एक बार की बात है। एक छोटे से गांव में एक विधवा औरत और उसका बेटा रहता था । वह बहुत गरीब थे। मां दूसरे के घरों में जाकर मेहनत मजदूरी करके अपने बेटे श्याम को पढ़ाती थी। श्याम एक होनहार बालक था वह पढ़ने में बहुत तेज था, इसलिए उसकी मां उसे पढ़ाने लिए शहर भेजना चाहते थी। पर उसे ज्यादा रुपए की जरूरत थी, उसने दिन के काम के साथ-साथ रात को सिलाई करने का काम भी चालू कर दिया। रुपए जोड़कर श्यम को शहर भेजा। उसने कड़ी मेहनत से उसे पढ़ाया । समय ने करवट ली और श्याम अब एक काबिल इंजीनियर बन गया । उसके पास रुपए पैसे की कोई कमी नहीं थी । श्याम अब युवा हो चुका था और मां उतनी वृद्ध। मां अब बहू और उसके साथ रहकर स्वर्गिक सुख जीवन जीने का स्वप्न देखने लगी।आखिर श्याम ने मां को खुश खबरी सुनाई कि मुझे एक लड़की सावली पसंद है,वह भी इंजीनियर है। मां खुशी से झूम उठी जैसे उसे इसका यौवन मिल गया हो। मां ने ठिठोली करते हुए पूछा कैसी है बहू खाना बनाएगी की भूखा ही मरेगी।श्याम लजाते हुए बोला अरे मां तू भी......उसकी क्या मजाल। रस्में ,रीति ,रिवाज के साथ शादी संपन्न हुई। ।पर वह विवाह के कुछ समय के बाद अपनी सास से विवाद करने लगी । आधुनिकता के आगे संस्कारों की बलि चढ़ गई,मानवता और शीलता ने घुटने टेक दिए। मां की सीख उसे टोकना लगने लगी। मां का उठने बैठने का तरीका गवरपन लग रहा था। पर वृद्ध विधवा मां में यौवन की चंचलता, लचकता और मादकता कैसे मिलती।
मां जो सुनने से ही पूर्णता से भरा होता है , मां जिसकी महिमा कही व सुनी नहीं जा सकती। वह अस्तित्व को पूर्ण करने वाली जनन होती है। हमे उसके उपकार नही भूलने चाहिए। झगड़ा बढ़ता गया सावरी ने कहा कि इस घर में या तो मैं रहूंग या तुम्हारी मां। श्याम धर्मसंकट में पड़ गया। श्याम ने समझाया की बूढ़ी मां कहां जायेगी थोड़ा अर्जेस्ट कर लो। पर श्यामली घायल सर्पिणी की तरह फुफकार भरकर बोली इन्हे वृद्धाश्रम क्यों नहीं भेज देते। श्याम के ह्रदय पर जैसे वज्रपात हुआ हो।और यह वज्रपात मां के कानो ने भी सुना। मां कुछ बोल ना सकी । शायद वो अपने बेटे को लज्जित नहीं करना चाहती।
एक दिन श्याम ने कहा कि मां चलो मैं तुम्हे बाहर छोड़ आता हूं वहां तुम्हे ठीक रहेगा,। मां समझ चुकी थी। घर से निकलकर दहलीज पर ठिठकी घर को अशहाय नजरों से निहारा जैसे अंतिम दर्शन हों।और चुप चाप गाड़ी में बैठ गई । और अपना जीवन तौलने लगी ,क्या पाया क्या खोया । त्यागपूर्ण संघर्ष पूर्ण जीवन था वह फिर से शुरू। मां का राजा बेटा जोरू का गुलाम बन चुका था।जिसे बहादुर बनाया वह कायर निकला।
गाड़ी एक दरवाजे पर रुकी। उस इमारत पर लिखा था वृद्धाश्रम l मां ने बिना कोई सवाल किए उस दरवाजे में प्रवेश किया और कहा बेटे तुम खुश रहो यही मेरे लिए सबसे बड़ी बात है l समय बीतता गया । मां का स्वास्थ्य दिनोंदिन बिगड़ता गया, वृद्धाश्रम के लोगों ने उसके बेटे को सूचना दी कि उसकी मां बहुत बीमार है।लेकिन बेटे ने कहा कि मुझे अभी समय नहीं । फिर भी मां अपने बेटे की राह देखते देखते अंतिम सांस ले ली।स्याम अपनी मां की अंतिम विदाई में आ ही गया। वृद्धाश्रम पहुंचा ।मां का शव देख टूट सा गया। पहली बार बोला मां मैं असहाय हो गया ।फिर वृद्धाश्रम की एक महिला आगे बढ़कर उसके बेटे के हाथ में तो लिफाफे थमाकर बोली अब क्या फायदा बेटा ,जो होना था हो चुका ।
उसमें एक लिफाफा भारी था और एक हल्का उसने एक लिफाफा खोला जिसमें बीस हजार रूपए थे ।वह कुछ समझ नहीं पाया फिर उसने दूसरा लिफाफा खोला इसमें एक पत्र था वह पत्र उसकी मां का था । जिसमें हुआ लिखा था कि बेटे मुझे पता है कि तुम मेरे एक लायक बेटा हो ।तुम मेरे लिए रुपए भेजते रहे हो, मुझे इन रुपयों की कोई आवश्यकता नहीं थी। तुमने मुझे जो घर दिया इसका नाम बसेरा है । वहां मेरा पूरा ध्यान रखा गया, लेकिन यह रुपए मैं तुम्हारे लिए छोड़ कर जा रही हूं। क्योंकि शायद तुम्हारा बेटा इतना लायक ना हो ,यह रुपए तुम्हारे बुढ़ापे में काम आयेंगे।
पत्र पढ़ कर उसकी आंखो में पछतावे के आंसू छलक आए।
उसे आज मां की ममता का एहसास हो गया ।मां की महिमा शब्दों में बयां नहीं की जा सकती। मां वह है जो हमें जन्म देती है हमे पोषित करती है।और हमे जीवन शक्ति देकर समाज को सौंपकर अपना कर्त्तव्य पालन करती है।
समाप्त।