Aansu Pashyataap ke - 2 in Hindi Moral Stories by Deepak Singh books and stories PDF | आंसु पश्चाताप के - भाग 2

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आंसु पश्चाताप के - भाग 2

भाग २

आंसु पश्चाताप के

प्रकाश चुपचाप भुतबन कर खड़े खड़े उसकी बातों को सुनता रहा और सुनते सुनते अपने बीते लम्हों में खो गया ।

हैलो प्रकाश - जी हाँ आप कौन ?
मैं सदर हॉस्पिटल से डॉक्टर आनन्द बोल रहा हूँ ।
हाँ डॉक्टर साहब क्या बात है ?
जी आपके दोस्त राणा का एक्सीडेंट हुआ है वह हमारे यहाँ इमरजेंसी वार्ड में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है आप जल्दी से जल्दी यहाँ पर पहुचें ।

डॉक्टर की बात सुनकर आनन फानन में जब मै हॉस्पिटल पंहुचा तो उसके बेड के पास कल्पना अपनी बेटी निकी के साथ पहले से मौजूद थी । घंटों बाद जब राणा की आंख खुली तो वह मेरी तरफ देखकर रोने लगा ।
मैं भी अपने आंसुओं को रोक नहीं पाया , वह मुझसे कुछ कहना चाहता था परन्तु कुछ कहने से पहले कंपाउंडर उसे एक इंजेक्शन लगाया , चन्द समय बाद वह फिर अचेतन अवस्था में चला गया ।

कुछ समय बीतने के बाद जब उसकी आंख दुबारा खुली तो वह बेचैन हो गया उसकी सांसो की गति तेज हो गई . . . . राणा की हालत देखकर हम भी विचलित हो गये , मगर मेरी निगाहें उसके चेहरे पर टिकी थी , राणा कुछ नहीं कहते हुवे आंखो ही आंखो में सब कुछ कह दिया , वह कल्पना की तरफ संकेत किया जिसको मैं स्वीकार करते हुए उसकी हथेली को जोर से दबाया । अफसोस वहाँ डॉक्टर के आने से पहले ही राणा हर बंधनों से मुक्त हो गया . . . .

कल्पना चीख - चीख कर रोने लगी , मै भी अपने दोस्त के लिये रोने लगा . . . . प्रकाश के दिमाग में उस रोज की घटित घटना का सारा दृश्य चल चित्र की तरह चलने लगा ।

उन बीते लम्हों को याद करके उसकी आंखें आंसुओं से भर गई , वह भावुक होकर कहने लगा . . .

नहीं मैं तुम्हारा साथ नहीं छोड़ सकता चाहे लोग मुझे कुछ भी कहें ।

प्रकाश को भाऊक देखकर कल्पना बोली सारी प्रकाश . . .

बनारस सागर के तट पर उपस्थित हनुमान मन्दिर में बाबा मिश्री दास जी महाराज नित्य की तरह पूजा अर्चना करने के बाद आरती करने लगे और कुछ भक्तं गण घंटा घड़ियाल बजाकर सुर से सुर मिलाकर उनके साथ आरती बोलने लगे , जिसकी धुन गुंजित होकर समूचे वातावरण को भक्ति में बनाने लगी ।

दूर दूर तक फैला हुवा बनारस सागर झील का सवरूप ले रखा था , जहाँ हर शाम लोग घूमने के लिये आया करते हैं , उसके किनारे पर उचे उचे मिट्टी के टीले और हरे बृक्षों की मौजुदगी उसकी सोभा में चार चाँद लगा रहे थे ।

कुछ समय वहाँ घूमने के बाद प्रकाश और कल्पना अपने अपने घर वापस चले गये ।

जब प्रकाश अपने घर पहुंचा तो उसके दिमाग में कल्पना की कही बातों का सर गम चल चित्र की तरह चलने लगा . . .

एक तरफ अपने दोस्त राणा को दिया हुआ वचन निभाने का संकल्प तो दूसरी तरफ घर तोड़ने वाली समाज की छींटा कसी , वह अपने ड्राइंग रूम में बैठे बैठे इसी सोच में डूब गया ।

चाय लीजिये अपने कानों में ज्योती की आवाज पढ़ते ही उसकी खोई चेतना टूट गई ।

क्या सोच रहे हो ?
कुछ नहीं . . .
ऐसा लग रहा , जैसे तुम किसी बात में खो गये हो ।
नहीं ज्योती ऐसी कोई बात नहीं है ।
कहाँ गये थे ?
तुम्हें क्या बताऊं मैं कहाँ गया था ?
क्यों मुझे नहीं बताओगे तो किसे बताओगे ?
यह तुम क्या कह रही हो तुम्हारे शिवाय मेरा कौन है ?
यह तो तुम ही जानते हो ?
क्यों तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है ?
क्यों नहीं अगर तुम पर विश्वास नहीं होता तो धर्मदास की बेटी तुम्हारी पत्नी कैसे बन जाती ।
अरे वाह , और नहीं तो क्या ?

बहू . . . . आई माँ जी , अपने कानों में अपनी सासु माँ की आवाज सुनकर उनके पास पहुंची, कहिये माँ जी . . .
अब खाना लगाओ रात काफी हो गई है ।
ठीक है माँ जी मैं खाना लगा रही हूँ ।
खाना खाने के बाद प्रकाश की माँ अपने कमरे में सोने चली गई ।

तत्पश्चात प्रकाश और ज्योती अपने बेडरुम में आकर बातें करने में मशगूल हो गये . . .

ज्योती को कब नींद लग गई उसे पता ही नहीं चला वह गहरी नींद में सो गई ।
लेकिन प्रकाश की आंखों में नींद नहीं थी , उस रात का हर पल कुछ अजीब लगने लगा . . .
बड़ी मशक्कत के बाद जब उसे नींद लगी तो वह सपनों के संसार में खो गया ।

उसे सपने में कल्पना और राणा टहलते हुवे एक झील के किनारे मिले . . . . झील के गहरे जल में हजारों कमल के फूल खिले थे और किनारों पर दूर दूर तक हरे भरे उचे उचे मिट्टी के टीले जिस पर अमल तास और देवदार के वृक्ष मौजूद थे , झील के समकक्ष उन्हें जल में तैरती हुई एक किश्ती दिखाई दी जब किश्ती किनारे पहुंची तो उसका नाविक कोई और नहीं अपने हाथों में पतवार लिए मैं स्वयं था , उसको देखते ही वह दोनों आनन्द से भर गये . . .

आओ राणा आओ मेरे साथ मेरे किश्ती में बैठो तुम दोनों को मै उस पार ले चलूंगा जहाँ प्यार और दोस्ती है , नफरत नाम की वहाँ कोई चीज नहीं , मृगों का झुंड पक्षियों की उड़ान फूलों की वाटिका जहाँ तुम देखते रह जाओगे ।