Hanuman sathikqa in Hindi Book Reviews by ramgopal bhavuk books and stories PDF | हनुमान साठिका-बलदेव दास

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हनुमान साठिका-बलदेव दास

हनुमान साठिका-बलदेव दास
मंत्र समान छंद
दतिया निवासी प्रोफेसर राम भरोसे मिश्रा के सौजन्य से प्राप्त 'हनुमान साठिका' नामक एक लघु ग्रंथ प्राप्त हुआ है। यह पुस्तक श्रीसीताराम प्रकाशन की प्रस्तुति है जिसे मांनस प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड मोकाम पोस्ट रामवन जिला सतना mp ने प्रकाशित किया है।
इन छन्दों के रचयिता लाल बलदेव प्रसाद का जन्म संवत 1908 में कायस्थ परिवार में ग्राम खटवारा जिला बाँदा में हुआ था। लाल बलदेव प्रसाद शिक्षा प्राप्त कर काशीराज के दरबार मे सेवा में आ गए थे। वे यहां संबत 1926 से सम्वत 1944 तक रहे। लाल बलदेव प्रसाद ने 35 ग्रंथो की सर्जना की। जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं रामायण राम सागर, भारत कल्पद्रुम, वर्षा रामायण, विष्णुपदी रामायण,हनुहाँक, हनुमान साठिका, बजरंग बीसा, उक्ति परीक्षा, शुक्ति चंद्रिका, कृष्ण चंद्रिका, रूप पचासा, भैरवनाथ का बीसा, गुरु महत्तम, मानव परीक्षा, अनुभव रहस्य, जानकी विजय, विनय कवितावली, सूर्य चालीसा, गणेश बत्तीसी, चंडी शतक, गजल पचासा, सोमवती महत्तम, देव कोष वैद्य सुधाकर, खेचर चरित्र, स्वरोदय ज्ञान प्रभाकर और ज्ञान रत्नाकर आदि
साहित्यिक छंद शास्त्र और स्तुति ग्रन्थों की परंपरा में यह एक दूषण रहित ग्रन्थ है। सवैया,कवित्त, चौपदी और दोहा छन्द में विरचित इस ग्रन्थ में साठ छन्द है जोश्री हनुमतलाल की स्तुति में लिखे गए हैं। बलदेव दास जी ग्राम खटवारो के रहने वाले थे। उंन्होने इस ग्रन्थ की सर्जना विक्रमसम्वत 1941 में की थी। संस्कृत निष्ठ हिन्दी इस ग्रन्थ की विशेषता है जिस पर ब्रज का असर है। यह छन्द पीड़ा हरने, कष्ट दूर करने, बीमारी, ताप,ज्वर, नजर, मूठ आदि करतब के निवारण के लिए प्रभावकारी हैं।
सुविधा हेतु मूल पाठ भी प्रस्तुत है।
रामगोपाल भावुक

१०१ वर्ष पूर्व महात्मा बलदेवदास विरचित सिद्ध मंत्र सम प्रभावशाली

हनुमान साठिका

एवं

हनुमान चालीसा - संकटमोचन हनुमानाष्टक
प्रथम संस्करण की भूमिका

प्राणी मात्र सुख चाहता है। मनुष्य तो सुख समृद्धि और मंगल की वृद्धि तथा दुःखों का नास भी चाहता है। “मिठो अरु कठवति भरो। " परन्तु प्रकृति ऐसा होने नहीं देती ।। उसमें कार्य कारण का संबन्ध अनिवार्य से लागू होता है अर्थात्-

करम प्रधान विश्व करि राखा ।
जो जस करइ सो तस फल चाखा ||

एवं

करइ जो करम पाव फल सोई ।

निगम नीति अस कह सबु कोई ।।

जो विचारे दीन हैं, निर्बल हैं, असहाय तथा असमर्थ हैं, प्राकृतिक शक्ति सहारे अभीष्ट प्राप्ति के यत्न में विफल और निराश हो चुके हैं, उनके तो बल भगवान या उनके भक्त ही आधार होते हैं। उन्हें भी रिझाने के लिये पूजा , पाठ, स्तोत्र एवं विनय की आवश्यकता पड़ती है । कहना न होगा कि भक्तों की परावाणी से रची हुई स्तुति देवता को प्रसन्न करने में बड़ी सहायक है। प्रस्तुत साठिका अर्थात् साठ सवैया और कवित्त में एक महात्मा रचित हनुमानजी का स्तोत्र है । एक एक छन्द मन्त्र है। श्रद्धा से पाठ करने वाला सहज ही अनुभव कर सकता है। मेरे ऊपर एक संकट ऐसा था जिसे प्राकृतिक साधन दूर न कर सके । साठिका के सहारे मैं पार हो गया । यह कहने का साहस करता हूँ कि यह साठिका वास्तव में सब सुख देने अमोघ मंत्र है। हनुमानजी जब स्वयं भगवान के अमोघ बाण हैं तो उनकी स्तुति अमोघ क्यों न हो । अस्तु।

मेरी उत्कट कामना है कि दुःखतप्त और आर्तजन साठिका का पाठ करें। मंगल मूर्ति हनुमानजी ही असमय के मीत हैं और निर्बल के बल हैं । इसका
एक पाठ नित्य करना चाहिये। प्रत्येक मन्त्र पर आहुति देनी चाहिये। कार्य सिद्धि के लिये मन की शुद्धि परम आवश्यक है। हनुमतलाल जी नव निधि के दाता है । पुकार पर दौड़ पड़ना उनकी बान है। मेरे अनेक कार्य इस साठिका द्वारा सिद्ध हुये है ।

श्री पवन कुमार की जय !!!

