"माँ मुझे आज एक अंकल ने रास्ते में बहुत डांटा," रोते-रोते राहुल ने अपनी माँ को बताया।
माँ ने हैरान होकर पूछा, "क्यों बेटा तुमने क्या किया था?"
"माँ मैंने तो सिर्फ़ वेफ़र की खाली थैली ज़मीन पर फेंकी थी।"
तब उन्होंने मुझे बुलाया और कहा, "उठाओ यह थैली और इसे कचरे के डब्बे में डाल कर आओ तुम जैसे लोग ही पर्यावरण को ख़राब कर रहे हैं।"
"माँ यह पर्यावरण क्या होता है ?” राहुल ने पूछा।
"बेटा सबसे पहले यह बताओ तुमने अंकल से माफ़ी माँगी या नहीं?"
"हाँ माँ मैंने अंकल को सॉरी बोला और वह थैली कचरे के डब्बे में नहीं फेंकी बल्कि अपने साथ घर ले आया।"
राहुल ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, " माँ मेरी कक्षा में एक लड़का है धवल, वह हमेशा पूरी कक्षा के बच्चों से कहता है कि कोई-सी भी प्लास्टिक की थैली मत फेंकना सब उसे दे देना। वह उसको अपने घर लेकर जायेगा। वह कहता है उसकी माँ कचरे में से भी प्लास्टिक की थैलियाँ उठाती है और बहुत काम करती है, तभी तो वह स्कूल आ पाता है।
"माँ मैं भी कल उसे यह थैली दे दूंगा।"
"माँ बताओ ना उसकी माँ यह थैलियाँ क्यों लेती है और माँ बताओ ना यह पर्यावरण क्या होता है?"
"बेटा राहुल, धवल की माँ थैलियों को बेच देती है, जिससे उन्हें पैसे मिलते हैं और गंदगी भी प्लास्टिक की कम होती है। बेटा पर्यावरण का मतलब होता है, हमारे आसपास की हवा, यह प्रकृति जो भगवान ने हमें दी है, ऊपर आकाश, बादल, नदी, तालाब, पेड़-पौधे, जंगल, पहाड़, पशु पक्षी, यह सब हमारे पर्यावरण का हिस्सा ही तो है। बादल से जब बारिश होती है, तभी नदियों में पानी आता है, एकदम साफ़ पानी, किंतु हम इंसान ही उस पानी को गंदा कर देते हैं और पानी अशुद्ध हो जाता है। पेड़ पौधे हमें शुद्ध हवा देते हैं लेकिन हम उन्हें काट-काट कर इमारतें बना रहे हैं। गाँव के तालाब भी तो अब ख़त्म हो रहे हैं। हम इंसान पहाड़ों को काट रहे हैं, जंगलों को बर्बाद कर रहे हैं, जंगली जानवरों को शिकार कर मार रहे हैं।"
"बेटा यह सब हमारी ऐसी धरोहर है, जिनके बिना हमारी ज़िंदगी भी छोटी होती जा रही है और पूरी दुनिया इन सब का दुष्परिणाम भुगत रही है। बेटा तुम्हें पता है, भगवान ने हर चीज बहुत ही सोच समझकर बनाई है। प्रकृति की हर चीज अपना-अपना काम करती है, किंतु जब हम उन्हें छेड़ते हैं, नष्ट करते हैं या उनका दुरुपयोग करते हैं तब नाराज़ होकर प्रकृति भी हमें सजा देती है। आज पूरी दुनिया इस सज़ा को भोग रही है। मौसम बदल रहे हैं, सूर्य अपना तापमान बढ़ाकर अपनी नाराजगी बता रहा है।"
राहुल की माँ ने आगे कहा, "बेटा देखो तुम ए-सी के बिना रह पाते हो ? नहीं ना, पहले हमें ए-सी की ज़रूरत ही नहीं होती थी। पेड़ों की ठंडी हवा ही काफ़ी होती थी लेकिन आज हर घर में ए-सी लगे हैं। इंसान का दिमाग़ बहुत तेज़ है, वह हर चीज से बचने और हर चीज को अपने फायदे के अनुरूप ढालने में सक्षम है किंतु प्रकृति का जो विनाश हम कर रहे हैं, उससे लंबे समय तक बचना असंभव होगा। ग्लोबल वार्मिंग मतलब पूरी दुनिया में आज मौसम पहले की तरह नहीं रहा है यह हमें विनाश की ओर ले जा रहा है क्योंकि हम भगवान की दी हुई वस्तुओं का दुरुपयोग कर रहे हैं।"
राहुल ने अपनी माँ की सारी बात सुनी और इसका उसके दिमाग़ पर गहरा असर हुआ। दूसरे दिन राहुल ने स्कूल जाकर कक्षा के सभी बच्चों को अपनी माँ की पूरी बात बताई। सभी बच्चों ने यह निश्चय किया कि वह छोटे हैं तो क्या हुआ, वह पर्यावरण के लिए अवश्य काम करेंगे। उन बच्चों ने हर रविवार अपने घरों के आसपास पौधे लगाना शुरू किया। सबने मिलकर स्कूल में भी पौधे लगाए।
