रहती है। भला बात क्या है?" सारिका ने पानी का गिलास विक्रम को पकड़ाते हुए बोला।
"अच्छा ! क्या बात है विक्रम जी ? कोई टेंशन की बात तो नहीं है ज्यादा?" शर्मा ने कुछ गंभीरता के साथ बोला।
"दरअसल मैं इसी सिलसिले में आपके पास आया हूँ। कुछ दिनों से बिंदु बहुत उदास-उदास सी ही रहती है। मेरे लाख पूछने पर भी ,मुझे तो वह कोई जवाब नहीं दे रही है। हो सकता है उसे कोई ऐसी दिक्कत हो ,जिसे मुझे बताने में उसे संकोच हो रहा हो। इसलिए अगर सारिका जी आप उनसे एक बार बात करे तो शायद वो आपको बता दे।"
विक्रम ने अपने मन की पीड़ा को एक साथ उड़ेलते हुए कहा।
"आपका कहना तो सही है विक्रम जी , पर मैं भी तो उससे रोज मिलती हूँ। उसका ऐसा मुरझाया मुखड़ा देखकर मैंने भी इसकी वजह जानने का बहुत प्रयत्न किया पर उसने मुझे कुछ नहीं बताया। मैं फिर से कोशिश करूँगी शायद वो बता दे।"
"अच्छा , मेरे मन में यही आखिरी उम्मीद थी कि वो आपको अपनी समस्या बता देगी। पर आपको भी उसने कुछ नहीं बताया फिर भला मैं क्या करूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा।" विक्रम अपनी उम्मीद की किरण पर अंधेरा पोतते हुए बोला और उसका मुँह पहले से भी ज्यादा चिंतित मुद्रा में चला गया। तभी शर्मा ने उनसे कहा।"वैसे विक्रम जी बिंदु को हमेशा घर पर बंद ही मत रखा करो। उसको कहीं जाने दिया करो। कहीं दिन-रात घर से बाहर न निकलने के कारण उसका स्वभाव ऐसा न हो गया हो।"
"हाँ विक्रम जी यह बात मुझे भी चुभती है कि वह बेचारी दिन-रात अकेले ही ऐसे अंधेरे घर में पड़ी रहती है। उसको और कहीं नहीं तो कभी - कभी आपके साथ हॉटेल ही ले जाया करो।" सारिका ने अपने पति की बात का समर्थन करते हुए कहा।
"हाँ, अब ऐसा ही करना पड़ेगा। ओके मैं चलता हूँ अब बिंदु घर में इंतजार कर रही होगी।" यह कहकर विक्रम अपने घर चला गया और उसने मन में यह तय कर लिया कि वह अब बिंदु को हॉटेल और घूमने जाने पर साथ ही ले जाएगा। लेकिन विक्रम का यह विचार बिंदु को जीवन के अगले पड़ाव पर ले जाने वाला होगा ।



क्रमशः ......