विनीत
श्री रामधारीलाल मुख्तार मानस संघ देवरिया ( गोरखपुर)

श्री हनुमान साठिका

महात्मा बलदेवदास कृत

[ प्रथम प्रकाशक ]

मानस प्रकाशन लिमिटेड

मु० पो० रामवन जि० सतना

मध्य प्रदेश


हनुमान साठिका

दोहा - श्री गणपति मंगल करण हरण अमंगल मूल ।
मंगल मूरति मोहि पर रहहु सदा अनुकूल ॥१॥
संवत सर श्रुति खंड विधु कार्तिक शुभ सित पक्ष ।
छठि मंगल बलदेव कृत हनुमत विनय प्रत्यक्ष ॥२॥
(दोहे के अनुसार इस कृति का रचना काल है : कार्तिक शुक्ल ६ संवत् १६४१ )

अथ रुद्राष्टपदी सवैया
जो परते पर, कारण हूँ कर- कारण केवल, कोउ न जाना ।
एक अनीह अरूप अनाम, अजी ! सत चेतन आनन्द माना ॥
व्यापक विश्व-स्वरूप भक्तन हेतु सोई देह अनेक धरै अखण्डित, भगवाना ।
जग में, बलदेव सो रुद्र नमो हनुमाना ॥१॥
( ४ )

जौन महा कल्पान्त के अन्त में, श्याम भयानक उग्र महाना ।
कोटि दिनेश से देह दिपै द्युति, कोटिन दामिनि पुञ्ज समाना ॥ पंच मुखान ते ज्वाल कढ़े, दृग- तीन, भुजा दश है' बलवाना।
तीव्र त्रिशूल दलै खल को, बलदेव सो रुद्र नमो हनुमाना ॥२॥

श्याम अकार अकाश महा, अहँकार समष्टि प्रताप निधाना ।
ज्ञान की इन्द्रिय पञ्च मुखै, कर्मेन्द्रिय देव भुजा दश जाना ॥ त्रैगुण, तीनिहुँ काल, त्रिअग्नि, त्रिनेत्र त्रिलोक त्रिशूल बखाना ।
तेज दहै ब्रह्मण्डन को, बलदेव सो रुद्र नमो हनुमाना ॥३॥

जो दिग्पाल के मुण्डन के, ब्रह्माण्डन के सजि माल सुजाना ।
दिग्गज नाथि त्रिशूल के अग्र नचे करिके श्रुति छंद को गाना ||
( ५ )

जासुके रूप से शक्ति कढ़ें, अति महिमा जेहि वेद बखाना ।
सम्भव पालन लय करता, बलदेव सो रुद्र नमो हनुमाना ||४||

कोटिन्ह गाज से गाज भयङ्कर, टूटि पर ध्रुव चक्र विमाना ।
नाक उसाँस प्रलय जल क्षोभित, खैचि करै पल में तेहि पाना |
| अन्त सें अकेल रहे, यक होत सो सूक्षम अन्तर्धाना ।
कारण कारज काल वही, बलदेव सो रुद्र नमो हनुमाना ||५||

जौंन महेश महीश मही, सुरभी सुर साधु विनय सुनि काना ।
अंजनि गर्भ से जन्म लियो, रवि भक्षि हन्यो पविमान गुमाना ॥
मानि कै स्तुती भानु तज्यौ, गुरुदेव बनाइ कियो सनमाना ।
देखि त्रिदेव प्रसन्न भये. बलदेव सो रूद्र नमो हनुमाना ॥ ६ ॥
( ६ )

रामहि लाइ सुकंठ मिलाय, अभय करिकै कपिराय प्रमाना ।
ले मुँदरी सिय-सोध चल्यो मग, प्यासे कपीन्ह के राखेहु प्राना || लाँघत सिंधु हन्यो सुरसा-मद, सिंहिका मारि उड्यो जिमि बाना | लंकिनि को हनि लंक धँस्यो, बलदेव सो रुद्र नमो हनुमाना ॥७॥

बाग उजारि के अक्ष पछारि के, जारि के लंक सिया सुधि आना । लाय सजीवन ज्याइ के लक्ष्मण, राम को किन्हो पाताल में त्राना ॥ दीन्ह विजय रण में प्रभु को, प्रिय होहु अगम्य लह्यो वरदाना ।
सोच हर यो मुनि देवन को, बलदेव सो रुद्र नमो हनुमाना ॥८॥

