Virasat - 1 in Hindi Short Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | विरासत - भाग 1

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विरासत - भाग 1

विरासत

1 - दिल से --माँ

संसार के पहले स्कूल में पहला बच्चा दाखिल होने आता है। पिता की जेब में सिक्के, नाक पर दर्प है। माँ को साथ लाया गया है, क्योंकि बच्चे के स्कूल का पहला दिन है। बिचारी घर के कामों से लस्त-पस्त, थकी-सी साथ में खड़ी है। जैसे उसका होना न होना बराबर है या स्कूल में पिता के साथ ‘माँ’नाम के जीव का होना आवश्यक है।

शिक्षक पूछता है, "बच्चे के साथ किसका नाम लिखा जायेगा ?"

“मेरा क्योंकि मैंने इसे नौ महीने गर्भ में रखने की पीड़ा झेली है। दिन का चैन लुटाकर, रातों की नींद गँवाकर इसे पाला है। इसके लिए कौन सा आहार सही रहेगा -इसकी चिंता में मैं बाज़ार के चक्कर लगाती रहीं हूँ, रसोई में खटती रही हूँ।” माँ यह कहना चाहती है लेकिन इससे पहले ही पिता हुंकार उठता है, “बच्चे के साथ मेरा नाम लिखा जायेगा, क्योंकि मैं ही घर का पालनहार हूँ । इस स्त्री को मैं ही तो ब्याह करके अपने घर अपना वंश चलाने लाया था। वंश तो मेरा चलेगा।”

वह माँ अपने पति का मुंह देखकर घबरा जाती है, सकपकाकर सोचना भी बंद कर देती है।

वही बच्चा स्कूल में खेलते-खेलते एक पत्थर से टकरा जाता है और बेहोश हो जाता है।

घर पर माँ व पिता घबराये हुए हैं, क्योंकि उसे बेहोश हुए घंटो हो गये हैं । अचानक बच्चे की काली पलकें कंपित होने लगती हैं। वह लम्बी बेहोशी के बाद आँख खोलता है। उसके होंठ फड़फड़ा उठते हैं, बेहोशी के बाद दिल से पहली आवाज़ आती है, “माँ!”

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2 - घर

अपने फ़्लैट के सामने आते ही उसका माथा ठनका, बिट्टू दरवाज़े पर अपना नर्सरी बैग लटकाये फ़र्श पर टाँगें फैलाये हिचकी भर कर रो रहा था। जुगड़ी आज भी उसके स्कूल से आने से पहले नहीं आयी थी। कितनी बार उसे समझाया है कि बिट्टू के स्कूल से आने से पहले घर खोलकर उसका इंतज़ार करे, क्योंकि कभी कभी उसे ऑफ़िस से निकलने में देर हो जाती है।

वह झुककर बिट्टू को गोद में उठाने लगी तो रोता हुआ बिसूरता हुआ ज़मीन पर लेट गया। वह उसके गाल पर प्यार करते हुए उसे मनाने लगी, “मेरे राजा बिट्टू! क्या करूँ आज ऑफ़िस से निकलने में मुझे देर हो गयी।”

वह उसकी बाँहों के घेरे से और दूर हो गया। पड़ोसिन ने उसकी आवाज़ सुनकर दरवाज़ा खोला अपनी सफ़ाई दी, “ये आधे घंटे से ऐसे ही दरवाज़े पर बैठा रो रहा है । हमने इससे कितना कहा, हमारे घर आ जा, खाना खा ले, दूध पी ले लेकिन वह नहीं मान रहा।”

वह किसी तरह उसे घसीटकर घर के अंदर ला पायी। बिट्टू ने अपना बैग ज़मीन पर पटक दिया, जूते रैक में रखने के स्थान पर एक इधर फेंक दिया, एक उधर । दूध के गिलास पर हाथ मारकर फैला दिया।

---कुछ दिनों बाद वह उसे पढ़ा रही थी, “एच फ़ॉर हाऊस । हाऊस माने ‘घर ` ।”

“घर गंदा होता है, इससे ताला होता है, इसमें मम्मी नहीं होती, घर गंदा होता है।” बिट्टू ने गुस्से व क्षोभ में किताब का वह पृष्ठ खींचकर फाड़ दिया.

नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffmail.com