Kahani Pyar ki - 59 in Hindi Fiction Stories by Dr Mehta Mansi books and stories PDF | कहानी प्यार कि - 59

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कहानी प्यार कि - 59

जगदीशचंद्र की गाड़ी एक होटल पर जाकर रुकी...
हरदेव के साथ वो रूम नंबर बाइस में गए...

रूम खोलते ही अंदर कोई उन दोनो का इंतजार कर रहा था..

" ओह तो तुम हमारे पहले ही यहां आ गई हो..." जगदीशचंद्र ने मुस्कुराहट के साथ कहा...

" मुझे यहां क्यों बुलाया है...? " मोनाली ने गुस्से से पूछा

" थोड़ा सब्र करो... मोनाली पापा बता रहे है..." हरदेव ने शांति से बोला

" तो मोनाली क्या हाल चाल है ..? "

" हाल चाल तुम पूछो ही मत... तुम्हारी वजह से मुझे कितना नुकसान हुआ है ये तुम जानते भी हो..! मेरा नाम मिट्टी में मिला दिया है तुमने...तुम दोनो की वजह से मुझे छुप छुप के फिरना पड़ रहा था..." मोनाली फिर से गुस्से के साथ बोली...

" मोनाली शायद तुम भूल रही हो की तुम्हे छुप कर इसलिए फिरना पड़ रहा था की तुमने किडनैपिंग की थी और हमने तुम्हे ऐसा करने से नही कहा था...समझी.. सो हम पर चिल्लाना बंध करो..." हरदेव थोड़ी ऊंची आवाज में बोला..

" यू शट अप.. तुम दोनो ने ही मुझसे हेल्प मांगी थी अनिरुद्ध को बरबाद करने के लिए.. "

" ओह वाउ.. मतलब तुम्हारा कोई स्वार्थ ही नही था है ना ? तुम भी यही चाहती थी इसीलिए तुमने हमारी मदद की..."

" तुम्हारा बेटा कुछ ज्यादा ही नही बोल रहा है ? ये छोड़ो और ये बताओ की मुझे इस वक्त यहां इतना अर्जेंट क्यों बुलाया है .. तुम जानते थे ना में दिल्ली में नही थी फिर भी... ? "

" क्योंकि इस बार भी हमे तुम्हारी मदद चाहिए..." जगदीशचंद्र ने थोड़ा सीरियस होते हुए कहा..

" में तुम दोनो को क्या कोई गुंडी लगती हु? में एक बिज़नेस वुमन हु .. एक तो पहले से ही उन सब की वजह से मेरा बिज़नेस लॉस में चल रहा है.. में अब तुम्हारी कोई मदद नहीं करने वाली ..."

" उन सब की वजह से तुम्हारा इतना नुकसान हुआ और फिर भी तुम उन सब से बदला लेना नही चाहती ? " जगदीशचंद्र मोनाली को उकसा रहे थे..

" मेरा तो जी चाहता है की में उन सब को अभी बरबाद करदू.. पर इस वक्त में उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती... "

" ऐसा किसने कहा ? तुम हमारा साथ दो.. हम मिलकर उसे हराएंगे..." हरदेव थोड़ा कॉन्फिडेंट के साथ बोला..

" तुम जानते भी हो की वो लोग कितना आगे पहुंच चुके है ? अभी अभी तो जेल से बाहर आए हो...कुछ पता भी है तुम्हे उन सब के बारेमे? " मोनाली गुस्से से बोली..

" इसलिए तो हम तुम्हारे पास आए है मोनाली... हम जानते है की तुम्हे उनके बारे में सब पता होगा.. तुम उनपर नजर जरूर रखती होगी..."

मोनाली यह सुनकर गुस्से से उन दोनो को घूरने लगी...

" तुम दोनो को जरा सा भी अंदाजा नही है की उस अनिरुद्ध ने हम सब को कितना पीछे छोड़ दिया है.. एक महीने पहले एशिया की सबसे ज्यादा अर्नेस्ट कंपनी में ओब्रॉय पहले नंबर पर थी... और अब तो करन भी उनका पार्टनर बनने वाले है , मैने सुना है की ओबरॉय , मल्होत्रा और शर्मा पार्टनरशिप में काम करने वाले है .."

" क्या ? तो तो उनको हराना बहुत मुश्किल है.." जगदीशचंद्र ने गंभीरता से कहा..

" सही कहा वो तीनो दोस्त अब एक होकर बिजनेस करने वाले है और अब उन तीनो को कोई अलग नही कर सकता है.. "

" हमे उनको पहले कमजोर बनाना होगा.. " हरदेव ने कुछ सोचते हुए कहा..