पञ्चमुख हनुमद्-ध्यान धनाक्षरी
पूरब बिकट मुख मर्कट संहारै शत्रु, दक्षिण नृसिंह जारै दानव वपुष को ।
पश्चिम गरुड़ मुख सकल नेवारे दिसि, (विष) उत्तर वराह आने सर्व देव सुख को
उर्ध्व हयग्रीव पर मंत्र यंत्र तंत्रन को, करत उचाट बलदेव दीह दुख को । बूत (सामर्थ्य) करतूत सुनि भाजै यमदूत भूत, वन्दौं सो सुपूत पौन पूत पञ्चमुख को ॥ ९ ॥

कैधौं मार्तण्डन के झुण्ड एक ठौर भयो,

कैधौं पञ्चमुखी मुख मंडले विशाल है ।
कैधौं विज्जु सूर्य बड़वानल के कुंड नैन, काल को कोदंड कैधौं भृकुटी कराल है ॥
कैधौं युग मेरु के उदंड भुजदंड चंड, इन्द्र धनु कैंधौ लूम लाल पटज्वाल है ।
कैधौ बलदेव ब्रह्माण्ड में भर यो गुलाल, कैधौं लाल पूरि रह्यो अंजनी को लाल है ॥१०॥

पुन: हनुमान अष्टपदी

कोटिन सुमेरु से विशाल महावीर वपु कोटिन तड़ित तेजपुंज पट लाल है ।
कोटिन दिनेश दर्प मर्दन वदन दिव्य पिगंदृग जागे ज्वाल भृकुटी कराल है |
कोटिन कुलिश चूर करन रदन जाहि वज्र भुज-दंड उर लाल मणिमाल है ।
ललित लंगूर बलदेव दुःख दूर करें, दीनन दयालु रूप दुष्टन को काल है ॥११॥
(5)

लाल मणि मंडित मुकुट लाल कुंडल है लाल मुख मंडल सिन्दूर लाल भाल है ।
लोचन विशाल लाल, मानो प्रलय काल ज्वाल लाल भुज पंजा नखस्पेटा लाल लाल है ।
ललित लँगोट गोट ललित लंगूर कोट लाल जंघ मोट पद शत्रुन को शाल है ।
सोई लाल मूरति को ध्यावै बलदेव बाल दीनन दयालु रूप दुष्टन को काल है ॥ १२ ॥

बदन विशाल जाके गाल ही में बाल रवि नैना लाल लाल बड़वानल की ज्वाल है ।
भौंहे विकराल के विलाश से प्रभाव नाश भुजन के मध्य अर्द्ध उर्ध्वं दिगपाल है ||
जाके गरे सारे ब्रह्माण्डन के माल परे जाके फाल बीच सर्व गगन पताल है ।
सोई लाल मूरति को ध्यावै बलदेव बाल दीनन दयालु रूप दुष्टन को काल है ॥१३॥

बालापन बाल रवि लील्यो जानि लाल फल बालि को बधाय बन्धु कियो कपिपाल हैं ।
सुरसा को मद गारि, सिंहिका को उद्र फारि दुस्तर समुद्र को जो कीन्हो एक फाल है ॥
( 8 )

लंकिनी पछारि, वाटिका उजारि, अच्छ मारि लङ्क जारि, प्रभु को सुनायो सिय हाल है ।
सोई लाल मूरति को ध्यावै बलदेव बाल दीनन दयालु रूप दुष्टन को काल है ॥ १४ ॥

बांधत पयोधि सेतु भूधर बहत लखि बज्र नख राम नाम लिख्यो ततकाल है ।
ताहि के प्रभाव सिन्धु भयो थिर सेतु बन्ध कटक विशाल युत उतरे कृपाल है ॥
मानि हनुमान मत ठहरे सुबेल शैल घेरे लङ्क द्वार युद्ध कीन्हो विकराल है ।
सोई लाल मूरति को ध्यावै बलदेव बाल दीनन दयालु रूप दुष्टन को काल है ॥ १५ ॥

लखन के छाती बीच मारयो मेघनाद शक्ति जान्यो हनुमान भयो राघव विहाल है ।
लायो तब बेगि ऐन संयुत सुखैन वैद्य औषधि बतायो गिरि धवल विशाल है ॥ उत्राखण्ड जात कालनेमि को पछार्यो मग भूधर उपाय के उड्यो जो उताल है ।
सोई लाल मूरति को ध्यावै बलदेव बाल दीन दयालु रूप दुष्टन को काल है ॥१६॥
( 10 )

आनि के सजीवन जो लखण को राख्यो प्राण मारर्यो अहिरावण को पैठि के पताल है ।
जीवन कुशल बेगि लायो दुहुँ भाइन को जानकी मिलायो भये राघव निहाल है ||
जेहि की सहायता ते अवध में राजे राम बाजे व्योम बाजे गुण गाये दिगपाल है ।
सोई लाल मूरति को ध्यावै बलदेव बाल दीनन दयालु रूप दुष्टन को काल है ॥१७॥

जाको नाम लीन्हे, ताल दीन्हे, फट स्वाहा कहे काँपै भूत प्रेत यक्ष राक्षस बेताल है ।
देवी देव दानव पिशाच न सहत आँच भाग ठौर छोड़ि यम काल मृत्यु- व्याल है ।
राम-सीय प्यारो औ प्रभञ्जन दुलारो धीर वीर पीर-भञ्जन को अंजनी को लाल है ।
सोई लाल मूरति को ध्यावै बलदेव बाल दीनन दयालु रूप दुष्टन को काल है ॥ १८ ॥

भारत में पारथ के रथ-केतु बैठिबे को वीर वन कदली से आतुर उड़ानो है । काँप्यो मारतण्ड ब्रह्माण्ड न सहत तेज जबै नभ मंडल में चण्ड मेड़रानो है ॥
( ११ )

बाल रवि कोटिन से लाल छवि छाजै अंग कोटि मृगराज से घटा से घहरानो है ।
चौंकि उठे योद्धा सर्व छूटि परै अस्त्र शस्त्र धीर बलदेव सो ध्वजा पै ठहरानो है ॥ १९॥

सवैया

मेरु प्रभा तनु विज्जु प्रभा पट, कोटि प्रभाकर से मुखभ्राजै ।
वज्र भुजा नख तेज दिपे यक कन्ध गदा यक में ध्वज राजै ॥
लाल लंगूर लसै नभ लौं मँडरात चलै कटि किंकिणि बाजै ।
जो बजरंग को ध्यान धरै बलदेव कहै क्षण में डर भाजै ॥२०॥

शीश लसै मणि कंचन क्रीट सुभाल में द्वादश रेख बिराजै ।
कानन कुण्डल कुंचित केश चढ़ी भृकुटी दृग पिंगल छाजै ॥
बाहु विजायठ माल हिये सियराम को रूप सजै जन काजे।
जो बजरंग को ध्यान धरै बलदेव कहै क्षण में डर भाजै ॥२१॥

|| हनुमान चौपदी ॥

कुन्दन ललाम क्रीट कुण्डल तिलक दिव्य बाँकी भौंह पिंग दृग तेज भरपूर है ।
बाल रवि लालिमा लजावन कपोल लाल लाल चारु चिबुक जो किन्हों वज्रचूर है।
( १२ )

वज्र मुख, वज्र रद, वज्र उर, वज्र भुज वज्र नख, वज्र तन लसत सिन्दूर है।
ललित लंगूर से लपेटि दले क्रूरन को शूरन में शूर महावीर मशहूर है ||२२||

हाजिर हुजूर सदा राम से न दूर होत जगत सुजस जासु जगत जहूर है । कोटि मृगराजहू से गाजहू से गाज सुनि भाजै यमराज़ भव सिन्धु परै झूर है ।।
जाके नाम लीन्हे बिष अमृत, नरक स्वर्ग आगी होत पानी और पानी होत धूर है।
ललित लँगूर से लपेटि दलै क्रूरन को शूरन में शूर महावीर मशहूर है ||२३||

जाको नाम संकट मोचन, सोच-मोचन है, फन्द रिन मोचन, दरिद्र तम सूर है ।
द्रुत वन्दी मोचन, पिशाच प्रेत मोचन है पाप शाप मोचन, त्रिताप करे दूर है ॥
काल - भय मोचन, कराल भव मोचन है दुर्जन- दलन, जन जीवन को मूर है ।
ललित लँगूर से लपेटि दलै झरन (दुष्ट) को शूरन में शूर महावीर मशहूर है ||२४||
( १३ )

काहू के कुटुम्ब काहू द्रव्य ही को भारी गर्व काहू भुज दर्प काहू गुण को गरूर है।
काहू भूप मान काहू रूप अभिमान सान दीनन अबल जानि सीदत जरूर है ॥
ताही ते सभीत तोहि टेरे बलदेव दास रक्षै करि माफ बेसहूर को कसूर है ।
ललित लंगूर से लपेटि दलै भूरन को शूरन में शूर महावीर मशहूर है ||२५||

महिमा विशाल बाल रूप अंजनी को लाल राम अनुराग रंग रंग्यो अंग अंग है ।
राममयी दृष्टि मुख राम नाम - इष्ट ध्यान हिये राम ही को धाम राम प्रेम को उमंग है |
रामयश श्रौन रामकाज ही में हाथ पाँय नित्य बलदेव रामभक्तन पै दंग है ।
अन्तःकरण रामतत्त्व ही में लीन सदा राम के प्रताप ही को पुंज बजरंग है ॥२६॥

शान्त रस चित्त पै ज्यों, वीर रस दीनता पै विद्या रूप-हीनता पै, क्षोणता पै बंग (भस्म) है ।
कुम्भज समुद्र पैज्यों, जुर्रा (बाज ) खग क्षुद्र पैं ज्यों त्रिपुर पै रुद्र बलदेव कियो भंग है ॥
( १३)

काहू के कुटुम्ब काहू द्रव्य ही को भारी गर्व काहू भुज दर्प काहू गुण को गरूर है। काहू भूप मान काहू रूप अभिमान सान दीनन अबल जानि सीदत जरूर है ॥ ताही ते सभीत तोहि टेरे बलदेव दास रक्ष करि माफ बेसहूर की कसूर है । ललित लँगूर से लपेटि दलै भूरन को शूरन में शूर महावीर मशहूर है ||२५||

महिमा विशाल बाल रूप अंजनी को लाल राम अनुराग रंग रंग्यो अंग अंग है । राममयी दृष्टि मुख राम नाम इष्ट - हिये राम ही को धाम राम प्रेम को उमंग है ॥ रामयश श्रौन रामकाज ही में हाथ पाँय नित्य बलदेव रामभक्तन पै दंग है । अन्तःकरण रामतत्त्व ही में लीन सदा राम के प्रताप ही को पुंज बजरंग है ॥२६॥

शान्त रस चित्त पै ज्यों, वीर रस दीनता पै विद्या रूप-हीनता पै, क्षीणता पै बंग (भस्म) है । कुम्भज समुद्र पै'ज्यों, जुर्रा (बाज ) खग क्षुद्र ज्यों त्रिपुर पै रुद्र बलदेव कियो भंग है
( १४ )

पानी अग्नि चण्ड पै ज्यों, चण्डी चण्ड मुण्ड पै ज्यों पापन के पै ज्यों गङ्गा की उमंग है ।
केहरि गयन्द पै ज्यों, पाला अरविन्द पै ज्यों बैरिन के वृन्द पै त्यों वीर बजरंग है ||२७||

राम-गुण पाप ज्यों, राम शिवचाप पैं ज्यों पन्नगारि साँप पै ज्यों, ताप पै इलाज है ।
शीत मसा डंस पै ज्यों, भीम कुरु वंश पै ज्यों कृष्ण खल कंस पैं ज्यों, गिरिन्ह पै गाज है ।
आदित अँधेर पै ज्यों, शेर छेर ढेर पै ज्यों असुर अहेर पै ज्यों, बलदेव राज है ।
पावक पतेर पैं ज्यों, पौन घनघेर पै ज्यों बैरिन बटेर पै त्यों बाज कपिराज है ||२८||

राम दश शीश पै ज्यों, वैरिन खबीश पैज्यों मथुरा अधीश के ज्यों, प्रबल गोविन्द है ।
महादेव मार पै ज्यों, भानु अन्धकार पै ज्यों सगर कुमार पै ज्यों, कपिल मुनीन्द्र है ॥
गरुड़ फणीन्द पै ज्यों, वज्र है गिरीन्द पै ज्यों कहैं बलदेव ज्यों गयन्द के मृगेन्द्र है।
आगी तूल वृन्द पै ज्यों, पाला अरविन्द ज्यों भूत प्रेत वृन्द त्यों दलन कपिन्द है || २९ ॥
: ( १५ )

सुकृत विराग योग ज्ञान औ विज्ञान सर्व कला के निधान काव्य नाटक से दक्ष है ।
अर्थ धर्म काम मोक्ष देत सदा सेवक को नाम कलि काल में विशेष कल्प वृक्ष है ॥
हरे जो अलक्षि भरै लक्षि करै बुद्धि स्वच्छ मारि प्रतिपक्षिन को राखै जन पक्ष है ।
दानौ भूत प्रेत यक्ष राक्षस के भक्षिबे को रक्षिबे को बाल लाल मूरति प्रत्यक्ष है ||३०||

पूर्वज के पाप कैंधो, सन्त गुरु शाप केधो देवी देव दाप कैंधों भूत ब्रह्मदोष है ।
वायु को कुयोग केधो, वीर्य रज रोग कैंधों दुष्ट दशा भोग कैंधो क्रूर ग्रह रोष है ॥
काके उत्पात से केधौं होत गर्भ श्राव पात ताको शान्त कीजें बलदेव रक्षि कोष हैं ।
अंजनी की आन राम बान की दुहाई मान वीर हनुमान गर्भ थाँमैं, करि पोष है ॥ ३१॥

जाकी घोर गाज सुनि, गाज मृगराज लाजै भाजै यमराज को समाज भूत प्रेत मन्द ।
सहित आनन्द गर्भ - अर्भक प्रसव करै मूढ़ गर्भहू को काढ़ि गभिनि को हरै द्वन्द्व।।।
( १६ )

प्यारों रामचन्द्र को दुलारो अंजनी को नन्द सुमिरे तिहारो नाम कटत कलेश फन्द |
जाके चरणारविन्द वन्दत विबुधवृन्द बन्दै बलदेवलाल मूरति लंगोट बन्द ||३२|

