satyvati krut shrinagarf manjri in Hindi Book Reviews by ramgopal bhavuk books and stories PDF | रानी सत्यवती कृत श्रृंगार- मंजरी

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रानी सत्यवती कृत श्रृंगार- मंजरी

भक्ति भावना से ओत प्रोत रानी सत्यवती कृत श्रृंगार- मंजरी

रामगोपाल भावुक
रानी सत्यवती द्वारा विरचित श्रृंगार मंजरी वि. सं. 2001 में लिखी गई और वि. सं. 2033 में प्रकाशित की गई थी। संयोग से यह कृति मुझे उनके पति मीरेन्द्रसिंह जू देव ने भेंट में दी थी। दीपावली के अवसर पर अपने बाचनालय की पुस्तकें पलटने में यह कृति सामने आ गई। जिसकी अनेक मुर्धन्य विद्धानों ने अनुसंशा की है। महारानी जी ने भी उद्घोषणा के अतिरिक्त परिक्रमा में अपने राजवंश की परम्पराओं का इतिहास दिया है। आपने अपने पति के साथ ब्रज चौरासी कोस की पैदल परिक्रमा की है। उसी समय से आपके मन में कृष्ण भक्ति के भावों का संचार हो गया। मगरौरा राज्य के महाराजा मीरेन्द्रसिंह जू देव ‘विरहणी राधा’ जैसी कृति का सृजन कर चुके थे । उसका प्रकाशन भी हो गया था। जिस का प्रभाव यह पड़ कि आपकी कलम चल पड़ी और आपने श्रृंगार मंजरी के भक्ति भाव से परिपूर्ण 103 छन्दों की रचना कर डाली।
जिसमें नगर के प्रसिद्ध समालोचक रमाशंकर राय] वृन्दावन के अतुल कृष्ण गोस्वामी ने श्रृंगार मंजरी पर अपने विचार व्यक्त किये हैं तथा मेरे साहित्यिक गुरुवर डॉ. गंगा सहाय प्रेमी ने इसका प्राक्कथन लिखा है। उसमें कृति की समीक्षा भी की गई हैं। मैंने भी इस कृति को ध्यान से पढ़ा है मैं भी डॉ. गंगा सहाय प्रेमी के प्राक्कथन से अपनी सहमति व्यक्त करते हुए उसे ही जस की तस आपके समक्ष रख रहा हूं।
डॉ. गंगा सहाय प्रेमी लिखते है कि मेंने श्रृंगार के सभी पदों को ध्यान पूर्वक पढ़ा हैं। पुस्तक का नाम कवियित्री ने अपनी माता स्वर्गीय श्रृंगार कुंअर के नाम पर रखा हैं।वैसे भी यह नाम उपयुक्त है क्योंकि इसमें संग्रहीत रचनायें भक्तिभाव से ओत प्रोत हैं।प्राचीन साहित्याचार्यें ने श्र्ंगार रस के स्थाई भाव रत के तीन भेद किये हैं। 1-बनिता विषयक रति 2- संसति विषयक रति 3- देवता विषयक रति। तीसरा रूप् ही विकसित होकर भक्ति भाव बनता हैं। इस प्रकार यह श्रृंगार रस की रचना कही भी जा सकती है।
श्रृंगार- मंजरी में संग्रहीत पद फुटकर हैं। इन्हें लम्बी जीवन यात्रा में समय समय पर लिखा गया हैं। इन पदों की रचना करने वालीं रानी सत्यवती जी को अपने पितृ ग्रह एवं ससुर ग्रह दोनों ही स्थानों भक्तिभाव से परिपूर्ण वातावरण मिलाहै। इसके साथ ही उनके ससुर, पिता और पति अच्छे कवि रहे हैं। इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। इसी कारण श्रृंगार- मंजरी में भक्ति एवं सह्रदयता का मनोरम एवं विचित्र संगम हैं।
अधिकांश पद कृष्ण लीला से सम्बन्धित हैं। कुछ पदों में अन्य देवों की भक्ति की छटा बिखरी हुई है। ऐसे पदों की कमी नहीं हैं जो सिनेमा के गीतों को लय पर गाने गाने केलिये साधारण पढ़े लिखे लोगों तक के लिये बहुत आकर्षक हो सकते हैं। कुछ पद कीर्तनल मण्डलियों तथा रासधारियों के काम आ सकते हैं।
इस रचना में महत्वपूर्ण पद भगवान श्रीकृष्ण की बाल एवं माधुर्य लीलाओं से सम्बन्धित हैं। बहुत से भक्त कवियों ने बाल लीला के भक्तिभाव पूर्ण पद लिखे हैं पर इस रचनाके पदों की बात कुछ औरा ही है। इन्हें पढ़ते समय कभी कभी महाकवि सूर का स्मरण हो आता है। सूर ने श्रीकृष्ण की बाल एवं यौवन लीलाओं का बहुत सूक्ष्म एवं विस्तृत वर्णन किया है।किशोर बालक किस तरह की शैतानियां करते हैं। इस तथ्य पर भी सूर ने पूर्णतः प्रकाष डाला है।जिन घरों में शिशु पाले जाते हैं उनके समर्थ बालक बछडों को लेकर एक विचित्र मनोरंजन करते हैं। रानी सत्यवती ने राज परिवार में समय बिताकर भी जाने कैसे इस विचित्र बाल लीला को देखा एवं स्मरण में रखा है। यदि अतिश्योक्ति न मानी जावे तो मैं कहने का साहस करूंगा कि यह बात महाकवि सूर से छूट गई हैं। निम्नलिखित पक्तियां प्रस्तुत हैं-
श्याम की लीला अति मन भावे।
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धौरी धूमरि पीली गैया ले ले नाम बुलाबे।
नवल सुघर बछरन को छेड़त गहि गहि पूंछ नचावे।।

