Aansu Pashyataap ke - 10 in Hindi Moral Stories by Deepak Singh books and stories PDF | आंसु पश्चाताप के - भाग 10

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आंसु पश्चाताप के - भाग 10

आंसु पश्चाताप के, भाग 10


समय बीतता गया दिन निकलते गये राहुल और निकी का आपसी प्रेम बढ़ता गया और ईसी बीच राहुल का जन्मदिन भी नजदीक आ गया ।
राहुल की मम्मी का माँ का फोन आया ,
" हैलो राहुल ,
मम्मी प्रणाम खुश रहो बेटा कैसे हो ?
ठीक हूँ मम्मी ,
बेटा १२ नवम्बर को तुम्हारा जन्मदिन है,
हाँ मम्मी मुझे पता है, मैं समय से पहुंच जाऊंगा ,
बेटा अकेले नहीं अपने साथ उस खूबसूरत और नेक लड़की को भी लेकर आना जिसकी तुम तारीफ करते हो . . .
ठीक है मम्मी ,
इस बार तुम्हारे नाना का विचार है कि तुम्हारा जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाये,
ठीक है माँ मैं एक रोज पहले ही घर आऊंगा . . .

अगले दिन राहुल निकी से बोला, निकी १२ नवम्बर को मेरा जन्मदिन है , आप अपने मामा को साथ लेकर मेरे यहाँ जरुर आना , ठीक है राहुल मैं जरूर आउंगी ।

१२ नवम्बर की शाम ज्योती अपने बेटे का जन्मदिन मनाने में बहुत व्यस्त थी , घर के बाहर लान में एक सुन्दर बड़ा सा पंडाल बना था , पंडाल को फूल पत्तियों और बिजली के लड़कियों से सजाया गया था , पंडाल में निचे नीले लाल रंग का कारपेट बिछा हुआ था और सामने आर्केस्ट्रा के लिये एक छोटा सा स्टेज भी बना था , पंडाल का मुख्य गेट फूलों की लड़कियों के बीच बहुत आकर्षक लग रहा था बीच में केक के लिये एक गोल टेबल रखा था , ज्योती के आमंत्रित लोग समय से आने लगे वह प्रसन्नचित खड़ी होकर आने वाले लोगों का हार्दिक अभिनंदन कर रही थी , राहुल भी अपने कुछ दोस्तों और नाना - नानी के साथ खड़ा था और आने वाले लोगों का अभिनंदन कर रहा था , आने वाले लोग राहुल के हाथ में फूल और गिफ्ट के साथ उसको जन्मदिन की बधाई दे रहे थे लेकिन राहुल निकी के आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था ।

इधर मामा यह मेरे दोस्त का निमंत्रण कार्ड है , कार्ड पढ़ते ही प्रकाश का माथा ठनक गया ।

राहुल का जन्मदिन मेरे बेटे का जन्मदिन लेकिन मैं एक मुद्दत के बाद ज्योती के सम्मुख कैसे जाऊंगा , नहीं नहीं मैं उसके दरवाजे पर नहीं जाऊंगा ,
लेकिन यह संयोग की बात है प्रकाश कम से कम अपने बेटे के जन्मदिन पर उसे देख तो लो , जिसे आज तक नहीं देखे हो आखिर वह तुम्हारी संतान है ।

मामा आप निमंत्रण कार्ड पढ़कर का क्या सोचने लगे ,
प्रकाश के कानों में निकी की आवाज पढ़ते ही उसकी खोई चेतना टूट गई ,
कुछ नहीं निकी मैं राहुल के जन्मदिन पर जरुर चलूंगा . . .

