Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 10 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 10

Featured Books
Categories
Share

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 10

जीवन सूत्र 10

नाशवान शरीर की जरूरत से ज्यादा देखभाल न करें

परमात्मा के एक अंश के रूप में शरीर में आत्मा तत्व की उपस्थिति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हम इसके माध्यम से उस परमात्मा से जुड़ सकते हैं और उसकी शक्तियों को स्वयं में अनुभूत कर मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। आत्मा और शरीर की विशेषताओं में महत्वपूर्ण अंतर बताते हुए भगवान श्री कृष्ण,वीर अर्जुन से आगे कहते हैं:-

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।

अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत।(2/18)

इसका अर्थ है:-

इस नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरूप जीवात्मा के ये सब शरीर नाशवान कहे गए हैं, इसलिए हे भरतवंशी अर्जुन, तू युद्ध कर।

वास्तव में आत्मा कभी नष्ट नहीं हो सकती है। यह अप्रमेय है अर्थात बुद्धि के द्वारा भी नहीं जानी जा सकती है। आत्मा का नाश नहीं हो सकता है।मन,बुद्धि और इंद्रियों की एक सीमा है।आत्मा असीम है। इसे प्रदर्शनी में नहीं रखा जा सकता है इसलिए इसके स्वरूप को ज्ञात करना अत्यंत कठिन होने के कारण इसे अज्ञेय माना जाता है। आत्मा अक्षय है लेकिन यह जिस शरीर में निवास करती है, उसका क्षय होता है। वह नाशवान है और अपने शरीर को असुविधा, खतरों और संभावित नुकसान से बचाने के लिए मनुष्य जीवन में सुविधाजनक पथ की तलाश करता है और इसके कारण कई बार न सिर्फ अपने लक्ष्य से वंचित रहता है,मेहनत नहीं करना चाहता बल्कि इस तरह अपनी आत्म उन्नति के मार्ग में आलस्य बरतकर आगे बढ़ने का एक श्रेष्ठ अवसर खो देता है।

यहाँ भगवान कृष्ण जीवन की ऐसी ही उलझन और भ्रम वाली स्थिति में अपने मन को दृढ़ निश्चय करते हुए ठोस निर्णय लेने का आह्वान करते हैं। जीवन पथ में कर्तव्य निर्वहन के दौरान अगर कठिन परिस्थिति उत्पन्न होती है तो मैदान छोड़ देना कोई विकल्प नहीं है बल्कि उन अड़चनों से पार निकलने की कोशिश में ही मनुष्यत्व है।

खबर लगभग दो वर्ष पुरानी है,लेकिन हमेशा के लिए प्रेरक है क्योंकि कुछ लोगों द्वारा मिलने वाली हताशा, निराशा और असफलता से जीवन के प्रति मोह न रख गलत कदम उठाने के उदाहरण इस वर्ष भी लगातार प्राप्त होते आ रहे हैं।एक समाचार के अनुसार तमिलनाडु की 25 वर्षीय नेत्र ज्योति से वंचित पुरना सुंथरी ने सिविल सेवा परीक्षा के वर्ष 2020 में घोषित परिणामों में 286वीं ऑल इंडिया रैंक हासिल की थी। यह अपने आप में एक अद्वितीय उदाहरण है यह सिद्ध करने को कि ईश्वर एक राह बंद करता है तो बदले में कई राहें खोल देता है, बशर्ते कुछ कर गुजरने का जुनून और जोश हो। किताबों को ऑडियोबुक में परिवर्तित करना और उसके आधार पर अध्ययन करना सचमुच कठिन होता है। पुरना ने अपने चौथे प्रयास में यह सफलता अर्जित की, जो यह बताता है कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता।

वास्तव में हर कार्य पहले कठिन ही नजर आता है लेकिन किसी पहाड़ पर चढ़ने के लिए भी सबसे पहले उसकी निचली सतह से पहला कदम रखते हुए ऊपर चढ़ाई की कोशिश करनी ही होती है। कभी-कभी कर्तव्य पथ पर मनुष्य निपट अकेला होता है और उसे स्वयं पर भी संदेह होने लगता है कि क्या मैं जिस राह पर कदम बढ़ा रहा हूं,वह सही है या नहीं,लेकिन एक बार दृढ़प्रतिज्ञ होकर व स्वयं पर विश्वास रखकर अगर मनुष्य कार्य जारी रखे तो सफलता अवश्य मिलती है। लोग राह में साथी के रूप में मिलते भी जाते हैं।

शायर मजरूह सुल्तानपुरी के शब्दों में:-

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर,

लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया।