soi takdeer ki malikayen - 33 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | सोई तकदीर की मलिकाएँ - 33

Featured Books
Categories
Share

सोई तकदीर की मलिकाएँ - 33

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

33

 

थोङी देर पहले जब गली के बच्चे दोनों भाइयों को बुलाने गये तो चरण सिंह घबरा गया । कहीं जयकौर ने उसके लौट आने के बाद भी रोना धोना जारी रखा हो और उसके रोने धोने से घबरा कर भोला सिंह उसे यहाँ छोङने चला आया हो । जिस तरह से कल वह लङ पङी थी , उससे तो इस बात की संभावना ज्यादा लगती है । यदि ऐसा हुआ तो उसे ट्रैक्टर तुरंत वापिस करना पङेगा । और जमीन खरीदने के लिए मिले पैसे भी खटाई में पङ जाएंगे । या कहीं ट्रैक्टर लौटा ले जाने ही के लिए आया हो , पंद्रह दिन से तो ऊपर हो गये ट्रैक्टर आए हुए । यदि ऐसा हुआ तो उसे ट्रैक्टर तुरंत वापिस करना पङेगा । लोगों के खेत जोत कर जो चार पैसे आने लगे हैं , तुरंत बंद हो जाएंगे और जमीन खरीदने के लिए मिले पैसे भी हो सकता है तुरंत वापिस करने पङ जाएं । ये जय कौर भी न एक नम्बर की बेवकूफ है । इतनी मुश्किल से सारा जुगाङ फिट किया है । इस लङकी की थोङी सी बेवकूफी से सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा । उसका मन हुआ , बच्चों को कहे कि घर जाकर कह दें , चाचा तो सारे गाँव में मिले ही नहीं । पर ऐसे कैसे गुजारा होगा , सामना तो करना ही पङेगा । कब तक आँख चुराते रहेंगे । चलो जो होगा देखा जाएगा । चल कर देखा जाय ।
चरण सिंह के मन में संकोच , भय व लज्जा ने डेरा हुआ जमाया था । यहाँ तक कि वह घर आते हुए भी घबरा रहा था पर आना तो पङना ही था इसलिए डरते डरते वह घर में दाखिल हुआ था पर भोला सिंह की निश्छल हँसी ने उसका सारा डर और संकोच दूर कर दिया । नहीं , यहाँ डर वाली कोई बात नहीं है । सब कुछ सामान्य है ।
भाई , कल तुम घर आए भी और बिना किसी से मिले चले आए । इतनी दूर जाने के बाद दो घङी तसल्ली से रुकना था । कोई चाय दूध तो पीकर आते ।
वो भाई जी , कल थोङा जल्दी थी , कई काम बहुत जरूरी करने थे तो आपसे मिलना नहीं हो पाया । अच्छा किया जो आप खुद आ गये मिलने । धनभाग जी धनभाग हमारे जो आप पधारे । शरण तू भाग के अड्डे से कुछ खाने को ले आ ।
उसकी कोई जरूरत नहीं है भाई । पानी पिला दो । काफी है ।
जरूरत कैसे नहीं है जी । आप और जयकौर पहली बार आए हो ...। खाली पानी कैसे पिला दें ।
भोला सिंह के रोकते रोकते शरण बाहर गया और जल्दी ही लौट आया । जलेबी , लड्डू और पकौङे के लिफाफे लाकर उसने छिंदर कौर को पकङाए । तब तक दोनों देवरानी जेठानी ने चाय बना ली थी । चाय पीकर भोला सिंह उठ गया – अच्छा , अब हम चलेंगे ।
जयकौर ने भाभी से शिकायत की – भाभी क्या आप जानती थी कि वहाँ हवेली में दो औरतें पहले से हैं ।