शाम को प्रकाश के साथ निकी धुधले रोशनी में राहुल के घर पहुंची , गाड़ी से उतरकर वह धीरे धीरे पंडाल के दरवाजे की तरफ बढने लगी निकी पर जब ज्योती की नजर पड़ी , वह गुलाबी रंग के सलवार समीज में एक परी जैसी खूबसूरत लड़की के हाथों में गिफ्ट देखकर भाप गई कि यह वही लड़की है , जिसका राहुल बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा है , लेकिन जब निकी के साथ में लंबे चौड़े कुर्ता पैजामा वाले उस व्यक्ति पर उसकी नजर पड़ी तो उसके पांव तले जमीन खिसक गई . . .
सब कुछ पहले जैसा सिर्फ सर के बाल और चेहरे में मामूली सा बदलाव आया है , बड़ी बड़ी आंखें , आकर्षक चेहरा . . .
तुम मुझसे बात नहीं करोगे , आज तुम्हारे लड़के का जन्मदिन है और तुम एक मेहमान बन कर आये हो काश तुम मेरे कहने से कल्पना का साथ छोड़ देते तो आज एक जिम्मेवार बाप होते . . . ज्योती अपने विचारों में खड़ी खड़ी खो गई . . .
मम्मी क्या सोच रही हो ? यह निकी है ,
राहुल की बात सुनते ही निकी झुककर ज्योती के पैरों को स्पर्श की - खुश रहो बेटी ,
निकी हम लोग तुम्हारा कब से इंतजार कर रहे हैं ,
प्रकाश की तरफ संकेत करके निकी बोली ,
राहुल यह हमारे मामा है ,
राहुल प्रकाश के पैरो को स्पर्श किया ,
खुश रहो बेटा ,
ज्योती से नजर मिलते ही प्रकाश जाकर एक चेयर पर बैठ गया ,
पल भर बाद सेवक उसके लिए जलपान लेकर आया . . .जैसे ही वह मिठाई हाथ में लिया उसकी अंतरात्मा से आवाज आई . . .
खाओ प्रकाश खाओ , यही तो विधि का विधान है , आज अपने ही बेटे के जन्मदिन पर एक मेहमान की तरह तुम बैठकर मिठाई खा रहे हो , राहुल को यह भी नहीं पता है कि तुम कोई गैर नहीं बल्कि उसके पिता हो . . .
यह सोचकर प्रकाश की आँखे नम हो गई , वह बीते लम्हों को सोचने पर मजबूर हो गया . . .

कुछ पल बाद जन्मदिन की घड़ी आई और मोमबत्तियों के बीच राहुल ने केक काटा ,
लोग हैप्पी बर्थडे टू यू के ध्वनि का उच्चारण करके तालियां बजाने लगे . . .
राहुल बड़े प्यार से अपनी माँ के मुंह में केक का टुकड़ा डाला ,
वह भी बहुत प्यार से अपने बेटे का माथा चूम ली फिर से तालियों की गड़गड़ाहट हुई . . .
यह देखकर प्रकाश की आंखें नम हो गई , उसका बेटा उसके आंखों के सामने था परन्तु वह बाप की हैसियत से अपने बेटे को गले भी नहीं लगा सकता था . . .
इतने में स्टेज से आवाज आई आज के इस शुभ दिन पर प्रकाश जी स्टेज पर आये और अपनी मधुर संगीत सुनाकर आनन्द विभोर कर दे . . .

अपने बेटे की आवाज सुनने के बाद प्रकाश अपने चेयर से उठा और धीरे धीरे स्टेज पर पहुंच गया ।
वह पहले सबको झुक कर अभिनंदन किया , लोगों ने तालियां बजाकर उसका स्वागत किया ,
ज्योति भी राहुल के साथ सामने सोफे पर बैठ गई , म्यूजिक की ध्वनि के साथ प्रकाश के मुंह से एक दर्द भरा गजल का स्वर्ग निकला ।

।। गीत ।।

रंग भरी महफिल में मैं कौन सा गीत सुनाऊं , आंखें भरी है गला रुदा है गांव या आंसू बहाऊं ।।

जो कहते थे हम को अपने वह हुए पराए नफरत की आग में जल उठे , मेरा प्यार समझ नहीं पाए ।।

पतझड़ बन गया जीवन मेरा निरस्त हो गया मन आसमान में भीगी पलके मेरी गम में डूबा तन , जब पत्थर बन गया दिल उनका तो मैं कैसे पीघलाऊ ।

रंग भरी महफिल में मैं कौन सा गीत सुनाऊं , कसमें खाई जो हमसे जीवन का साथ निभाने की पल पल बीता करता उनका हर पल मुझको पाने की ,

प्यार की नैया में बैठे हम जिस में था उनका सहारा , मझधार में फंस गई नाव मेरी ना मिल सका मुझे किनारा ।
अब दर्द भरे दिल में खुशियां कहां से लाऊं , इस रंग भरी महफिल में मैं कौन सा गीत सुनाऊ ,
सावन मेरा सूखा बीता , न बीती रात सुहानी मन तड़पा जैसे तड़पे मीन बिन पानी ।

प्यार अमर होगा मेरा देखा था मैंने सपना , पिछड़ गया जीवन साथी हो न सका जो अपना ।
बिछड़े यार से मैं अपनी आंखें कैसे मिलाऊ ,

