Prem Gali ati Sankari - 3 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 3

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प्रेम गली अति साँकरी - 3

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इस अजीब सी ज़िंदगी के कितने कोण हो सकते हैं भला ? कैसे होंगे ? जब कहा जाता है कि दुनिया गोल है | फिर भी हम खुद को कभी किसी कोने में तो कभी किसी कोने में सिमटा हुआ महसूस करते हैं | कोनों में से तरह -तरह की आवाज़ें आती हैं, महसूस होता है, हम न जाने कितने छद्म वेषों में भटकते रहते हैं | पापा अपने प्यार को कभी भी भूलने वाले तो थे नहीं | न जाने उन्हें कौन सी अदृश्य शक्ति भीतर से ढाढ़स बँधाती रहती कि वे माँ के प्रति अपने प्रेम की संवेदना से भरे रहते !

दिल्ली के अलग-अलग बड़े होटलों में पापा की बिज़नस मीटिंग होती रहतीं लेकिन उसके बाद वे कैनॉट -प्लेस के किसी रेस्तराँ में अक्सर अपने पुराने मित्रों से मिलने का कार्यक्रम जरूर बनाते | मस्तमौला पापा के जीवन में उनके प्यार का खो जाना और उनके पिता का न रहना, दो घटनाएं उन्हें उदास कर देने के लिए ज़िम्मेदार थीं | दादी बहुत चतुर थीं, सब कुछ समझते हुए उन्होंने अपने आपको काफ़ी हद तक सहज कर लिया था | बेचारी मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करतीं कि पापा का प्यार उन्हें वापिस मिल जाए | कितने समृद्ध परिवारों से रिश्ते आ रहे थे लेकिन उनका बेटा तैयार ही नहीं था, लड़की देखने तक को भी |

कहते हैं न, कभी-कभी ऐसे इत्तेफाक हो जाते हैं जिनको कभी सपने में भी नहीं सोचा जा सकता |अब तक पापा को बैंगलोर से आए हुए और दादा जी को गए हुए लगभग तीन साल हो चुके थे और पापा ने दादा जी का सपना पूरा करने में अपने आपको झौंक दिया था |उन्हें तो यही लगता था, शायद उनका जीवन अब एकाकी ही व्यतीत होगा | उनके मित्र भी धीरे-धीरे या तो शादी करते जा रहे थे या कुछ प्रेम में थे और उनके दिन सोने के और रात चांदी की होने लगी थीं | उस दिन भी पापा किसी होटल में अपनी बिज़नैस मीटिंग करके अपने उसी ठिए पर आकर बैठ गए थे जहाँ एक-एक करके सभी मित्र आने वाले थे |

पापा अपने दोस्तों का इतंज़ार ही कर रहे थे कि सामने से श्यामल आता दिखाई दिया पारदर्शी दरवाज़े से श्यामल दूर से ही दिखाई दे रहा था लेकिन उसके साथ दो लड़कियाँ भी थीं जो साफ़ दिखाई नहीं दे रही थीं | रेस्त्रां में प्रवेश करने के बाद श्यामल दरवाज़े पर खड़ा रहा |जब लड़कियों ने अंदर प्रवेश कर लिया तब वह मुड़ा ---ये क्या --? कालिंदी ? और उसके साथ ये दूसरी लड़की ---!!

अब तक श्यामल मुस्कुराता हुआ उसको हाथ दिखा चुका था और उस टेबल की ओर आ रहा था जिस पर वे सभी दोस्त बैठते थे |साथ ही दोनों लड़कियाँ भी जिनका ध्यान हमारे पापा की ओर बिलकुल भी नहीं नहीं था | वे दोनों एक-दूसरे से बात करते हुए वातावरण का जायज़ा ले रही थीं | पापा के दिल की धड़कनें जैसे उछलकर बाहर ही निकलने को थीं कि अचानक ---

"वेदान्त ----" उन लड़कियों में से एक लड़की ज़ोर से लगभग चिल्ला ही गई और टेबल की तरफ़ लंबे कदम बढ़ाकर वेदान्त ! यानि हमारे पापा ---जिनका दिल उस लड़की को अपने पास आते हुए देखकर ही धड़क -धड़ककर अब तक बैठने लगा था |