हाँ पर बीबी , रिश्ते जोङने वाले हम कौन होते हैं । यह तो स्वर्ग से बन कर आते हैं । जोङियां ऊपर वाला बनाता है वरना भोला सिंह इन दोनों भाइयों को फरीदकोट में अचानक कैसे मिलता । वहां मिलता भी तो औलाद न होने की बात कैसे चलती । फिर तेरे संबंध की बात चली । सब संयोगों का खेल है । वरना भगवान उसे एक बच्चा न दे देता । शायद तेरा अन्नजल वहाँ उस हवेली से जुङा था । दोनों धिरों के मान जाने से ही रिश्ता पक्का हुआ ।
पर भाभी क्या तुझे नहीं लगा कि मेरे साथ धक्का हुआ है ?
लगने से क्या होता है । होगा तो वहीं जो नसीब में लिखा होगा या जो घर के मर्द चाहेंगे । औरतों को तो सिर्फ बताया जाता है । पूछा कहाँ जाता है । और बताया भी उतना ही जाता है जितना बहुत जरूरी हो । जिसके बिना गुजारा न हो । हमें भी दिन के दिन ही पता चला कि तेरा रिश्ता पक्का हो चुका है और आनंदकारज आज ही होगा । जल्दबाजी में तुझे कुछ दे भी नहीं सके । ये तेरी चूङियां बहुत सुंदर है ।
अभी यहां आते हुए रास्ते में दिलाई सरदार ने । ये बालियां और लाकेट चेन भी । साढे सात लाख लगे कुल मिला के ।
छिंदर कौर ने हसरत से चूङियां देखी – नसीबो वाली हो बीबी । पहले दिन ही लाखों की खरीददारी करके आ रही हो । यहाँ तो इतने सालों में कोई छल्ला खरीदना तो दूर, सोचना तक मुश्किल है ।
शरण सिंह भीतर आया – जल्दी करो भाई , वे जाने की जल्दी कर रहे हैं ।
जयकौर ने अपना संदूक खोल कर पहने जाने लायक दो चार जोङी कपङे निकाल कर एक थैले में पहले ही डाल लिए थे । अंग्रेज कौर अभी तक उसके पहने जेवरों की चकाचौंध में खोई हुई थी । उन्हें जाने को तैयार देख कर वह होश में आई । दौङ कर एक सूट , एक डिब्बा मिठाई निकाल कर ले आई । शरण ने पाँच सौ का एक नोट उसकी हथेली पर रख दिया । भोला सिंह ने चलते चलते तीनों बच्चों को पाँच पाँच सौ रुपए शगुण में दिया ।
जयकौर ने डबडबाई आँखों से गली को देखा – इतनी जल्दी ... । मैं तो अभी किसी से मिली भी नहीं ।
उसने सूनी गली को देखा । दोपहर होने को थी । उसे दूर दूर तक कोई प्राणी दिखाई नहीं दिया । ये सुभाष न जाने कहाँ गायब हो गया । परसों भी कहीं चला गया था और आज भी ... अभी तक उसकी एक झलक तक नहीं मिली । उसके बारे में किससे पूछे और कैसे पूछे ? बेबसी से उसकी आँखों से आँसू बह निकले । भाभियों को लगा कि वह घर अचानक छूट जाने से उदास हो रही है । मायके की दहलीज छूट रही है तो आँसू तो बहेंगे ही ।
अंग्रेज कौर ने उसे अपने साथ सटाते हुए कहा – कोई न बहन । आती जाती रहना । हमें भूल न जाना । अभी अपने घर जाओ । गली वालों को अगली बार मिल लेना । ये तुम्हारा ही घर है । जब मन करे , आ जाना ।
अब कोई चारा न था , न रुकने की कोई वजह बची थी । दोनों भाभियों और बच्चों से गले मिल कर वह कार में जा बैठी फिर भी मन में कहीं न कहीं एक आस बंधी थी कि शायद आता जाता कोई गली का बंदा उसे दिख जाए तो वह दो घङी उससे बातें करने के बहाने ही सही , गली में कार से उतर कर रुक जाए । उसने हसरत से गली के हर घर में झांका पर कहीं कोई परिंदा भी दिखाई न दिया । कार गली का मोङ मुङ गई तो उसकी आशा निराशा में बदल गई । वह कार की खिङकी से सिर टिकाए सूनी सूनी आँखों से राह तकती रही । दो बजते बजते वे हवेली पहुँच गये । अभी आधा दिन बाकी था ।

 

बाकी फिर ...