Saat fere Hum tere - 25 in Hindi Love Stories by RACHNA ROY books and stories PDF | सात फेरे हम तेरे - भाग 25

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सात फेरे हम तेरे - भाग 25

कुछ देर बाद सब लोग सो गए।
सुबह आठ बजे नैना की आंख खुल गई और फिर बोली अरे आज माया दी ने जगाया नहीं।।

चलो अब फेश् होकर मैं ही उनको उठाती हुं।
नैना तैयार हो कर सीधे माया के रूम में पहुंच गई।
नैना ने कहा अरे अब तक सो रही है ये क्या ये खुशबू हो बहुत जानी पहचानी सी लग रही है।
फिर नैना धीरे धीरे बेड के पास गई और फिर बोली अरे दीदी उठो ना। इतना सो रही हो आज।चादर तान कर सो रही हो।
पर नैना तो क्या पता कि कौन हो रहा था। नैना ने चादर हटा दिया।

और जैसे ही चादर हटाया तो विक्की को देखते ही चिल्लाने लगी और उसकी आवाज से विक्की भी उठ गया और उधर माया भी दौडते हुए आ गई।

और नैना एक दम से चौंक कर बेहोश हो कर विक्की के गोद में गिर गई।

विक्की ने कहा अरे वाह दी ऊपर वाला जब भी देता है छप्पर फाड़कर देता है।
माया भी हंसने लगी और फिर बोली चलो मैं चाय बनाती हुं।

विक्की ने कहा पर इसका क्या करें?
माया ने कहा भगवान ने दे दिया है और फिर अब।।।
फिर विक्की ने पानी का छिड़काव किया नैना के मुंह पर और फिर नैना एक दम उठ कर बैठ गई और इधर उधर देखने लगीं।
विक्की ने कहा शरमाओ मत इसे अपना घर ही समझो।

नैना ने कहा अरे आप कैसे आएं?कब आए से आएं और फिर उम्र क्या है?

विक्की ने कहा अरे बाबा रे।।

नैना ने कहा अरे कोई मुझे भी कहेगा।।


माया ने कहा हां ठीक है चाय पीने आ जाओ उसके बाद बताती हूं।
नैना ने कहा हां ठीक है और फिर उठ कर जाने लगी। विक्की ने कहा क्यों खुश हो ना? नैना ने कहा कैसी ख़ुशी मैं तो हमेशा से।।
विक्की ने कहा अरे मेरे आने की खुशी।। नैना ने कहा अच्छा जैसे हमेशा के लिए आ गए हो आप।।
विक्की ने कहा हां क्यों नहीं अगर तुम चाहो तो।

नैना ने कहा हां,मजाक अच्छा कर लेते हैं अगर मेरे चाहने से सब हो जाता तो क्या बात थी आज मैं और निलेश साथ होते।
विक्की ने कहा हां,हो सकता है भगवान नहीं चाहता था कि तुम और निलेश साथ रहो।हो सकता है कि निलेश को सिर्फ अपनी आंखें तुम्हें देनी थी उसका कोई पिछले जन्म का कर्ज था जो चुका दिया और भगवान ने तुम्हारे लिए कुछ और ही सोच रखा है। क्या पता।।

नैना ने कहा मैं ये सब नहीं मानती हुं।
विक्की ने कहा तुम्हारे मानने ना मानने से क्या होता है जो किस्मत में लिखा होता है वो होगा वरना हम क्यों मिलते ये सोचा है कभी।

नैना ने कहा पता नहीं अब चलें चाय पीने।

फिर तीनों बालकनी में बैठ कर चाय पीने लगे। माया ने विक्की को बताया कि निलेश यहां बैठा करता था।
नैना ने कहा अरे दीदी ये कब आए?
माया हंसने लगी और फिर बोली हां कल ही आया अचानक से।
फिर सारी बात बताई। नैना ने कहा हां तभी मैंने स्टेज पर से देखा था। माया ने कहा कि हां पर विक्की कभी कभी ओझल हो रहा था ताकि समझ ना आए।


विक्रम सिंह शेखावत ने कहा वाह क्या चाय बना है। अरे अतुल बिमल कब आएंगे। नैना एक दम से चौंक गई और फिर सोचने लगी कि ये ऐसा कर रहा है जैसे वर्षों से जानता हो!
तभी विक्की ने कहा नैना इन्सान को जानने के लिए उससे दोस्ती करने के लिए एक दिन ही काफी है उसे वर्षों नहीं लगता है। सिर्फ सोचने का तरीका है।।
नैना ने कहा अरे आपको कैसे पता कि मैंने मन में यही सोचा।
विक्की ने कहा सबका तो नहीं पर कोई बहुत खास लोग जो हमेशा मेरे दिल में रहते हैं उनका मन पढ़ लेता हूं जैसे तुम्हारा।।
नैना कुछ भी नहीं बोली।

