Tamacha - 22 in Hindi Fiction Stories by नन्दलाल सुथार राही books and stories PDF | तमाचा - 22 (कैद)

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तमाचा - 22 (कैद)

अब बिंदु का अपने पिता के प्रति व्यवहार कुछ बदल सा गया। वह सिर्फ अपने काम से काम रखती और पिता से केवल इतनी ही बात करती जितनी अतिआवश्यक हो या केवल पिता द्वारा कुछ पूछने पर उसका जवाब ही देती। वह अब दिन भर खोई- खोई सी रहने लगी। उसे वह बात अंदर ही अंदर खाये जा रही थी । न तो उसकी कोई सहेली थी, जिससे वह मन बात कर सके और न ही अपने पिता पर अपने अंदर का क्रोध निकाल सकने के उसमे साहस था।
विक्रम भी कुछ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उसकी बेटी को क्या हो गया, वह आजकल क्यों ऐसे उखड़ी-उखड़ी रहती है। उसने बिंदु से अपने मन की व्यथा जानने का भी बहुत प्रयास किया ,लेकिन वह हर बार उसके हृदय की पीड़ा तक पहुंचने में असफल हो जाता।


बिंदु के इस तरह रहने पर विक्रम भी बहुत परेशान रहने लगा। जिसका प्रभाव उसके कार्यक्षेत्र पर भी पड़ा।
"क्या बात है विक्रम जी आजकल बहुत परेशान से रहते हो ? कोई प्रॉब्लम हो तो बताओ?" हॉटेल मालिक सुनील अपने मोबाइल में ही कुछ देखते हुए बोला।
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मालिक।" विक्रम अपने मन की व्यथा को छुपाते हुए बोला।
"अरे ..आप छुपाओ नहीं ,आपके चेहरे से आजकल साफ नज़र आ रहा है कि आपको किसी बात की तो चिंता है । आप बेझिझक बताओ क्या बात है? आखिर हम भी एक परिवार की तरह है। आपको छुट्टी चाहिए अथवा रुपयों की जरूरत है ? कोई भी प्रॉब्लम हो बोलो आप।" सुनील अपने मोबाइल को साइड में रखते हुए , अपनी मालकियत के भाव को प्रदर्शित करते हुए बोला।
सुनील के इस मृदुल व्यवहार से विक्रम ने अपने मन की बात उनको बतानी ही उचित समझा और कहा "दरअसल बात ये है कि आजकल मेरी बेटी बिंदु पता नहीं क्यों उदास सी ही रहती है। मेरे लाख पूछने पर भी वह कोई जवाब नहीं देती है। पता नहीं उसे क्या हो गया है? बस यही टेंशन मुझे खाये जा रही है।"
"अच्छा ! फिर उसकी किसी फ्रेंड को पूछो शायद उसे आपको बताने में शर्म आ रही हो।"
"हाँ , ये हो सकता है। पर उसकी कोई फ्रेंड ही नहीं है किस से पूछूं।"
"क्या ? उसकी कोई फ्रेंड ही नहीं है?" सुनील ने चोंकते हुए पूछा।
"हाँ, क्या है न कि उसको कहीं बाहर जाने का ज्यादा शौक है नहीं और न ही ज्यादा किसी से मिलना - जुलना।" विक्रम ने अपनी गलती पर पर्दा डालते हुए कहा।
"अच्छा ! कोई बात नहीं फिर उसको थोड़ा बाहर की दुनियां से जोड़ो । अगर वह ऐसे ही घर में कैद रही तो फिर तो वह पागल ही हो जायेगी। और अड़ोसी - पड़ोसी कोई तो होगी उससे आप बात करो और पता करना उसे क्या प्रॉब्लम है। " सुनील ने अपने अपने हाथ में फिर से मोबाइल पकड़ते हुए कहा।
"हाँ , ये आपने सही कहा मालिक। मैं आज ही पता करता हूँ फिर क्या बात है। " विक्रम अपनी चिंता से कुछ उबरने के भाव से कहता है और सुनील का धन्यवाद करता है। सुनील फिर अपने फ़ोन में व्यस्त हो जाता है और विक्रम कुछ निश्चिन्तता के साथ अपने घर की ओर प्रस्थान कर जाता है। वह राह में सोचता है आज जरूर बिंदु की समस्या का पता लगा लूंगा । हो सकता है उसे कोई महिलाओं वाली ही बीमारी हो और मुझे बताने में संकोच कर रही हो। तभी विक्रम को अपनी पत्नी की याद आ जाती है। वह सोचता है काश अगर वह ज़िंदा होती तो बिंदु को इतना कुछ न सहना पड़ता । उसने स्वयं भी पश्चाताप किया कि वह हमेशा बिंदु को बाँध के रखते है और वह एक कैदी जैसा ही तो जीवन जी रही है। उसने रास्ते में बिंदु के लिए खाने के लिए कुछ फास्टफूड लिया और सोचने लगा अब तो बस इसको इस कैद से आज़ाद करने का एक ही तरीका है जो अब जल्दी से करना पड़ेगा और वह है , शादी...



क्रमशः.....