सी बी आई भी परेशान थी।हत्यारे ने हत्या से सम्बंधित कोई सबूत नहीं छोड़ा था।कमरे की हर चीज पर या तो कामिनी की अंगुलियों के निशान थे या फिर समर के।किसी तीसरे की मौजूदगी के कोई निशान नहीं थे।अगर समर हत्यारा नहीं था तो जो भी कामिनी का हत्यारा था।वह बहुत शातिर था।उसने बहुत सावधानी और चालाकी से हत्या के सारे सबूत मिटा दिए थे।
मेडिकल जांच में कामिनी के शरीर में अल्कोहल के साथ ड्रग्स की मात्रा भी मिली थी।उसके साथ दुराचार भी किया गया था।चूंकि वह समर के साथ रह रही थी और यौन क्रियाओं की आदी थी,इसलिए पुलिस ने प्रथम दृष्टया इस बात को स्वाभाविक मान लिया था। सीबीआई के तेज तर्रार ऑफिसर दिलावर सिंह को कामिनी की बॉडी की जांच अधूरी लगी।उन्होंने उसकी योनि में पाए गए सीमेन की जांच का आदेश दिया साथ ही समर के सिमन की जांच भी हुई।दिलावर सिंह का संदेह सच साबित हुआ।दोनों सीमेन दो भिन्न व्यक्तियों के थे।
तो फिर वह कौन था,जो नशे में बेसुध कामिनी के साथ बलात्कार किया था?
जरूर उसी ने कामिनी की हत्या की होगी।शायद कामिनी को इस दौरान होश आया गया हो और उसने हत्यारे को पहचान लिया हो।इसी कारण हत्यारे ने कामिनी को मार डाला हो।
हत्या का एक और कारण भी दिलावर सिंह को नजर आया।कामिनी के दाहिने अंगूठे पर काली स्याही लगी हुई थी।लगता है किसी ने उससे जबरन किसी कागज़ पर अंगूठा लगवाया था।
दिलावर सिंह ने अब समर और कामिनी के नजदीकी रिश्तेदारों से बातचीत करने का निश्चय किया।
कामिनी के देवर उसकी सम्पत्ति जरूर चाहते थे,पर वे उसका बलात्कार नहीं कर सकते थे।कामिनी का भाई स्वतंत्र भी सम्पत्ति के लिए उसकी हत्या कर सकता था,पर बलात्कार नहीं ।समर का बेटा अमन अभी इतना बड़ा नहीं हुआ था कि अपनी माँ का बदला लेने के लिए भी इतनी घिनौनी हरकत को अंजाम दे सके,तो फिर वह कौन था?जिसने कामिनी का बलात्कार किया ।बलात्कार के बाद उसके अंगूठे का निशान लिया फिर उसका गला रेत दिया।
कहीं इस गर्हित कर्म में दो लोगों का हाथ तो नहीं।कामिनी के नशे में होने का लाभ लेकर कोई व्यक्ति उसका बलात्कार करके भाग गया।उसके जाने के बाद दूसरा व्यक्ति आया।उसने कामिनी के अंगूठे का निशान लिया और फिर उसकी हत्या कर दी।
दिलावर सिंह ने अब दूसरे ढंग से जांच का सिलसिला शुरू कर दिया।कामिनी और समर के सभी रिश्तेदार एक बार फिर उसके शक के दायरे में थे।
सबसे पहले उसने कामिनी के भाई स्वतंत्र को बुलाया।नंदा देवी मारे डर के कांप उठीं।एक बार उन्हें भी सन्देह हुआ कि कहीं क्रोध में आकर स्वतंत्र ने ही तो यह काम नहीं किया।
दिलावर सिंह ने जांच- रूम में स्वतंत्र पर प्रश्नों की बौछार कर दी।
"तो तुमने अपनी ही बहन को मार दिया!"
दिलावर सिंह ने अपनी बड़ी बड़ी आँखें स्वतंत्र की आंखों में डाल दीं।
"नहीं सर,मैं ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकता।दीदी से मेरा लाख मनमुटाव था,पर मैं उसका बुरा नहीं चाह सकता था।"
"पर उसकी दौलत पर तो तुम्हारी नज़र थी।"
दिलावर सिंह ने अपनी आदत के अनुसार अपनी अंगुलियाँ चटकाई।
"मैं इससे इनकार नहीं करता,पर मैं चाहता था कि दीदी स्वेच्छा से मेरी मदद करें।"
स्वतंत्र ने रुआंसे स्वर में कहा।
"हूँ....! तुम उस रात कहाँ थे,जिस रात हत्या हुई थी।"
"मैं अपने ही शहर में था सर।मैं उस रात तो छोड़िए गोवा कभी गया ही नहीं हूँ।"
"कहीं किसी और को सुपाड़ी तो नहीं दी?"
