Gurupatni Ruchi and Rishi Vipul (Last) in Hindi Mythological Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | गुरुपत्नी रुचि और ऋषि विपुल (अंतिम)

Featured Books
  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

  • સંઘર્ષ જિંદગીનો

                સંઘર્ષ જિંદગીનો        પાત્ર અજય, અમિત, અર્ચના,...

Categories
Share

गुरुपत्नी रुचि और ऋषि विपुल (अंतिम)

उनका शरीर जाग्रत अवस्था में था और उनके नेत्र रुचि की तरफ स्थिर थे।रुचि ने अपनी कुटिया में घुस आए आकर्षक सुंदर युवक को आश्चर्य से देखा।वह उस युवक को देखती ही रह गयी।योग विद्या से रुचि के शरीर मे प्रवेश कर चुके विपुल। गुरुपत्नी के मनोभाव देखकर ताड गए कि रुचि इन्द्र पर मोहित हो चुकी है।वह इन्द्र को देखकर उठना चाहती हैं।इसलिए विपुल ऋषि ने योग के बल पर रुचि के शरीर को अपने वश में कर लिया।इसका परिणाम यह हुआ कि रुचि चाहकर भी उठ नही सकी।हिलडुल नहीं सकी।
योग विद्या में वशीकरण सिद्धि भी है।योगी अपने सामने वाले व्यक्ति को निर्बाध रूप से इतना बांध सकता है कि योगी जो चाहे सामने वाले व्यक्ति को वो ही करना पड़े।जो योगी दिखाए उसे वो ही दिखे।वशीकरण मंत्र तो बहुत प्रारंभिक सिद्धि है।जबकि ऋषि विपुल तो माने हुए योगी थे
रुचि को अपनी जगह से उठता न देखकर इन्द्र बड़े प्यार से मधुर स्वर में बोला,"सौंदर्य साम्राज्ञी रूप की देवी अदुतीय सुंदरी में इंद्र हूँ।मैने वर्षो से तुम्हे पाने की इच्छा मन मे पाल रखी है।तुम अकेली हो यह जानकर ही में खींचा हुआ तुम्हारे पास चला आया हूँ।रूपसी,,ऐ सुंदर नारी कामदेव का अपमान मत करो।उठो और मेरे पास आओ।में तुम्हारे तन से अपना तन मिलना चाहता हूँ।मुझे तन से तन मिलने की इजाजत दो।मेरी काम वासना को शांत करो।"
रुचि ने इंद्र की मादक बातें सुनी।वह उसकी बातें सुनकर उस पर रीझ गयी।लेकिन रुचि के शरीर मे ऋषि विपुल विधमान थे।इसलिए रुचि चाहकर भी कोई उत्तर न दे सकी।विपुल ने योगिक बन्धनों से रुचि की समस्त इंद्रियों को अपने वश में कर लिया था।
रुचि एकटक इन्द्र को देखती रही लेकिन अपनी जगह से हिली डुली नही।उसे उठता हुआ न देखक इन्द्र एक बार फिर से बोला,"सुंदरी देर मत करो।मै तुम्हे बुला रहा हूँ।आओ
रुचि ने फिर से इन्द्र की आवाज सुनी।
रुचि,इन्द्र की आवाज सुनकर कुछ कहना ही चाहती थी की विपुल ने योग क्रिया से उसकी वाणी में उलट फेर कर दिया।इसलिए उसके मुंह से निकला,"अरे इन्द्र।तुम्हारे यहाँ पर आने का क्या उद्देश्य हैं।?"
रुचि के मनोभाव ऐसे थे मानो वह इन्द्र पर मोहित हो।लेकिन उसके मुख से ऐसी बात सुनकर इन्द्र का मन उदास हो गया।
रुचि ने न चाहकर भी उससे ऐसा क्यो कहा।यह जानने के लिए इन्द्र ने दिव्यदृष्टि से देखा।तब इन्द्र को रुचि के शरीर मे बैठे विपुल ऋषि दिखाई दिए।रुचि के शरीर मे ऋषि विपुल को देखकर इन्द्र कांप उठे।तभी ऋषि विपुल योग विद्या से रुचि का शरीर छोड़कर वापस अपने शरीर मे आ गए।
योगी भविष्यद्रष्टा भी होता हैं।वह भविष्य में क्या होने वाला है।इसे वर्तमान की तरह देख लेता है।ऋषि विपुल ने पहले ही देख लिया था कि इन्द्र गुरुपत्नी रुचि को अपने वश में करने का प्रयास करेगा।इन्द्र बल प्रयोग नही करेगा।वह छल के सहारे ऋषि पत्नी को मुग्ध कर लेगा।मोहित कर लेगा।अपने रूप शब्दजाल में फंसाकर वह अपनी कामाग्नि शांत करने का प्रयास करेगा।लेकिन विपुल ने इंद्र को अपने मकसद में सफल नही होने दिया।
इन्द्र तपस्वी विपुल ऋषि को देखते ही ऐसा भयभीत हुआ कि कही गौतम ऋषि की तरह वह भी शाप न दे दे।शाप के डर से वह भाग गया