लेखक: प्रफुल शाह
प्रकरण-93
वजन तो कम हो ही रहा था, परंतु उससे दुगुनी गति से बाल भी कम हो रहे थे। मानो उन्हें चरबी का विरह सहन नहीं हो रहा था और वे भी चरबी के साथ निकलते जा रहे थे। डायटिंग और वजन कम करने के लिए केतकी का अभिनंदन करने वाले तो कम ही थी, उससे दूरी बढ़ाने वाले लोग अधिक होते जा रहे थे। उससे नजरें चुराने लगे थे। मन ही मन वह कुढ़ रही थी। बालों का झड़ना क्या उसका गुनाह था? क्या बाल ही किसी व्यक्ति की पहचान होते हैं? बालों के लिए आदमी है या आदमी के लिए बाल? कोई हाथ, पैर या अंग न रहे तो लोगों की सहानुभूति मिल जाती है, प्रेम मिल जाता है, साथ मिल जाता है। तो बाल जाने पर इतना तिरस्कार कयों करते हैं लोग? इतनी बड़ी सजा क्यों देते होंगे? न जाने क्यों, केतकी को लोगों से डर लगने लगा था। वह किसी से मिलना नहीं चाहती थी। उसको लगता कि कोई भी उसे न देखे। अब वह शाला में हमेशा से जल्दी पहुंचने लगी थी। शाम को छुट्टी होने के बाद देर तक काम करते बैठी रहती थी। अंधेरा होने पर निकलती थी। काम न हो तो भी अंधेरा होने की प्रतीक्षा करते हुए शाला में ही बैठी रहती थी। अंधेरा ओढ़ कर घर पहुंचती। घर में भी खाना होते साथ अपने कमरे में चली जाती थी। घंटों एकांत में बैठी रहती थी। अचानक आंखों से अश्रुधारा बहने लगती थी। उसको लगता था कि कभी सुबह होनी ही नहीं चाहिये, दूसरा दिन आना ही नहीं चाहिये।
इस मानसिक कष्ट के दौरान उसे सभी तरफ से बुरे अनुभव ही मिले हों, ऐसा भी नहीं था। शाला के छोटे-छोटे मासूम बच्चों के लिए अभी भी वह वैसी ही थी। वे बच्चे अभी भी केतकी को वैसा ही आदर, वैसा ही प्रेम देते थे, उसके साथ खेलते थे, मस्ती करते थे। केतकी को लगता था कि वह दिन भर इन्हीं निष्पाप मासूम बच्चों के साथ ही रहे। इसी तरह उस पर निःस्वार्थ प्रेम करते थे कुत्ते के पिल्ले। केतकी अब अपनी पर्स में बिस्कुट के पैकेट रखने लगी थी। कुत्ते के पिल्ले दिखते साथ वह अपनी स्कूटी खड़ी करके उन्हें बिस्कुट खिलाती थी। उनके शरीर पर से हाथ फेरती थी। एक कुतिया के पैरों में चोट लग गयी थी। केतकी उसे उठा कर जानवरों के डॉक्टर के पास ले गयी। उसे इंजेक्शन दिलवाये। डॉक्टर ने सुबह-शाम के लिए गोलियां दी थीं। केतकी शाला जाते समय रोटी में लपेट कर उसे गोली खिलाती थी। शाम को दूध के पैकेट में गोली डाल कर देती थी। एक दिन वह कुतिया कहीं दिखाई नहीं दी। उसने आसपास पूछा। स्कूटी पर इधर-उधर घूम कर देखा, खूब खोजा पर वह कहीं दिखाई ही नहीं दी। आखिर में वह आंखें बंद करके सिर पर हाथ रख कर एक जगह पर बैठ गयी। तभी उसे अपने पैरों के पास हलचल महसूस हुई। उसने आंखें खोल कर देखा तो वही कुतिया उसे पैरों को चाट रही थी। केतकी की आंखों में पानी आ गया, “ बेटा कहां चली गयी थी तू?चल पहले कुछ खा ले...दवाई लेना है कि नहीं?” कुतिया ने फटाफट दूध पी लिया।
केतकी को अच्छा लगा। यही मेरे सच्चे सगे-संबंधी हैं। केतकी एक ऐसे नए लक्ष्य की ओर बढ़ती चली जा रही थी, जिससे वह खुद भी अनजान थी। इंसान उसके बालों की तरफ देख कर उससे संबंध तोड़ रहे थे, अपना व्यवहार बदल रहे थे। लेकिन ये चार पैरों वाले प्राणी उसे देखते साथ दौड़ कर उसके पास आते, उछलकूद करते थे। खुश होते थे। पैर चाटते थे। वे जरा भी नहीं बदले थे। उल्टा, उनका प्रेम बढ़ता ही जा रहा था।
फिर भी, केतकी को लगता था कि इन बालों के बिना मैं केसे जी पाऊंगी? यशोदा को भी उसकी चिंता सताती थी। दोनों मिल कर फिर से पुराने डॉक्टर से मिलने के लिए गईं। उन्हें देखते साथ केतकी रोने लगी। “प्लीज़ कुछ कीजिए, मैं जी नहीं पाऊंगी।” उसकी हकीकत जान कर डॉक्टर ने सहानुभूति व्यक्त करते हुए कहा, “बालों को वापस लाने की एक ही दवा है, और वह है स्टेरॉयड। लेकिन आपने उसके दुष्परिणामों को बहुत सहन किया है। इस लिए इस बार स्टेयरॉयड का डोज़ दूसरे तरीके से लेकर देखेंगे। स्टेयरायड पेट में जाने के बाद उनका उल्टा असर होता है इस लिए इस बार हम वैसा न करते हुए... ”
इस डॉक्टर ने उसे सिर पर स्टेरॉयड के इंजेक्शन लेने की सलाह दी। एक-एक चट्टे पर बीस-पच्चीस इंजेक्शन लगाये जाते थे। केतकी को बहुत दर्द होता था। लेकिन बाल वापस आ जाएं इस आशा से वह रोते-रोते सब सहन कर लेती थी।
इंजेक्शन का पहला ही कोर्स पूरा करके जब वह घर वापस आयी तो भावना एकदम अच्छे मूड में थी। उसका अच्छे मूड का मकसद केतकी के बुरे मूड को ठीक करना ही था। तारिका ने उसे मैसेज किया था, कल शाम को सब इकट्ठा होंगे। गानों का कार्यक्रम है। तुम दोनों बहनों को आना है। तुम दोनों को हार्दिक आमंत्रण। पहले तो मैसेज देख कर भावना दुविधा में पड़ गयी, बाद में उसे लगा कि केतकी को वातावरण बदलने की आवश्यकता है, तो चले जाएंगे। केतकी को भी गाने सुनना, गुनगुनाना बहुत अच्छा लगता है। केतकी की बहुत इच्छा तो नहीं थी लेकिन भावना ने जिद की, “मुझे जाना ही है, लेकिन तुम जाओगी तभी।” केतकी बेमन से जबरदस्ती राजी हुई। सभी एक सहेली की छत पर इकट्ठा हुईं। केतकी को देख कर तारिका को बहुत खुशी हुई, ऐसा लग रहा था। उसने सभी का स्वागत करते हुए घोषणा की, “आज गाने का कार्यक्रम है, लेकिन हमेशा की तरह अंत्याक्षरी नहीं। हम सभी को बारी-बारी से गाना गाना है। लेकिन एक विषय लेकर। उसके लिए विषय कौन सा होगा ये हम लोग चिट्ठियां उठा कर तय कर लेंगे। इस कटोरी में मैंने पांच चिट्ठियों में पांच विषयो के नाम लिख कर रख दिये हैं। इसमें से एक चिट्ठी उठा कर विषय चुनना है। कौन उठाएगा चिट्ठी? हां, ये भावना हम सबमें सबसे छोटी है। वही उठाएगी।” ऐसा कह कर वह भावना के पास आयी, “प्लीज़, इसमें से एक चिट्ठी उठाओ।” भावना खुश होकर उठी। उसने एक चिट्ठी उठा ली। तारिका ने हंस कर कटोरी उसके पास दे दी और वह चिट्ठी अपने हाथ में ले ल। चिट्ठी खोल कर वह बोली, “इस चिट्ठी में लिखा हुआ शब्द है बाल, हेयर...तो आज हम सब बालों पर बने हुए गाने गाएंगे। और एक सरप्राइज है सब लोगों के लिए। मैं हर गाने पर नृत्य करूंगी। और साथ ही उस गाने के बारे में थोड़ी सी जानकारी देने की भी कोशिश करूंगी। आइ विल ट्राय माइ बेस्ट।”
भावना स्तब्ध थी। वह अपने हाथ की कटोरी हाथ में रख कर नीचे बैठ गयी। उसे केतकी की तरफ देखने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। लेकिन तारिका तिरछी नजरों से केतकी की तरफ देख रही है, यह बात भावना को समझ में आ गयी। सभी मस्ती के मूड में थीं। कार्यक्रम शुरू हो गया। .. “ओ हसीना जुल्फों वाली जाने जहां....” तारिका ने तालियां बजायीं। “वाह तीसरी मंजिल...रफी और आर डी बर्मन की जोड़ी का कमाल।” इसके बाद वह शम्मी कपूर और आशा पारेख की जोड़ी की नकल करने लगी। उसके बाद गाना गाया गया, “तेरी जुल्फों से जुदाई तो नहीं मांगी थी...” तारिका खुशी खुशी इस तरह उछलने लगी मानो कोहिनूर हीरा मिल गया हो। “जब प्यार किसी से होता है...रफी साहब और शंकर जयकिशन की जोड़ी का कमाल।” हर गाने के बाद अभिनय करते समय वह केतकी के पास जाती और उसकी ओर देख कर आंखें मिचकाती थी। उसके बाद किसी ने गाया, “ये जुल्फ अगर खुल के...” ओ हसीना जुल्फों वाली ...गाने में तो तारिका ने हद ही कर दी। वह केतकी को जबरदस्ती नाचने के लिए उठा रही थी, लेकिन केतकी उठी नहीं। उठ ही नहीं पायी वह। भावना शर्मिंदा हो रही थी। यूंही कटोरी में रखी बाकी चिट्ठियों को खोल कर देखा। चारों चिटठियों में बाल शीर्षक ही लिखा हुआ था। भावना गुस्से में लाल हो गयी। उसकी आंखों में गुस्सा उमड़ पड़ा।
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
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