Maut ka Chhalava - 2 in Hindi Adventure Stories by Raj Roshan Dash books and stories PDF | मौत का छलावा - भाग 2 - (सूर्यवंशी सीरीज)

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

Categories
Share

मौत का छलावा - भाग 2 - (सूर्यवंशी सीरीज)



इसने मुझे कैसे कैद किया और फिर उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ भी याद नहीं। मै तीन दिन से इसकी कैद में हूँ यह बात मुझे भली प्रकार याद है, यह सुबह शाम मेरी उन लाल रस्सियों को पता नही कैसे ढीली कर देता और मै आराम से अपने दैनिक कर्म कर लेता और फिर यह भोजन के वक्त मुझे वैसे ही छोड़ता है। लेकिन यह लाल रस्सियाँ कभी भी मुझे मुक्त नहीं करती चाहे कुछ भी हो जाये। । वह कंकाल रोज सुबह शाम मेरे पास आता है और फिर कुछ देर मेरे साथ बहस बाजी करके चला जाता है। उसके और मेरे मध्य यहीं वह समय होता जब थोडी बहुत बात होती है। आज तो यह काफी समय बिता रहा था मेरे साथ ऐसा यह कर रहा है यह यही जाने।

'सुन सूर्यवंशी ! लेकिन ध्यान से सुनना। मै तुझे वह अपनी कहानी H बताने जा रहा हूँ जिसमें यह पता चल जायेगा की में किस तरह उस महान कृपालु की कृपा का पात्र बना, उसने आसमान की ओर अपनी आँखे स्थिर की जैसे वह कुछ सोचने की कोशिश कर रहा था। उसके खोपड़ी का वह खाली हिस्सा जहाँ पर सिर्फ दो छेद थे, वहां कोई आंख नही थी। बस आंख होने की वह कल्पना कर रहा था या यह भी हो सकता है की उसे दिखाई पड़ रहा हो। उसने कुछ यह आसन लगाया और फिर अपनी खडखडाती आवाज में वह बोला। वह मसीहा पता नही गलती से या फिर ईश्वर की मर्जी से उस बीहड मे निकल आया। उस वक्त मै अपने नर शरीर के पास बैठा गमजदा हो रहा था। उस मसीहा के आने से पहले कुछ हिंसक दरिन्दे उस मेरे शव के पास खड़े हो गये। शायद वह भूख से व्याकुल ये मेरे शव को देखकर वो सब उस पर टूट पड़े . मैने लाख प्रयास किया पर मे उनसे अपने शरीर को बचा नही पाया। वह मेरे शारीर को तब तक भभोड़ते रहे जब तक उस पर चिपका एक-2 गोश्त का रेशा नही नोंच लिया। वह दरिन्दे अपनी क्षुधा को शान्त करने के बाद चले गये। मेरे शरीर के स्थान पर कंकाल ही शेष बचा था। जानता है सूर्यवंशी, तेरे कारण मेरा वह खूबसूरत शरीर बदसूरत कंकाल में बदल गया पर मै अपने स्थान से हटा नही मेरा उस शरीर के प्रति प्रेम वैसा ही था जैसा हर व्यक्ति का होता है। मैने इस सब बात का दोष तुझे ही दिया। क्यों इस सबके पीछे तेरा ही हाथ था, यदि तू मुझे मारता नहीं तो मैं शायद आज भी जीवित होता। मेरी इस बात को सुनकर तू आश्चर्य मे आ गया होगा पर आश्चर्य की आवश्यकता नही है क्यों की मे उस वक्त इसी प्रकिया में लगा हुआ था जिससे मुझे अमरता मिलती । यह समझ ले की मै लगभग अमर हो चुका था बस कुछ प्रक्रिया ही शेष बची थी। यदि वह प्रकिया पूरी हो जाती तो मै तेरे मारे भी नहीं मरता, "यह कहकर उस नर कंकाल ने भयानक वितृष्णा के साथ मेरी ओर देखने लगा।

मैने भी विगत को खंगालना शुरू कर दिया. मै देखना चाहता था की वह कौन था जिसे मैने अमरता को हासिल करते हुए मारा था पर मुझे ऐसा कोई भी ऐसा व्यक्ति याद नही आया। एक आदमी मुझे जरूर याद आया था जिसका नाम मनूर था, वह भी खुद की अमर योध्दा मानता था । मनूर के बारे में जानने के लिए आप पडिये * नरसिंह नारायण मिश्र जी" की किताब " जल्लाद "। उस मंगूर के अतिरिक्त मुझे कोई और याद नही आया। मनूर को मैने उस वक्त नही मारा था, बस अपना कैदी बना लिया था।

इसके अतिरिक्त मुझे कुछ और याद नहीं जा रहा था।

"लगता है तू वापस अपनी स्मृति में जाकर तलाशने का प्रयास कर रहा है की मै कौन था ? उस नर कंकाल में फिर अजीब सी हंसी हंसते हुए मुझसे कहा, "इस वक्त एक बात और भी मुझे उस नरकंकाल की हैरत भरी लग रही थी वह थी उस व्यक्ति व्दार किसी काम पड़ लेना। उसने मेरे मन को पढ़ लिया था।

'सूर्यवंशी तुम खुद हैरतो के जन्मदाता हो, विगत का एक पल भी ऐसा नही हुआ जब तुमने कोई हैरत नहीं पैदा की हो । वह भी एक हैरत की जब तुमने मुझे सहने के लिए उस विद्यावान में छोड़ दिया था। जब मै अपने कंकाल से भी अपना मोह त्याग नही पाया था। सभी वह शैतान का नेक बंदा आ गया। वह कोई पहुची चीज थी। उसने तुरंत मुझे देख लिया और वह मेरे पास चला आया, पहले तो मैं यही सोचता रहा की वह कोई तात्रिक होगा जो मेरे बचे हुए शव से कुछ गोश्त खीचेगा और फिर अपनी साधना में लग जायेगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ वह बिल्कुल मेरे करीब बैठ कर मेरी और मुखातिब होकर बोला।

हे मेरे बच्चे तू, शरीर छूटने के बाद यहाँ क्या कर रहा है, जा अपनी मौजूदगी उस मौत के बादशाह के पास करवा दें। बगावत करना उचित नही है, मौत और जिन्दगी तो उस ख़ुदा की बनाई हुई खूबसूरती है। उसकी दी हुई मौत भी उतनी ही खूबसूरत होती है जितनी उसकी दी हुई जिन्दगी इन चीजों पर गुस्सा जायज नहीं है। उठ जा जाकर उसके कदमों में समा जा

'नही कर सकता ऐसा मैं मेरे अजीज पीर तू कोई पहुंचा हुआ ख़ुदा का बंदा है तभी तूने मुझे देख लिया। मेरी यह मौत उस ख़ुदा की दी हुई नहीं है यदि वह मुझे मौत बख्शता तो मैं जब तक यहाँ बैठ अश्क नही बहाता । मेरे पास और भी उम्र थी पर एक जल्लाद ने मुझे वक्त से पहले मार दिया। अब तू बता क्या यह जायज बात है, मैने उस खुदा के बंदे से कहा।

'ठीक है तो मुझे अपनी बात को तसल्ली से बता यदि तू सही M साबित हुआ तो फिर मे तुझे ऐसी ताकत बख्श दूंगा की तू अपने उस दुश्मन से जाकर अपना बदला ले लेगा," उस फकीर ने उस आत्मा से कही ।......