ठसी प्रकार रानी सत्यवती जी ने एक अन्य अछूताभाव प्रकट किया हैं। चोर यदि पकड़ा जाता है और किसी प्रकार भागनेका अवसर पा जाता है तो उसके पीछे घूम कर देखने का न समय होता है न और न साहस। बारकृष्ण माखन की चोरी कीरते हुए पकड़े गये ।ग्वालिनी ने उनके रोने से द्रवित होकर जब छोड़ा तब वे ऐसे भागे कि पलटकर पीछे नहीं देखा। यह स्वाभावोक्ति निम्न पक्तियों में साकार हो उठी है-
मन्दिरवां आये माखन चोर।
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लट पट चाल नयन में अँसुआ कियो द्वन्द बहुशोर ।
नंद को छौना सुधर सलोना,दियो हाथ को छोर।
भागो पुनि पाछे नहिं चितये नलटवर नन्द किशोर ।।
इस प्रकार की एक अन्य अछूती भावनाकी ओर संकेत करना मैं आवश्यक समझता हूं। कोई व्यक्ति अपराधी बालक से कुपित एवं दुःखी होकर उसे दण्ड देने का निश्चय कर चुका हो किन्तु यदि वह अपराधी बालक भोला-भाला आंखों में आंसू भरे हुए अपराध को स्वीकार करने का वायदा करे तो कठोर तम ह्रदय वाला व्यक्ति भी उसे छमा करने को विवश हो उठेगा। रानी सत्यवती के शब्दों में ग्वालिनी को भी बालकृष्ण के साथ ऐसा ही करना पड़ा-
आज हरि चोरी करत हौं पाये।
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चोरी करत झूठ हू बोलत पेटहु लखत अधाये।
अब चोरी कबहू नहिं करिहौं अखियन जल ढरकाये।
सत्यवती मन मुदित ग्वालिनी लैउर कण्ठ लगाये।।
रानी सत्यवती कवियित्री के अपेक्षा भक्त अधिक हैं। उन्होंने स्वयं को मिडिलतक पढ़ा लिखा स्वीकार किया है किन्तु भाषा पर उनका असाधारण अधिकार बताता है कि वे जीवनभर अध्ययन करती रहीं हैं। आपके पद सरल,सरस एवं ह्रदय पर प्रभाव डालने वाले हैं। उसका एक कारण यह भी है कि पद बुद्धि को खुरच खुरच कर नहीं लिखे हैं अपितु भक्ति भावना से ओत प्रोत एक निष्कपट एवं उदार ह्रदय की स्वाभाविक भावनाओं का रूपान्तर हैं।
रानी सत्यवती जी के पति राजा मीरेन्द्र सिंह जी राधा कृष्ण के अनन्य भक्त हैं। कविता एवं शास्त्रीय अध्ययन उन्हें वंश परम्परा में मिला है। उनके कारण घर का वातावरण बना उसका पूरा पूरा लाभ कवियित्री ने उठाया है। राजा साहब के अतिरिक्त ऐसी सरल भाव पूर्ण सरस रचना को प्रकाश में लाने के लिये कुं0 कृष्ण सिंह एवं उनके अनुज तुल्य राजा पदम सिंह भी धन्यवाद के पात्र है। मैं प्रशंसा पूर्वक इस ग्रंथ के सृजन के लिये कवियित्री जी को बधाई देता हूं। यह रसिक भक्त तथा कविता प्रेमियों का समान रीति से आनन्द वर्द्धन करेगी।
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