माया ने कहा हां ठीक है लेकिन विक्की आएगा मुझे पता था। विक्रम सिंह शेखावत ने कहा हां पर कभी बुलाया नहीं। माया ने कहा ऐसा मत बोलो दिल से याद किया तभी तो आएं हो।

माया ने बिमल को फोन किया और फिर बोली कि महेश की दुकान से कचौड़ी सब्जी जलेबी सब ले कर आओ।
विमल ने कहा हां ठीक है।।

फिर माया नहाने चली गई।
नैना और विक्की बालकनी में बैठ कर बातें करने लगे।
विक्की ने कहा नैना अपना शहर नहीं घुमाओगी?
नैना ने कहा स्कूल में छुट्टी नहीं मिल सकती।आप अतुल और बिमल के साथ घुम लिजिए।
विक्की ने कहा ऐसा कैसे हां तुम तो मुझे इगनोर कर रही हो।

नैना ने कहा मैं कौन हूं जो।।
विक्रम सिंह शेखावत ने कहा किसी ने भी आज तक विक्रम सिंह शेखावत को ना नहीं बोला पर तुम्हारी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी।।
नैना ने उठते हुए कहा मैं आती हूं अभी।
विक्रम सिंह शेखावत ने कहा हां ठीक है।

कुछ देर बाद ही बिमल और अतुल आ गए।सब मिलकर कचौड़ी सब्जी जलेबी खाने लगे।

विक्रम सिंह शेखावत ने कहा वाह लाजवाब।
विक्की ने कहा दीदी क्यों न हम सब मिलकर दिल्ली और आगरे की सैर करने चले।।


माया ने कहा हां भाई काफी दिनों से हम कहीं भी नहीं गए। चलो अब चलते हैं।
विक्की ने कहा ठीक है दीदी मैं अभी एयर टिकट बुक करवाता हूं।
माया ने कहा नहीं, नहीं भाई ऐसा करो ट्रेन से चलते हैं।
अतुल ने कहा हां ये सही रहेगा।
विक्की ने कहा हां ठीक है मैं बुक करता हूं।

नैना ने कहा अरे दीदी हम कैसे जा सकते हैं छुट्टी कैसे मिलेगी।


माया ने कहा अरे बच्चों का परीक्षा हो गया है कोई बात नहीं है।

विक्की ने कहा बस हो गया है टिकट।।
१५तारिख का टिकट बन गया है। सेकेंड एसी में।

अतुल ने कहा वाह दोस्त। तुम तो निलेश की तरह दिलदार हो।

बिमल ने कहा चलो आज सब घुमने चलें।
माया ने कहा हां ठीक है।
विक्की ने कहा रात डिनर करके आएंगे। क्यों दीदी।

माया एक दम से रोने लगी। और फिर बोली भाई तू भी निलेश की तरह है।।

विक्की ने कहा दीदी मैं एक फोन करके आता हूं। अतुल ने कहा दीदी पुलाव और पनीर कोफ्ते बना दो । लंच के बाद ही निकल जाएंगे।

माया ने कहा हां ठीक है वहीं बना देती हुं।

फिर सब अपने अपने काम में लग गए।


दोपहर को सब मिलकर खाना खाने लगे। बहुत सालों के बाद इनके घर में हंसी मजाक की आवाज सुनाई दे रही थी।

विक्की ने कहा एक बड़ी वाली गाड़ी बुक करता हूं।
सब तैयार हो जाओ।
नैना भी मन ही मन खुश थी।
सब तैयार हो कर नीचे उतर गए।

कोकिला अपने बालकनी से देख कर आवाज लगाई।तब माया ने संबोधित करते हुए कहा ये विक्रम सिंह शेखावत है।।
कोकिला ने कहा हां एक दिन घर लेकर आना।
विक्की ने कहा नमस्कार आंटी। जरूर आऊंगा।


फिर कुछ देर बाद गाड़ी आ गई।सब लोग खुशी से बैठ गए।

विक्की डाईवर के बगल वाली सीट पर बैठ गए।


कमश: