mahavir kavy kusum-mahavir chansoliya in Hindi Book Reviews by ramgopal bhavuk books and stories PDF | महावीर काव्य कुसुम-डा. महावीर प्रसाद चंसौलिया

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महावीर काव्य कुसुम-डा. महावीर प्रसाद चंसौलिया

परम्पराओं को खगालती महावीर काव्य कुसुम,

रामगोपाल भावुक


डा. महावीर प्रसाद चंसौलिया जी की कुछ क्ृतियां महावीर ज्योतिष दोहावली, और रामचरितमानस में नई दृष्टि पर मैंने अपनी बात रखी थी। महावीर ज्योतिष के दोहे तो महाकवि भड्डरी की याद दिला रहे थे और रामचरितमानस में नई दृष्टि मानस प्रसगों कों नई दृष्टि से देखने की दृष्टि दे रहे थे। महावीर काव्य कुसुम के प्रथम भाग में प्रदूषित नदियों की स्थिति का वर्णन नदियों के प्रति हमारे दायित्व की याद दिला रहा हैं
आपकी फेस बुक की रचनाओें तथा आपके काव्य संकलनों की रचनाओं पर जिस जिस रचना पर दृष्टि पड़ी है, मुझे हर रचना परम्पराओं को खगालते दिखी हैं। जल जग जीवन मे-
जल संरक्षण जिनने किया, कहे राक्षस जान।
जल पूजन के कार्य से, कहलावें वे यक्ष।।
पितृ तर्पण एवं श्राद्ध फल में-
तर्पण श्राद्ध महात्म को, गरुड. पुराण बताय।
‘महावीर’ संक्षेप में, कर सुखष्षान्ति बढ़याय।।
वर्तमान सामाजिक समस्याएं तो मानव को सचेत करतीं दिखीं-
ठेका लेकर धर्म का, जो करते व्यभचार।
उनकी दाड़ी नोंच के,खड़े करो बाजार।।
इस कृति में वे सौलह संस्कार गिनाते हुए गर्भाधन से लेकर अंत्येष्टि संस्कार तक प्रत्येक का सूक्ष्म विष्लेषण भी किया है।
उन्होंने नीति पी्रति कथनों का बखान तो किया ही है साथ ही दोहा विधा को भी परिभाषित किया है। वे मर्यादाओं के मरने से दुखी हैं-
मर्यादायें मर चुकी , देखों आंखें खोल।
वाणी बोलें काक, सुत वधू टिअहरी बोल।।
वे श्रृंगारिक दोंहे लिखते लिखते सौलह श्रंगार गिनाने लगते हैं। नदी की धार में स्ननान कैसे किया जाये लोगों को उचित मार्ग दर्षन करने में नहीं चूके हैं।-नदी धार की ओर मुख, या सूरज की ओर।
‘महावीर’ स्ननाकर श्रुति सिद्धान्त निचोर।।
दत्तात्रेय के चौवीस गुरु गिनाते हुए, चौदह विद्यायें, चौसठ कलायें गिनाते हुए सत्ताइस नक्षत्रों के अनुसार वृक्षारोपण जैसे सन्देष देने में नहीं चूके हैं।
इस तरह आपने एक ही नाम के अनेक नगर,छप्पन भोग सप्तक,छप्पन भोग संस्कृति पैसे श्रम साध्य कार्य गिनाने में नहीं चूके हैं।
सम्पूर्ण कृति में लोक संस्कृति की में हक का आनन्द लेते हुए पावन पर्व दषहरा और अब हम, होली और वसन्त के महत्व को भी प्रतिपादित किया है।
इसी कृति में तुलसीदास जी का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए श्री राम चरितमानस रचना पर भी प्रकाष डाला है। उनके जीवन की तिथि वार विषेष घटनायें भी दी हैं। ऐसे अनेक श्रम साध्य कार्य इस कृति में गिनाये जा सकते हैं।