कंधौ शीश अर्धशीश शंख चख भौंह नाक कान कण्ठ तालू दन्त जिह्वा होठ पीर है ।
कैधो हाथ पाय पेट पाँजर कि छाती पीठ कंधों वात पित्त कफ पीड़ित शरीर है ॥
कैंधो ग्रहमात्र रोस शाकिनी डाकिनी दोस रोवत अधीर बाल पीवत न छीर है ।
मानि रघुवीर को दुहाई बलदेव कहै सर्व ज्वर पीर को हरैया महावीर है ॥ ३३॥

वन्दौं वात-जात, हरै वात पित्त शीत ज्वर, मिश्रित त्रिदोष ज्वर दूर करि डारिये ।
रात्रि- ज्वर दिन- ज्वर नित्य-ज्वर एक ज्वर द्वै- ज्वर तृतीय ज्वर चौथिया निवारिये ॥
- पञ्च ज्वर आदि ज्वर विषम और सर्व ज्वर कारण उपाधि आधि व्याधि भय टारिये ।
अञ्जनीकुमार बलदेव की पुकार सुनि भूत प्रेत आदि के विकार को निवारिये ॥ ३४ ॥
( १७ )

भैरो भूत प्रेत औ पिशाच ब्रह्म दानव यक्ष राक्षस खवीस को कपिश तूं पछारिये ।
पितर वैताल क्षेत्रपाल देव देवी दोस शाकिनि डाकिनि सती मातृका को मारिये ।।
हाट बाट घाट को कि बाहेर को, गेह को जो लाग्यो देह ताको तू उचाटि काटि डारिये ।
अञ्जनी की आन बलदेव विनय लीजे मानि वीर हनुमान पञ्च वीरन को जारिये ||३५||

दुष्टन - शलन दीन - पालन वदत वेद विश्व में विदित ऐसी रावरी रसम है ।
आरत के आह अग्न श्वास ही वायु पुत्र वेणु - वन - बैरिन को करत भसम है ॥
समुझि सुभाव तेरे आयो बलदेव आस देत खल त्रास मोहि तोरिये कसम है |
कीजै शत्रु नाश दीजै दास को सुपास अब तू ही महावीर जू लसम (दुष्ट) के खसम है ॥ ३६ ॥

जय हनुमान सुमंगल रूप अमंगल भंजन सज्जन प्यारो ।
अंजनिनन्द प्रभञ्जन रंजन केसरि लाल महेश दुलारो ॥
भानुग्रांसुक लोक प्रकाशक त्रास विनासक दास अधारो । पिंगल लोचन संकट मोचन बेगि हरो प्रभु सोच हमारो ॥३७॥
(१८)

जय बजरंग महाभट भीम महाबल तेज प्रताप अपारो ।
ज्ञान विज्ञान विधान निधान महाकवि सर्व सुजान उदारो ॥ आठहु सिद्धि नवो निधि दायक विश्व प्रसिद्ध प्रभाव तिहारो ।
पाहि विनय सुनिये ऋण मोचन बेगि हरो प्रभु सोच हमारो ॥ ३८ ॥

सिन्धु उल्लंघन, सिंहिका मर्दन, लंकिनी मारुतशंक निवारो ।
बाग उजारन, अच्छ पछारन, लंक कलंक को जारन हारो ॥
श्री-दुःख टारन, दुष्ट-विदारन, लक्ष्मण प्राण उबारन वारो ।
यहि विनय सुनि वन्दियमोचन बेगि हरो प्रभुसोच हमारो ॥ ३९ ॥

जय अहिरावण, सैन्य संहारन राम को संकट में रखवारो
दीन- उधारन, काज सुधारन, साधु के कारन को तनु धारो ॥
आधि औ व्याधि उपाधि दलौ बलदेव दया करि मोहि निहारो । यहि विनय सुनिये भ्रममोचन बेगि हरौ प्रभु सोच हमारो ॥४०॥

हनुमान चौपदी

मारन तमीचर को ताड़न शनीचर को मोहन चराचर को मूर्छन विकार है वशीकर लोकन को हरन सब शोकन को गैर मन्त्र रोकन को वीर बरियार है ||
( १६ )

दोष सिन्धु शोषन को खीन जन पोषन को दीनन के तोषन को धनद उदार है ।
व्याघ्र अहि सिंहन को दुष्ट मुख वन्दन को नारी गर्भ थंभन को तेरो अवतार है ॥४१॥

बाधक उच्चाटन को बैरि फन्द काटन को गर्भ उद्घाटन को आरत अधार है ।
दान देत्य यक्ष को भूत प्रेत भक्षन को रोगी बाल रक्षन को लक्षन को यार है ॥
सज्जन के रंजन को दुर्जन के गंजन को सर्व भय भंजन को अंजनीकुमार है ।
दया दृष्टि वर्षन को सृष्टि हिय हर्षन को विभव आकर्षन को तेरो अवतार है ॥४२॥

बाल रवि लीलन को काल मुख कीलन को सर्व विष पीवन को केशरीकुमार है ।
सीता सुधि ल्यावन को लषण जियावन को वृक्ष अहिरावण को खण्डन कुठार है ॥
टोना मूठ भारत को अल्प मृत्यु टारन को आठो ज्वर जारन को दीन रखवार है ।
विपति विदारन को सम्पति सँवारन को संकट निवारन को तेरो अवतार है।।43
( २० )

पाप ग्रह टारन को कपटी पछारन को चोर बटमारन को करत संहार है।
बैरिन उजारन को अधम उधारन को धर्म के सुधारन को भरन भण्डार है ।।
बलदेव तारन को सेवक सँभारन को दीनन दुलारन को रामजी को प्यार है।
भक्त हित कारन को कारज सँवारन को संकट निवारन को तेरो अवतार है ||४४||

-हनुमान सप्तक—

तेरे बल प्रवह चलावे देह मेहन को तेरे बल आवह चलावे शिशुमार को ।
तेरे बल उद्वह जलद से जलद कांहि दैके जल वृष्टि योग करें बहु धार को ॥
तेरे बल संवह चलावे भिन्न भिन्न यान करें वृष्टि काज औ गिरा गिरि भार को ।
आदि सप्त पौन है कै पूरयो ब्रह्माण्ड जौन वन्दे बलदेव तौन पौन के कुमार को ॥४५॥

तेरे बल निवह चलें जो अति दारुण ह्रौं प्रगट बलाहक औ पीड़ित पहार को । तेरे बल परिवाह थमि स्वर्ग गंगा नभ चन्द्रपुर क्षीण करै टारे सूर कार को ॥
( २१ )

तेरे बल सप्तम परावह प्रलय में कोपि नाशै विश्व राखे वश्य काल बरियार को ।
ह्वे के पौन रूप जौन पूज्यो ब्रह्माण्ड पार वन्दे बलदेव तौन पौन के कुमार को ॥४६॥

जाके बल विरचै विरञ्चि भव पाले विष्णु शंकर सँहारै शेष धारै महिभार को ।
जाके बल वारिधि रहत मर्यादा माँहि वारिद वरसि वारि पोषत संसार को ॥
जाके बल अनल दहत, वायु जाके बल तूल से उड़ावै मेरु आदिक पहार को ।
ताके रौद्र रूप को उदार अवतार जौन बन्दै बलदेव तौन पौन के कुमार को ॥४७॥

जाके बल शीत भानु शीतल करत सृष्टि जाके बल भानु हरै घोर अन्धकार को ।
जाके बल शोक तजि पालै लोक-पाल लोक दिग्गज कमठ करै वसुधा सँभार को ।
जाके बल उड़े ब्रह्माण्ड जाके बल निराधार सब जठर पचावत अहार को ।
ताके रौद्र रूप को उदार अवतार जौन वन्दे बलदेव तौन पौन के कुमार को ||४८ ॥
( २२)

तेरे बल बालि से निकण्टक सुकंठ भयो तेरे बल बाँधे कपि सागर अपार को ।
तेरे बल रामचन्द्र लक्ष्मण को ज्यावे रैनि तेरे बल योधा तरे युद्ध-निधि धार को ।।
तेरे बल बाँचे अहिरावण से दोनों बन्धु तेरे बल दूरि कियो सिय के खँभार को ।
राघव भरत को मिलाय दुख मेट्यो जौन वन्दै बलदेव तौन पौन के कुमार को || ४९ ।।

तेरो बल पाय रण मामला में जीत होत तेरो बल पाय जन जीते यमद्वार को ।
तेरो बल पाय रोकि सके आगि पानी वायु तेरो बल पाय मोहै राज को ॥
तेरो बल पाय जल थल में रहै निडर तेरो बल पाय काटै संकट अपार को ।
सर्व गुण-भौन सिय राम को पियारो जौन वन्दै बलदेव तौन पौन के कुमार को ॥५०॥

सुमिरन कीन्हें नाम सिद्ध करे सर्व काम कोन्हे ते प्रणाम, हरै बाधक विकार को ।
भजन किये ते भय भाजत सजत काज गाये गुण बाढ़े गुण, काढ़े दुराचार को।।
: ( २३ )

पूजे अर्थ पूजे रूप ध्याये रूप ज्ञान होत कीन्हे इष्ट देत अष्ट सिद्धि फल चार को ।
सकल विभूति मौन वन्दत द्रवत जौन वन्दे बलदेव तौन पौन के कुमार को ॥ ५१ ॥

रुद्र अवतारी तनुधारी अंजनी के उद्र बाल डरहारी, बाल रवि को अहारी है ।
बाल ब्रह्मचारी बालिबन्धु उपकारी, दीन बन्धु सुखकारी सत्य सिन्धु व्रतधारी है ॥
सिन्धु मद हारी, सुरसा को गर्वगारी, वीर सिंहिका पिछारी लङ्किनी को मारि तारी है ।
भक्त भय हारी बेगि लागिये गोहारी सुधि लीजिये हमारी जन शरण तिहारी है ॥ ५२॥