"मेरी इतनी हैसियत नहीं है सर कि किसी हत्यारे को सुपाड़ी दूँ।"
"पर ये तो गलत बात है न कि बहन के धन पर नज़र रखो।"
"जी,पर बदहाली सब करा देती है।"
"हत्या भी!"
"अरे ,नहीं सर,इतना भी नहीं ।"
स्वतंत्र ने अपने हाथ जोड़ लिए।
"ठीक है।अभी के लिए इतना ही।फिर बुला सकता हूँ तुम्हें,इसलिए शहर छोड़कर नहीं जाना है।"
"जी सर,आप जब भी बुलाएंगे,हाज़िर हो जाऊँगा।सर एक रिक्वेस्ट है मेरी बहन के हत्यारे को फांसी जरूर दिलवाइएगा।"
"हूँ''
दिलावर सिंह ने लंबी हूंकार भरी।स्वतंत्र के जाने के बाद दिलावर सिंह ने अपने विश्वस्त ऑफिसर मांधाता सिंह से कहा-"स्वतंत्र कामिनी का हत्यारा नहीं हो सकता।अब कामिनी के देवर को बुलाना होगा।उसकी नज़र भी कामिनी की दौलत पर रही होगी।"
"हाँ,और वह रेप भी कर सकता है।हो सकता है बलात्कार और हत्या दोनों उसी का काम हो।सुना है वह भी कोई काम -धाम नहीं करता। बस अपने किसी अज़ीज दोस्त के साथ घूमता रहता है।" मान्धाता सिंह ने अपनी बात रखी।
दिलावर सिंह ने टेबल पर रखी घण्टी बजाई ।एक आदमी दौड़ा हुआ आया।
"मनोज,दो आदमियों के साथ राजेश्वरी सदन जाओ और उनके छोटे बेटे प्रथम को यहां हाज़िर करो।''
"जी सर,अभी जाता हूँ।"
मनोज तेजी से उस कमरे से बाहर चला गया।
कुछ देर में मनोज दूसरे आदमियों के साथ लौट आया।प्रथम घर क्या, शहर में कही नहीं था।राजेश्वरी देवी भी नहीं जानती थीं कि वह इस वक्त कहाँ है!किसके साथ है और क्या कर रहा है?
"हूँ,तो पहले इस प्रथम को ही पकड़ना होगा।शक के बड़े दायरे में इसी का नाम है।"
कहते हुए दिलावर सिंह उठ खड़े हुए ।
बड़ी मुश्किलों के बाद प्रथम के बारे में पता चला।वह शहर के एक होटल में अपने दोस्त के साथ ठहरा है-इस बात का पता चलते ही रात के बारह बजे ही दिलावर सिंह अपने साथियों के साथ उस होटल तक पहुंच गए।जब उन्होंने अपना परिचय दिया तब होटल के मैनेजर ने उन्हें प्रथम का रूम नम्बर बताया।
प्रथम अपने मित्र के साथ यौन -क्रिया में लीन था।अचानक लगातार दरवाजा खटखटाए जाने से वह चौंक गया।जल्दबाज़ी में उसने मित्र को बाशरूम में छिपा दिया और खुद तौलिया लपेटकर ही दरवाजा खोल दिया।
दिलावर सिंह उसे ढकेलते हुए कमरे में घुस आए।उन्हें लगा कि किसी लड़की का मामला होगा।पर कमरे में कोई लड़की नहीं थी पर बिस्तर की हालत कुछ और ही कहानी कह रही थी।उन्होंने चारों तरफ नजरें दौड़ाई फिर उन्होंने बाशरूम की तरफ देखा।प्रथम की तो जैसे जान ही सूख गई।वह बाशरूम के दरवाजे पर खड़ा हो गया।
-"आप बाशरूम में नहीं जा सकते।यह किसी की प्राइवेसी में दखलंदाजी है।वैसे आप लोग हैं कौन?इस तरह मेरे रूम में आने का मतलब?होटल मैनेजर ने आपलोगों को आने कैसे दिया?"
"हम क्राइम ब्रांच से हैं।तुम्हारी भाभी की हत्या के सिलसिले में छानबीन के लिए आए हैं।उधर तुम्हारी भाभी की हत्या हो गई है और यहां तुम यहाँ अय्याशी कर रहे हो?"
दिलावर सिंह ने गुस्से में अपनी अंगुलियाँ चटकाई।