आपने अनाजों की सभा का भी आयोजन किया है। पत्यक अनाज का अपना महत्व है। कभी वे कुऋतु फागुनी बहार के गीत गाने लगते हैं तो कभी रानी दुर्गावती की कुण्डली भीपाठकों के सामने रख देते हैं। रानी लक्ष्मीवाई चालीस के साथ उनके सम्पूण जीवन वृत पर प्रकाष डालनेका प्रयास किया है। वे हिन्दी के दुर्भाग्य से दुखी हैं-
भाषा और परिवेष में, इंगलिस रही समाय।
है वैचारिक हीनता, अब भी रही सताय।।
अब हम कृति के द्वितीय भाग पर दृष्टि डाले-इसमें दोहा मुक्तक, कवितायें और गीत दिए हैं। पहले दोहा मुक्तक पर दृष्टि डालें- दो दो दोहे एक ही भाव के षामयाना षीर्षक से हैं-
रावण कंष अनेक जग, षुम्भ निकुम्भ अपार।
खरदूषण सेना बनी पाकिस्तान मझाार।।
अस्थिरता है विष्व में, सबल अबल दिखलाएं।
कृपा ‘शामयाना’ प्रभो, तुम बिन कौन अधार।।
कोरोंना पर भी इसी तरह के मुक्तक पाठकों के सामने रखे हैं। इसके बाद कुछ कवितायं जन्मभूमि, ऋतुराज आगमन और कृषक विषय पर हैं।
पता नहींकब हुआ सबेरा, कब संध्या आती है।
रात- दिवस सप्ताह महीना, वर्ष निकल जाती हैं।
कविताओं में मनु स्वतंत्रता अवतारी कविता पठनीय है। उसके बाद कुछ गेय गीत दिए हैं। प्रिय संगष्षूल फूल लगते हैं। श्रृंगार विषय पर बारम्वार पठनीय गीत है।
इस कृति के अन्ति पाय दान पर कुछ बुन्देली रचनायें हैं। हिरा गये घर द्वार रचना में लोहापीटा जन जाति व्यथा का सटीक चित्रण किया है।
इस तरह इनमें बुन्दीली आन- वान के साथ कहन की रोचकता पठनीयता में बृ़िद्ध कर रही है-
घर जमींन जर बेंच कें,लरका दिओं पढ़ाय।
वे गुल्छरें मार रए, मांइ बाप भटकायं।
यदि इसमें प्रकृतिक प्रतीक और जुड़ जायें तो उसकी मिठास कई गुना बढ़ जाती हैं-पपिहा पिव प्यारी लगै, सांउंन झरत फुहार।
बागन कुहुकन मोर की, दादुर ध्वनित वयार।। में रचनाकार से प्रकृति से निकटता भाषित हो रही हैं।
देष की प्रत्येक प्रान्तीय भाषा में जो मिठास है उसकी आनन्द तो उनका उपयोग कर ही लिया जा सकता है।
इन दिनों मेरे लघु भ्राता जगदीष तिवारी जी से बैठना हो जाता है। उनसे नई पढ़़ी पुस्तकों पर चर्चा भी हो जाती है। उन्हें मेरी टेविल पर जैसे ही महावीर काव्य कुसुम दिखी, उन्होंने उसे उठाली और वड़ी देर तक इस कृति की रचनायें गा-गाकर पढ़ते रहें और बुन्दीली भाषा का आनन्द लेते रहे। पुस्पक मुझे देते हुए बोले-इसमें भारतीय जीवन षैली की परम्पराओं की गहरी तहों को समझकर पाठकों को समझााने का प्रयास किया है। रचनाकार को मेरी ओर से बधाई दें।


इस तरह महावीर काव्य कुसुम की रचनायें परम्पराओं को खगालती दिखी हैं। आपकी भाषा पर पकड़ गहरी हैं। आपकी रचनाओं की लय और बोली-वाणी, जन जीवन को उदात्त करने में लगीं हैं। इसके लिये रचनाकार बधाई। प्रभू उन्हें लम्बी आयु दें जिससे वे परम्पराओं को खगालते रहें और उनके गहरी तहों को पाठकों के समक्ष काव्य में संजोकर रखते रहें इसी कामना के साथ राम गोपाल भावुक।
कृति का नाम- महावीर काव्य कुसुम,
कृतिकार का नाम-डॉ.महावीर प्रसाद चंसौलिया
प्रकाशन वर्ष-2022
प्रकाशक -बुन्देली साहित्य एवं सेवा संस्थान उरई , जालौन उ. प्र.
मुल्य-320 रु.
समीक्षक- राम गोपाल भावुक। मो0 9425715707