Me aur mere ahsaas - 70 in Hindi Poems by Darshita Babubhai Shah books and stories PDF | में और मेरे अहसास - 70

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में और मेरे अहसास - 70

खुदा की रज़ामंदी चाहिये l
वफ़ा की रज़ामंदी चाहिये ll

पर्दा उठाकर हुस्न को देखने l
लज्जा की रज़ामंदी चाहिये ll

रूख हवा का मोड़ने के लिए l
फिज़ा की रज़ामंदी चाहिये ll

बहन को घुमाने ले जाने को l
जिजा की रज़ामंदी चाहिये ll

गोपी के साथ रासलीला हो l
कृष्णा की रज़ामंदी चाहिये ll
१६-१२-२०२२


ख़्वाहिशों की चिड़िया उड़ चली l
आज़ मंजिल की ओर बढ़ चली ll

लाख कोशिश के बाद नाकामी l
देर तक तकदीर से लड़ चली ll

आँखों में अश्क, हाथो में जाम l
साजन की गलियों से मुड़ चली ll

दुनिया की चालाकी से थककर l
खुद अपनों के साथ जुड़ चली ll

महबूबा की याद आते ही सखी l
आँखों से अश्कों की झड़ चली l
१७-१२-२०२२

आँखों में पैमाना है l
सामने मैखाना है ll

याद में सजना की l
होठों पे तराना है ll

नूरे हुश्न को देख l
गाया फ़साना है ll

मुहब्बत में डूबे तो l
जला ज़माना है ll

दिलचस्प दिलों का l
सुना अफ़साना है ll

स्वागत में इश्क के l
खिला आशियाना है ll
१८-११-२०२२

मैखाने की गली मोड़ आया l
जाम से रिश्ता तोड़ आया ll

कई घाव झेले है दिल ने l
ग़म को पीछे छोड़ आया ll

सच झुठला नहीं सकता l
तो आईना फोड़ आया ll

हौसला ए जिगर देखो l
खून को निचोड़ आया ll

ज़ख्म दिल को मिटाने l
यादो को मरोड़ आया ll
१९ -१२-२०२२

सपनों मे सफ़र पे निकला हूँ l
आज मंजिल की और चला हूँ ll

अरमानो की आग यूँ लगी के l
मुहब्बत में दिनरात जला हूँ ll

कोई अशांति नहीं चाहता l
में मेरी तन्हाई संग भला हूँ ll

मतलबी बेईमान खुदगर्ज l
ज़माने के ढ़ंग से बदला हूँ ll

बस खुदा की दोस्ती भली l
रंगीन ख्वाबों में ढला हूँ ll
२०-१२-२०२२

इश्क की दास्तां सुन रहा है जहां l
गहरी साज़िश बुन रहा है जहां ll

अपनी देखता नहीं दूसरों की l
ग़लतियों को गुन रहा है जहां ll

रात के अंधेरे का गुलाम और l
सुनहरी सुबह चुन रहा है जहां ll

देख मुहब्बत की खुल्ले आम l
नुमाइश से धुन रहा है जहां ll

प्यार का सदा दुश्मन हुआ l
क्यूँ ढूँढ शगुन रहा है जहां ll
२१-१२-२०२२

ख्वाबों में जन्नत पहुँची l
हर जुबां मुहब्बत पहुँची ll

खुद पर बहोत इतराते थे l
पाठ सिखाने कुदरत पहुँची ll
२२-१२-२०२२

बावरे से मन को समझाऊँ कैसे?
नादाँ से मन को भरमाऊँ कैसे?

अनगिनत इच्छायें पाल रखी है l
रूठे हुए मन को मनाऊँ कैसे?

ख्वाब मुकम्मल कहाँ होते हैं l
उदास मन को सजाऊँ कैसे?

बेवफाई मिली हो हर लम्हा l
फ़िर से मन को लगाऊँ कैसे?

