फिर वापस चली आना..
मेरी सारी नादानियाँ तेरे मुस्कुराने की वजह होती थी
आंखोसे बहते अश्कोसे, तेरी हर कमीज़ भिगोती थी
गलतियों के नाम पर तुम मेरी शरारत को पकड़ते थे
और जिंदगी के खेल को तुम कुछ लम्हो में बयां करते थे
में सूरज की किरणों से रोज़ झग़डा करती थी
पलभरमे बज़्म (बांहे) खोलकर तूम मेरी छांव बना करते थे
जिस्म की बजाये तूम मेरी ज़ुल्फ़ो में उलझा करते थे
मै बेख़ौफ़ बचपना करती थी, तूम चूपचाप मुझको सुनते थे
में कपड़ों की बजाए मेरे हर राज़ बेपर्दा करती थी
तुम किसी डॉक्टर की तरह मेरे हर डर का इलाज करते थे
में नजरे चुराकर कहेती थी - की - सब कुछ भुला देंगे हम
नजरें मिलकर तुम मुझसे - गलत हो - कहा कहते थे
गर खुद खफा हुई खुदसे - बेझिझक में पूछा करती थी
फिर वापस चली आना - तुम गले लगाकर कहते थे
हक़ हमारा बनता है..
सजदे में खुदा से जब में, दुआ किया करता हु
खुदा से तेरे लिए लड़ने का हक़ हमारा बनता है
क्या करू, ये जानता हु में की मरकर खुदा को पाना है
इसिलिए मरने से डरने का हक़ हमारा बनता है
मेरी शायरी को तुजे खवाबो में पा कर ही अल्फ़ाज़ मिलते है
इसीलिए तेरा ख्वाब देखनेका हक़ सिर्फ हमारा बनता है
चाँद की तरह आसमान में दिखता है तू, पर मेरे दिल में रहेता है
तुजे चाँद कहा सीतारों ने तू ही बता दे उन सब को की ये हक़ हमारा बनता है
हर साँस में तेरा नाम यदि बेख़ौफ़ आया करता है
बेवफा सांसो पे दम तोड़ने का हक हमारा बनता है
प्यार पलने तो दे...
ऐसे घुल जाए तुजमे की तेरा जिस्म हो जाए,
ब-शर्त है तू हमको अब तुजसे लिपटने तो दे
इस से पहले की मौसम की तरह तू बदल जाए
तेरे पहले नशे की ख्वाइशमें तुझ में सिमटने तो दे
इस से पहले की मोहोब्बत का ये आलम रुक जाए
कुछ इस तरह से इकरार-ए-यकीन निखरने तो दे
इस से पहले तेरी चाहत की तड़प में हम मर जाए
मौसम-ए-हिज्र को मनाने की बात मुझे करने तो दे
इस से पहले की टुकड़ो में ख़्वाब बिखर जाए
उड़ते हुए ख्वाबोको पकड़ने की आग जलने तो दे
इस से पहले की जहाँ बदनाम हमें बेवजह ही कर जाए
रुस्वा होने से पहले जरा प्यार अपना पलने तो दे
वो मेरा है तो...
सोचती हु याद ना करू, फिर सोचू कैसे भुलाउंगी में
शायरी में नाम लिखू और इस तरह जताऊँगी में
वो भटक रहा है जहेन मे मेरे उड़ते हुए पत्तो की तरह
ज़ख्म देता रहेगा वो तब भी गले लगाउंगी में
वो कुबूल है तो सब कुछ कुबूल है उसका हमको
नजर ना लग जाए इस खौफ से मोहोब्बत छुपाउंगी में
ना कहे सकू में कुछ भी, कहु तो सुनाऊ किसे
में कौनसी बात करू उसकी, करू तो उसे गवाउंगी में
लोग मोहोब्बत को महफ़िल में खुले आम बयां करते है
सोचु की राज-ए-बयां करने से मेरे वो रूठे तो उसे मनाऊंगी में
वो ही है मेरे दिल का खजाना, वो ही है मेरे दिल का सुकून
अगर वो मेरा है तो आज जमाने को मेरे साथ उसे बताऊंगी में