" वो कैसे करोगे तुम ? " मोनाली ने आश्चर्य के साथ पूछा..

" अनिरूद्ध से संजना और उसके बच्चे को छीनकर..."
हरदेव शैतानी हसी के साथ बोला..

यह सुनकर मोनाली हसने लगी....

" तुम अब भी उस संजना के बारे में सोच रहे हो....जानते हो ना उसका अंजाम क्या हुआ था ? तुम जानते नही की संजना और उसके बच्चे तक पहुंचने से पहले तुम्हे अनिरुद्ध का सामना करना पड़ेगा... वो तुम्हे टिकने भी नहीं देगा..." मोनाली हस्ती हुई बोली..

" तुम किसकी तरफ हो मोनाली ? " हरदेव ने गुस्से से कहा..

" में किसी की तरफ नही हु.. समझे..."

" पापा चलो यहां से ये हमारे किसी काम की नही...." हरदेव ने गुस्से से कहा और जाने लगा..

" रुको हरदेव.. सबसे जरूरी बात तो सुनते जाव... "
मोनाली की आवाज से हरदेव रुक गया...

" मुझे यहां तक की खबर मिली है की अनिरुद्ध , करन और सौरभ.. तीनो साथ में मिलकर गवर्नमेंट के साथ एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट करने वाले है..जो इस पंद्रह अगस्त को लॉन्च होने वाला है "

" कौन सा प्रोजेक्ट....? " जगदीशचंद्र गुस्से से हाथ टेबल पर मारते हुए चिल्लाए...

" वो तो में नही जानती.. उसकी इन्फॉर्मेशन किसीको भी नही है वो तो सिर्फ वही जानते है..."

" ये हम कैसे पता लगाएंगे...? "

" देखिए में आपकी इस बार तो हेल्प करने नही वाली हु पर में जानना चाहती हू की ऐसा कौन सा प्रोजेक्ट है जो वो लोग करने वाले है... इसीलिए में आपकी एक छोटी सी हेल्प कर सकती हु..."

" बात घुमाना बंध करो और सीधे सीधे बताओ की तुम क्या मदद कर सकती हो...? " हरदेव ने इरिटेट होकर कहा..

" में किसीको जानती हु जो आपकी मदद कर सकती है.. और आप तक उनकी सारी खबर पहुंचा सकती है... "

" कौन है वो ? "

मोनाली ने अपना फोन निकाला और वैशाली की फोटो जगदीशचंद्र और हरदेव को दिखाई..
" वैशाली मल्होत्रा... " ये लो नंबर और उसका फोटो..

" शुक्रिया..." बोलकर जगदीशचंद्र और हरदेव वहा से चले गए...

इस तरफ ओब्रॉय मेंशन में अगले दिन होने वाली संजना की गोदभराई की तैयारिया हो रही थी...

संजना जुले पर बैठी हुई थी और हस्ती हुई किंजल , मीरा और अंजली से बाते कर रही थी...
अनिरूद्ध संजना को ही देख रहा था उसके चहेरे पर मुसकुराहट थी...
" संजना कितनी खुश है है ना ? " करन ने अनिरुद्ध के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा..
करन की आवाज से अनिरुद्ध का ध्यान उस पर गया..
" हा करन.. जब संजू को खुश देखता हु तो सुकून सा महसूस होता है पर साथ में डर भी लगता है की कही इन खुशियों को फिर से किसीकी नजर ना लग जाए..." अनिरूद्ध मायूस सा हो गया था..

" हम है ना साथ में तुम तीनो पर किसीकी नजर नहीं लगने देंगे..." करन ने मुस्कुराते हुए कहा..

यह सुनकर अनिरुद्ध करन के गले लग गया..
" जानता हु जब तक मेरे दोस्त मेरे साथ है हमे कुछ नही हो सकता पर पता नही कुछ अनजाना डर लग रहा है .. "

" तू फिक्र मत कर कुछ नही होगा कल सब ठीक होगा.."

" वैसे अब हमारा सपना सच होने वाला है..." अनिरूद्ध बोला ही था की वहा सौरभ आ गया..
" कैसा सपना ? " सौरभ ने आते ही कहा..

" याद है जब हम कॉलेज में थे तब हमने तय किया था की हम तीनो मिलकर अपना बिज़नेस स्टार्ट करेंगे... और देखो ये सच होने वाला है..."

" हा और इस पंद्रह अगस्त को उस बड़े प्रोजेक्ट के साथ हम तीनो साथ में अपने बिजनेस की शुरुआत करेंगे..." करन ने कहा..