उम्मीद का दीया बुझ गया l
सोये मन को जगाऊँ कैसे?
२३-१२-२०२२

अजीब दास्तान से भरा है जीस्त का सफ़र l
बेशुमार दर्दों ग़म से भरा है प्रीत का सफ़र ll
जीस्त-जिंदगी
२४-१२-२०२२

बावरे मन को समझाना आसान नहीं l
चोट दिल की दिखाना आसान नहीं ll

इतने कठिन वक्त से गुजर रहे हैं कि l
खुदा को भी हाल बताना आसान नहीं ll

समझने वाले ईशारो में समझ जाते हैं l
बारहा प्यार को जताना आसान नहीं ll

छोटी छोटी सी बात में गांठ पडी है कि l
उलझे रिस्तों को सुलझाना आसान नहीं ll

बावरा, भोला-भाला, प्यारे प्यारे से l
दिल ए नादां को भुलाना आसान नहीं ll

हर क़दम पर ज़ख़्म ही ज़ख़्म हैं मिले l
चोट खाकर भी मुस्कुराना आसान नहीं ll
२५-१२-२०२२

दर्द ओ गम को अलविदा कह दिया l
दिल ने मयखाने को विदा कह दिया ll

इंसा की इंसानियत मर चुकी है आज l
क़ायनात को मतलबशुदा कह दिया ll

जिंदगी की राहगुज़र में सुकून के लिए l
जानबूझ खुद को गुमशुदा कह दिया ll

प्यार की इबादत चहरे को चमका रहीं हैं l
हुश्न का नूर देखके आबिदा कह दिया ll

बारहा छोटी छोटी बातों से छलक जाती l
पुरनम आँखों को ग़मज़दा कह दिया ll
२६-१२-२०२२

पुनर्जन्म की बातेँ याद आती है l
मिलन की रातें याद आती है ll

सुहानी चांदनी रात में की हुई l
घंटों की घातें याद आती है ll

हद से ज्यादा यकीन किया l
बारहा मातें याद आती है ll

छोटी से छोटी ख्वाइशे पूरी की l
आज इल्तिफ़ातें याद आती है ll

सजाकर आए थे महफिल में l
कुदरती पातें याद आती है ll
२७-१२-२०२२
बीते दिनों की याद रोज सताती है l
जीने के नये आयाम सिखाती है ll

ख़्वाबों से बहलाते है रातभर उसे l
सुबह में गहरी नीद से जगाती है ll

बेइंतिहा खुशी कहीं पागल न करदे l
दर्द ओ गम देके सब्र आजमाती है ll

खुद को तीसमारखाँ न सकजे तू l
क़ायनात के रंग ढंग के दिखाती है ll

बारहा अज़ीब से तज़ुर्बे दिखाकर l
सही गलत की पहचान कराती है ll

फिजाएं हाल दिल का बताती है ll
बहके हुए को रास्ता दिखाती है ll
२८-१२-२०२२

कड़कड़ाती ठंड में ठिठुरते हैं हम l
प्यार की आगोश में सँवरते हैं हम ll

एक नज़र देखने को तरसते है हम ll
हुश्न को देख जाम सा छलकते है हम ll
२९-१२-२०२२

आज लिखीं पाती तेरे नाम की l
ढ़ेर सारी ख़ुशी मिलीं बेदाम की ll

बारहा यादें तेरी सताती रहती है l
सारी बातें लिखी सुबह शाम की ll

जी नहीं लगता किसी भी तरह l
जिंदगी बिन तेरे किस काम की ll

आज दोड़ के आना है पास तेरे l
कोई तो डगर दिखा दे गाम की ll

इंतजार में नहीं कटता पल भी l
रह न जाना बस तू बाम की ll

दुआ कर खुदा माफ करदे मुझे l
माला जपती रहती तेरे नाम की ll

पाती ने वो नशा करा दिया कि l
अब जरूरत नहीं है जाम की ll

सुबह से लेकर शाम एक नाम l
सखी होके रहूँगी एक राम की ll

काटने ने को एकेला सफ़र सुन l
बहुत जरूरत होती है हाम की ll

राधा का नाम पुकारती हुईं l
बंसी सुनाई देती है शाम की ll
बाम - छत
३०-१२-२०२२

रात का सन्नाटा कुछ कह रहा हैं l
सखी चराग-ए-उम्मीद बुझ रहा है ll

शमा-ए-मोहब्बत को बुझते देख l
ख्वाईशो का जनाज़ा उठ रहा है ll

हररोज हिज्र की यामिनी में l
दिल दर्दनाक आहें भर रहा है ll

दास्तां-ए-मोहब्बत तो सुनो l
बेपरवाह पे बारहा मर रहा है ll

प्यार के माईने ही नहीं जानता l
उसे बेपन्हा प्यार कर रहा है ll

मुहब्बत में गुनगुनाई हुईं वही l
पहचानी सदाएं सुन रहा हैं ll

रंगीन प्यारी नशीली वादियों में l
मुलाकात के सपनें बुन रहा है ll
३१-१२-२०२२