"वेदान्त ---यानि --यू नो हिम ? हाऊ --?"श्यामल के शब्द तो उसके मुँह में ही भरे रह गए तब तक तो कालिंदी जो उसके साथ आई थी वेदान्त के पास पहुँच चुकी थी |

"कालिंदी---तुम ---" वेदान्त खड़ा हो चुका था और फटी-फटी आँखों से कई वर्ष पुराने अपने उस प्यार को देख रहा था जो न जाने किन काले मनहूस बादलों तले छिप गया था |उनमें से अचानक सूरज का निकाल आना ---

थरथराते बदन, उछलती धड़कनों, टूटे हुए स्वर से एक -दूसरे की धड़कनों में समा गए वे दोनों | किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि छिपा हुआ चाँद अचानक कौनसे बादलों से बाहर आ गया है ! पापा के लिए वह सूरज की ऊर्जादायी रोशनी थी तो उनके मित्रों के लिए वेदान्त का चाँद !

श्यामल और दूसरी लड़की तो हैरत भरी नज़रों से देख ही रहे थे, और दोस्त भी अभी तक पहुँच चुके थे और आश्चर्य से वेदान्त और उसके सीने में समाई उस अनजानी लड़की को देख रहे थे, जैसे कभी एक-दूसरे को छोड़ेंगे ही नहीं | उन्हें कोई होश ही नहीं था कि वे एक पब्लिक प्लेस में थे --यह एक लम्हा था जो आश्चर्य और अहसासों से भरा था |

अचानक तालियों की गड़गड़ाहट से वातावरण जैसे सुरभित हो उठा, मुहब्बत की एक सुगंध पसर गई वहाँ | दोनों को जैसे होश आया, खिसिया गए, आँखें नीची करके जैसे अपराधी से खड़े हो गए लेकिन और सब तो शोर मचाने लगे थे | | ऐसा तो कभी उनके उन दिनों में भी नहीं हुआ था जब वे डेटिंग कर रहे थे | उन्होंने अपनी मुंदी हुई आँखों को खोलकर देखा, रेस्टोरेंट के लगभग सभी मेज़ों के लोग उस मेज़ को घेरकर आ खड़े हुए थे जहाँ यह प्रेमी जोड़ा खड़ा था |

"अक्का ----?" कीर्ति हड़बड़ाकर कालिंदी के पास आ गई |

"कीर्ति ---" कालिंदी उससे चिपट गई | उसने महसूस किया कि उसकी बड़ी बहन का शरीर अभी भी काँप रहा था |

"अक्का ---?" पशोपेश में थी कीर्ति | कभी अपनी बहन का चेहरा देखती जिसकी आँखों में वह प्रेम का खुमार और शरीर में थरथराहट महसूस कर पा रही थी |

ऐसे कोई किसी अनजान के साथ तो नहीं चिपटा जाता ! श्यामल और दूसरे सभी दोस्त जो वेदान्त के बिछड़े प्यार से वाकिफ़ थे, आश्चर्य में थे, उन्हें वेदान्त को आलिंगनबद्ध देखकर उसके खोए हुए प्यार की स्मृति हो आई जिसके लिए उसने पहले दोस्तों को सुनाया था और फिर चुप्पी साध ली थी | वेदान्त की माँ जब तब उसके मित्रों से कहलवातीं कि सभी अपने जीवन में सैटल हो रहे हैं, वे वेदान्त से भी बात करें | आखिर जब वह लड़की ही नहीं मिल रही है तो क्या उम्र भर अकेला घूमता रहेगा ?

"हाश---कालिंदी ---??" श्यामल के मुँह से निकला और वेदान्त व कालिंदी के चेहरे गुलाबी हो उठे | कालिंदी की नजरें झुक गईं और उसने साँवले चेहरे पर गुलाबी आभा ने जैसे छिपते हुए सूरज ने दस्तखत दी थी | वेदान्त के गेहुँए चेहरे पर भी प्रेम व उल्लास की लालिमा ने उसे कानों तक गर्म कर दिया था जैसे |

उन दोनों के मुँह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा था लेकिन उनके शरीर का कंपन सारी स्थिति बयान स्पष्ट रूप से बयान कर रहा था |