" और इस बार हम तीनो को बिज़नेस में कोई नही हरा पाएगा... " सौरभ ने खुश होते हुए कहा..

सौरभ ने अपना हाथ आगे बढाया ... अनिरूद्ध और करन ने भी उसका हाथ पकड़ लिया..
" ये दोस्ती हम मरते दम तक निभायेंगे..." सौरभ बोला..
" ये दोस्ती हम कभी नही टूटने देंगे..." करन बोला..
" दोस्त है तो जिंदगी है..." अनिरूद्ध ने बोला और तीनो दोस्त एक दूसरे के गले लग गए...

संजना और बाकी लड़किया इन तीनो दोस्तो को देख रही थी..
"हे भगवान इनकी दोस्ती को ऐसे ही बनाए रखना..." संजना में मन में प्रार्थना करते हुए कहा..और फिर मुस्कुराने लगी..

" किंजल जा तो वो फूलों की टोकरी लेके आ तो.." रागिनी जी ने वहा आते हुए कहा..

किंजल फूलों की टोकरी लेके आ ही रही थी की वो करन से टकरा गई और सारे फुल उछल कर उन दोनो पर गिर गए...
दोनो एक दूसरे को देख रहे थे...
किंजल ने तुरंत अपनी नजर करन से हटाई और फूल इकठ्ठा करने लगी...
करन उसे देख रहा था.. वो पहली वाली किंजल को मिस कर रहा था.. इतने महीनो तक किंजल और करन ठीक से बात नही करते थे करन जब भी कोई बात करने जाता किंजल उसका जवाब देकर ऐसे ही नजरे फेर लेती...

किंजल जा ही रही थी की करन ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपने पास खींच लिया..
" किंजल तुम मुझे इग्नोर क्यों कर रही हो ? "
" नही तो ऐसा कुछ नहीं है.."
" जब से तुमने वो बात की थी तब से लेकर आज तक तुम मुझसे ठीक से नजरे भी नही मिला रही हो.. फोन में भी काम से ज्यादा कोई बात नही करती हो.. मेरे घर पे आती नही हो , में आता हु तो तुम काम से बाहर चली जाती हो.. क्या हुआ है मुझे बताओगी..? "
करन थोड़ा गुस्से से चिड़ता हुआ बोला।

यह सुनते ही किंजल की आंखे बहने लगी...
" आई एम सोरी किंजल पर में वो पहले वाली किंजल को बहुत मिस करता हु.. यार कुछ तो कहो मुझसे.. मुझे बिल्कुल ऐसे अच्छा नही लग रहा है.. "

" आई एम सोरी करन पर मैने तुम्हे उस दिन जो कहा था उसके बाद में तुमसे बात ही नही कर पा रही हू..मुझे लगा की में तुमसे प्यार करती हु ये जानकर तुम मुझसे दोस्ती भी तोड़ दोगे.. और मुझे तब बहुत हर्ट होगा ..इसीलिए मैने सोचा अगर में ही धीरे धीरे तुमसे बात बंध कर दू तो इतना हर्ट नही होगा..." ये बोलते हुए किंजल रोने लगी...

" किंजल किसने कहा की में तुमसे दोस्ती तोड़ दूंगा..? क्या मैने तुमसे कुछ कहा था ऐसा ? "

" नही..."

" तो फिर ? क्यों ऐसे अपने आप खयालात पाल लेती हो.. आकर एक बार मुझसे बात नही कर सकती थी ? "

" आई एम सोरी..."

" देखो किंजल में नही जानता की में तुमसे प्यार कर पाऊंगा या नही .. पर हमारी दोस्ती.. में कभी नही तोडूंगा समझी.. यार अब तुम मेरी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुकी हो , हमारा एक बॉन्ड बन चुका है.. और ये रिश्ता मुझे अच्छा लगता है , में खुश रहता हु तुम्हारे साथ.. , तुम सब के साथ.. और में इसे कभी खोना नही चाहता हु समझी.."

" हम..." किंजल ने सिर हिलाते हुए कहा..

" अब कोई ऐसा पागलपन मत करना समझी.. मुझे वो पहली वाली किंजल ज्यादा पसंद है .. जो मुझसे लड़ती है , गिरती रहती है , थोड़ी सी नकचडी है पर अच्छी है.." करन ने एक आंख विंग करते हुए कहा..

और किंजल के चहेरे पर मुसकुराहट आ गई.. चलो अभी ये फूलों को कौन समेटेगा...
बोलकर करन फुल टोकरी में डालने लगा.. और किंजल स्माइल करती हुई सिर्फ करन को देखती रही..

