Nafrat ka chabuk prem ki poshak - 6 in Hindi Love Stories by Sunita Bishnolia books and stories PDF | नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 6

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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 6

काका के बारे में बताते हुए काकी गर्व से कहती - "बड़े लोगों में उठना - बैठना था तुम्हारे काका का। अच्छी नौकरी करते थे और इतने खूबसूरत थे कि जोधपुर में हर कोई उनसे अपनी बेटी का निकाह करवाना चाहता। मेरी जेठानी का तो लाडला देवर था तुम्हारा काका। अपनी भाभी की कोई बात नहीं टालते थे ये और भाभी भी इन पर जान हाजिर कर देती। इसीलिए वो हर हाल में अपनी बहन से तुम्हारे काका का निकाह करवाना चाहती थी.... ।’’
कहते-कहते काकी वहीं अटक जाती इस पर हम लड़कियां बोल पडती... ‘‘पर हमारे काका का दिल तो हमारी काकी पर आ गया था। कैसे वो किसी और से शादी करते।’’
‘‘चलो हटो छोरियो जाओ अपणे-अपणे घर। ’’
कहती हुई काकी का चेहरा गालों की लालिमा और आँखों की शर्म से एक गजब के नूर से निखर उठता था।
हम लोग इतने ध्यान से काकी की कहानी सुनते कि घर से किसी के बुलाने आने पर ध्यान ही नहीं देते। हम रोज उनसे उनकी कहानी सुनते और रोज काकी अपनी कहानी में अपने संस्मरण का एक अध्याय और जोड़ देती।
माली काकी बताती है कि ‘‘मुझे गाने का बहुत शौक था और अल्लाह के फजल से मेरी आवाज भी ठीक-ठाक थी। बाबा के सब जानने वाले मेरी आवाज़ की तारीफ़ करते खासकर पड़ोस में रहने वाले भंवर काको सा। जोधपुर का ऐसा कोई घर न था जहाँ मेरे अब्बा को न जानते हो। गढ़ चौक से पहले हमारा घर था और घर के बाहर ही मेरे अब्बा की फूलों की दुकान थी।
उस दुकान पर अब्बा इतना तो कमा लेते थे कि हम पाँचों बहनों की अच्छी परवरिश हो सकें। अब्बा ने हम बहनों को अच्छी तालीम दिलाने की भी पूरी कोशिश की। मैं छह साल की ही थी जब लम्बी बीमारी के कारण अम्मी का इंतकाल हो गया। इसकारण दोनों बड़ी बहनों की पढ़ाई छूट गई क्योंकि घर और छोटी बहनों की जिम्मेदारी उन पर आ गई।
सच कहूँ तो अब्बू को अकेले काम करते देख मेरा कभी पढ़ने में मन लगा ही नहीं। मैं तो मौका देखते ही उनके पास दुकान पर जाकर बैठ जाती। धीर-धीरे अब्बू मेरे भरोसे दुकान छोड़कर घर का जरूरी सामान लेने चले जाते। इस तरह मैं और अब्बू दोनों मिलकर दुकान संभालते और मेरी पढ़ाई भी छूट गई इसलिए मैं भी बस उतना ही पढ़ सकी जितनी चिट्टी-पत्री लिख-पढ़ सकूँ या दुकान का हिसाब किताब कर सकूँ।
दोनों बडी आपा घर संभालती और हम सबका बहुत ख्याल रखती। दोनों छोटी बहने मन लगाकर पढती थी। बहनों का जिक्र आने पर हमें उनके बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ जाती और हम उनके बारे में भी पूछा करते।
काकी बताया करती कि - ‘‘बहुत रिश्ते आते थे बहनों के लिए पर अब्बा के लाख समझाने पर भी मेरी दोनों बडी आपाओं ने शादी नहीं की क्योंकि अब्बू की तबियत ठीक नहीं रहती थी वो खुद अपना ख्याल ही नहीं रख पाते थे तो बच्चों का ख्याल कैसे रख पाते। इसलिए अब्बू और हम छोटी बहनों का ख्याल रखने के लिए दोनों आपा ने अपना घर नहीं बसाया।
क्रमशः
सुनीता बिश्नोलिया