Mamta Ki Chhanv - Part 9 - Last Part in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | ममता की छाँव - भाग 9 - अंतिम भाग

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ममता की छाँव - भाग 9 - अंतिम भाग

विदाई के बाद अंशिता हिमांशु के साथ उसके घर के लिए रवाना हो गई।

कार में बैठकर हिमांशु ने कहा, “अंशिता आज से तीन माह पहले क्या कभी हमने सोचा था कि हमारा जीवन इतना बदलने वाला है। तुम तो मेरे, राधा और मीरा के लिए भगवान का दिया हुआ ऐसा वरदान बन गई हो जो कभी किसी को इस तरह नहीं मिलता।”

हिमांशु की बात सुन कर अंशिता ने कहा, “हिमांशु आज के बाद एहसान, उपकार और वरदान जैसे शब्दों को बिल्कुल भूल जाओ। मैं तुम्हारी पत्नी और राधा मीरा की माँ हूँ बस इससे ज़्यादा और कुछ नहीं।”

घर पहुँचते ही अंशिता ने अपने कुंकुं वाले पाँव से गृह प्रवेश किया। दोनों बच्चियों को आज माँ का प्यार भरा आँचल मिल गया। एक टूटता बिखरता परिवार जिसे आज अंशिता ने फिर से संवार दिया। 

हिमांशु के पिता ने अंशिता को सपना का मंगलसूत्र और गहने देते हुए कहा, “लो बेटा यह सपना की निशानी के रूप में अपने पास रख लो।”

अंशिता ने उनके पाँव छूकर उनसे कहा, “पापा मुझे आशीर्वाद दो। सपना की यह निशानी क्या, उसने तो हमें वह दो निशानी दी हैं, जो हमारी दोनों आँखों की प्यार की गहराई में हमेशा डूबी रहेंगी।”

असीम प्यार और दुलार के बीच राधा और मीरा बड़ी होने लगीं। धीरे-धीरे पाँच वर्ष बीत गए।

एक दिन हिमांशु के पिता ने उससे कहा, “बेटा तुम्हारे विवाह को पाँच वर्ष बीत गए, राधा और मीरा भी बड़ी हो गई हैं, तुम्हें नहीं लगता कि अंशिता की गोद में भी एक नन्हा मुन्ना बालक होना चाहिए। उसने तो अपना फ़र्ज़ निभाया है। हमारा भी तो कुछ फर्ज़ बनता है ना। तुम्हें उसे वह सुख अवश्य ही देना चाहिए, जिसकी वह सच में हकदार है और जिसकी चाह दुनिया में हर स्त्री की होती है।”

“पापा मैं यह बात उससे कई बार कह चुका हूँ कि तुम्हें भी हक़ है माँ बनने का लेकिन वह हमेशा ही मना कर देती है। कहती है हूँ तो सही मैं माँ।”

“अच्छा ठीक है, उससे मैं बात करूंगा,” कहते हुए उन्होंने आवाज़ लगाई।

“अंशु बेटा ज़रा इधर आओ।”

वह हमेशा अंशिता को अंशु कहकर ही बुलाते थे। अंदर से आवाज़ आई, “आती हूँ पापा,” कहते हुए वह उनके पास आ गई। 

“क्या है पापा?”

“अंशु बेटा यहाँ आओ, बैठो मेरे पास।”

अंशिता बैठ गई। तब उन्होंने कहा, “बेटा अब राधा और मीरा बड़ी हो गई हैं। मैं चाहता हूँ कि अब तुम्हारी गोद भी भर जानी चाहिए।”

“पापा आप यह क्या कह रहे हैं? मेरी गोद में तो दो-दो बेटियाँ पहले से ही बैठी हैं। वह खाली कहाँ है पापा?”

“नहीं अंशिता तुम्हारा यह इंकार मुझे सुख और चैन से मरने नहीं देगा। बेटा ऐसा प्रतिबंध तो उस जगह लगाना पड़ता है, जहाँ ख़ुद का बच्चा होने के बाद सौतेली माँ बच्चों के साथ भेद भाव करती है। लेकिन तुम तो ममता की मूरत हो। फिर इस त्याग की ज़रूरत क्यों है बेटा? अब मेरे जीवन की बस यही एक इच्छा बाक़ी रह गई है। उम्मीद है तुम मुझे नाराज़ बिल्कुल नहीं करोगी।”

अंशिता मुस्कुराते हुए वहाँ से अपने कमरे में चली गई।

उसके दस माह पश्चात अंशिता ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसके बाद उनका परिवार संपूर्ण परिवार बन गया। राधा और मीरा को एक भाई मिल गया और उनके परिवार की रौनक कई गुना बढ़ गई।

सौरभ और अंजलि ने भले ही अपने मुँह से अंशिता को कभी यह नहीं कहा कि तुम्हें भी अपनी ख़ुद की एक संतान तो ज़रूर ही होनी चाहिए लेकिन उनके मन में यह अभिलाषा ज़रूर थी। अब अपनी बेटी के लिए वह दोनों बहुत ख़ुश थे। उन दोनों ने भी अंशिता के पुत्र उज्ज्वल के होने के बाद भी कभी राधा, मीरा और उज्ज्वल में फ़र्क़ नहीं किया। वह हमेशा तीनों बच्चों को एक-सा ही प्यार करते रहे।

एक दिन सौरभ ने अंजलि से कहा, “अंजलि हमारी अंशिता तो एक मिसाल है। उसने एक ऐसा उदाहरण समाज के सामने रख दिया है जो यदि दुनिया की और भी स्त्रियाँ अपना लें तो कोई भी बच्चा माँ के प्यार के बिना बड़ा ना हो। सब को माँ का प्यार और ममता की छाँव मिले। हमारी अंशिता को परिवार भी कितना अच्छा मिला है। यदि अंशिता ने उस परिवार को संभाला है तो वह भी अंशिता को ख़ुशी देने में पीछे नहीं रहे।”

“हाँ सौरभ, तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। यदि इंसान चाहे तो ख़ुशियाँ बटोर कर अपने परिवार को हमेशा ख़ुश रख सकता है। देखो ना कितना बड़ा दुःख का पहाड़ टूटा था उस परिवार पर; लेकिन आज ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं। सपना की यादें ज़रूर है और हमेशा रहेंगी भी लेकिन वह भी कितनी ख़ुश होगी ना अपने परिवार को और खासतौर से अपनी बेटियों को ख़ुश देख कर।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

समाप्त