इस रंग भरी महफिल में कौन से गीत सुनाऊ ।

।। गीत समाप्त । ।

जिसे सुनकर लोग चन्द समय के लिये अपने आप संगीत में खो गये संगीत का स्वर समाप्त भी नहीं हुआ था कि ज्योती की आंखे आंसुओ से भर गई , उसका कठोर दिल विहव्ल गया . . .
वह अपने आंसुओं को रोकने में असमर्थ हो रही थी इसलिये वह पंडाल से उठकर रूम में चली गई और फुट फुट कर रोने लगी ,
अपनी माँ को ईस तरह भाऊक होकर रूम में जाते देखकर राहुल भी अपनी माँ के पास पहुंचा।
क्या हुआ माँ तुम पंडाल से उठकर यहाँ आकर इस तरह क्यों रो रही हो ? बाहर मेहमान क्या सोचूंगे अचानक तुम ईस तरह भाऊक होकर क्यो रोने लगी ,
अपनी माँ को ईस तरह भाऊक होकर रोते हुवे देखकर राहुल के दिमाग में अनेक बातें आने लगी उसे शंका होने लगी . . . इसमें जरूर कोई राज है राहुल आपनी माँ से बोला, माँ मुझे सच - सच बताना . . .
क्या प्रकाश जी मेरे . . .
हाँ बेटा प्रकाश और कोई नहीं वही तुम्हारे पिता है ,
माँ मैं अभी उसको इस भरी महफिल में बदनाम करता हूँ . . .
नहीं बेटा - क्यों नहीं माँ ,
अब मैं नहीं रुक सकता . . . राहुल के दिल दिमाग में अपने पिता के प्रति भरी नफरत की ज्वाला भड़क गयी और राहुल फौरन स्टेज पर पहुंच गया ,

मेहमानों यह प्रकाश इंसान नहीं इंसान के रुप में भेड़िया है भेड़िया , यह पूरी जिंदगी एक बेश्या औरत के साथ अय्याशी करता रहा और मेरी माँ सूखी लकड़ी बनकर जलती रही ,
मुझे बाप का प्यार कभी नहीं मिला , मेरी माँ सुहागन होते हुवे भी एक विधवा की तरंह पुरी जिन्दगी घुट घुट कर जिन्दगी काटती रही और ये किसी और के साथ रगंरेलिया मनाता रहा इसके पास दिल नहीं पत्थर है पत्थर . . .

अपने मामा प्रकाश को इस तरह जलील होते देखकर निकी तुरन्त स्टेज पर आई , सुनो राहुल अब तुम इसके आगे एक शब्द भी बोले तो अच्छा नहीं होगा अरे मुझे नहीं पता था कि तुम हमे अपने घर बुलाकर भरी महफिल में इतना जलील करोगे और एक बात सुनो . . . सूखी लकड़ी का स्वभाव है आग में जलना अगर मुझे पता होता कि तुम इस तरह भरी महफिल में मेरे मामा को बुलाकर इस तरह बेइज्जती करोगे तो मैं यहाँ हरगिज नहीं आती चलिये मामा हम अपने घर चलते है ,
वह प्रकाश को अपने साथ लेकर स्टेज से नीचे उतरी और भरी महफिल से बाहर निकल कर अपने घर वापस चली गई ।
रंग में भंग हो गया लोग तरह तरह की अटकलें लगाने लगे , धीरे धीरे लोग खाना खाकर अपने घर चले गये . . .

उस रात राहुल अपने ड्राइंग रूम में देर रात तक बैठा रहा और अपनी उलझी गुत्थी को सुलझाने का प्रयत्न करने लगा लेकिन उसकी उलझी गुथी सुलझने के बजाय और उसमे उलझने लगी , किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश में वह डूबा था ।

ज्योती उसके पास आई , चलो राहुल खाना खाकर आराम करो ,
नहीं माँ मुझे खाने की बिल्कुल इच्छा नहीं है इतना कहने के बाद वह उठा और अपने बेडरूम में चला गया ,
उसकी आंखों में नींद थी उस रात वह मामूली स्वप्न की तरह सोया फिर जग गया ।

इधर घर पहुंचने पर प्रकाश बहुत देर तक अपने आप बीती में खोया रहा . . .
मामा मुझे यह मालूम होता कि राहुल आपकी बेइज्जती करेगा तो हम उसके घर नहीं जाते . . .
निकी इसमें राहुल का कोई कसूर नहीं है , ज्योती उसके दिमाग में मेरे प्रति नफरत भर दी है जो भाऊता में भड़क गया , खैर छोड़ो उसकी बातों को अपने दिमाग में तुम मत लेना ,
निकी मुझे सच सच बताओ क्या तुम राहुल से प्रेम करती हो ?