कानन उजारी अक्ष मारी लंक जारी जौन सीता दुःख हारी कालनेमि को पछारी है ।
धौल गिरि धारी वीर लक्ष्मण उबारी रक्षि रामा हितकारी अहिरावने संहारी है ॥
अवध - बिहारी - काज सकल सुधारी बलदेव बलिहारी वन - कदली विहारी है ।
भक्त भय हारी बेगि लागिये गोहरी, सुधि लीजिये हमारी जन शरण तिहारी है ||५.३||
[ २४)

तेरो गाज भारी सुनि भाजे महामारी नीच काँपति विचारी अल्प मीच ज्यों अपंग है।
देवी देव दानौ दैत्य राक्षस गंधर्व यक्ष कुष्माण्ड किन्नर को बाँधि करें तंग है |
भूत प्रेत पितर वैताल क्षेत्र पाल धाल काल व्याल व्याघ्र वृक तेज होत भंग है ।
योजन पर्यन्त बलदेव पैं न आवै त्रास । सर्व काल सर्व ठौर रक्षै बजरंग है || १४ |

द्विक जन्मरु पंचम सप्त तथा चतुराष्टक द्वादस रन्ध्र धेरै ।
रवि राहु शनिश्चर भौम परे धन धान्य हिरण्य विनाश करै ॥
यह ज्योतिष शास्त्र कहै सुनिकै बलदेव न कुण्डलि सोचि डरै ।
अघ झूर दशा ग्रह मेधन को बल पुंज प्रभञ्जन वीर हरे ।। ५५||

जै कपिनायक रुद्र प्रत्यक्ष सुलक्षण लक्षण रक्षन हारो ।
दूसर चौथ दिवाकर भक्षक जन्मरु अष्टम राहु पछारो ॥
पंचम द्वादश मन्द विमर्दन सप्तम रंध्र कुमंगल टारो ।
श्री धन धान्य भंडार भरो बलदेव को नित्य रहो रखवारो ॥५६॥

चारि आठ नवो षट चौदह पूर्ण एकादश रुद्र कहाया ।
श्री भगवान दया के निधान स्वभक्तन हेतु धरे हरि काया ||
कौन जहान में दुर्गम काज जो ह न सके तुम ते कपिराया ।
दुष्टन को अभिमान हनो हनुमानजी मो पर कीजिये दाया ॥ ५७॥
[ २५ )

को तेहि तौकि के ताकि सके जेहि पै एक बार कियो तुम छाया ।
कौन कमी तव किंकर को जेहि वश्य सदा सियराम अमाया ॥
दीन विनय सुनि वेगि द्रवै बलदेव तेरे शरणागत आया ।
दुष्टन को अभिमान हनो हनुमानजी मो पर कीजिये दाया ।। ५८ ।।

अद्भुत अलौकिक अनेकन जो कीन्हे कर्म आपहू न जानत अगम्य ऐसो उद्र है ।
सुधि के दवाये, बढ़े चण्ड ब्रह्माण्ड खंडि कांपै नभ मंडल में मार्तण्ड क्षुद्र है ॥
योगिनि जमात देवी भैरव त्रिदेव आदि जोरि हाथ कहैं महावीर महारुद्र है ।
सोई वायु- नन्दन को वन्दै बलदेव दास वीर भय रौद्र शान्त रस को समुद्र है ।। ५९ ॥

तू हैं दीनवन्धु हौं तो दीन बलदेव दास पतित उधारन तू, हौं तो पाप ढेरों हौं ।
तू है वन्दो छोर, हौं पर्यो हूँ पञ्चबन्धन में तू है दुष्टदलन, मैं दुष्टन ते घेरो हौं ॥
राजपूर तेरो धाम, मेरी खटवारो ग्राम संकट मोचन तू, मैं संकट में पेरो हौं ।
मेरे तेरे नाते तो घनेरे लीजै राखि मोंहि जैसे बने तैसे अब वारे ही से चेरो हौं ॥६०॥
[ ( २६ )

 

दो० साठ कवित बजरंग के पाठ करे नित कोय ।
आठ सिद्धि नव निधि मिले इष्ट सफल शुभ होय ॥ १ ॥
जो विधिवत आहुति सहित यक यक कवित जगाव ।
मंत्र सदृश सब पर चलिहि श्री बजरंग प्रभाव || २ ||
लिखत पढ़त जँह छन्द स्वर वर्ण अर्थ रस भंग ।
सो अवगुण छमि बालगुनि सुनिय विनय बजरंग ||३||
जिमि शिशु मुख तोतर वचन सुनत मुदित पितुमाय ।
तिमि विनती बलदेव की सुनि गुनि होहु सहाय ||४||

पद्य-रागगौरी

पवनसुत संकट कस न हरे । सुमिरत नाम अमंगल भाजत मंगल भवन भरै ॥
जो जन भजन करत कौनिहु विधि तेहि यमदूत डरै।

ताके पाउ परत इच्छित फल जो नित पाउ परे ॥
जन बलदेव रहै शरणागत निर्भय ताहि करै ।

श्री हनुमान साठिका समाप्त