फिर किंजल वहा से चली गई...
करन खड़ा होकर किंजल की बातो के बारे में सोच रहा था..
" क्या हुआ करन ? क्या सोच रहे हो ? " अनिरूद्ध की आवाज से करन अपने खयालों से बाहर आया..

" कुछ नही किंजल के बारे में सोच रहा था.."
" क्या हुआ किंजल को ? "

" अनिरूद्ध को बता ही देता हु.. उससे छुपाना सही नही है..." करन ने मन में ही कहा..

" अब बोल भी..."

करन ने सारी बात अनिरुद्ध को बताई सिवाय ये की वो दोनो बैंगलोर गए थे...
" ये तो में पहले से ही जानता था में क्या सब जानते थे की किंजल तुझे पसंद करती है सिर्फ तू ही गधा नही जानता था.." अनिरूद्ध ने करन के सिर पर धीरे से मारते हुए कहा..

" करन एक बात पूछूं तू किंजल के बारे में क्या फील करता है ? "

" किंजल वो तो सिर्फ मेरी दोस्त ही है.."

" सिर्फ दोस्त ? या दोस्त से बढ़कर ? "

" नही नही दोस्त ही है.."

" तो ये बता की किंजल के तेरे साथ बात ना करने से तू इतना परेशान क्यों रहता था ? तुझे कुछ अच्छा क्यों नही लगता था.. ? "

" मुझे यही तो समझ नही आ रहा .."

" एक बात बोल रात को जब सोता है या उठता है किसका खयाल तुझे सबसे पहले आता है ? "

करन कुछ बोला नहीं...

" किंजल का सही कहा ना मैने ? "

" हा यार.. पता नही क्यों में उसके बारे में सोचता रहता हु.."

" मेरे भाई इसे ही तो प्यार कहते है... तू प्यार करने लगा है किंजल से...."

" नही नही कुछ भी.. मोनाली के टाइम पर तो मुझे ऐसा कभी फील नहीं हुआ था ... "

" करन सोरी यार तो तूने कभी मोनाली से सच्चा प्यार किया ही नहीं... "

" क्या मतलब ? "

" मतलब मोनाली तेरा सच्चा प्यार कभी थी ही नहीं.. शायद अभी तुम्हें मेरी बात समझ नही आ रही होगी.. पर एक बार आंखे बंध करके किंजल के बारे में सोचना और फिर बताना की तुम क्या फील करते हो..." अनिरूद्ध ने कहा और वो वहा से चला गया...

अगले दिन सुबह सुबह सब तैयार होकर अरेंजमेंट में लगे हुए थे... अनिरूद्ध , करन और सौरभ बैठकर फूलों की मालाएं बना रहे थे... पास में राजेश जी रेडियो पर पुराने गाने सुनते हुए सब गेस्ट की लिस्ट चेक कर रहे थे...

तभी किंजल और मीरा लहेंगे में तैयार होकर हाथो में रंगो की थाली लेकर सामने से आ रही थी वो दोनो बहुत ही सुन्दर लग रही थी , सौरभ का ध्यान उस तरफ गया तो वो उन्हें देखता ही रहा गया उसने करन को कोहनी मारकर उस तरफ देखने को कहा...
करन ने भी जब किंजल को देखा तो वो उस पर से नजर हटा ही नही पाया..
दोनो बिना पलके जपकाए उन दोनो को देख रहे थे... किंजल और मीरा ने भी उन दोनो की तरफ देखा और मुस्कुराई... और फिर हस्ते हस्ते आपस में बात करती हुई रंगोली बनाने दरवाजे के पास बैठ गई..

करन ने अनिरूद्ध के कहे अनुसार अपनी आंखे बंध की और उसे हस्ती हुई किंजल दिखाई दी... अचानक उसकी धड़कने तेज होने लगी... उसने अपने दिल पर अपना हाथ रख दिया.. और फिर धीरे से अपनी आंखे खोली...
वो फूलों से माला बना रहा था पर उसका ध्यान किंजल की और ही था...



तभी रेडियो में एक पुराना सुंदर सा गीत बज रहा था..

"दिल ने कहा चुपके से, ये क्या हुआ चुपके से
क्यों नये लग रहें है ये धरती गगन
मैंने पूछा तो बोली ये पगली पवन
प्यार हुआ चुपके से, ये क्या हुआ चुपके से

तितलियों से है सुना ,
मैंने किस्सा बाग का, बाग में थी एक कली
शर्मीली अनछुई, एक दिन मनचला, हो, भँवरा आ गया
खिल उठी वो कली पाया रूप नया
पूछती थी कली के मुझे क्या हुआ
फूल हसा चुपके से, प्यार हुआ चुपके से "

❤️ क्रमश: ❤️