---- क्या है दोस्त ----
*क्या है दोस्त???
टूटे दिल की "आस" है दोस्त
दोस्ती की बुनियाद "विश्वास" है दोस्त
अकेले होने पर "काश" है दोस्त
साथ हो मेरे तो "हाश" है दोस्त
जो हर पल हो वो "साथ" है दोस्त
जो कही जाए वो हर "बात" है दोस्त
दोस्त का "अभिमान" है दोस्त
दोस्त और दोस्ती की "जान" है दोस्त
जो लिखूँ वो "ज़ज्बात" है दोस्त
जो बिखेर दे खुशियाँ वो "बरसात" है दोस्त
जो मेहसूस हो वो "एहसास" है दोस्त
अब क्या कहूँ कितना "खास" है दोस्त
जो सुलझा दे हर रास्ता वो "अड़चन" है दोस्त
दिल ना सही मगर इस दिल की "धड़कन" है दोस्त
रोज़ मुलाकात का "कारण" है दोस्त
सच्ची मोहब्बत का "उदाहरण" है दोस्त
खुदा का भेजा "फरमान" है दोस्त
जो सबके नसीब में नहीं वो "अरमान" है दोस्त
शब्द कम पड़ जाएं जिसके लिए वो "नाम" है दोस्त
ग्रंथों में "गीता" उर्दू में "कुरान" है दोस्त
बेसुरी जिंदगी का "साज़" है दोस्त
"चालीसा गुरुवाणी नमाज़" है दोस्त
दोस्ती का संग पाने की "तृष्णा" है दोस्त
जो मिटा दे हर दुख वो "कृष्णा" है दोस्त ।।
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---- भीड़ का हिस्सा नहीं बनना ----
* मुझे भीड़ का हिस्सा नहीं
भीड़ का कारण बनना है
इस दुनिया के साधारण लोगों में मुझे
असाधारण बनना है
दुनिया की नजरों में जो कायम रहे
ऐसा एक उदाहरण बनना है
मुझे भीड़ का हिस्सा नहीं
कारण बनना है ।
*भीड़, भेड़ की चाल है
उस भीड़ से बाहर खुद को सिंह सा रखना है
समुह की मुझे आदत नहीं
जिंदगी सफ़र है जिसमें अकेले ही चलना है
जब खुद की पहचान बना सकते हो
तो किसी और सा क्यों बनना है
मुझे भीड़ का हिस्सा नहीं
कारण बनना है ।
* भीड़ पहचान छीन लेती है
मुझे पहचान बनानी है
साहस मैं जुटा लूँगी
बस सही राह अपनानी है
भीड़ मौक़े देगी मगर ज़रा सम्भाल कर
कहीं भीड़ में खुदको खो मत देना
जो पाने निकले हो भीड़ से अलग, वो संजो मत लेना
जो पाने निकली हूँ उसे एक दिन धारण करना है
मुझे भीड़ का हिस्सा नहीं कारण बनना है ।।
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---- शहीदे-ए-आज़म भगत सिंह ----
* बचपन से रगों में ज्वाला उसने आज़ादी की जलाई थी
अंग्रेज़ों को भगाने के ख़ातिर खेतों में बंदूक उसने उगाई थी
फिरंगी अत्याचारी थे
अब कोई ज़ुल्म ना सहने की कसम उसने खाई थी
भूखा रह उसने झुका दिया अंग्रेज़ों को
लोगों में अब आजादी की भूख और क्रांति की लहर उसने जगाई थी
गांधी अहिंसा पर अडिग था पर आज़ादी क्रांति माँगती है
माटी का फर्ज करने को अदा उसने अपनी जवानी दाव पर लगाई थी
लोग कहते हैं आजादी चरखे ने लाइ थी
नहीं जनाब आप गलत हैं
आज़ादी तो लहू और बलिदानों से आई थी
कितनी बही खून की नदियाँ कितनों ने जिंदगी अपनी गवाई थी
ये मुफ़्त में नहीं जनाब कर्जों में आजादी आयी थी
जो भर चुका है अब इकलौता वो आज़ादी का ज़ख्म था
उसे उन ज़ख़्मों का क्या दर्द भला
जिसने बेड़ियों में गुलामी की चोट खाई थी
और जनाब भगत अमर है
भगत शहीद नहीं हुआ था उस दिन
जिसने लगाया गले उस फाँसी के फंदे को मौत आयी थी ।।
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-श्रुति शर्मा❤