The Author Praveen kumrawat Follow Current Read शेर-ऐ-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की गौमाता के प्रति श्रद्धा By Praveen kumrawat Hindi Anything Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 21 સગાઈ"મમ્મી હું મારા મિત્રો સાથે મોલમાં જાવ છું. તારે કંઈ લાવ... ખજાનો - 85 પોતાના ભાણેજ ઇબતિહાજના ખભે હાથ મૂકી તેને પ્રકૃતિ અને માનવ વચ... ભાગવત રહસ્ય - 118 ભાગવત રહસ્ય-૧૧૮ શિવજી સમાધિમાંથી જાગ્યા-પૂછે છે-દેવી,આજે બ... ગામડા નો શિયાળો કેમ છો મિત્રો મજા માં ને , હું લય ને આવી છું નવી વાર્તા કે ગ... પ્રેમતૃષ્ણા - ભાગ 9 અહી અરવિંદ ભાઈ અને પ્રિન્સિપાલ સર પોતાની વાતો કરી રહ્યા .અવન... 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हिन्दू― महाराज! मैं हिन्दू हूँ।महाराजा― तूने गऊ के प्रति क्या शब्द कहे थे, सत्य बता?हिन्दू― महाराज! क्षमा करें, मेरे मुख से ये गंदे शब्द निकल गये थे कि दीवार तोड़ने के बदले गाय के सींगों पर आरी चलाकर उन्हें काट दो।महाराजा― तूने हिन्दू होकर ये पापभरी बात कैसे कही?हिन्दू― महाराज! अपराध हो गया। क्षमा करें।महाराजा― एक हिन्दू होकर तेरे मुख से गौ के सींगो पर अपने हाथों से आरी चलाने की बात निकली कैसे? सच बता।हिन्दू― महाराज! भूल से निकल गयी।महाराजा― क्यों निकली?हिन्दू― महाराज! पता नही।महाराजा― मालूम होता है कि तू हिन्दू-मानव की संतान नहीं है।हिन्दू― नहीं महाराज! मैं हिन्दू ही हूँ।महाराजा― अरे! तू हिन्दू नहीं है, हिन्दू-मानव के मुख से गौ के प्रति ऐसे गंदे शब्द कभी नहीं निकल सकते?हिन्दू― महाराज! निकल गये।महाराजा― जान पड़ता है तू असली हिन्दू-माँ-बाप की संतान नहीं है? सत्य बता क्या बात है। नही तो, तुझे जेल में डाल दिया जाएगा।हिन्दू― महाराज! मैं सत्य कहता हूँ, मुझे कुछ पता नहीं।महाराजा ने सिपाहियों को आदेश दिया कि इसे ले जाकर जेल में बंद कर दो और इसकी माँ को लाओ। महाराजा चिन्ता में पड़ गये कि, मेरे राज्य में ऐसे नालायक हिंदू भी रहते हैं। आदेश की देर थी कि सिपाहियों ने उसे तो जेल में बंद कर दिया और उसकी माँ को महाराजा के सामने लाकर उपस्थित कर दिया। महाराजा ने उसे सामने खड़ी देखकर पूछा―महाराजा― अरी! तू कौन है?बुढ़िया― महाराज! मैं हिन्दू हूँ।महाराजा― सत्य बता, यदि तू हिन्दू है तो फिर तेरे ऐसी नालायक संतान कैसे पैदा हो गई, जो हिन्दू होकर गऊ के प्रति ऐसे शब्द मुख से निकालती है और ऐसे गंदे विचार रखती है ?बुढ़िया― महाराज! मुझे कुछ पता नहीं।महाराजा― यह तेरे मानव से दानव-संतान कैसे पैदा हुई? तैने किसका संग किया था, सत्य बता ?बुढ़िया― महाराज! मैंने किसी से संग नहीं किया।महाराजा―नहीं, यह तेरी हिन्दू पति की संतान नही है।बुढ़िया― नही महाराज! ऐसा कभी नही हुआ।महाराजा― फिर ऐसी संतान कैसे पैदा हुई ?बुढ़िया― कुछ पता नहीं।इस पर महाराजा ने उसे डाँटकर उसके पुत्र को मार देने का भय दिखलाया और उसे जीवनभर जेल में डालने की धमकी दी। तब बुढ़िया घबरा गई और थर-थर काँपने लगी तथा सत्य बात कहने के लिये तैयार हो गयी। उसने कहा:बुढ़िया― महाराज! क्षमा करना। बात यह है कि मैं पतिव्रता हूँ, मैंने कभी किसी पर-पुरुष का भूलकर भी संग नही किया। मेरे मकान के बराबर ही ऐसे व्यक्ति का मकान था जो छुरी से मुर्दे पशुओं की खाल उतारा करता था। अवश्य ही जिस रात्रि को अपने पति द्वारा मेरे गर्भ रहा, उसी रात्रि के बाद प्रातःकाल होने पर वह अपने मकान की छत पर बैठा हुआ था। सबसे पहले मेरी दृष्टि उसी व्यक्ति पर पड़ी। इसी से मेरी यह नालायक संतान हुई, कोई दूसरा कारण नही हैं।महाराजा― ठीक है। कुछ व्यक्तियों का काम मुर्दे पशुओं के अंग काटना, चमड़ा उधेड़ना है। उसी का प्रभाव तेरे इस पुत्र के ऊपर पड़ा और उसके निर्दयता के संस्कार इसमे आ गये। अच्छा जा, तुझे और तेरे पुत्र को छोड़े देता हूँ। आगे से ऐसी गलती कभी न करना। तदनन्तर महाराजा रणजीत सिंह ने अपने सारे राज्य में घोषणा करा दी कि 'प्रत्येक हिंदू-स्त्री को चाहिए कि वह अपने हाथ के अंगूठे में सोने की अथवा चाँदी की– जैसी जिससे बन सके, आरसी बनवाकर पहना करे और उस आरसी में शीशा लगवाये तथा प्रातःकाल उठते ही सबसे पहले अपने अंगूठे की आरसी के शीशे में अपना मुँह देख लिया करे, जिससे उसके कोई नालायक संतान न पैदा हो।'महाराजा की आज्ञा की देर थी कि सभी हिन्दू घरो में आरसी तैयार कराकर पहनी गयी, जो आजतक हजारो घरों में पहनी जा रही है। महाराजा रणजीत सिंह दूरदर्शी तो थे ही मानवता के सच्चे रक्षक भी थे–यह इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। जिसके अंदर थोड़ी भी मानवता है, वह कभी गौमाता का, धर्म का विरोधी हो ही नही सकता। Download Our App