यह देखकर उनके स्कूल की प्रिंसिपल बेहद ख़ुश हुईं और उन्होंने बच्चों के इस काम में मदद करने का मन बना लिया। प्रिंसिपल ने स्कूल के सारे टीचर्स को बुला कर इन बच्चों की मदद करने को कहा। वह स्वयं भी इस कार्य में शामिल हुईं उन्होंने जगह-जगह छोटी गरीब बस्तियों में, बड़े बंगलों के सामने, सब जगह कैंप लगाना शुरु किया। लोगों को पर्यावरण के लिए जागरुक करने का हर संभव प्रयत्न किया।
धीरे-धीरे उनके साथ लोग बढ़ने लगे, विशेष तौर पर छोटे बच्चों ने जोर-शोर से अपना सहयोग दिया। बच्चों को जब भी रास्ते में पड़ा प्लास्टिक दिखता, उठा लेते और उसे कचरा पेटी में डालने लगे। धवल की माँ ने भी बच्चों के कैंप में आना शुरू कर दिया और अपने जैसी कई महिलाओं को भी वह लेकर आई। देखते ही देखते एक बच्चे के द्वारा शुरू की गई छोटी-सी कोशिश ने बड़ा रूप ले लिया।
अब प्रकृति को प्यार करने वाले कई लोगों ने भी इस कार्य में तन मन और धन से अपनी मदद देनी शुरू कर दी। लेकिन जहाँ यह लोग सफ़ाई करते थे, पौधे लगाते थे, वहीं कुछ दिनों बाद उतना ही कचरा और टूटे हुए पौधे पड़े हुए मिलते थे। कभी कोई झाड़ कटा हुआ दिखता था। यह सब देखकर बच्चे दुःखी हो जाते थे। वह अपना और प्रकृति का भविष्य बचाना चाहते थे, इसलिए अपनी तरफ़ से कोशिश करते ही रहते थे।
राहुल ने अपने घर के आस-पास भी तीन पौधे लगाए थे, जो धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे। राहुल भी बड़ा हो रहा था, छोटे-छोटे पौधे वृक्ष में बदल गए, उन्हें देखकर राहुल बहुत ख़ुश होता था। राहुल किसी काम से दो दिन के लिए बाहर गया और वह जब वापस आया तो तीनों वृक्ष कट चुके थे।
राहुल ने अपने पड़ोसी से वृक्ष काटने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा, "हमारे आंगन में पत्ते गिरते हैं, सफाई करनी पड़ती है।"
राहुल विस्मित-सा उन्हें देखता रह गया। दुःखी होकर राहुल ने अपनी माँ से कहा, "यदि पत्ते गिरने से इंसान अपने जीवन दाता वृक्ष को काट सकता है तो ऐसे लोग कभी नहीं सुधरेंगे। हर रोज़ पर्वत कटते रहेंगे, नदियाँ अस्वच्छ होती रहेंगी, वृक्ष भी नष्ट होते रहेंगे। सुख-सुविधा के साधन कार, मोटर, ए सी, यह सब बढ़ते रहेंगे और प्रदूषण होता रहेगा। इंसान पैसा कमाने के लिए प्रकृति को उजाड़ता रहेगा। अपना स्वार्थ साधता रहेगा और दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग होती रहेगी।"
"हाँ बेटा यही कटु सत्य है इंसान अपने स्वार्थ में अंधा हो चुका है सब समझते हुए भी अनजान बना हुआ है। हमें इसे रोकना होगा, हमारे लिए, सबके लिए आने वाली पीढ़ियों के लिए"
राहुल की माँ सोच रही थी, काश हर इंसान में राहुल का कुछ प्रतिशत भी आ जाए तो हम इस संकट से बच सकते हैं। कितने ही लोग अज्ञानता वश, कितने लापरवाही में और कुछ जानबूझकर, ऐसे काम करते हैं जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। अपनी ज़रूरतों के मुताबिक इंसान काम करता है। पत्थरों की ज़रूरत होती है तो पहाड़ों को काटता है, नदी से रेत निकालता है, लकड़ी की ज़रूरत होती है तो वृक्षों को काट लेता है और मांसाहारी व्यक्ति जंगली जानवरों का शिकार करता है। कई बार लोग अपने शौक के लिए भी जानवरों को बंदूक का निशाना बनाते हैं।
ऐसी विषम परिस्थितियों में पर्यावरण को बचाना बहुत मुश्किल काम है, एक चुनौती है।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक